Saturday, 2 April 2016

संविधान विरोधी क़ुरान !




आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से दिया नकार !
सुप्रीम कोर्ट ने तिन बार तलाक कहकर वैवाहिक संबंध तोड़ने की परंपरा को वैधानिक वैधता जाँच करने का निर्देश दिया था। AIMPLB का कहना है,'यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का विषय नहीं है !"
बोर्ड का कहना है ,"पर्सनल लॉ कुरान पर आधारित है !इसलिए सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता !"
यूनिफॉर्म सिव्हिल कोड पर ,"उसमे एकता एवं अखंडता की कोई गैरंटी नहीं है !"
बोर्ड के अधिवक्ता एजाज मकबूल ने कहा कि ,"मोहम्मडन लॉ की रचना कुरान और हदीस से की गई है। इसलिए ,'विधायिका के कानून और धर्म से संचालित सामाजिक नियमों के बिच सुस्पष्ट रेखा होनी चाहिए !"
कोर्ट में प्रस्तुत शपथ पत्र में बोर्ड ने कहा है,'मुस्लिम पर्सनल लॉ एक सांस्कृतिक विषय है। जिसे इस्लाम से पृथक नहीं किया जा सकता !'
संदर्भ - http://hindi.revoltpress.com/nation/aimplb-refuses-supreme-court-decision/

इस विषयपर हिन्दू महासभा नेता अधिवक्ता स्वर्गीय भा गो केसकर , ५-१-२३६,सुन्दर भवन,भागानगर (हैद्राबाद) ५००००१ आंध्र प्रदेश से प्रकाशित पुस्तिका के आधारपर -
कुरान और हदीस मुसलमानो को भारतीय संविधान के प्रति निष्ठां रखने से प्रतिबन्धित करता है।
निम्न उदाहरणों से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है।
१)संविधान संशोधित किया जा सकता है।
    कुरान में कभी संशोधन नहीं किया जा सकता।
२) संविधान १९५० में संविधान सभा द्वारा बनाया गया,अंगीकृत किया गया एवं भारत की जनता को समर्पित किया गया।
    कुरान १४०० वर्ष पूर्व लिखा गया। (तुर्क सरकार ने २०१५ में कुरान संशोधन हेतु पांच सदस्य समिती बनाई है।)
३)संविधान का उद्देश्य भारत की सार्वभौम ,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाने का है। जैसा कि,भारत की जनता ने संकल्प किया था।
    कुरान का उद्देश्य ग्रन्थ को अंतिम दैवी प्रकाशन तथा मुहम्मद को अंतिम सिध्द पुरुष निरुपित करना है।
४)संविधान विश्व के भौतिक स्वरुप के मामलों से सम्बंधित है तथा दूसरे विश्व के मामलों के सम्बन्ध में जैसे धर्म,अध्यात्म,अदृश्य विश्व के जीवन आदि,तटस्थ है।
    कुरान दोनों विश्व के सभी मामलों में एकमात्र मार्गदर्शक तथा नेता होने का दावा करता है।
५)संविधान में विगत ३३ वर्ष में ४५ से अधिक बार संशोधन हुआ है।
    कुरान में १४०० वर्षो में एक भी शब्द बदला नहीं है।
६)संविधान के अनुसार भारत का राष्ट्रपती शीर्षस्थान पर होता है। वह भी राष्ट्र के संविधानिक कार्यप्रणाली के अंतर्गत।
   कुरान के अनुसार,(राष्ट्र संकल्पना न होकर वैश्विक स्तरपर इस्लाम का विचार होता है।) राष्ट्र तथा धार्मिक मामलों में खलीफा शीर्षस्थ होता है। वह कैथोलिक ईसाई चर्च के पोप के समान होता है। उसके पास विश्व के व दूसरे विश्व के मामलों  में समस्त अधिकार है। (७ अगस्त १९९४ लन्दन में हुए विश्व इस्लामी संमेलन में वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर 'निजाम का खलिफा' की नियुक्ति और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण प्रस्तावित हुआ। संदर्भ-शमशाद इलाही अंसारी-दैनिक अमर उजाला २६अगस्त १९९४)
७)संविधान अन्य सभी राष्ट्रों की सार्वभौमता आदर करता है और अन्य देशो को अपने अधीन करने की कल्पना भी नहीं करता।
    कुरान के आदर्शो पर जो देश आधारित नहीं है,उनकी सार्वभौमता नहीं मानी जाती। यह इस्लाम का कर्तव्य है कि,'गैर इस्लामिक देशो को अपने अधीन करके उन्हें दारुल इस्लाम में बदल दे,जहाँ गैर मुस्लिम नागरिक न होकर गुलाम माने जाते है।
     {जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौदूदी हिन्दू वल्ड के पृष्ठ २४ पर लिखते है,"इस्लाम और राष्ट्रीयता की भावना और उद्देश्य एक दूसरे के विपरीत है। जहाँ राष्ट्रप्रेम की भावना होगी , वहां इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश है। }
८)संविधान की प्रस्तावना कहती है ,हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए ........ दृढ़ संकल्प होकर ....
    (अ ) भारत एक राज्य है जो प्रादेशिक सीमाओं में घिरा है।
     (ब)साम्राज्यवाद न तो सिखाया जाता है न उसका सपना देखा जाता है।
     (स) विभिन्न प्रणालियों वाले,जैसे राजतन्त्र,प्रजातंत्र,धार्मिक प्रभुसत्ताक सार्वभौम राष्ट्रों के सह अस्तित्व में विश्वास करता है।
     (द)भारत राष्ट्र निरीश्वरवादी है। परंतु ,प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने या प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
     (इ) प्रजातंत्र एक मुलभुत सिध्दांत है और इसलिए ग्राम पंचायत से केंद्र शासन तक का प्रशासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
     (ई) गणतंत्र ;- प्रजा का शासन यह तीसरा मूलभूत तत्व है।
   
     कुरान में लोगो का कोई स्थान नहीं है। केवल अल्लाह सभी मामलों का निर्णय करता है। वह मालिक है जो शासन करता है,न्याय करता है यहाँ और दूसरे विश्व में भी। लोग केवल उसके गुलाम है। लोग अल्लाह को पिता भी नहीं कह सकते। यह एक शिर्क -पाप है जिसके लिए नरकवास ही सजा है।
     (अ) प्रादेशिक आधारोपर राष्ट्र को कुरान नहीं मानता। यही वजह है कि,मरहूम शेख अब्दुल्ला ने अपने आपको कश्मीरी मुसलमान बताया न कि,एक भारतीय।
     (ब) अध्यात्म विहीन-धर्म के बारीक़ पारदर्शक बुरके में लिपटा यह साम्राज्यवाद है। यह बिना अध्यात्म वाला धर्म है।
     (स) कुरान पर आधारित धार्मिक प्रभुसत्ताक राष्ट्र पर ही विश्वास करता है व उसी पर बल देता है।
     (द) कुरानी राष्ट्र शुध्द ईश्वरवादी है और जहां सुन्नी बाहुल्य है वहां कुरान को अल्लाह द्वारा दी गयी अंतिम पुस्तक तथा मोहम्मद को अल्लाह का अंतिम संदेशवाहक मानना अनिवार्य है। यही कारन है कि,अहमदिया (कादियानी) जो मोहम्मद को अंतिम संदेशवाहक नहीं मानते है,को पाकिस्तान में गैर मुस्लिम,काफिर,पापी घोषित किया गया है और सऊदी अरेबिया में उन्हें हज यात्रा का अधिकार नहीं दिया गया है। शिया को रबजी कहा जाता है। पाकिस्तान में बहाइयों से नफ़रत की जाती है और उनका कत्लेआम है और होता रहता है। भारत में शिया- सुन्नी दंगे एक वार्षिक कार्यक्रम है।
         इसप्रकार,पांच लाख सुन्नियो को जो ईरान की राजधानी तेहरान में रहते है। एक भी मस्जिद बनाने की अनुमति नहीं है। जबकि,दो गुरुद्वारे,बुध्द विहार,मंदिर और ११ चर्च मौजूद है।
      (इ) मुस्लिम प्रजातंत्र केवल खलीफा के चुनाव तक सिमित रहा जो,भौतिक व अध्यात्मिक नेता होता था। यह सीमित खलीफा प्रजातंत्र केवल ३१ वर्ष तक चला।पहले तिन खलीफा लोगो द्वारा क़त्ल कर दिए गए। चौथे खलीफा के बाद कोई चुनाव नहीं हुआ। कोई भी ताकदवर सम्राट स्वयं को एक खलीफा घोषित कर लेता था और समूचा मुस्लिम जगत उसका आज्ञा का पालन करता था। अंत में १९२१ में खलीफा का सिंघासन कमाल अता तुर्क ने समाप्त कर दिया। तब से सभी मुस्लिम राष्ट्र तानाशाही बादशाहो द्वारा शासित है। इस्लाम को प्रजातंत्र से एलर्जी है मुसलमानो के लिए यह वर्ज्य है।
  (ई) कुरान के अनुसार यह वर्ज्य है। अल्लाह एकमात्र शासक है। यह खलीफाओं के द्वारा शासन करता है। जनता की कोई आवाज नहीं है। लोग तो केवल बन्दे या गुलाम है।

(९) संविधान सभी नागरिकों को सामाजिक ,आर्थिक व राजनितिक न्याय प्राप्त करने हेतु।
      कुरान ने जो भी दिया है वह केवल मुसलमानो के लिए और मुसलमानो में भी सुन्नियो के लिए है। गैर मुस्लिमो के लिए न्याय का मापदंड है।
(१०) संविधान स्वतंत्रता विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास और पूजा का।      
       कुरान विचार स्वतंत्रता आदि की सभी मान्यताओं के विपरीत है। इसी वजह से आज तक पिछले १४०० वर्षो में पुस्तकालयों को नष्ट किया गया,स्वतंत्र विचारों को मार डाला गया। अन्य धर्मावलम्बियों को प्रताड़ित किया गया व उन्हें बलपूर्वक धर्मान्तरित किया गया,उन्हें मार डाला गया ,पूजास्थल नष्ट किये गए।
(११) संविधान समानता की बात करता है।
        कुरान के अनुसार,मुसलमानो में आपस में भी समानता नहीं है। अन्य धर्मावलम्बी गुलाम बनाए व बेचे जाते है। मुस्लिम स्त्रियों से भी समानता का व्यवहार नहीं किया जाता। स्त्रियां तो,केवल पुरुषों की वस्तु संपत्ती है। स्त्रियों को हमेशा के लिए गुलाम बनाकर बेचा जा सकता है। किसी अदालत में एक तथ्य सिध्द करने के लिए दो स्त्रियों की गवाही आवश्यक है। अर्थात गवाहदार के रूप में एक पुरुष दो स्त्रियां !
(१२) संविधान उन सभी में (सभी नागरिकों में) भाईचारे को बढ़ावा देते हुए राष्ट्र की प्रतिष्ठा व एकता बनाए रखने हेतु।
        कुरान निःसंशय भाईचारा बढ़ाने की कोशिश करता है। परंतु ,भाईचारा केवल इस्लाम के कठोर पालन करनेवालों में अर्थात सुन्नियो में। इसलिए मोहम्मद ने मस्जिद ए फरार को गिराकर जला दिया। क्योकि,वह नव मुस्लिमो ने बनाई थी। जो शतप्रतिशत मुस्लिम नहीं माने गए। यह भाईचारा आर एस एस या आर्य समाज की किस्म का है। अलगाव की तथा विघटन की स्थिती गैर मुस्लिम राष्ट्रों में उत्पन्न करना ,उनकी एकता समाप्त करना यह कुरानी मुसलमानो के लिए खुली और सतर्कता पूर्वक अपनाई गई जीवनशैली है।
(१३) संविधान -हम एतद द्वारा यह संविधान अंगीकृत अधिनियमित करते है और स्वयं को समर्पित करते है।
        कुरान अंगीकृत,अधिनियमित आदि सभी मान्यताए पाप है !केवल अल्लाह का कानून जो अंतिम बार प्रकट होने के वक्त अंतिम पैगम्बर मोहम्मद के मार्फ़त दिया गया वैध है। जनता को संविधान और कानून बनाने या अंगीकृत करने का हक़ नहीं है। यह अल्लाह का एकाधिकार है।
(१४) संविधान -भारत के राज्यों का एक संघ होगा। ये राज्य एवं उनकी सीमाए प्रथम अनुसूचि के भाग अ,ब,व,स में दर्शाए गए है।
        कुरान के अनुसार, भौतिक रूप से राष्ट्र की कल्पना कुरान के लिए खरतरनाक है। इस्लामी राष्ट्र के लिए प्रादेशिक सीमा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। सिध्दान्ततः यह सम्पूर्ण पृथ्वी पर होता है।
(१५) भारतीय संविधान भाग-३ मुलभुत अधिकार।
       [अ ] अनुच्छेद १२ परिभाषा। अनुच्छेद १३ प्रचलित कानून।

        कुरान [अ ] इन्हे नहीं मानता। केवल शरियत कानून ही माना जाता है।
(१६) संविधान अनुच्छेद १४ कानून के समक्ष समानता-कोई भी राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं करेगा।
        कुरान के अनुसार,गैर मुस्लिम तथा कुरान व मोहम्मद को माननेवालों में कोई समानता नहीं।
(१७) संविधान अनुच्छेद १५ धर्म,जाति,लिंग आदि के आधारपर भेदभाव की पाबंदी।
        कुरान के अनुसार,लिंग के आधारपर भेदभाव करना पवित्र कर्तव्य है।
(१८) संविधान अनुच्छेद १६ सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता।
        कुरान के अनुसार,पुरुष-स्त्रियों में कोई समानता नहीं। स्त्रियों को सरकारी नौकरी का कोई अवसर नहीं।
(१९) संविधान - अनुच्छेद १९-भाषण आदि की स्वतंत्रता।
        कुरान के विरुध्द एक भी शब्द बोलना महापाप है।
(२०) संविधान -अनुच्छेद २१ जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा।
        कुरान के अनुसार,कुरान व मोहम्मद को न माननेवालों को कोई अधिकार नहीं।
(२१) संविधान-अनुच्छेद २३ मानवों की खरीद फरोख्त व बंधुवा मजदूरी पर बंदिश।
        कुरान के अनुसार ऐसी कोई बंदिश नहीं।
(२२) संविधान-अनुच्छेद २२ गिरफ़्तारी व निरोध के विरुध्द सुरक्षा।
        कुरान के अनुसार ,ऐसा कोई हक़ नहीं।
(२३) संविधान अनुच्छेद-२४ कारखानों आदि में बालको से काम कराने पर पाबन्दी।
        कुरान के अनुसार,कोई बंदिश नहीं।
(२४) संविधान अनुच्छेद -२५ विवेक बाबद स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म का पालन आचरण की स्वतंत्रता।
        कुरान के अनुसार,विवेक व अन्य बातो पर बंदिश अगर ये कुरान के सिध्दांतो के विपरीत हो।
(२५) संविधान अनुच्छेद-२९ अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा।
       कुरान के अनुसार,कुरान व मोहम्मद के न माननेवाले काफिर (पापी) है वे ऐसी सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते।
(२६) संविधान अनुच्छेद-३० शिक्षा संस्थाए स्थापित करना व चलाने का अल्पसंख्यंकों का अधिकार।
        कुरान के अनुसार ,अल्पसंख्यक होने के नाते किसी दावे को मान्यता नहीं। शिक्षा का अर्थ केवल कुरान की शिक्षा।
(२७) संविधान अनुच्छेद-३३ सेना के सम्बन्ध में इस भाग अर्थात भाग ३ मूलभूत अधिकारों में बदल करने का संसद का अधिकार।
        कुरान के अनुसार,किसी भी प्राधिकारी को कुरान का एक भी शब्द बदलने का अधिकार नहीं। (देखा जा रहा है मॉडरेट और एक्सट्रीमिस्ट का कुरान भिन्न)
(२८) संविधान भाग ४ राज्य नीतियों के निर्देशक सिध्दांत। अनुच्छेद ४४-नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता।
        कुरान के अनुसार,मुसलमान व गैर मुसलमानो के लिए समान नागरिकता नहीं। गैर मुसलमान अपने लिए अलग संहिता की मांग नहीं कर सकते। सब कुछ मुस्लिम शासक की मर्जी पर निर्भर है।
(२९) संविधान अनुच्छेद -४६ अनुसूचित जाति,जनजाति व कमजोर वर्गों की शैक्षिक संस्थाए व उनके हितों को बढ़ावा।
        कुरान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं।
(३०) संविधान अनुच्छेद ४८ -राज्य आधुनिक एवं वैज्ञानिक शैली में कृषि संगठन करेंगे व गाय बछड़ो का व  पशुओं का क़त्ल रोकेंगे।
        कुरान के अनुसार,पैरा एक सूरा २ अलबकरा आयत ६७ से ७१ कुरान-"देखो,अल्लाह तुम्हे गाय की बली देने का आदेश देता है। सचमुच,बछड़े के साथ या अपरिपक्व दोनों स्थितियों में वह गाय है। सचमुच यह पीली गाय है। उसका रंग चमकदार है जिससे देखनेवालों को ख़ुशी होती है सचमुच गाय पर जू नहीं होता। वह खेत बरखती नहीं व न ही जमीन को पानी देती है। पूरी की पूरी और किसी निशान के बिना। इसलिए वहीं करो जो तुम्हे आदेशित किया गया है। "

        राष्ट्रपती राजेंद्रप्रसाद सम्पूर्ण गोवध बंदी की घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके सील लगानेवाले ही थे कि,गांधी उनके पास जल्दी जल्दी गए और हस्ताक्षर नहीं करने के लिए कहा। क्योकि,इससे मुसलमानो के गोवध के अधिकारों में कटौती होती। इसके अलावा यह कुरान के धर्म में दखलअंदाजी होती।
(३१) संविधान- विधानसभा/लोकसभा सदस्य द्वारा ली जानेवाली शपथ का प्रारूप ,मैं ....... का सदस्य चुना जाने पर ईश्वर के नामपर/ईमान से कथन करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान में सच्चा विश्वास तथा निष्ठां रखूँगा तथा मैं जिस कर्तव्य में प्रवेश कर रहा हूँ उसका निष्ठापूर्वक पालन करूँगा।
        कुरान के अनुसार यह इस्लामी सत्ता नहीं,(इसलिए सच्चे मुसलमानो को चुनाव लड़ने ही नहीं चाहिए !")
        (फिर भी यदि शपथ ले भी ले !) गुरुश्री गोबिन्दसिंग जी ने कहा है ! "आप अपना हाथ कोहनी तक तेल में डुबाए उसके बाद उसे तिल्ली के ढेर में डालकर निकाले तो,अगर कोई मुसलमान हाथ पर चिपके तिल्ली के दानो की संख्या जीतनी बार शपथ लेता है'तो भी,उसपर विश्वास मत कीजिए !" चुनाव में उम्मेदवारी के समय भी इस ही प्रकार की शपथ ली जाती है।
(३२) संविधान-राजनितिक दलों को बने रहने की अनुमती देता है। पाश्चात्य शैली का लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता तथा वामपंथी विचारधारा को बने रहने की अनुमती है।
        कुरान के अनुसार,"इस्लाम की नजर में सभी मुस्लिम एक इकाई है। और इसप्रकार दलों के लिए कोई स्थान नहीं है। इस्लाम चुनाव के सिध्दांतो को नहीं मानता है। इसमें साम्यवाद व धर्मनिरपेक्षता को कोई स्थान नहीं है।
         पाकिस्तान के राष्ट्रपती झिया उल हक़ ने २५ दिसंबर १९८३ इस्लामाबाद की सार्वजनिक सभा में,इस्लामीकरण को और तेज करने का आव्हान करते हुए कहा था। (न्यूज एजेंसी)

इसलिए मुसलमानो के मताधिकार छीनने चाहिए। उनके नाम मतदाता सूचि में नहीं लिखने चाहिए क्योकि,यह संविधान के विपरीत है। जो,भारतीय गणतंत्र का पवित्र ग्रन्थ है।
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विदित हो,
ब्रिटिश भारत १९३५ का संविधान के अनुसार अल्पसंख्यक तथा वक्फ बोर्ड का अवतरण हुआ ,फिर अल्पसंख्या के आधारपर १९४७ का बटवारा। शेष भारत समान नागरिकता के अभाव में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं है। हिन्दुराष्ट्र है ! पाकिस्तान ने इस्लामी राष्ट्र घोषित कर रखा है। पाकिस्तान के हिन्दू पीड़ित शरणार्थियों के रूप में भारत आ रहे है। घुसपैठ और छिपा युध्द स्थानीय मुसलमानो की सहायता से हो रहा है। कश्मीर कब्जाकर रखा और उसकी स्वतंत्रता की आड़ में दंगे -अलगाववादी घोषणा हो रही है।


हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है। मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।
प्रमाण सार डा आंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्गमय, खण्ड १५१ —



अखिल भारत हिन्दू महासभा का स्पष्ट कहना है कि,"विभाजनोत्तर भारत में अल्पसंख्यक शब्द,वक्फ तथा स्वतंत्र विधि विधान (मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) प्रतिबंधित किया जाये !" इसके लिए भले प्रिव्ही कौंसिल -लन्दन जाना पड़े।

Article 147 के तहत भारत के सुप्रीम कोर्ट को ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट का आज्ञा मानना होगा । https://myhindurashtra.wordpress.com/2016/03/04/every-indian-must-read-truth-of-article-147/

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर का कहना है कि लाखों मुसलमान ऐसी सोच रखते हैं, जो मूल रूप से आज की दुनिया के साथ ताल-मेल बिठा पाने वाला नहीं है।
संदर्भ - http://navbharattimes.indiatimes.com/world/britain/many-millions-of-muslims-fundamentally-incompatible-with-the-modern-world-says-tony-blair/articleshow/51579154.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral&utm_campaign=Tony280316

मुसलमानों की निष्ठा केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है : आम्बेडकर
संदर्भ - http://www.makingindia.co/2016/03/31/national-article-on-baba-saheb-ambedkar-veiw-on-muslims-online-news-in-hindi-india.html

संविधान व सुप्रीम कोर्ट से ऊपर नहीं मुसलिम कानून : मनीष तिवारी
नई दिल्ली।तीन तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  के बीच की खींचतान के बीच कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने बड़ा बयान दिया। तिवारी ने इस संबंध में ट्वीट कर ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड से कई सवाल पूछे।
मनीष तिवारी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, जो मोहम्मडन लॉ ट्रिपल तलाक की अनुमति देता है, क्या वह भारतीय संविधान से भी ऊपर है। क्या मुस्लिम महिलाओं को एकतरफा तलाक की सूरत में सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जानी चाहिए। मनीष ने लिखा कि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, जो पतनशील प्रथाओं के तथ्यों को छुपाकर, उनके औचित्य को साबित करने का जरिया बन गया है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेते हुए मुस्लिम महिलाओं को दिए जाने वाले एकतरफा तलाक में उनके हकों और सुरक्षा की पड़ताल कर रहा है। कोर्ट ने तीन बार तलाक कहकर रिश्ते को खत्म करने की प्रथा की कानूनी वैधता जांचने का निर्देश दिया था। क्योंकि, इस तरह रिश्ता खत्म करने के बाद महिलाएं असहाय हो जाती हैं।
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कह रहा है कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। पर्सनल लॉ जो कि कुरान पर आधारित है और उसकी समीक्षा सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकता। बोर्ड ने कहा कि ये सांस्कृतिक मामला है, इसे मजहब से अलग नहीं किया जा सकता है। बोर्ड ने कहा कि ये कोई संसद से पास किया हुआ कानून नहीं है। अगर कोर्ट कानून बनाती है तो ये अपने आप में न्यायिक कानून होगा। sunday 3 April 2016
http://report4india.com/2016/03/25/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B5-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F-%E0%A4%B8/

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