Wednesday 30 December 2015

रोमनों की विश्वपर सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा,येशु उनकी शिकार हुए !

रोमनों की विश्वपर सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा अलेक्झांडर पूर्व से रही है। होलिओदोरस और डेमिट्रियस ने वैष्णव पंथ स्वीकार कर भारतीयता में एकरस हो गए। मात्र राक्षसी मिनेण्डर ने बुध्द मत का स्वीकार कर भी रोमन सत्ता स्थापित नहीं कर सका।
महात्मा येशु बैथलहैम में जन्मे परंतु उस समय जेरूशलेम पर नीरो की सत्ता थी। ज्यूलियस सीझर के पश्चात ऑगस्टस से नीरो तक की स्वर्ण मुद्रा भारतीय बाजार में आती रही है। येशु जन्म के पूर्व इस्रायल के मृत सागर परिसर के निवासी सेमिटिक वंशीय कमारियन्स लोगो ने ज्यु पंथ की स्थापना की थी। वह रोमनों की प्रतिदिन छल की मानसिकता के कारन येशु जन्म के दो तीनसौ वर्ष पूर्व से क्राइस्ट अर्थात पालनहार की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह वही लोग है जो अंतिम भोजन को ,"लास्ट सपर" कहते थे। रोमन राजसत्ता में लकड़ी के वधस्तम्भ पर बांधकर पत्थर मारकर मृत्यु दंड देने की परंपरा थी।

येशु के जन्म-मरण की रहस्यमय कथाए प्रचलित है। वह शेफर्ड बनकर भारत भूमि में आने जगन्नाथ पूरी में वेद अध्ययन और लद्दाख हेमिस बुध्द मठ में त्रिपिटक का ज्ञान लेने की भी बाते लिखी गई है। येशु ने वैदिक तथा बुध्द मत का संयुक्त प्रसार जेरूशलेम लौटकर करने की भी बात होती है। इनके समर्थक / अनुयायी गण बढ़ने लगे तब रोमन सत्ता के सामने संकट जैसी स्थिती उत्पन्न हुई इसलिए रोमन सरकार ने येशु की पकड़ने के लिए सैनिक भेजे थे। तरह शिष्यों के साथ लास्ट सपर हो रहा था। तब आए सैनिको को सभी के चहरे एक जैसे दिखाई दिए। सैनिको ने पूछा चमत्कारिक येशु कौन है तब ज्युडास इस्केरियट ने अंगुली निर्देश कर येशु को पकड़वा दिया।
शुक्रवार को येशु को क्रुसिफिक्शन कर पत्थर मारकर मार डाला इसे "गुड फ्रायडे" और रविवार को जीवित पाकर "ईस्टर सन्डे" कहा जाता है। इस घटना की पश्चात येशु कहा थे ? कोई कहता है कश्मीर में उनकी और उनकी पत्नी मेंडेलिन की कब्र है। अर्थात काले येशु रोम कभी गए ही नहीं।

ओल्ड टेस्टामेंट ज्यु लोगो के तालमुद का एक हिस्सा है। उसपर श्रध्दा रखनेवालों का प्रभावी संगठन बनकर ज्यु पंथ की पुनर्रचना हुई। जिसके कारन रोमनों की सत्ता ध्वस्त हुई। रोमनों को धर्मसत्ता के प्रभाव का जैसे आकलन हुआ उन्होंने पुनः इस्रायल पर आक्रमण किया। हेरोड,पायलट,जॉन द बैप्टिस्ट को रोमन अर्थात कैथलिक पंथ प्रसार हेतु ज्युडास से दीक्षित करवाकर भेजा। अर्थात बाइबल का नामोनिशान नहीं था। वह तीसरी शताब्दी तक निर्माण होता रहा। जर्मन लेखक विंटरनिट्स लिखते है,"बाइबल के कुछ भागपर महात्मा बुध्द के विचार तथा ग्रंथो का परिणाम हुआ है !"
जॉन द बैप्टिस्ट द्वारा धर्म दीक्षा देकर गले में येशु को क्रूसीफिक्शन के लिए जो वधस्तम्भ था उसे भय के प्रतिक के रूप में पूजनीय बनाया गया। जो ज्यु इसका स्वीकार नहीं करेगा उसे येशु विरोधी,पाखंडी कहकर बलि चढ़ाया गया।
ईसा ३२५ में रोमन राजा कॉन्स्टैन्टाइन ने चर्च की धार्मिक सत्ता पुराण मतावलम्बी ज्यु-यहूदी लोगो से छीनकर स्वयं नया धार्मिक नेता बना और धर्मपीठ वेटिकन ले गया। जहा बौध्द-वैष्णव पंथ संगठित थे और वेटिकन वेद वाटिका थी। इस प्रकार धार्मिक आधार के लिए बने बाइबल के माध्यम से रोम की राजसत्ता को धार्मिक माध्यम से प्रसारित किया जाने लगा। बाइबल पठन और अध्ययन की सक्ती की जाने लगी।
धर्मान्तरण के लिए "इन्क्विझिशन" या अन्वीक्षा मंडल की स्थापना तृतीय इनोसंट ने की। इस मंडल ने येशु भक्त ज्यु-यहूदी पंथ के मानिकियन,आरियन,प्रिस्किलियन,पालियन,बोगोमाईल,काथुरी,वाल्डेंशियन,आल्बीजेंशियन,लोलार्ट,हुझाइट,आदि लोगो पर शस्त्र चलाये। क्योकि,वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वैराग्य का पालन करनेवाले लोग नृत्यांगनाओं के साथ भोगविलास में डूबे विशाल राजप्रासाद में रहकर आज्ञा छोड़नेवाले पोप की अवज्ञा करते थे।
इन्क्विझिशन के प्रवर्तक तृतीय इनोसंट ने अकेले ही सत्ताईस हजार तथा अध्यक्ष तार्किमादा ने स्पेन पर अधिसत्ता स्थापित करते हुए आठ हजार आठ सौ पाखंडियो को चिता पर जलाया। भगोड़े साढ़े छह हजार येशु भक्तो की प्रतिमा बनाकर जलाई गई। ९६५०४ लोगो को प्रायश्चित्त की आड़ में जलाया। तीन लाख लोगो को निष्कासित किया। कब्र खोदकर जलाया गया।  (संदर्भ :- The Horros Of Inquisition लेखक Joseph McCabe तथा Tarque Mada & The Spanish Inquisition लेखक Clement Wood )
मृत सागर के निकट पहाड़ो में सन १९५० से १९५७ के मध्य अनेक सांकेतिक दस्तावेज प्राप्त हुए है। इस डेड सी स्क्रॉल के अनुसार येशु के चरित्र से साम्यता दर्शानेवाली विभूती येशु जन्म के पूर्व होकर गई थी। इन दस्तावेजो के आधारपर प्रस्थित ख्रिश्च्यानिटी और चमत्कार प्राचीन कमारियन्स लोगो की देन है। पोप और बिशप इसपर मौन है।
५२६ में ब्रिटेन पर धार्मिक सत्ता थोपकर रोमन  विस्तार आरम्भ हुआ। ब्रिटेन ने अमेरिका को भी धार्मिक प्रसार के माध्यम से सत्ता विस्तार किया। ब्रिटेन के गैंगरीन कालमानक ने भारत के पंचांग मकर संक्रांत,कर्क संक्रांत -छोटा दिन और बड़ा दिन मध्य बनाकर दस माह का कालमानक बारह माह का किया। देश और दुनिया में भारतीय पंचांग की महत्ता कितनी है ? नासा तक इसका प्रयोग करते है !

Friday 18 December 2015

क्या गाँधी ने अंतिम समय " हे राम " कहा था?

 गाँधी वध की प्रथम जानकारी विश्व में प्रसारित करनेवाले जेम्स मायकल को भी विश्वास नहीं. युनायटेड प्रेस इंटर नैशनल के लिए कार्यरत मायकल गाँधी वध के समय बिडला हॉउस में थे.मायकल के अनुसार सरकारी पत्रक में इसका उल्लेख किया है. " हे राम"गाँधी के अंतिम शब्द ! गोली लगने के ७ मिनट पश्चात् गाँधी का निधन हुवा. उस बिच उन्होंने कुछ नहीं कहा ऐसा 'फोर्बस'के संपादक मायकल ने १९९७ में खुलासा किया.गोली दागने के पहले गाँधी-नाथूराम के बिच संवाद हुवा था ऐसा कहनेवाले उन्हें वहा मिले थे," देरी कर दी !" ऐसा गाँधी ने नाथूराम को कहा था.

करीब 90 साल के हो गए के.डी. मदान के जेहन में उस मंजर की यादें जीवंत हैं जब नाथूराम गोडसे ने शांति के दूत को गोलियों से छलनी कर दिया था।
के.डी. मदान उस दिन भी 5, अल्बुकर्क रोड (अब 5, तीस जनवरी मार्ग) पर अपनी रिकार्डिंग मशीनों के साथ पहुंच गए थे। समय रहा होगा शाम के चार-साढ़े चार बजे। उन्हें बापू की प्रार्थना सभा की रिकार्डिंग करनी होती थी। प्रार्थना सभा को आकाशवाणी रात के साढ़े आठ बजे प्रसारित करती थी।

गाली और गोली से परे गांधी-दर्शन
गांधीजी की प्रार्थना सभाओं में भजन सुनने और बापू के दर्शन करने से मदान को बेहद आनंद की अनभूति होती थी इसलिए वे उसे इस मौके को चूकते नहीं थे। बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा का सिलसिला सितम्बर,1947 से शुरू हुआ था और तब ही से मदान रिकार्डिंग के लिए आने लगे थे।
बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति भवन) में ठीक उस स्थान की तरफ इशारा करते हुए जहां पर बापू की हत्या हुई थी, मदान कहते हैं, जब बिड़ला हाउस के भीतर से गांधीजी प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए निकले तब मेरी घड़ी के हिसाब से 5 बजकर 16 मिनट का वक्त था। हालांकि यह कहा जाता है कि 5 बजकर 17 मिनट पर उन पर गोली चली... तो मैं समझता हूं कि बापू 5.10 पर निकले होंगे।
उस दिन बापू से मिलने सरदार पटेल आए थे कुछ जरुरी बात करने के लिए.... आम तौर पर बापू 5.10 पर निकल जाते थे, लेकिन उस दिन कुछ देर हो गई थी ... तो सरदार पटेल को खुद ही कहा कि आप जाइए मेरी प्रार्थना का वक्त हो गया है... मुझे जाना है। वो 5.10 पर निकले होंगे और जब तक वहां पहुंचे 5.15 मिनट से ऊपर हो गए थे।
गांधी को किस तरह याद रखें हम?
फिर वे उस रास्ते को इशारा करके बताते हैं जिससे गांधीजी प्रार्थना सभा स्थल पर आया करते थे। उनकी आयु और उनके स्वास्थ्य की वजह से हमेशा उनके कंधे और हाथ मनु और आभा के कंधों पर रहते थे। उस दिन भी उन्हीं के कंधों पर उनका हाथ था और यहां तक पहुंचे।
मदान बताते हैं, गांधीजी सितंबर में कलकत्ता से दिल्ली आए। कभी बिड़ला भवन तो कभी मंदिर मार्ग में ठहरते थे। सितंबर 1947 में ऑल इंडिया रेडियो ने तय किया कि प्रार्थना सभा रोजाना रिकॉर्ड की जाएगी और उसे 8.30 बजे प्रसारित किया जाएगा। जब दफ्तर में पूछा गया तो मैंने कहा कि मैं ही चला जाया करूंगा। मैं ठीक 4.30 यहां आ जाया करता था और इक्विपमेंट सेट कर देता था और 5 बजे गांधीजी आते थे। वे वक्त के बड़े पक्के थे।
तीस जनवरी के दिन रोज की तरह गांधीजी प्रार्थना सभा के लिए आए। आभा और मनु उनके साथ थे। तभी पहली गोली की आवाज आई। मुझे ऐसा लगा कि दस दिन पहले जो पटाखा चला था वैसा ही हुआ है। उसी एहसास में था कि दूसरी गोली चली। मैं इक्विपमेंट छोड़कर भागा। उस तरफ गया जहां काफी भीड़ थी। वहां पर बहुत से लोग इकट्ठे थे। मैं और आगे आया तभी तीसरी गोली चली मैंने अपनी आंखों से देखा। बाद में पता चला कि गोली चलाने वाले का नाम नाथूराम गोडसे था। उसने खाकी कपड़े पहने थे। उसका कद काफी मेरे जैसा ही था। डीलडौल भी मेरी जैसी ही थी। तीसरी गोली चलाने के बाद उसने दुबारा से हाथ जोड़े। मैंने सुना है पहली गोली चलाते हुए भी हाथ जोड़े थे उसके बाद लोगों ने कर उसे पकड़ लिया उसने किसी भी तरह का विरोध नहीं किया बल्कि अपनी जो रिवॉल्वर थी उसे भी उनके हवाले कर दिया।
अचानक पहुंची पुलिस
गांधीजी का यह आदेश था कि कोई भी पुलिस वाला उनकी प्रार्थना सभा में नहीं होगा। लेकिन मदान बताते हैं, जब यह हादसा हुआ तो कुछ लोगों ने पुलिस को इत्तला की होगी। पुलिस वहां आ गई और हत्यारे को पुलिस के हवाले कर दिया। मैंने उसे ले जाते हुए देखा।
दरअसल, वहां पर पुलिसकर्मी इसलिए नजर आए क्योंकि समीप ही स्थित संसद मार्ग थाने पर तैनात डीएसपी सरदार जसवंत सिंह और तुगलक रोड थाने में इंस्पेक्टर दसौंदा सिंह अचानक पहुंच गए थे। जसवंत सिंह के पोते संजीव चौधरी ने बताया कि ये दोनों पुलिस अफसर तुगलक रोड थाने से बिड़ला हाउस इसलिए महिन्द्रा जीप पर आए ताकि देख सकें कि वहां पर हालात काबू में हैं। वे जैसे ही गेट पर पहुंचे, गोली चलने की आवाज आई। दोनों भागकर अंदर गए। वहां भगदड़ का मंजर था। गांधीजी को बिड़ला हाउस के अंदर ले जाया जा रहा था।
घटनास्थल पर ही पकडा गया गोडसे
दोनों पुलिसवालों ने वहां कुछ लोगों के साथ मिलकर तुरंत गोडसे को पकड़ लिया। मदान ने कहा कि गोडसे के प्रति उनके मन में नफरत का भाव है। वे उसक बारे में बात करने से बचते हैं। गोडसे के बारे में इतना ही जानता हूं कि मैंने उसे गोली चलाते हुए देखा था। उस दिन उसने खाकी कपड़े पहने थे।
गांधीजी ने बचाई थी नौकरी
गांधीजी मदान को रेडियो वाला बाबू कह कर बुलाते थे। मदान बताते हैं, "शाम 5 बजे से 5.30 बजे उनकी स्पीच का समय होता था। उसके बाद 8.30 पर मैं उसे रेडियो पर प्रसारित करता था। कभी-कभी गांधीजी आधे घंटे से ज्यादा बोल जाते थे। मेरे लिए बड़ा मुश्किल होता था गांधीजी की स्पीच को एडिट करना। मैंने यह बात बापू की सहयोगी डॉ. सुशीला नायर को बताई कि उन्हें कहे कि एडिटिंग करने में काफी परेशानी होती है। उन दिनों एडिटिंग सिस्टम भी काफी खराब हुआ करता था। सुशीला जी सुनते ही गुस्सा हो गई कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई गांधी की बातों को एडिट करने की, मैं इसकी शिकायत सूचना और प्रसारण मंत्री सरदार पटेल से करूंगी। मैंने सोचा कि मेरी नौकरी तो जानी ही है तो मैंने बड़ी हिम्मत करके एक दिन प्रार्थना सभा से ठीक पहले अपनी परेशानी गांधीजी को बताई। गांधीजी ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा, जैसे ही 28 मिनट पूरे हो आप उंगुली उठा देना। उसके बाद साढ़े 28 मिनट पर मैं उंगली उठा दिया करता था, जैसे ही मेरी उंगली गांधीजी देखते थे, वे कहते, बस, कल बात करेंगे।"
तुगलक रोड थाना
उन दिनों यह जगह संसद मार्ग थाने के अंतर्गत आती थी, 1941 में तुगलक रोड थाना बना। जसवंत सिंह पंजाब पुलिस के अफसर थे। पंजाब पुलिस के अफसरों को दिल्ली में पांच साल प्रतिनियुक्ति पर गुजारने होते थे। वे 1952 में वापस पंजाब चले गए थे। उनकी 1964 में करनाल में मृत्यु हो गई थी।
गांधीजी की हत्या का एफआईआर
पुलिस ने गांधीजी की हत्या का एफआईआर कनाट प्लेस में एम-56 में रहने वाले नंदलाल मेहता से पूछ कर लिखा। मेहता उस वक्त वहां पर ही थे। मेहता के बारे में अधिक जानकारी जुटाने के इरादे से हम एम-56 में गए तो वहां पर किसी ने उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी। हालांकि कुछ लोगों ने बताया कि मेहता गांधीवादी थे। वे गुजराती मूल के थे। वे 1968 में अहमदाबाद चले गए थे। वहां पर ही उनकी मौत हो गई थी।
पहले भी हुआ था बापू पर हमला
यह सबको मालूम है कि 30 जनवरी,1948 से पहले भी गांधीजी पर बिड़ला हाउस में हमला हुआ था। उस दिन भी मदान वहां पर थे। जनवरी के महीने की 20 तारीख को प्रार्थना सभा हो रही थी यहां पर। सभी बैठे हुए थे। तभी एक विस्फोट हुआ। किसी को चोट तो नहीं आई लेकिन ये पता चला कि किसी ने पटाखा चलाया है। बाद में मालूम हुआ कि वो एक क्रूड देसी किस्म का बम था जिसमें नुकसान पहुंचाने की ''कपैसिटी" नहीं थी। अगले दिन अखबारों में छपा कि मदन लाल पाहवा नाम के शख्स ने पटाखा चलाया था और उसकी ये भी मंशा थी कि गांधीजी को किसी तरीके से चोट पहुंचाई जाए। उसी दिन प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा कि जिस किसी ने भी यह कोशिश की थी उसे मेरी तरफ से माफ कर दिया जाए।
- विवेक शुक्ला
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Sunday 13 December 2015

BJP की इच्छा है कि,कमलेश तिवारी को बलि का बकरा बनाए !

कमलेश तिवारी द्वारा की गई कथित प्रेषित पर प्रमाणित / पूर्व प्रकाशित पुस्तको में मुद्रित पढ़कर सुनाई टिप्पणी केवल , "आजम खान के द्वारा संघ को समलैगिक कहे जाने के विरोध में की गई थी.!" ऐसे मे प्रश्न यह है कि, "ऐसी कोई समलैंगिकता की बात या टिप्पणी जिसका कोई लिखित प्रकाशित प्रमाण संघ कार्यकर्ताओ पर आरोप नही है !" अपने आपको हिन्दू महासभाई कहनेवाले कमलेश तिवारी ने किसके कहने से टिपण्णी कर दी ? अब यह संघ की इच्छा है कि, कमलेश तिवारी को बलि का बकरा बनाए या आजम खान के उस समलैंगिकता वाले वक्तव्य का उत्तर वह दे या ना दे.! क्योकि,कमलेश सपा-भाजप के संयुक्त षड्यंत्र का शिकार हुआ है !.

माननीय अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष हुआ करते थे। महाधिवक्ता वेदप्रकाश शर्मा श्रीराम जन्मभूमि का कामकाज देखते थे उनके साथ आप भी सहाय्यक के रूप में उपस्थित हुआ करते थे ,उच्च न्यायालय ने हिन्दू महासभा की श्रीराम जन्मभूमि पर फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट की मांग का स्वीकार करते ही पहली सुनवाई पर शर्माजी को धक्का देकर पत्रकारों को गलत जानकारी देने का चित्रण वाहिनियों पर देखने को मिला इसलिए उनको २००४ हिंमस राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने राम जन्मस्थान मंदिर तथा विष्णु बाग,लखनऊ कार्यालय स्थानांतरण दस्तावेजों में पार्टी विरोधी कार्य के कारण निष्कासित किया था । उन्होंने बजरंग दल सीतापुर प्रखंड नेता कमलेश तिवारी को लखनऊ कार्यालय में चौकिदारी के बहाने भेजा था ।
२००९ उच्च न्यायालय में श्रीराम जन्मभुमी पर सन १८८५ से चल रही रामानंदीय निर्मोही आखाडे के मालिकाना अधिकार की सुनवाई और १९५० पक्षकार हिन्दू महासभा की साक्ष के पश्चात,१९४९ हिन्दू महासभा अयोध्या आंदोलन की फाईल्स जो,सन २००० में भाजपा शासनकाल में लिबरहान आयोग में साक्ष देने निकले SDO सुभाष भान साध के पास थी को तिलक ब्रिज स्थानक पर धक्का देकर मारकर गायब की गई थी इसके अभाव में, "२६ जुलाई २०१० को रामानंदीय निर्मोही आखाडे के मालिकाना अधिकार की सुनवाई डी व्ही शर्मा न्यायमुर्ती ने अनिर्णित रखी थी।
हमने मुख्यमंत्री उ प्र को PTI. द्वारा फैक्स भेजकर फाईल्स गुम होने की FIR लिखने का निवेदन कर CBI जांच की मांग की थी । तद्नुसार, मायावतीजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपरोक्त खुलासा किया था । समाचार में यह भी प्रकट हुआ है कि,साध से फाईल्स गायब करवाने में सहयोगी रहे मित्तल को बुंदेलखंड युनिवर्सिटी का उपकुलगुरू पद का इनाम दिया गया था ।
रामानंदीय निर्मोही आखाडे के मालिकाना अधिकार १४ अगस्त १९४१ फैजाबाद नझुल में भी, "तीन गुंबद मंदिर रामकोट,प्लॉट क्र ५८३ कब्जा महंत रघुनाथ दास,पुजारी रामसकल दास,रामसुभग दास निर्मोही आखाडे " के नाम हैं । बाबर का हुकुमनामा भी निर्मोही आखाड़े को दिया था वह भी हैं ।
२६ जुलाई को मालिकाना अधिकार की सुनवाई अनिर्णित रखते ही भाजपा के इशारेपर कार्यरत हिन्दू महासभा से निष्कासित अधिवक्ता ने कमलेश तिवारी को उ प्र हिन्दू महासभा अध्यक्ष के रूप में याचिकाकर्ता बनाकर प्रस्तुत किया और इस अधिकार में, राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का विवाद जो षड्यंत्र के अंतर्गत निर्माण किए गए थे का लाभ उठाया । ३० सप्तंबर को राजनीतिक षडयंत्र का २:७७ भूमि के १/३ का निर्णय आया उस दिन मिडिया ने भी भाजप नेता अधिवक्ता रवी शंकर प्रसाद को हिन्दू महासभा अधिवक्ता के रूप में प्रस्तूत किया था। हमारे कहनेपर ही रात को अनेक चैनलों ने पट्टी बंद की थी । इस बटवारे का प्रसाद (भाजप) ने स्वागत किया !  ऐसा हिन्दू महासभा की भूमिका में दिखाया गया था । वास्तव में मिडिया भाजपा और हिन्दू महासभा को जोडकर दिखाता हैं वह अज्ञानतावश हो रहा हैं!
हिन्दू महासभा राष्ट्रीय अध्यक्ष और निर्मोही आखाडा सुप्रीम कोर्ट गएं इसलिए २:७७ एकड़ १९९१ में भाजपा ने विवादित बनाई भुमी का १/३ बटवारा रूका । यह भुमी ६७:७७ एकड हैं और उसके मालिकाना अधिकार को हडपने का भाजपा सीधा षडयंत्र कर रही है । इसके लिए अपने अपने हस्तक हिन्दू महासभा में भेजकर भाजप- विहिंप समर्थक गुट राष्ट्रीय अध्यक्ष हिंमस को विवादित बनाएं रखे हैं । कमलेश तिवारी भी इसकी एक कडी हैं ।
पलोक बसु समिती १/३ बटवारे के लिए राम जन्मभूमि न्यास द्वारा तुलसी भवन,रामघाट,अयोध्या में संचालित करती थी । हर महीने के तिसरे शनिवार को सुप्रीम कोर्ट को धता बताकर निर्णय ले रहे थे, तब न भाजप विरोध में थी न भाजप द्वारा संचालित कथित हिन्दू महासभा नेता ? हमारे उ प्र हिन्दू महासभा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं के साथ विरोध करने पहुंचते रहे। समाचारों में यह प्रकाशित हैं । महंत श्री नृत्यगोपाल दास और रामविलास वेदांती महाराज को मिलकर न्यास द्वारा चलाएं जा रहे बँटवारे के षडयंत्र का विरोध किया तो,हमारे निकलते ही पत्रकारों को निमंत्रित कर अपना भी विरोध प्रकट करने को लिखने को कहनेवाले कथित संतों पर हम कैसे श्रद्धा रखे? यह भी प्रश्न उभर आता है। श्रीराम पर अपार श्रध्दा रखनेवाले वास्तविकता से अनभिज्ञ है।
प्रश्न यह है कि,कमलेश तिवारी द्वारा दिया वक्तव्य समयोचित था ? या भाजप प्रेरित समयानुकूल था ?  क्योंकि, ६ दिसंबर को हिन्दू महासभा मंदिर विध्वंसीयों को राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तारी और मंदिर पुनर्निर्माण संकल्प कार्यक्रम ले  रही थी।वह इस नौटंकी के कारन पूर्ण सफल नहीं हुआ।  में उलझ गए। भाजप कमलेश तिवारी को अखिल भारत हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए कितने ही षडयंत्र करे हिन्दू महासभा निष्ठ इसे पहचान गएं हैं ! और आगे की सोचकर ही हिन्दू महासभा राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने ६ जून २००० को ६७:७७ एकड श्रीराम जन्मस्थान मंदिर परिसर १८८५ से न्यायालय में अधिपत्य के लिए लड रहे रामानंदीय निर्मोही आखाडे को लौटाने तक लडने का प्रस्ताव पारित किया हैं ! और उसका अनुमोदन राष्ट्रीय महामंत्री सतीष मदान जी ने किया हैं । जो,सभी हिन्दू महासभा की वैधानिक प्रदेश / राष्ट्रीय कार्यकारिणीयों के लिए बंधनकारक हैं।फर्जी इकाई भी इसके विपरीत नहीं चल सकती।
भाजप ने पूर्व हिन्दू महासभाई अधिवक्ता के माध्यम से कमलेश तिवारी को आगे करके हिन्दू महासभा पर कब्जे के लिए अधिक हवा देने सपा के साथ मिलकर भाजप ने रासुका लगाकर कमलेश को विवादित, चर्चित अवश्य बनाया हों उसे बलि का बकरा नहीं बनाने देंगे ! हम हिन्दू होने के नाते कमलेश के साथ खडे भी हैं और रहेंगे ! क्योंकि,हिंदुत्व के साथ विश्वासघात की राजनीति का आरंभ गुरू गोलवलकर जी के सरसंघचालक पद हडपने के साथ आरंभ हुआ !  ऐसा इतिहास हैं ।
मात्र भाजप में हिंमत है तो,३१ जुलाई १९८६ मेट्रो पॉलिटीन कोर्ट- देहली ने,"हिन्दू महासभा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्व इंद्रसेन शर्मा की मांग पर कुराण की विवादित कही गई 24 आयत निकालने का संसद में प्रस्ताव रखकर दिखाएं ! " कमलेश तिवारी भी मुक्त हो जाएगा !
श्रीराम जन्मभुमी रामानंदीय निर्मोही आखाडे को लौटाने की १९४९ तक चली ७८ परंपरा का निर्वहन करो । श्रीराम जन्मभूमि सीव्हील सूट हड़पने का षड्यंत्र बंद करो ! इसके लिए संसद में शिलान्यास करनेवाली कॉग्रेस भी सहयोग करेगी । भाजप में वह इमानदारी नहीं है,यदि होती तो,वाजपेई जी फ़ास्ट ट्रेक की सुनवाई आरम्भ होते ही छह महीने का कार्यकाल छोड़कर संसद भंग नहीं करते ! भाजप न्यायालय में पक्षकार ही नही हैं और हिन्दू महासभा के एजंडे मंदिर आंदोलन, संविधानिक समान नागरिकता की मांग के लिए अकेले सुप्रीम कोर्ट में लड रही हिन्दू महासभा तथा डॉ मुखर्जी को नेहरू के इशारे पर बली चढाने के पश्चात धारा ३७० हटाने के हिन्दू महासभा के एजेंडे पर हिन्दुओं को गुमराह कर सत्ता, पैसा ऐंठने का किया षडयंत्र नहीं करते ! राष्ट्रहित में,कमलश तिवारी को श्यामाप्रसाद मुखर्जी के जैसा बलि का बकरा बनाने का यह षड्यंत्र रोकने का हिन्दू महासभा आवाहन करती हैं ! 

जो हिन्दू महासभा का सदस्य नहीं वह विहिप वाला कमलेश को नियुक्त किया था। न्यायालय ने भी दो बार डिसमिस किया हो वह कमलेश को नियुक्त या निष्कासित कैसे करता है देखे !


Monday 30 November 2015

६ दिसंबर १९९२ मंदिर ध्वंसी नेताओ को राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तार करने की मांग !


न्यायालय संरक्षित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर का शिलान्यास होकर भी उसे बाबर का कलंक लगाकर छह दिसंबर १९९२ को ढहाना,संविधान के प्रथम स्वर्ण पृष्ठ पर अंकित राष्ट्र पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम अर्थात संविधान के अपमान में मंदिर विध्वंस राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है ! २३ मार्च १५२८ पूर्व से अधिपति रहे,१८८५ से मालिकाना अधिकार के लिए न्यायालय में लड़ रहे रामानंदीय निर्मोही आखाड़े ने ६ दिसंबर १९९२ को इसकी FIR लिखवाकर मूल वादपत्र 4 A में अंतर्भाव कर दो सौ करोड़ का भरपाई दावा ब्रह्मलीन महंत श्री जगन्नाथ दास महाराज ने किया है।
कार्तिक कृ.नवमी संवत २००६ श्री हनुमान जयंती अक्टूबर सन १९४९
श्री रामायण महासभा के प्रधान महंत श्री रामचंद्रदास महाराज,संयुक्त मंत्री ठाकुर गोपालसिंग विशारद,संगठक अभिरामदास महाराज सभी हिन्दू सभाई थे। रामायण महासभा की सार्वजनिक सभा प.पू.श्री वेदांती राम पदार्थ दासजी महाराज की अध्यक्षता में हनुमान गढ़ी पर संपन्न हुई थी। तदनुसार,श्री राम चरित मानस के १०८ नव्हान्न पाठ आरंभ हुए।
समापन के समय अ.भा.धर्म संघ संस्थापक प.पू .श्री करपात्रीजी महाराज,उ.प्र.हिन्दू महासभा अध्यक्ष महंत श्री दिग्विजयनाथ जी,कांग्रेस के नेता बाबा राघवदास जी महाराज उपस्थित थे।उनके प्रवचनो के पश्चात बड़ा स्थान के अध्यक्ष महंत श्री बिंदुगाद्याचार्यजी और श्री रघुवीर प्रसादाचार्यजी ने अपने समापन भाषण में,"श्रीराम जन्मभूमि उध्दार के लिए इस प्रकार ११०८ नव्हान्न पाठ यज्ञ का आवाहन किया।"
मार्गशीर्ष शु.२ श्रीराम जानकी विवाह के दिन यह कार्यक्रम निश्चित हुआ था।श्रीराम जन्मभूमि परिसर स्वच्छ करने के लिए सैकड़ो साधू और अयोध्या नगरवासीयो ने पूर्व संध्या से कार्यारंभ किया।इनमे रामानंदीय निर्मोही आखाडा महंत श्री बलदेवदास,जन्मस्थान महंत तथा हिन्दू महासभा नगर कार्याध्यक्ष श्री हरिहर दास महाराज,दिगंबर आखाडा के महंत श्री तथा हिन्दू महासभा के नगर पार्षद परमहंस श्री रामचंद्रदास महाराज,तपस्वीयो की छांवनी के अधिरिसंत दास,बाबा बृन्दावनदास,फ़ैजाबाद जिला हिन्दू महासभा अध्यक्ष ठाकुर गोपालसिंगजी कार्यरत थे।पौ फटने से पूर्व परिसर स्वच्छ किया गया।
वेदांती श्रीराम पदार्थदास महाराज जी की अध्यक्षता में, नव्हान्न पाठ कर्ता संख्या ११०८ भोर में ही स्थानापन्न हुई थी।प्रत्यक्षदर्शीयो के अनुसार जन्मस्थान से लेकर श्री हनुमान गढ़ी तक क्रम से पाठक बैठे थे और उनमें मुसलमान भी बड़ी संख्या में पाठ पढने बैठे थे।



२४ दिसंबर १९४९,कलंकमुक्त मंदिर को २६ दिसंबर को " विवादग्रस्त वास्तु " घोषित कर संविधान की धारा १४५ के अंतर्गत सरकार ने अपने कब्जे में ले ली और श्रीराम जी की पूजा, अर्चना, भोग की सरकारी वेतन से व्यवस्था लगा दी,मंदिर परिसर के दो सौ गज क्षेत्र में गैरहिंदू प्रवेश पर प्रतिबंध लगाकर चार पुजारी एक भंडारी सरकारी वेतन पर नियुक्त कर गर्भगृह में सेवा करने जाने की अनुमति प्रदान की।मात्र दर्शन के लिए लोहे के शिकंजे से अनुमति प्रदान की।इस व्यवस्था में स्वयं प्रशासन ने कोई परिवर्तन नहीं किया।

हिन्दू महासभा के सन १९४९ आन्दोलन के बाद से लांछन रहित यह श्रीराम जन्मस्थान मंदिर न्यायालय संरक्षित है।**सन १९५० हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा गोपाल सिंग विशारद द्वारा चली 3/1950 न्यायालयीन कार्यवाही में अयोध्या परिसर के १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय, *"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए ७७ बल्वे हुए।सन १९३४ से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को सौप दिया जाये।" वली मुहमद पुत्र हस्नु मु.कटरा ; अब्दुल गनी पुत्र अल्लाबक्ष मु.बरगददिया ; अब्दुल शफुर पुत्र इदन मु.उर्दू बाजार ; अब्दुल रज्जाक पुत्र वजीर मु.राजसदन ; अब्दुल सत्तार समशेर खान मु.सय्यदबाड़ा ; शकूर पुत्र इदा मु.स्वर्गद्वार ; रमजान पुत्र जुम्मन मु.कटरा ; होसला पुत्र धिराऊ मु.मातगैंड ;महमद गनी पुत्र शरफुद्दीन मु.राजा का अस्तम्बल ; अब्दुल खलील पुत्र अब्दुरस्समद मु.टेडीबाजार ; मोहमद हुसेन पुत्र बसाऊ मु.मीरापुर डेराबीबी ; मोहमदजहां पुत्र हुसेन मु.कटरा ; लतीफ़ पुत्र अब्दुल अजीज मु.कटरा ; अजीमुल्ला पुत्र रज्जन मु.छोटी देवकाली ; मोहमद उमर पुत्र वजीर मु.नौगजी ; फिरोज पुत्र बरसाती मु.चौक फ़ैजाबाद ; नसीबदास पुत्र जहान मु.सुतहटी

सुल्तानपुर के विधायक नाजिम ने भी एक पत्रक निकालकर मंदिर हिन्दुओ को सौपकर इबादत करने की भावना प्रकट की थी।
* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की पुलिस अधिकारी अर्जुनसिंग को दी साक्ष,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके खंभों में भी मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"

*माननीय न्यायालय का आदेश है कि ,"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था," जैसी है वैसे " ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।"

१९४९ अयोध्या आंदोलक/पक्षकार हिंदू महासभा का तर्क :-१४ अगस्त १९४१ नझुल रेकोर्ड फ़ैजाबाद में श्रीराम जन्मस्थान मंदिर रामकोट प्लाट क्रमांक ५८३,वर्णन- तिन गुम्बद मंदिर,कब्ज़ा-महंत श्री रघुनाथ दास,राम सकल दास,राम सुभग दास रामानंदीय निर्मोही आखाडा है। १९५० केस में १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने मंदिर मान्य किया है तब ही २०० गज परिसर में गैर हिन्दू प्रवेश प्रतिबंधित है। विरोधको की अभ्यर्थना निरस्त कर न्यायालय के संरक्षण में दर्शन-पुजन-भोग-उत्सव की व्यवस्था हो रही है।श्रीराम जन्मस्थान मंदिर गर्भगृह में हिंदू महासभा ने रखी मुर्तिया हटाने आरोप कर सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका लगाकर केस को पुनार्विवादित किया तब श्री देवकी नंदन अग्रवाल उपाख्य रामसखा ने निर्मोही आखाड़े के पक्ष में साक्ष दी है।इसलिए १ /३ भूमी रामसखा-विहिंप या रामलला विराजमान-श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज को देना न्यायोचित नहीं। सन १९८९ उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष तथा विहिंप को सभी वाद पीछे लेने का आदेश देकर बेदखल किया है।इसलिए सम्पूर्ण भूमी केवल रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को ही सौपना अनिवार्य है।

पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था। इस समिती में मद्रास से आये।
*संशोधक मुहम्मद के के भी थे वह लिखते है*
,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"
Published - 22 Jan.2015 Dainik Jagaran-Meerut

*गैझेटियर ऑफ़ दी टेरिटरीज अंडर गव्हर्मेन्ट ऑफ़ ईस्ट इंडिया कं के पृष्ठ क्र ७३९-४० के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार," २३ मार्च १५२८ को श्रीराम जन्मस्थान मंदिर ध्वस्त किया और उस ही मलबे से १४ स्तम्भ चुनकर उसपर खडी की वास्तु कभी मस्जिद नहीं बन पायी क्यों की इन स्तंभोपर मुर्तिया थी।"

इस प्रकार न्यायालय के संरक्षण में पूजा-दर्शन हो रहे न्यायालय के आदेश से ताला खुले,कांग्रेस द्वारा शिलान्यासित लांछन रहित मंदिर को भाजप ने,हिन्दू महासभा सांसद स्वर्गीय बिशन चंद सेठकी सूचना का अनादर कर राजनितिक और आर्थिक लाभ के लिए बाबर का कलंक लगाया और ६ दिसंबर १९९२ को मंदिर ही ध्वस्त किया ! 
२६ जुलाई २०१० को १९४९ अयोध्या आंदोलन की फाइल के अभाव में निर्मोही अखाड़े की १८८५ से चल रही स्वामित्व की सुनवाई न्यायालय ने रोकी थी। उत्तर पदेश सरकार ने शपथपत्र में फाइल्स गायब होने की बात कही। तब हमने मुख्यमंत्री मायावती को FIR करने की सूचना देकर स्पष्टीकरण माँगा तब उन्होंने प्रेस के समक्ष २००० भाजप शासनकाल में फाइल्स गायब होने की जानकारी के साथ साथ सुभाषभान साध के पास यह फाइल्स थी और वह लिबरहान आयोग में साक्ष देने जा रहे थे तब उनकी संदेहास्पद मृत्यु के साथ फाइल्स गायब हुई ! कहा। अधिक पता करने पर जानकारी मिली की इस कृत्य को परिणाम देनेवाले किसी मित्तल को भाजप शासनकाल में बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का उपकुलगुरु के रूप में इनाम दिया गया। परंतु ३० सप्तम्बर को राजनितिक उद्देश्य से अचानक १/३ निर्णय ६७:७७ एकड़ भूमि का २:७७ एकड़ हिस्सा जो भाजप ने १९९१ में निर्मोही आखाड़े के विरोध के पश्चात विवादित बनाकर कब्जे की भूमि पर आया उसका निर्मोही आखाडा और सहयोगी हिन्दू महासभा ने सर्वोच्च न्यायालय में विरोध किया और ९ मई २०११ को माननीय न्यायालय ने ३० सप्तम्बर के १/३ निर्णय को निरस्त किया है।
 श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर ध्वस्त करने के पश्चात दूसरे खिलाफत का आरंभ हुआ ! ऐसा आरोप हिन्दू महासभा के वरिष्ठ विचारक प्रमोद पंडित जोशी ने लगाया है।उन्होंने कहा इस घटना के पश्चात सिमी का स्वरुप और कार्य बदल गया। देश में दंगे,पडोसी देशो में हत्या,मंदिर विध्वंस,हिन्दुओ का पलायन हुआ। तस्लीमा नसरीन जैसी निरपेक्ष खंडित भारत की शरण में आई। १९९३ मुंबई बम ब्लास्ट हुए ,अलगाववादी हुर्रियत की स्थापना हुई और 
७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी। (सन्दर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी) अब श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर पुनर्निर्माण के लिए ,भाजप का न्यायालय के माध्यम से कब्ज़ा-बटवारा-भुनी अधिग्रहण का षड्यंत्र रोकने के लिए श्रीराम भक्तों को मंदिर ध्वंसी,राष्ट्रद्रोहियों को संगठित करनेवाले नेताओ को राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तार करने की मांग के लिए जल्द ही शीतकालीन संसद सत्र में जंतर मंतर-देहली में प्रदर्शन करना होगा !

प्रमुख मांग -श्रीराम जन्मस्थान मंदिर एवं परिसर की ६७:७७ एकड़ भूमि तथा मंदिर के नामपर अवैधानिक पध्दतिसे जोड़े साढ़े चौदसौ करोड़,ब्याज समेत रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को सौपकर ७८ बार मंदिर परिसर आखाड़े को सौपने की परंपरा का पालन और मंदिर पुनर्निर्माण किया जाएं !


राष्ट्रिय प्रवक्ता हिन्दू महासभा प्रमोद पंडित जोशी

Sunday 29 November 2015

गणतंत्र दिवस २६ जनवरी

 गणतंत्र दिवस २६ जनवरी का स्पष्ट अर्थ यह है कि, "१५ अगस्त १९४७ पूर्व स्थापित संविधान सभा का कार्य, २६ नवम्बर १९४९ को नेहरु के निर्णय पर रोककर ब्रिटिश गव्हर्नर-राष्ट्रपती माउन्ट बेटन की सत्ता का अंत और नेताजी सुभाष के अज्ञातवास का प्रारंभ !
 भारतीय संविधान निर्माण पूर्वोत्तर-मसौदा समिती के अध्यक्ष डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरजी को संविधान निर्माता कहकर इतिहास का उलटफेर करनेवाले कांग्रेस नेता संविधानिक की त्रूटीयो से बचने के लिये उनको संविधान निर्माता कहकर अपनी भूलों का ठीकरा भारतरत्न डॉ.आंबेडकरजी पर फोडने के पक्षधर क्यों है ? इसपर आंबेडकर अनुयायी कहनेवाले जागृत क्यों नहीं होते ? यह एक आश्चर्य है !

 अखंड भारत को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य रहे अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधानों का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया गया। उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.तिलक स्मृतीदिन के पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।

ब्रिटिश भारत का संविधान
वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है !" ऐसा कहा। ८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल (ब्रिटिश) सदस्य बनाये गए ,इस सायमन कमिशन ने "जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स" बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी।

संपूर्ण स्वाधीनता के विरोध में नेहरू रिपोर्ट और गांधी का हठ,
 "ब्रिटीश वसाहती राज्य" (ब्रिटिश कॉलोनी)
१९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई थी। इस 'नेहरू रिपोर्ट' ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे कि ,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडने आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य का निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने इस बैठक में संपूर्ण स्वाधीनता की मांग रखकर गांधी की "ब्रिटीश वसाहती राज्य" की मांग का विरोध किया।
इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने "ब्रिटीश वसाहती राज्य" का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश महारानी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की "चोगम परिषद" बनी जो आज भी कार्यरत है।
 प्रथम गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड (सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर पार्लियामेंट में विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला। हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत सामाजिक विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१ अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा।अल्पसंख्यांक शब्द प्रचलित हुए और वक्फ बोर्ड का निर्माण हुआ।


अखंड भारत की एक राष्ट्रीयता- एक नागरिकता मे विभाजन हुवा.बहुसंख्यंक हिंदुओं की (काफिर) एकता के विरोध मे अली बंधूओ ने जो षड्यंत्र खेला उसके अनुसार, डॉ.आंबेडकरजी को दौलताबाद के किले मे दर्शन करने जाते समय मुस्लीम चौकीदार ने डॉ.आंबेडकर जी को हौदे से पानी लेने से मना कर पानी अछूत हो जायेगा कहकर जातीय नीचता की भावना को जलाया और पानी लेने से रोका। कही भी न छुने की शर्थ पर मुसलमान चौकीदार ने उन्हें उपर जाने दिया।जिसके कारण डॉ.आंबेडकर जी ने येवला-नासिक मे १९३६ में धर्मांतरण की घोषणा की थी। तब भी हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,शेठ जुगल किशोर बीडला जी ने डॉ.आंबेडकरजी से मिलकर हिंदुत्व सशक्त करने सामाजिक उत्थान के लिये यह घोषणा बीस वर्ष रोकी।१९५६ दीक्षा भुमी नागपुर में धर्मान्तरण नहीं मतांतरण हुआ ! उस समय जो सावरकरजी ने स्थानबद्धता से पत्र लिखकर,'धर्मांतरण से राष्ट्रांतर होगा ऐसा न करे !' कहा उसके अनुसार !

परिणाम यह हुवा की,मुस्लीम बहुल क्षेत्र के निजाम राज मे पुर्वाछुतो के बलात हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की धमकी डॉ.आंबेडकरजी ने मक्रणपूर परिषद मे दी थी । १० मई १९३७ सावरकरजी की अनिर्बंध मुक्तता पर डॉ.आंबेडकरजी ने दि.११ मई १९३७ के दैनिक जनता मे अभिनंदनपर लेख लिखा। पुणे में संविधान मसौदा निर्माण मे सहयोग किया,हिंदूओ के सैनिकीकरण के धर्मवीर डॉ.मुंजेजी के प्रयास को सबल करने पुर्वाछुतो को सेना मे भर्ती पर लगे प्रतिबंध को निकालने डॉ.आम्बेडकर जी ने महाराज्यपाल की भेट ली और "महार रेजिमेंट" का निर्माण हुवा। और ऐसा करने से मुसलमानो का प्रचंड पाकिस्तान का षड्यंत्र विफल हुवा।
                             
स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर भारत को वसाहत राज्य देने की घोषणा की। तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की। सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा। मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया। ( विभाजानोत्तर आश्रयार्थि मुस्लिमों का विरोध आज भी जारी है।)
२० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की योजना प्रकट हुई।७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर "धर्मचक्र" या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' ऐसी मांग की। डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला।इसलिए पुणे मे बनाया पारित मसौदा आंबेडकरजी ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें "भगवा ध्वज" देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.आंबेडकरजी ने भी आश्वासन दिया था।
परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई मांग सूनने तयार नही था।

जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी। फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की ! उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ ब्रिटिश संविधान के आधार पर स्थापित हुई। उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये, डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४-राष्ट्रीयता में विषमता का समापन करनेवाले "समान नागरिकता" का सूत्रपात किया,जो सावरकरजी ने १९३८ जयपुर में मांग रखी थी।
डॉ.आंबेडकरजी ने हिन्दू कोड बिल बनाया और विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये।इसलिए नेहरू उनसे रुष्ट हुए और आंबेडकरजी मंत्री मंडल से बाहर !
             राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकरजी के विरोध मे रबरस्टेम्प पदाधिकारी बनाया गया। संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये थे ,उनमे से २४७३ पर ही बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को भारत एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया।

मात्र इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा ?" ५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे ? इसका कोई पता नही। और क्या इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी को जिम्मेदार कहोंगे ? आम्बेडकरजी के अनुयायी इस विषय को जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान स्वर्ण जयंती महोत्सव वर्ष में हिन्दू महासभा की मांग पर वाजपेई सरकार द्वारा गठित "संविधान समीक्षा समिती" के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ?
ये कुछ वाक्य बाबा साहेब आंबेडकरजी ने इस्लाम के विषय में कहे थे।
हिन्दू- मुस्लिम एकता, एक अंसभव कार्य हैं। भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक मात्र हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर और सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है। मुसलामनों की निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान ने भी अपने शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।
(प्रमाण सार डा डॉ.आंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्गमय, खण्ड १५१)

ब्रिटीश सोच का संविधान अस्थायी जातीय आरक्षण, राष्ट्रीयता में विषमता फैलाता है ! राष्ट्रीय स्तरपर आर्थिक पिछडे विषमता रहित राष्ट्रीय नागरिको को योग्यता/आवश्यकता के अनुसार आरक्षण हो ! इसमें कोई सांप्रदायिक,जातिवादी सोच नहीं उलटे पंथ निरपेक्ष,समानता की मांग है।
 नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्त लिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता,नागरिकता में बंधुत्व और अखंड पाकिस्तान के सतत षड्यंत्र के कारन आतंरिक नागरी सुरक्षा नही, महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है !

महंगाई के लिए अखंड भारत तोड़कर पाकिस्तान देने के बाद अराष्ट्रीय आश्रयार्थियो / घुसपैठियों की बढती जनसँख्या जिम्मेदार है ! सरकार चाहे किसी की भी हों ! यह दूरदृष्टि से जानकर दिनांक १० अगस्त १९४७ को हिन्दू महासभा भवन ,मंदिर मार्ग,नई दिल्ली-१ अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रिय अध्यक्ष स्वा.वीर सावरकरजी की अध्यक्षता में हिन्दू परिषद् संपन्न हुई ; सावरकर जी ने कहा," अब निवेदन,प्रस्ताव,विनती नहीं ! अब प्रत्यक्ष कृति का समय है। " सर्व पक्षीय हिन्दुओंको हिन्दुस्थान को पुनः अखंड बनाने के कार्य में लग जाना चाहिए !" ; "रक्तपात टालने के लिए हमने पाकिस्तान को मान्यता दी ? ऐसा नेहरू का युक्तिवाद असत्य है ; इससे रक्तपात तो टलनेवाला नहीं है। परन्तु,फिरसे रक्तपात की धमकिया देकर मुसलमान अपनी मांगे रखते रहेंगे। उसका अभी प्रतिबन्ध अभी नहीं किया तो इस देश में १४ पाकिस्तान हुए बिना नहीं रहेंगे। उनकी ऐसी मांगो को जैसे को तैसा उत्तर देकर नष्ट करना होगा। रक्तपात से भयभीत होकर नहीं चलेगा ! इसलिए ' हिन्दुओं को पक्ष भेद भूलकर संगठित होकर सामर्थ्य' संपादन करना चाहिए और देश विभाजन नष्ट करना चाहिए ! " ऐसा कहा था।
राष्ट्रिय जनता अभी नींद से जागी नहीं तो ? लव्ह जिहाद,भूमी जिहाद,जनसँख्या जिहाद,धर्मान्तरण से २०२१ में बहुसंख्यंक इस देश में अल्पसंख्य हो जाएगा। फिर न बचेगा सिक्ख,बौध्द,जैन,लिंगायत,वैष्णव,शैव,आर्य न अनार्य ! संविधान को समीक्षा करने के अधिकार से न रोके !
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Thursday 16 April 2015

प्रज्ञासिंग,कर्नल पुरोहित जल्द निर्दोष मुक्त हो यही कामना !


चार नार्को टेस्ट में निर्दोष निकली कर्करोग पीड़ित अभिनव भारत नेत्री साध्वी प्रज्ञासिंग को न्याय क्यों नही मिल रहा था ? सर्वोच्च न्यायालय ने निचले न्यायालय को एक महीने में बेल की सूचना की है। सोश्यल मिडिया पर हिन्दू महासभा समर्थक दिन रात निर्दोष प्रज्ञासिंग की मुक्ती के लिए प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को आवाहन कर रहे थे। उसे कारागार में बंद रखकर कभी समझौता एक्स्प्रेस ब्लास्ट में,कभी बेची हुई मोटर सायकल, कभी मालेगाव से जोड़कर रखा हुआ है। साध्वी की मुक्ती के लिये क्या सफदर नागौरी की प्रतीक्षा थी ?

CNN-IBN TV channel कि १३ अप्रेल २०१३ की रिपोर्ट, जिसमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बारे में बताया गया कि कैसे जांच करनेवाले अधिकारीयों के उत्पिडन से उनके आधे शरीर को लकवा मार गया है और वो एक समय आत्महत्त्या का प्रयास भी कर चुकी हैं। उनके भाई ने बताया कि जेल में चार लोगों ने घेरकर उनकी इतनी पिटाई की कि, उनका एक फेफड़ा तक उससे फट गया .............. .......और रिपोर्ट में ये भी बताया गया की इतने महीनों से उन्हें प्राणीयो की भांती रखा जा रहा है जेल में, और विशेष तो यह है कि,अब तक उनके ऊपर एक भी आरोप प्रमाणित नही हुए है। प्रज्ञा और पुरोहित के पास क्या मिला ? आसिमानंद को जबरन हस्ताक्षर लेकर फ्रेम किया जा रहा है यह आरोप हम निम्न आधारपर कर रहे है।

* एस.गुरुमूर्ति का लेख:-*चेन्नई से प्रकाशित होनेवाले ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के २४ जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है। मुख्यत: भारत-पाकिस्तान के बीच चलनेवाली ‘समझौता एक्सप्रेस’में हुए बम विस्फोट और उसके लिए लम्बे अन्तराल पश्चात् सरकारी जांच यंत्रणा ने तथाकथित हिंदू आतंकवादियों को धर दबोचने के विषय में लिखा है।

‘‘२० जनवरी २०१३ को, जयपुर में कांग्रेस के तथाकथित चिंतन शिबिर में पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगाव में हुए बम विस्फोट के लिए हिन्दुओ को जिम्मेदार बताया था। शिंदे का वक्तव्य प्रसिद्ध होने के दूसरे ही दिन लष्कर-ए-तोयबा का नेता हफीज सईद ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।अत: सईद की इस मांग के लिए शिंदे ही जिम्मेदार हो सकते थे।क्यो कि,ऐसा प्रकट हो रहा है कि,काँग्रेस के इशारेपर आतंकी हमले होते है। या हमले की पूर्व सूचना इनको होती है। अब हम इस बम विस्फोट के तथ्यों पर विचार करेंगे !’’

‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा समिति ने २९ जून २००९ को पारित किए प्रस्ताव में यह कहा है कि, *‘२००७ के फरवरी में समझौता एक्सप्रेस में जो बम विस्फोट हुए उसके लिए लष्कर-ए-तोयबा का मुख्य समन्वयक कासमानी अरिफ जिम्मेदार है।’* इस कासमानी को दाऊद इब्राहिम कासकर ने आर्थिक सहायता की थी। दाऊद ने ‘अल् कायदा’को भी धन की सहायता की थी। इस सहायता के ऐवज में* समझौता एक्सप्रेस पर हमला करने के लिए ‘अल् कायदा’ने ही आतंकी उपलब्ध कराए थे।"* पाकिस्तान की गोद में बैठे दाऊद के प्रशंसक अब बताओ हिंदू आतंकवाद कहासे आया ?
     सुरक्षा समिति का यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ की वेब साईट पर भी उपलब्ध है ! दो दिन पश्चात् अर्थात दि. १ जुलाई २००९ को अमेरिका के (युएसए) कोषागार विभाग (ट्रेझरी डिपार्टमेंट) ने एक सार्वजनिक पत्रक में कहा है कि," अरिफ कासमानी ने बम विस्फोट के लिए लष्कर-ए-तोयबा के साथ सहयोग किया।" *अमेरिका ने अरिफ कासमानी सहित कुल चार पाकिस्तानी नागरिकों के नाम भी घोषित किए है। अमेरिकन सरकार के इस आदेश का क्रमांक १३२२४ है और वह भी अमरीकी सरकारी वेब साईट पर उपलब्ध है।’’*
    ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ और अमेरिका ने लष्कर-ए-तोयबा तथा कासमानी के विरुद्ध कारवाई घोषित करने के उपरांत , छ: माह पश्चात् पाकिस्तान के पूर्व *गृहमंत्री रहमान मलिक ने कहा कि *, 'पाकिस्तान के आतंकवादी,समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में शामिल थे।परंतु ,ले.कर्नल पुराहित ने पाकिस्तान में रहनेवाले आतंकवादियों को इसके लिए सुपारी दी थी।(? हास्यास्पद ) ' (संदर्भ – ‘इंडिया टुडे’ ऑन लाईन,२४ जनवरी २०१०)
      ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ या अमेरिका अथवा पाकिस्तान के गृहमंत्री की भी बात छोड़ दो,अमेरिकाने इस विषय की एक स्वतंत्र यंत्रणा से जांच की, उसमें से और कुछ तथ्य सामने आये है। लगभग १० माह बाद सेबास्टियन रोटेल्ला इस खोजी पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में डेव्हिड कोलमन हेडली का भी हाथ था।" और यह उसकी तीसरी पत्नी फैजा आऊतल्लाह ने अपने कबुलनामें में बताया है। रोटेल्ला के रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘२००८ में मुंबई में हुए बम विस्फोट के बारे में अमेरिकी सरकारी यंत्रणा को चेतावनी दी गई थी।’
रोटेल्ला आगे कहते है कि,‘ मुझे इस हमले में घसीटा गया है, ऐसा फैजा ने कहा है।’ (वॉशिंग्टन पोस्ट दि.५ नवम्बर २०१०) २००८ के अप्रेल में लिखी अपनी जांच रिपोर्ट के अगले भाग में रोटेल्ला कहते है कि, ‘‘फैजा,* इस्लामाबाद में के (अमेरिकी) दूतावास में भी गई थी और '२००८ में मुंबई में विस्फोट होगे !' ऐसी सूचना भी उसने दी थी।’’*
       ‘‘सन् २००७ में,* समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट *के मामले की जांच के चलते समय ही, *इस हमले में ‘सीमी’ *(स्टुडण्ट्स इस्लामिक मुव्हमेंट ऑफ इंडिया) * का भी सहभाग था*, ऐसे प्रमाण मिले है। ‘इंडिया टुडे’ के १९ सप्तम्बर २००८ के अंक में के समाचार का शीर्षक था ‘मुंबई में रेलगाडी में हुए विस्फोट और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान का हाथ ! सफदर नागोरी’ उस समाचार में लष्कर-ए-तोयबा और पाकिस्तान के सहभाग का पूरा ब्यौरा दिया गया है। ‘सीमी’ के नेताओं की नार्को टेस्ट भी की गई, उससे यह स्पष्ट होता है। *इंडिया टुडे के समाचार के अनुसार,* सीमी के महासचिव सफदर नागोरी, उसका भाई कमरुद्दीन नागोरी और अमील परवेज की नार्को टेस्ट बंगलोर में अप्रेल २००७ में की गई थी। इस जांच के निष्कर्ष ‘इंडिया टुडे’ के पास उपलब्ध है। उससे स्पष्ट होता है कि, भारतीय राष्ट्रद्रोही सीमी के कार्यकर्ताओं ने, सीमापार के पाकिस्तानियों की सहायता से, यह बम विस्फोट किए थे। उनके नाम एहतेशाम और नासीर यह सिमी कार्यकर्ताओं के नाम है। उनके साथ कमरुद्दीन नागोरी भी था।
पाकिस्तानियों ने, सूटकेस कव्हर इंदौर के कटारिया मार्केट से खरीदा था। इस जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि, उस सूटकेस में पांच बम रखे गए थे और टायमर स्विच से उनका विस्फोट किया गया।’’

     ‘‘यह सभी प्रमाण समक्ष होते हुए भी महाराष्ट्र का पुलीस विभाग, इस दिशा से आगे क्यों नहीं बढा ? ऐसा प्रश्‍न निर्माण होना स्वाभाविक है। महाराष्ट्र पुलीस विभाग के कुछ लोगों को समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट का मामला कैसे भी करके मालेगाव बम विस्फोट से जोड़ना था ? ऐसा प्रतीत होता है। क्या राजनीतिक दबाव था ? तो,वह कौन थे यह स्पष्ट होना चाहिये. महाराष्ट्र के दहशतवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने, अपने अधिवक्ता के माध्यम से, विशेष न्यायाधीश को बताया था कि, "मालेगाव बम विस्फोट मामले के आरोपी कर्नल पुरोहित ने ही समझौता एक्सप्रेस के बम विस्फोट के लिए आरडीएक्स उपलब्ध कराया था।"परंतु,* ‘नॅशनल सेक्युरिटी गार्ड’ इस केन्द्र सरकार की यंत्रणा ने बताया था कि*,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग ही नहीं हुवा ! पोटॅशियम क्लोरेट और सल्फर इन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था।"और तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शिवराज पाटील ने भी इस विधान की पुष्टी की थी। मजे की बात तो यह है कि, उसी दिन १७ नवम्बर २००८ को दहशतवाद विरोधी दस्ते के अधिवक्ता ने भी अपना पूर्व में दिया बयान वापस लिया था।परंतु,अवसरवादी पाकिस्तान ने तत्काल घोषित किया की, 'सचिव स्तर की बैठक में समझौता एक्सप्रेस पर हुए हमले में कर्नल पुरोहित के सहभाग का मुद्दा उपस्थित किया जाएगा।' अंत में *२० जनवरी २००९ को दशतवाद विरोधी दस्ते ने अधिकृत रूप में मान्य किया कि,'समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स उपलब्ध नहीं कराया था।' फिर भी समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट आरोप को लष्कर-ए-तोयबा और ‘सीमी’ से ध्यान हटाकर कर्नल पुरोहित और उसके द्वारा भगवा रंग-हिन्दू आतंकवाद से जोड़ा गया !

मात्र २६/११ मुंबई हमले पूर्व की सूचना होते हुए भी उसे रोकने में शिथिलता दिखानेवाली महाराष्ट्र पुलीस यंत्रणा और सत्ताधारी राजनितिक दलोपर दाऊद इब्राहिम का प्रभाव होने का यह प्रमाण है ? और इसकी भी जांच होनी चाहिए कि,कौन से दल के नेता राष्ट्रद्रोही आतंकवादीयो को राजाश्रय देते है।
वही पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधी में लिप्त आतंकी जिनपर अमेरिका तक ने प्रतिबन्ध लगाया हो वह कारागार से छूट रहे है। और हमारी न्याय व्यवस्था राजनितिक दबाव में कार्यरत थी ! ऐसा प्रतीत होता है।
प्रज्ञासिंग,कर्नल पुरोहित जल्द निर्दोष मुक्त हो यही कामना !
Ref.By Shri M.G.Vaidya

Saturday 11 April 2015

नेताजी सुभाषचंद्र बॉस-क्रांतिकारियों की जानकारी कांग्रेस नेता तथा सरकार को,कम्युनिस्टों का विशेष कार्य !


अखंड भारत में कम्युनिस्ट आंदोलनों के जनक एम एन रॉय को कानपूर कांड में जुलाई १९३१ में बंदी बनाया गया था। ९ जनवरी १९३२ को उन्हें १२ वर्ष का कारावास सुनाया गया। मात्र,२० नवंबर १९३६ को मुक्त कर दिया गया था। यह कैसे संभव हुआ ?
१९४१ में कम्युनिस्ट पार्टी में दो फाड़ हुए। एक प्रतिबंधित और दूसरा गुट सीपीआई महामंत्री पी सी जोशी के नेतृत्व में कार्यरत था। बंदी नेताओ ने ब्रिटिश सरकार का साथ देना स्वीकार किया तब २४ जुलाई १९४२ को उनपर लगा प्रतिबंध हटा था।
यह वही गृहसचिव थे जो,वीर सावरकरजी की अंदमान मुक्ती पर कठोर हुए थे, रेजीनॉल्ड मैक्सवेल ! मैक्सवेल के साथ सी पी जोशी का पत्रव्यवहार भारत देश और देशभक्तों के साथ विश्वासघात था।
"An alliance existed between the Politbureau of fhe Communist Party & the Home Department of the Govt.of india by which Mr.P.C.Joshi was placing at the disposal of the Govt.of india,the services of his party members.

कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता एस एस बाटलीवाल ने दिनांक २२ फरवरी १९४६ को पत्रकार परिषद में इस समझौते  उल्लेख किया और कहा कि,"पी सी जोशी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को देशभक्त आंदोलको के पीछे गुप्तचरी करने के लिए लगाया और CID को सूचना प्रेषित की। "
नेताजी सुभाषचंद्र बॉस आझाद हिन्द फ़ौज अन्य क्रांतिकारियों की गतिविधियों की जानकारी कांग्रेस नेता तथा सरकार को देना,उन्हें बंदी बनवाना कम्युनिस्टों का विशेष कार्य था।
(दैनिक बॉम्बे क्रॉनिकल दिनांक १७ मार्च १९४६ से स्ट्रगल फॉर फ्रीडम के लेखक आर सी मुजुमदार ने उद्घृत किया है। )


Friday 3 April 2015

विश्व में फैलता इस्लामी जाल,ISIS को योरोप में रोकने पेगीडा को मुक्त करो !


अल्पसंख्य धर्म की बाहुल्यता के पश्चात खंडित हुए भारत अर्थात हिंदुराष्ट्र की विश्व में धर्मवाद के कारन उपेक्षा होती रही है। जो भी देश उठा भारत में हिंदुराष्ट्रवाद के विरोध में खड़ा हुआ। क्योकि,हिंदुराष्ट्र के प्रहरी जातिवाद,धर्मांतरण,राष्ट्रीयता में विषमता पर गरल छोड़ते रहे है। बृहत्तर भारत ने सिकुड़ते हुए सन ६२९ के पश्चात स्थापित किये हुए अधर्म की मानसिकतावाले इस्लाम का संकट झेलकर खंड खंड होना स्वीकार किया ? शेष बचे हिंदुराष्ट्र में धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाया जा रहा है और ओबामा वापस लौटकर भारत को ही उपदेश दे रहा है। यह है,गांधीवादी मोदी और ओबामा की मित्रता का दुष्परिणाम !

शेष भारत के अल्पसंख्य बहुल क्षेत्र में कोई न कोई कारन बनाकर हिंदू त्योहारों पर दंगे का इतिहास बना है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सांसद इमरान मसूद तो,अपनी ४२% जनसँख्या का हवाला देकर अपनी धार्मिक प्रबलता को उजागर करता है। सहारनपुर दंगे में भूमिका और गरुद्वारा पर आक्रमण से सिध्द होता है कि,कुरान की गैर मुस्लिम गैर सुन्नी-वहाबी को ख़त्म करने का लिखित आदेश उनके लिए सर्वोपरी है। इस ही कारन दंगो में जीवित हानी,आगजनी-लूटमार-अपहरण-चोरी-डकैती जैसे प्रकरण होते है। सेना बुलाई जाती है,संचारबंदी में रोजगार पर दुष्परिणाम होता है तब यही गैर इस्लामी देश इस्लाम के अर्थात अल्पसंख्य के साथ जैसे अचानक प्रेम से खड़े हो जाते है और हिंदुओं को कोसने का कार्य करते रहते है।

अब इन गैर मुस्लिम राष्ट्रों में बढती इस्लामी जनसँख्या के कारन यही चित्र वहां भी दृष्योत्तर हो रहे है। यह क्यों और कैसे हो रहा है वह समझने के लिए पूर्व इतिहास और अधर्म की आज्ञा देनेवाले ग्रंथ को समझने की आवश्यकता है।
** ७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी। (संदर्भ:- २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी)
** एल.जी.वेल्स अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की रुपरेखा में लिखते है," जब तक दिव्य ग्रंथ का अस्तित्व है अरब राष्ट्र सभ्य राष्ट्रो की पंक्ती में बैठने के लायक नही है !"
** जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?
**   यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था।
वह लिखते है,'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !'
९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए "इस्लामी बॉम्ब" का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी।' ऐसा कहा। झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।

*अब कुरान में ऐसी कौनसी आयत है कि,अमेरिकन पाद्री उसे जलाने का अभियान छेड़ चुके थे ?
** कुराण  की चौबीस आयतें और उन पर मेट्रो पोलीटिन कोर्ट, देहली का निर्णय
स्व.श्री इन्द्रसेन शर्मा ( तत्कालीन राष्ट्रिय उपाध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा ) और राजकुमार आर्य जी ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छपवाया जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत उनपर (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, १ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) न्यायालयीन विवाद चलाया गया। वह आयत पढ़े !
१ -“फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको’ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर लें ‘नमाज’ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।” (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ ख पृ. ३६८)
२ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१)
३ - “निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (५.४.१०१. पृ. २३९)
४ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१)
५ - “जिन लोगों ने हमारी “आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं।” (५.४.५६ पृ. २३१)
६ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र’ को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे।” (१०.९.२३ पृ. ३७०)
७ - “अल्लाह ‘काफिर’ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।” (१०.९.३७ पृ. ३७४)
८ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान’ वाले हो।” (६.५.५७ पृ. २६८)
९ - “फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।” (२२.३३.६१ पृ. ७५९)
१० - “(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।”
११ - “और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।” (२१.३२.२२ पृ. ७३६)
१२ - “अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों’ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (२६.४८.२० पृ. ९४३)
१३ - “तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (१०.८.६९. पृ. ३५९)
१४ - “हे नबी! ‘काफिरों’ और ‘मुनाफिकों’ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (२८.६६.९. पृ. १०५५)
१५ - “तो अवश्य हम ‘कुफ्र’ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।” (२४.४१.२७ पृ. ८६५)
१६ - “यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम’ की) आग। इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों’ का इन्कार करते थे।” (२४.४१.२८ पृ. ८६५)
१७ - “निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों’ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत’ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।” (११.९.१११ पृ. ३८८)
१८ - “अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक’ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम’ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।” (१०.९.६८ पृ. ३७९)
१९ - “हे नबी! ‘ईमान वालों’ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहनेवाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।” (१०.८.६५ पृ. ३५८)
२० - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।” (६.५.५१ पृ. २६७)
२१ - “किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन’ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया’ देने लगे।” (१०.९.२९. पृ. ३७२)
२२ - “…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०)
२३ - वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर’ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।” (५.४.८९ पृ. २३७)
२४ - उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान’ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (१०.९.१४. पृ. ३६९)

***** माननीय न्यायालय ने माना,"उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।" मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।” तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- “कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि," ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।”
                             (ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)

प्रेषित मोहमद का व्यंगचित्र छापनेवाले तथा अल बगदादी व्यंगचित्र छापनेपर, ७ जनवरी २०१५ पैरिस के धार्मिक पाखंड पर प्रहार करनेवाले "शार्ली हैब्डो" नियतकालिक पर इस्लामी दहशदगर्दों ने हमला कर १५ लोगों के प्राणहरण कर लिए। इस्लामिक बर्बरता के ४ हमलों के पश्चात् फ्रांसिसी संगठीत हुए।९ जनवरी को इस्लामी आतंकवाद के विरोध प्रदर्शन में लाखों लोगों का जत्था सडक पर उतरा।
शार्ली हैब्डो के विशेषांक की लाखो प्रतीयां तीन बार छपी,मोहमद की चित्र पुनः छपी थी।उसके साथ लिखा था, मैं हूं शार्ली.जाओ तुम्हे माफ कर दिया।
इसके पश्चात् ११ जनवरी को,डेस्ट्रन में सुदान से आएं शरनार्थी युवकों का गुट जो अेक सामाजिक संस्था के किराए के मकान में रह रहे थे।मुस्लिम शरणार्थी यहां आने के पश्चात् स्थानिय निवासीयों के साथ उनकी झडपे हो रही थी,उन्हें यहां से निकल जाने की धमकियां भी दी जा रही थी।एक दिन शरणार्थी ने दरवाजा खोला तो,बाहर ५ स्वस्तिक लाल रंग में रंगा था। उसने उस कथित सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता को शिकायत की।पुलिस में रिपोर्ट हुई,पुलिस इसे हल्के लिया और ११ जनवरी को शरणार्थीयों मे से एक खालिद इद्रिस बेहेरेई रात को सिगारेट लेने बाहर निकला वह वापस लौटा नहीं।सुबह धुंडनेपर उसका शव मकान के पिछे मिला।इस मुद्दे को हवा देकर कथित सामाजिक संस्था ने गडबडी फैलाने का प्रयास किया।इस घटना की जांच में संदेहास्पद नाम आगे आया,पेगीडा !
"पॅट्रिओटिक युरोपियन अगेन्स्ट इस्लामायझेशन अॉफ द वेस्ट" जर्मन में इसका संक्षेप मे नामकरण हुवा,पेगीडा !
यह संस्था अेक वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई और जर्मनी के बाहर फ्रांस,पोर्तुगाल,ब्रिटन तक फैली।प्रत्येक देश में इसके समर्थक है और समय समय पर इस्लामी आतंकवाद विरोध प्रदर्शन के लिये सडक पर उतरते है।इस्लाम विरोधी साहित्य भी बेचते है।विविध देशों में मुसलमानों की बढती जनसंख्या और संकट,जिसके कारण मूल निवासीयों पर हो रहे अत्याचार का उल्लेख करते समय हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का उदाहरण दिया गया है।
इस संस्था के अध्यक्ष लूट्झ बाकमॅन ४० वर्षिय है और गत दो दशक से जर्मनी विचारधारा का प्रसारक रहा लूट्झ शेफ था।इसके भाषण जहाल-आक्रमक होने के कारण डेस्ट्रन में लोकप्रियता प्राप्त हुई।शार्ली हैब्डो के समर्थन में चार शहरों में निकले प्रदर्शनकारीयों की संख्या से स्पष्ट है कि,युरोपियन देशों में भी इस्लाम विरोधी जनभावना अधिक तीव्र हो रही है।
हिटलर जैसी वेशभुषा किया हुवा अपना चित्र और उसके निचे "ही इज बॅक" लिखकर प्रसार माध्यमों में आया तो,सरकार ने उसे बंदी बनाया,पेगीडा को नेस्तनाबुत करने की बात हो रही है।विशेष बात यही है कि,इस्लाम के भस्मासुर के विरोध में विश्व खडा हो रहा है।
और खंडित भारत को अखंड पाकिस्तान बनाने की खुली योजनाओं पर हमें धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाया जा रहा है।बब्बर शेर कहे गए मोदी आसाम की चुनावी सभा में अजान पर भाषण रोकने की ब्रिटिश कॉंग्रेस की परंपरा का वहन कर रहे है।
लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय AMU के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" हिन्दुस्थान बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है,लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।

     १८ अक्तूबर १९४७ के दैनिक नवभारत में एक लेख छपा था," विभाजन के बाद भी पाकिस्तान सरकार और उसके एजंट भारत में प्रजातंत्र को दुर्बल बनाने तथा उसमे स्थान स्थान पर छोटे छोटे पाकिस्तान खड़े करने के लिए जो षड्यंत्र कर रहे है उसका उदहारण जूनागढ़,हैदराबाद और कश्मीर बनाये जा रहे है।" फिर भी हम जागृत नहीं हुए तो,*श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा ने प्रकाशित किया था।

" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी. १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ! ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे ! #हिन्दूअल्पसंख्य२०२१
रही बात शुध्दिकरण की, यह प्रक्रिया निरंतर चल रही है। जम्मू-कश्मीर शासक जैनुल आब्दीन के कार्यकाल में पंडित श्रीभट्ट ने सनातनियों का विरोध झेलकर हजारो (पूर्व हिन्दू) धर्मातरितो का शुध्दिकरण कर हिन्दुओं को "कश्मीरी पंडित" बनाया था। छत्रपती शिवाजी महाराज ने धर्मांतरित नेताजी पालकर का शुध्दिकरण किया था। गुरु श्री तेगबहादुर महाराज ने औरंगजेब का छल स्वीकार किया परंतु,धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया।हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद-पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने "भारतीय शुध्दि सभा" बिड़ला लाइन्स में बनायीं। धर्मान्तरितो का शुध्दिकरण कोई नया विषय नहीं है।अब्दुल रशीद ने इस ही लिए स्वामी श्रध्दानंदजी की शुध्दी की आड़ में मिलकर हत्या की थी।

प्रश्न फिर भी खड़ा है कि,सत्तांतर के पश्चात क्या हमारी विश्वसनीय सरकार है ?

या हिन्दू राजसत्ता स्थापित करने के वीर सावरकरजी के ९ अगस्त १९४७ के भाषण के अनुसार सक्रियता दिखानी है ? या पेगिडा का भारत में प्रसार करना चाहिए ?
Dt.27/03/2016 Edited

Thursday 2 April 2015

हिन्दू महासभा का सदस्य बनना है ? स्वीकार है तो .....



 अखंड भारत का हिन्दू , विविध जाती-पंथ समुदाय की महासभा बनाकर कार्यरत थी। सन १८६४ में उत्तर भारत गव्हर्नर ने ब्रिटिश पार्ल्यामेंट को प्रस्ताव दिया कि,"यदि इस देश पर दीर्घकाल शासन करना है तो, हिंदुओ का पल्ला छोड़कर मुसलमानों का दामन पकड़ना चाहिए। " और सन १८७७ में अमीर अली ने " राष्ट्रिय मोहम्मडन असोशिएशन " की राजनितिक संस्था बनायीं।
बहुसंख्यक हिन्दू जाती-पंथ में विघटित थे ! तब पंजाब विश्वविद्यालय लाहोर संस्थापकों में से एक बाबू नविन चन्द्र राय तथा पंजाब उच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश राय बहादुर चन्द्रनाथ मित्र ने बैसाखी सन १८८२ लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना की। 
प्रारंभिक उद्देश्य :- धर्मांतरण के विरोध में शुध्दिकरण,अछूतोध्दार के साथ जातिभेद नष्ट करना था।
                       प्रथम सभापति प्रफुल्लचंद्र चट्टोपाध्याय और प्रथम महामंत्री बाबू नवीनचंद्र राय बने थे। 
        सन १८५७ क्रांति के पश्चात हिन्दू राजनीती का आंदोलन न उभरे ; जो, ब्रिटिश सरकार के विरुध्द असंतोष उत्पन्न करें। इस भय से आशंकित सरकार ने विरोधी तत्वों को अवसर देने के बहाने अंग्रेजी पढ़े-लिखे युवकों को साथ लेकर राजनितिक वायुद्वार खोलने का मन बनाया।

          पूर्व सेनाधिकारी रहे एलन ऑक्टोव्हियन ह्यूम को,पाद्रीयों की सलाह पर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट तथा वाइसराय लॉर्ड डफरिन ने परस्पर परामर्श से ऐसा संगठन खड़ा करने को कहा कि,वह ब्रिटिश साम्राज्य से ईमानदार रहने की शपथ लिए शिक्षित हो और इसमें २०% मुसलमान भी हो ! यह थी Conress स्थापना की पृष्ठभूमि।
  
      हिन्दू सभा के बढते प्रभाव के कारण २८ दिसंबर सन १८८५ मुंबई के गोकुलदास संस्कृत विद्यालय में धर्मांतरित व्योमेशचंद्र बैनर्जी को राष्ट्रिय सभा का राष्ट्रिय अध्यक्ष चुनकर कार्यारंभ हुआ। इसके प्रथम अधिवेशन से लेकर सन १९१७-१८ तक "God Save the King ...." से आरंभ और  "Three cheers for the king of England & Emperor of India " प्रार्थना से समापन होता रहा। 
        हिन्दू सभा अध्यक्ष सन १९१० सरदार गुरबक्श सिंग बेदीजी के प्रस्ताव और पंडित मदन मोहन मालवीय तथा पंजाब केसरी लाला लाजपत रायजी के प्रयास से १३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार में कुंभ पर्व के बीच कासीम बाजार बंगाल नरेश मणीन्द्रचन्द्र नंदी की अध्यक्षता में अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना हुई तब पंडित मदन मोहन मालवीयजी के अनुयायी बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उपस्थित थे।   
  
 मेरे हिन्दू बंधू-बहनों,मेरा पक्ष हिन्दू महासभा आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है.था,उसे हिन्दू महासभा विरोधियो ने क्षति पहुँचाने के लिए अपनी जागिर समझ कर लुट लिया.कुछ कार्य भी हो रहा है इसलिए, हमें निराश नहीं होना चाहिए हम कार्यकर्ताओ को स्थानीय,तहसील,जिला,प्रदेश इकाई को सशक्त कर दिखाना है.हिन्दू महासभा की जन्मपत्री के अनुसार,इसे रोकने के प्रयास हो रहे है.हिन्दू महासभा क्रांतिकारी पक्ष है,कभी पंचांग देखकर कार्य नहीं किया.
               हिन्दू महासभा ने सत्ता के लिए कभी समझोता नहीं किया.निराश भी नहीं हुए, लड़ते रहे,संघर्ष करते रहे.चढाव-उतराव तो प्रकृति का नियम है.धैर्य,पराक्रम और सावधानता की आवश्यता है.आप का कार्यक्षेत्र में बढ़ता प्रभाव देखकर ."सत्ता के मोह में,बढती हिंदुत्व की शक्ति का पतन करनेवाले विश्वासघाती हिन्दू प्रलोभन देकर फसायेंगे.ऐसे अप्रकट शत्रुओंसे सावधान रहकर केवल हिन्दू महासभा को सामर्थ्यवान करते समय धर्मवीर मुंजे,भाई परमानन्द,वीर सावरकर,प्रा.रामसिंह, महंतश्री दिग्विजयनाथ जी महाराज का आदर्श सामने रखो.पद,पैसा,प्रतिष्ठा की लालसा इन विरोधको के जाल से बचना चाहिए.अपने बनकर पास आये लोगो के द्वारा किया गया विश्वासघात यशस्विता का शिखर गांठने में बड़ी समस्या होगी.सावरकर जी ने हमें आशावाद दिया है,वही हमारे लिए प्रेरणा है.उच्च आदर्श यतार्थवाद हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा.अवास्तव इच्छा स्वप्नवत होती है,इसलिए हताश हुए बिना सक्रीय रहना चाहिए.उच्च मनःस्थिति के महानुभाव झूजते हुए प्रवाह के उद्गम की ओर आगे बढते है और ऐसे ही लोग देश-धर्म-समाज को पतन से बचाते है.
                 संगठन कोई भी हो बल संवर्धन,प्रत्याघाती क्षमता,अनुशासन,विनयशीलता और चारित्र्य हमारे व्यक्तिमत्व में निखार लाते है.अच्छा साहित्य,राजनीती,इतिहास,तत्वज्ञान,अध्यात्म पढ़ना चाहिए,विचार-व्याख्यान प्रस्तुत करना चाहिए.
निजी स्वार्थ के लिए सामाजिक-राष्ट्रिय कर्तव्योंको अनदेखा न करे,इस कलियुग में चरित्रहीन-भ्रष्टाचारी लोगोंको सफल होते देख मत्सर भी न करे नाही सत्य एवं प्रामाणिकता से अपनी निष्ठां छोड़े.प्रलोभन देकर आपका चरित्रहनन करने की योजना गैर हिन्दू नहीं करेंगे,यह ध्यान में रखना चाहिए.
            दूसरो से तुलना करके उसकी इर्ष्यासे हम अपनी और राष्ट्र संस्कृति को हानि पहुंचाते है और हिन्दू महासभा ने प्रत्यक्ष अनुभव कोलकाता अधिवेशन १९३९ की घटना में लिया है.पारस्परिक क्रोध-द्वेष,मत्सर,इर्ष्या का संबंधो पर दुष्परिणाम होता है.अपनी भूल का ठीकरा किसी और पर न फोड़े क्षमा करने की महानता होगी तो व्यवधान भी नहीं आयेंगे.यदि किसी से भूल हुई भी है तो उसे एकांत में समझाना योग्य.यशस्विता के लिए कभी साहस और चिटी के जैसी सातत्यता,संयम चाहिए. लोभ का अंत नहीं होता और समाधान से प्रगति के रस्ते खुलते है.समयानुसार सिध्दान्तो में परिवर्तन कुछ सीमा तक/ कुछ समय के लिए स्वीकार करना चाहिए. पिछली भूलो से कुछ सिखना चाहिए समझदार लोग भूलो को सुधारकर सिखाते है.कोई चमत्कार या तंत्र सफलता नहीं देगी.कर्तव्यच्युतता-असातत्य के कारण असफलता आती है.
            आप को कार्यकर्त्ता ही नहीं भविष्य में नेता भी बनना है.आप का संगठन कार्य,व्यक्तिमत्व और ज्ञान सहकर्मियों की कार्यक्षमता बढ़ने पर प्रकट होता है. सहकर्मी आप का कार्य अपनी क्षमता पर झेलने को तयार भी हो आप को वहा पहुँचाना आवश्यक होता है.मेरा पद कोई छीन न ले इस भय से यह कार्य आत्मघाती नहीं बनाना चाहिए.महान नेता श्रेय-सन्मान सहकर्मियों को देता है इस प्रतिष्ठा के कारण सहकर्मी भी अधिक परिश्रम लेते है.जो नेता बनने की होड़ में अपने सहकर्मी- वरिष्ठ -कनिष्ठो के साथ प्रामाणिक नहीं भर्त्सना करे वह अधिक समय नेता नहीं बने रह सकता.कलंक-निष्ठाहीनता निचा दिखाएगी अपमानित करेगी और यह निजी नहीं सामूहिक हानि होगी. अच्छा संगठक बनने गुण संपन्न-सज्जन बने,अपने आप को पहचाने और सुधारे.पारिवारिक-सामाजिक-राष्ट्रिय जिम्मेदारी का स्वीकार करे/ कराये.सहकर्मियों को सूचना देना संपर्क में रहना,समस्या समझना क्षमता का उपयोग करना.नयी वार्ता समाचार प्राप्त करते रहना.संकोच बिना प्रश्न प्रवास में मैत्री-प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास करना. अपनी ही बात रखते दूसरो की भी सुने.श्रवण बहोत कुछ जानकारी दे जाता है.
            अध्यात्मिक-यौगिक क्रिया एकाग्रता बढ़ाती है.उसके लिए विवाद से दूर रखना चाहिए.अपना सम्पूर्ण लक्ष,विचार और ध्येय चिंतन उस उद्दिष्ट को समर्पित होना चाहिए.आँखे-कान-जिव्हा-इन्द्रिय नियंत्रण में हो.विवेक वैराग्य एक अच्छा नेता बनाएगा ! हिन्दू महासभा में ऐसे नेताओ की शृंखला में आप का भी नाम हो !

        हिन्दूराष्ट्र को आप से आप का सब कुछ चाहिए.देश विभाजन की राजनीती हो रही है.राष्ट्रीयता में विषमता का विष फैला हुवा है.हमें धीर गंभीरता पूर्वक स्थिति का सामना करना है.हिन्दू संसद एकमात्र विकल्प है उसके लिए आगामी लोकसभा में भ्रष्टाचार मुक्तता,समान नागरिकता के साथ श्रीराम जन्मस्थान मंदिर श्री पञ्च रामानंदीय निर्मोही अखाड़े को सौपने पर विवाद का हल निकलेगा यह विश्वास देनेवाले प्रत्याशी तयार करने होगे.