Sunday 28 December 2014

जिन्ना मर जाता तो,गांधी बचते !


     
ग़दर क्रांतिकारी गणेश दामोदर उपाख्य बाबाराव सावरकरजी ने, लोर्ड इरविन की विशेष ट्रेन को बम लगाकर उडाने का असफल प्रयास करनेवाले सरदार भगत सिंह के सहयोगी लखनौ निवासी यशपाल को ५० सहस्त्र रुपये और देसी पिस्तौल पकड़ाकर, " जैसे भी हो सके बै.जिन्ना को गोली मारकर ख़त्म कर दो ! वर्ना यह देश खंडित हो जायेगा,जिन्ना पाकिस्तान बनाये बिना माननेवाला नहीं और गाँधी-नेहरू यों ही थोथी बयानबाजी करते रहेंगे और देश बाँट जायेगा." कहा था। दुर्भाग्यवश कोमरेड बने यशपाल ने अपनी असमर्थता व्यक्त की।
काकोरी कांड में काला पानी पर गए क्रांतिकारी शचिन्द्रनाथ बक्षी कहते थे," हम चुक गए,बड़ी भूल कर गए कि,जो दो और गोलिया खर्च न की.अगर हम जिन्ना को गोली मार देते तो,यह पाकिस्तान कदापि न बनता !"

यदि जिन्ना को मृत्यु दंड मिल जाता तो क्या पाकिस्तान बनता ? गाँधी अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक मालवीयजी का मार्च १९२० तक रहा साथ मोतीलाल नेहरू के द्वारा छोड़े गए सी आर दास के दबाव में न छोड़ते तो क्या अखंड भारत विभाजित होता ? पटना में कांग्रेस विसर्जन की मांग कर रहे बैरिस्टर गाँधी की हत्या होती ? पंडित नथुराम को राष्ट्रभक्ति के संताप में वध जैसा जघन्य कृत्य करने के लिए गाँधी का चुनाव करना पड़ता ? मात्र नेहरू-पटेल-मोरारजी देसाई को वध के लिए हो रहे षड्यंत्र की जानकारी थी। कांग्रेस विसर्जन की मांग के पक्षधर गांधी फिर अनशन न करे इसलिए उन्हें कांग्रेस नेताओं ने सुरक्षा नहीं दी ? जिन्ना मर जाता तो,गांधी बचते !

सावरकरजी पर द्विराष्ट्रवाद का आरोप करनेवाले बताएं कौन है विभाजनवादी !


अखंड भारत का हिन्दू , विविध जाती-पंथ समुदाय की महासभा बनाकर कार्यरत थी। सन १८६४ में उत्तर भारत गव्हर्नर ने ब्रिटिश पार्ल्यामेंट को प्रस्ताव दिया कि,"यदि इस देश पर दीर्घकाल शासन करना है तो, हिंदुओ का पल्ला छोड़कर मुसलमानों का दामन पकड़ना चाहिए।  सर सैय्यद अहमद खान की राजनितिक अलगाववादी मानसिकता में विभाजन के बिज ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सहयोग से सन १८७० में बोये गए और उसे कांग्रेस ने सिंचा. और सन १८७७ में अमीर अली ने " राष्ट्रिय मोहम्मडन असोशिएशन " की राजनितिक संस्था बनायीं।

निवृत्त न्यायाधीश राय बहादुर चन्द्रनाथ मित्र ने बैसाखी सन १८८२ लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना की।
प्रारंभिक उद्देश्य :- धर्मांतरण के विरोध में शुध्दिकरण,अछूतोध्दार के साथ जातिभेद नष्ट करना था।
                       प्रथम सभापति प्रफुल्लचंद्र चट्टोपाध्याय और प्रथम महामंत्री बाबू नवीनचंद्र राय बने थे।
        सन १८५७ क्रांति के पश्चात हिन्दू राजनीती का आंदोलन न उभरे ; जो, ब्रिटिश सरकार के विरुध्द असंतोष उत्पन्न करें। इस भय से आशंकित सरकार ने विरोधी तत्वों को अवसर देने के बहाने अंग्रेजी पढ़े-लिखे युवकों को साथ लेकर राजनितिक वायुद्वार खोलने का मन बनाया।

          पूर्व सेनाधिकारी रहे एलन ऑक्टोव्हियन ह्यूम को,पाद्रीयों की सलाह पर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट तथा वाइसराय लॉर्ड डफरिन ने परस्पर परामर्श से ऐसा संगठन खड़ा करने को कहा कि,वह ब्रिटिश साम्राज्य से ईमानदार रहने की शपथ लिए शिक्षित हो और इसमें २०% मुसलमान भी हो ! यह थी Congress स्थापना की पृष्ठभूमि।
        हिन्दू सभा के बढते प्रभाव के कारण २८ दिसंबर सन १८८५ मुंबई के गोकुलदास संस्कृत विद्यालय में धर्मांतरित व्योमेशचंद्र बैनर्जी को "राष्ट्रिय सभा" का राष्ट्रिय अध्यक्ष चुनकर कार्यारंभ हुआ। इसके प्रथम अधिवेशन से लेकर सन १९१७-१८ तक "God Save the King ...." से आरंभ और  "Three cheers for the king of England & Emperor of India " प्रार्थना से समापन होता रहा।
     
सन १९०७ में,गुरुश्री तेग बहादुरजी के साथ चांदनी चौक,दिल्ली में बलि चढनेवाले परिवार में पैदा हुए आर्य समाजी क्रांतिकारी नेता देवतास्वरुप भाई परमानन्दजी छिब्बर ने सिन्धु नदी के उस पार भविष्यत् द्वि राष्ट्रवादी / अलगाववादी मुसलमान समुदाय को एकसाथ बसाने की मांग की थी,उसे दुर्भाग्य से द्विराष्ट्रवाद समर्थक कही गयी.

        हिन्दू सभा अध्यक्ष सन १९१० सरदार गुरबक्श सिंग बेदीजी के प्रस्ताव और पंडित मदन मोहन मालवीय तथा पंजाब केसरी लाला लाजपत रायजी के प्रयास से १३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार में कुंभ पर्व के बीच कासीम बाजार बंगाल नरेश मणीन्द्रचन्द्र नंदी की अध्यक्षता में अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना हुई तब पंडित मदन मोहन मालवीयजी के अनुयायी बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उपस्थित थे।
      १९१६ लखनौ कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस-मुस्लिम लीग का संयुक्त प्रस्ताव पारित हुवा था. हिन्दू महासभा ने लखनौ में तत्काल निषेध बैठक बुलाई जीस में लो.तिलक भी उपस्थित थे, व्होइसराय को हिंदू महासभा की ओर से निषेध पत्र दिया गया.अगस्त १९२३ बनारस में अखिल भारत हिन्दू महासभा विशेष अधिवेशन में कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टिकरण की आलोचना की गयी.
 बढते वर्चस्व के लोकप्रिय नेता लो.तिलक को सत्ता स्पर्धा से हटाने मार्च १९२० में ब्रिटिश एजंट मोतीलाल गयासुद्दीन खान (नेहरू) ने सी.आर.दास द्वारा गांधी को तिलकजी की भांति कारावास या हत्या के भय से डरा धमकाकर अपने पक्ष में कर लिया. मोतीलाल नेहरू ने गाँधी को अलगाववादी खिलाफत का नेतृत्व सौपा और लो.तिलकजी को अपमानित कर चिरोल के विरुध्द इकठ्ठा किये एक करोड़ से अधिक रूपया लो.के स्वर्गस्थ होते ही तिलक स्वराज्य फंड के करोडो रुपये खिलाफत के अलगाववादियों में बांटे और स्वयं ने गांधी के नाम से डकारे. इस्लामी अलगाववाद को बल मिला.मोपला- कोहाट काण्ड हुवा. मुस्लिम लीग राजनितिक रूप से प्रबल हुई.इसमे राजनितिक एवं प्रशासकीय पदों का मोह था या इस्लामी षड्यंत्र यह पश्चात् पता हुवा.
        खिलाफत में मुस्लिम तुष्टिकरण में हुई गड़बड़ी के पश्चात् २५ मार्च १९२५ जिन्नाह ने अधिवेशन में १५ मांगो का प्रस्ताव रखा उनमे से १४ मांगो को कांग्रेस ने १९२७ में मान्यता दी तो,ब्रिटिश सरकार ने मुसलमानों को सुभो की संख्या बढा देने का लोलीपॉप दिखाया ; १९२८ में कांग्रेस ने उसे भी मान्यता दी तथा पृथक मतदाता सूचि और प्रतिनिधित्व का स्वीकार किया.ब्रिटिश सरकार से अधिक बढ़कर देने की कांग्रेस निति ने मुस्लिम अलगाववाद को प्रबल किया.

       १२ नवम्बर १९३० प्रथम गोलमेज में ५७ भारतीय प्रतिनिधि पहुंचे थे.उनमे हिन्दू महासभा के कार्यवाहक राष्ट्रिय अध्यक्ष डा.मुंजे,राजा नरेन्द्रनाथ, नानकचंद और डा.आम्बेडकर जी भी पहुंचे थे.बै.गाँधी ने आगा को पाकिस्तान के लिए कोरा धनादेश प्रस्तुत किया और जिन्नाह की १५ मांग मान्यता का वचन दिया.अल्लामा इकबाल की १९३० प्रयाग अधिवेशन की पृथकतावादी मांग जिसे गाँधी वहि लन्दन में मान लेते, अकाली नेता सरदार उज्जलसिंह ने विरोध कर पाकिस्तान को रोका.इस सम्मलेन की असफलता का समाधान धुंडने के बहाने ब्रिटिश सरकार ने १७ अगस्त १९३२ ' सांप्रदायिक निर्णय ' घोषित किया उसका भी विरोध हिन्दू महासभा ने किया. बहुसंख्यक हिन्दुओ को विघटित कर अल्प मत में लाकर मुसलमानों को राजनितिक सत्ता सौपने का षड्यंत्र था.श्वेतपत्र के अनुसार संसद की २५० बैठकों में हिन्दू जाती-पंथ को विघटित १०५ बैठके देने की योजना थी.मुस्लिम लीग की संतुष्टि पर कांग्रेस ने चुप्पी साध रखी थी. अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य पं.मदन मोहन मालवीय जी ने गाँधी को येरवडा कारावास में मिलकर तथा पुणे में डा.आम्बेडकर जी से मिलकर विस्तृत चर्चा के साथ सांप्रदायिक निर्णय और श्वेतपत्र के विरोध में मन बना लिया.१३ मार्च १९३३ हिन्दू महासभा सांसद भाई परमानन्दजी ने संसद में सांप्रदायिक निर्णय और श्वेतपत्र के विरोध में प्रस्ताव रखा कांग्रेस प्रस्ताव का समर्थन करती तो विभाजन की पृष्ठभूमि नष्ट हो जाती. ब्रिटिश सरकार और मुस्लिम लीग ने संयुक्त रूप से इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.इसलिए भाई जी लन्दन के संयुक्त संसदीय समिति में हिन्दू महासभा का विरोध प्रकट करने डा.मुंजे,मेहेरचंद खन्ना,एन.सी.चैटर्जी,बै.आर.एम्. देशमुख जी के साथ पहुंचे तो ब्रिटिश मु.लीग के समर्थको को स्वखर्च से लन्दन ले गए,कांग्रेस तटस्थ रही.२९ मार्च १९३३ भाई जी ने संयुक्त संसद-लन्दन में प्रखरता पूर्वक विचार रखे.१३-१६ अक्तूबर १९३३ अजयमेरु (अजमेर) में भाईजी ने इस निर्णय के विरोध में अधिवेशन किया.उसपर १ नव्हंबर को कांग्रेस ने जो स्पष्टीकरण दिया उनको कांग्रेस अपने व्यवहार में लागू नहीं कर पाई.
          केम्ब्रिज विद्यालय लन्दन में प्रा.चौधरी रहमत अली ने १९३३ में "मुस्लिम ब्रदर हुड" की अलगाववादी नहीं,अखंड पाकिस्तान वादी नीव रखी.जिसे जिन्नाह ने २६ मार्च १९४० लाहोर अधिवेशन में स्वीकार किया.उसकी योजना के अनुसार १० मुस्लिम राज्य बनाकर " दिनिया "बनाना था ब्रिटीश इंडिया को ! राजस्थान में मुईनिस्तान, दक्खन में उस्मानिस्तान,मोपिलास्तान आदि अन्य मुस्लिम राज्य की गुप्त योजनाए थी.संविधान सभा में मुस्लिम लीग के पुर्वश्रम के कांग्रेसी नेता चौ.खली कुज्जमा ने लाहोर जनसभा में कहा, " मुसलमानों के भाग्य में समस्त भारत का शासन करना लिखा है ! पाकिस्तान, मुसलमानों की अंतिम मांग नहीं है.किन्तु, वह तो समस्त इस्लामी जगत को एक महान राष्ट्र बनाने के लिए पहला कदम है."
       १९३५ चुनाव में कांग्रेस के विरोध में पं.मालवीय और माधव श्रीहरी अणे जी ने कोलकाता में NCP नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन कर हिन्दू महासभा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़कर कांग्रेस के समक्ष एक आवाहन खड़ा किया.भाई जी को चुनाव में हराने सरदार पटेल,भूलाभाई देसाई,दीवान चमनलाल गए थे. २ अगस्त १९३५ में संविधान बना,सांप्रदायिक निर्णय मुसलमानों के पक्ष में था.वहि,संघीय प्रणाली (फेडरेशन) अखंड भारत के हित में थी.उसे कार्यान्वित करने कांग्रेस का समर्थन पाने के लिये भाई जी वर्धा में गाँधी के पास गए और प्रस्ताव रखा, " फेडरेशन का स्वीकार करना राष्ट्रहित में होगा,शताब्दियों से भारत एकसंघ देश के रूप में खड़ा नहीं हो सका.अब अधिनियम की संघराज्य की प्रस्तावित योजना से ही अभिशापित देश को एकसंघ करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है."  सरदार पटेल भी वहा थे उन्हों ने भी संमती जताई थी.संघराज्य का विरोध कर रही मुस्लिम लीग कांग्रेस की दृष्टी में राष्ट्रवादी थी.कांग्रेस ने सांप्रदायिक निर्णय के साथ प्रांतीय स्वायत्त शासन को भी स्वीकृति दे दी. संघराज्य को हटाने लीग ने १५-१८ अक्तूबर १९३७ लखनौ में अधिवेशन लिया.द्वितीय विश्व युध्द के कारन व्होइसराय ने फेडरेशन योजना स्थगित की.उसका लाभ मुस्लिम लीग को हुवा.

वीर सावरकर जी १० मई १९३७ को रत्नागिरी की स्थानबध्दता से अनिर्बंध मुक्त हुए और २७ दिसंबर १९३७ कर्णावती अखिल भारत हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अधिवेशन में १९२२ लाहोर हिन्दू स्वयंसेवक संघ संस्थापक भाई श्री परमानन्द जी ने उन्हें राष्ट्रिय अध्यक्ष पद की माला पहनाई। अपने अध्यक्षीय भाषण में वीर जी ने कहा था कि ,"हम साहस के साथ वास्तविकता का सामना करे.भारत को आज एकात्म और एकरस राष्ट्र नहीं माना जा सकता,प्रत्युत यहाँ दो राष्ट्र है !" 
इस वाक्य को मा.सरसंघचालक श्री.सुदर्शन जी ने दुर्भाग्यपूर्ण कहकर ,'उसके कारण परोक्षरूप से जिन्ना के द्विराष्ट्र वाद का ही अनजाने में अनचाहे समर्थन हो गया.' संघ के वरिष्ठ विचारक श्री.हो.वे.शेषाद्री जी ने 'और देश बट गया' पुस्तक में,'सावरकर द्वारा भारत में दो राष्ट्र स्वीकार करना उचित नहीं ठहराया जा सकता !' ऐसा लिखा है।
परन्तु यह कहने के लिए इतिहास का पूर्वावलोकन आवश्यक है। दिनांक १५ से १८ अक्तूबर १९३७ मुस्लिम लीग द्वारा एक अधिवेशन लखनऊ में हुआ। पारित १९३५ संविधान के कम्युनल एवार्ड के अनुसार, "संघराज्य प्रणाली" अखंड भारत के पक्ष में होने के कारण उसका मुस्लिम लीग के अधिवेशन में हुए विरोध प्रस्तावों के अनुरूप, 
हिन्दू महासभा वरिष्ठ नेता भाई परमानंदजी ने वर्धा पहुंचकर बैरीस्टर गांधी को संघराज्य प्रणाली को समर्थन के लिये विचार रखा तब सरदार पटेल वहा उपस्थित थे ,दोनो ने इस प्रस्ताव का समर्थन दर्शाया भी परंतु,आगे जो हुआ उसके अनुरूप सावरकरजी ने २७ दिसंबर १९३७ को जो विचार रखा क्या वह द्विराष्ट्रवाद था ? या धोखे का संकेत ? जो संकेत दिए वह द्विराष्ट्रवाद के समर्थन में नहीं थे ! अपितु,मुस्लिम राष्ट्र के धोखे को भापकर उसे गहरा पैठा रोग बताया और उसकी चिंता करने के लिए आवाहन किया था.(सन्दर्भ-हिन्दू राष्ट्र एक विचार मंथन से )

सावरकर और हिन्दू महासभा के विरोध में लिखे गए इन विधानों के कारन :-
रा.स्व.संघ प्रवर्तक हिन्दू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.बा.शि.मुंजे उनके मानस पुत्र डॉ.के.ब. हेडगेवार,क्रांतिकारी ग.दा.सावरकर ,परांजपे,बापू साहब सोनी जी ने 'हिन्दू युवक सभा' की नींव सन १९२५ विजया दशमी को रखी थी। उसका कार्यवहन डॉ.हेडगेवारजी को वाराणसी दंगा नियंत्रण के अनुभव पर वीर सावरकरजी को शिरगाव-रत्नागिरी में मिलकर आने के पश्चात् सौपा गया था। सावरकर-हेडगेवार दोनों महानुभावो के विचारो में साम्यता थी,'जब तक हिन्दू अन्धविश्वास,रूढ़ीवाद सोच,धार्मिक आडम्बर नहीं छोड़ेंगे और छुवाछुत अगड़ा-पिछड़ा और क्षेत्रवाद में बंटा रहेगा,वह संगठित नहीं होगा तब तक वह संसार में अपना उचित स्थान नहीं ले पायेगा।'यह दोनों का समान दृष्टिकोण था।

सन १९३८ वीर सावरकरजी दूसरी बार राष्ट्रिय अध्यक्ष बने नागपुर अखिल भारत हिन्दू महासभा अधिवेशन के संयोजक डॉ.हेडगेवारजी थे,वीर जी को सैनिकी मानवंदना दी गयी.विशाल शोभायात्रा में पूर्व सरसंघ चालक स्व.श्री.भाउराव देवरसजी केसरिया ध्वज के साथ हाथीपर बैठकर अगुवाई कर रहे थे। 

*** सन १९३९ कोलकाता अधिवेशन में वीर जी तीसरी बार अध्यक्ष बने डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी के संयोजन में यह अधिवेशन संपन्न हुवा। पूर्व न्या.श्री.निर्मलचन्द्र चटर्जी,गोरक्ष पीठ महंत श्री दिग्विजय नाथ जी,डॉ.हेडगेवार जी,गुरु गोलवलकर जी ,श्री.बाबा साहब घटाटे जी उपस्थित थे। अधिवेशन में अन्य पदोंके लिए चुनावी प्रक्रिया हुई,सचिव पद के लिए सर्व श्री इन्द्रप्रकाश-८० वोट,गोलवलकर-४० वोट,ज्योति शंकर दीक्षित-२ वोट मैदान में थे। इन्द्रप्रकाश चयनित हुए. डॉ.हेडगेवार राष्ट्रिय उपाध्यक्ष तो श्री.घटाटे कार्यकारिणी सदस्य चुने गए.श्री.गोलवलकर जी हार से सावरकर जी पर चिढ गए और समर्थको समेत हिन्दू महासभा से हट गए.डॉ.हेडगेवार जी ने उन्हें रा.स्व.संघ में सहकार्यवाह पद देकर सावरकर विरोध शांत किया परन्तु, सावरकर जी को द्रष्टा कहा जाता है उसका और एक प्रमाण,सावरकरजी ने त्वरित रा.स्व.संघ का हिन्दू महासभा में विलय और "हिन्दू मिलिशिया" की स्थापना का प्रस्ताव रखा उसे संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजे जी ने भी मान्यता दी परन्तु गुरूजी के मोहजाल में फंसे बाबाराव सावरकर जी ने मना किया.अन्यथा विभाजन न होता और अखंड हिन्दुस्थान या हिन्दुराष्ट्र होता। 
 
      डॉ.हेडगेवारजी की अकस्मात् ? इस मृत्यु के पश्चात पिंगले को सरसंघ चालक बनना पूर्व निर्धारित था। मात्र कब्जाधारी गुरूजी ने सरसंघ चालक पद पाया। पदपर आते ही तत्काल उन्होंने सावरकर समर्थक सैनिकी शिक्षा शिक्षक श्री. मार्तण्डेय राव जोग को पदच्युत कर सैनिकी शिक्षा विभाग बंद किया. चातुर्वर्ण्य माननेवाले गुरूजी रुढ़िवादी परंपरा के समर्थक थे।सावरकर-हेडगेवार के भिन्न विचार-आचार थे। अपरिपक्वता के कारण सावरकर-गोलवलकर  में मतभेद थे। सावरकरजी का आदर जो हेडगेवारजी करते थे वह उनके आचरण में नहीं था। उलटे सावरकर विद्वेष में संघ-महासभा में दुरिया निर्माण की।जहा मुंजे-सावरकर जी सैनिकीकरण की आवश्यकता को प्रखरता पूर्वक रखते थे और हेडगेवार-सुभाष बाबु ने उनकी स्तुति की उसे गुरूजी ने जोग को हटाकर धुतकारा,वीरजी को "रिक्रूट वीर " तक उपाधि दी।

इस सन्दर्भ में श्री.गंगाधर इंदुलकर जी ने लिखा है ,' गोलवलकर यह सब वीर सावरकर जी की बढती लोकप्रियता के कारण कर रहे थे,उन्हें भय था की यदि सावरकर की लोकप्रियता बढ़ी तो युवक वर्ग उनकी ओर आकृष्ट नहीं होगा और संघ नेतृत्व विमुख होगा.' इस पर इंदुलकर ही पूछते है ,' ऐसा करके संघ/ गुरूजी क्या हिन्दुओको संगठित कर रहे थे या विघटित ? '

कांग्रेस नेता संघ और सावरकर जी को कलंकित करने में सफल नहीं हो पाए। परन्तु, गुरूजी के माध्यम से दूर करने में सफल हो पाई। १९४६ के चुनाव में गुरूजी ने नेहरू का खुलकर समर्थन देकर संघीय - हिन्दू महासभा प्रत्याशियोंको नामांकन वापस लेने को कहा। कांग्रेस-लीग बहुमत से  जित गयी हिन्दू महासभा को १६% वोट मिले और हिंदुओंकी ओर से विभाजन करार पर हस्ताक्षर का सौभाग्य नेहरू ने पाया। तब गुरूजी ने नेहरू के विश्वासघात पर मौन रखकर विभाजन का अप्रत्यक्ष समर्थन ही किया। अब बताये विभाजन या द्विराष्ट्रवाद का आरोप करनेवाले कौन है उत्तरदायी ?


 जिन्ना ने बलूचिस्तान के मुसलमानों को कहा था की,' भारतीय मुसलमान आप लोगो में बड़ा विश्वास और आशाए रखते है.' और समझाते है की,'आप इस्लाम के अजेय सैनिक है और आप के द्वारा इस्लाम भारत में अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त करने में समर्थ होगा.'।फरवरी १९४६ में निजाम ने राजनितिक दल "मीम" के नाम से बनाया और उसका नेतृत्व कासिम रिज़वी ने किया था।विभाजनोत्तर उसने खंडित भारत में हैदराबाद को समाविष्ट करने का विरोध किया।सर मिर्जा इस्माइल को नबाबी रियासत के प्रधान मंत्री पद से हटाकर मीर लाइक अली को नियुक्त किया। रजाकारो ने शेष भारत में समाविष्ट होने के इच्छुकोपर हमले कर उनकी हत्याए की।अंततः १३ से १७ सप्तम्बर १९४८ तक चली सैन्य कार्यवाही के पश्चात् हैदराबाद (भायानगर) शेष भारत में समविष्ट हुवा,कासिम रिज़वी को कारागार में डालकर मीम पर प्रतिबन्ध लगाया था। हाल ही में मीम को पुनर्जीवित करनेवाले, हिजबुल्लाह के कमान्डरो से मिलकर राष्ट्रद्रोही गतिविधि में संलिप्त सांसद-विधायक ओवैसी बंधु कांग्रेस के साथ सरकार में सहभागी रहे है।
  लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के ' मराठा ' और दिल्ली के ओर्गनायजर में २१ अगस्त १९४७ को छपा था, " हिन्दुस्थान बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है,लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा."
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है.
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना.
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे.उदहारण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये.
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना.
४) अलीगढ विद्यालय जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये.

     १८ अक्तूबर १९४७ के दैनिक नवभारत में एक लेख छपा था, विभाजन के बाद भी पाकिस्तान सरकार और उसके एजंट भारत में प्रजातंत्र को दुर्बल बनाने तथा उसमे स्थान स्थान पर छोटे छोटे पाकिस्तान खड़े करने के लिए जो षड्यंत्र कर रहे है उसका उदहारण जूनागढ़,हैदराबाद और कश्मीर बनाये जा रहे है.

          'हिन्दुस्थान हेरोल्ड' के अनुसार निजाम सरकार दो करोड़ रूपया लगाकर वहा के अछूतों को मुसलमान बनाने के लिए एक विशाल आन्दोलन खड़ा कर रही है हिन्दुओ को डराकर राज्य से भगाया जा रहा है. ( इन स्थिति में डा.आम्बेडकरजी ने मक्रणपुर परिषद में निजाम को धमकाया और अछूतों के धर्मान्तरण को प्रतिबन्ध लगाया था.उनके अनुयायी इराप्पा ने निजाम का वध करने तक का प्रयास किया था परन्तु पकड़ा गया.)

       देश में राष्ट्रीयता में विषमता की राजनीती और मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण संविधान विरोधी आरक्षण से अनचाहे अखंड पाकिस्तान की योजना को ही बल मिल रहा है,हिन्दू पंथिय मंदिरों का या टेक्स पेयर हिन्दुओ का धन मदरसों-मस्जिदों-चर्च को सहायता-अनुदान-वेतन में दिया जा रहा है.मंदिरो की सुरक्षा नहीं.पक्षांतर्गत अल्पसंख्यंक प्रकोष्ठ रखनेवाले कथित हिंदूवादी भी उन्हें राजनितिक लाभ के लिए लुभाने के प्रयास में कही कमी नहीं आने देते.अरबस्थान-रोम या विदेशी धन का धर्मांतरण के लिये आगमन हो या विदेशी बैंको में जमा राष्ट्रिय धन वापस लाने का साहस नहीं,रोकने का प्रतिबन्ध नहीं.संविधान विरोधी या राष्ट्रद्रोही को दण्डित करने की इच्छाशक्ति का अभाव अखंड पाकिस्तान को पुष्ट करता है.

            *श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया था।
" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी. १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में  एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक द वाईडेनिंग डीवाईड में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी )अल्पसंख्यांक होंगे !

        मात्र जापान विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जो, को नागरिकत्व नहीं करता और उसके विरुध्द संयुक्त राष्ट्र संघ में कोई विशेष न्यायासन भी नहीं है। इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर यहाँ पूर्णतः प्रतिबंध है। मदरसा भी नहीं है। धर्मांतरण किया नहीं जा सकता। मुसलमान धर्मांधता एवं कट्टरता निर्माण करते है, ऐसा जपान सरकार का सैध्दांतिक आरोप है।इसलिए यहाँ मुसलमानों के संबंध में कठोरता पूर्वक सजगता रखी जाती है। इस ही के कारण
१) जापान में अभी तक किसी प्रकार के दंगे या आतंकी कृत्य हो नहीं पाया।
२) जापान में चार शतक पूर्व तक १० लक्ष मुसलमान थे,अब केवल पौने दो लक्ष बचे है।राष्ट्रिय परिवार नियोजन तथा एक विवाह नियम है।
३) जापान के मुसलमान केवल जापानी भाषा-लिपि का ही प्रयोग कर सकते है। जापानी भाषा में अनुवाद किया हुवा ही कुराण रख सकते है।
४) नमाज भी केवल जापानी में ही पढ़ सकते है।
५) जापान में केवल पांच मुस्लिम राष्ट्र के दूतावास है और उनके कर्मचारियों को भी जापानी भाषा में ही संवाद करना होता है।
६) जापान में धर्मांतरण प्रतिबंधित है।
७) ख्रिश्‍चन धर्मगुरू (पाद्री) भी यहाँ बेरोजगार है।गत ५० वर्ष में जापान निवासी ख्रिश्चानो की जनसँख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
      जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है. जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा.राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है."
                                                     
http://www.facebook.com/StateOfIslam United State of Islam (USI) (الدولة المتحدة الإسلامية)
We want all Islamic nations united like a one nation 1-khalifa(Mulla Umer) 1-currency 1-language(Ara...

       यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट या अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है.

        अमन का पैगाम देनेवाला इस्लाम ? हां,शिया पंथ ही सच्चा इस्लाम है बाकी सब अधर्मी !
आज पुरे विश्व को इस्लामी आतंक में झोकने वाले कट्टरपंथी वहाबी सुन्नी मुस्लिम कौन है ???
सऊदी अरब में नज्द नामक शहर इनका प्रमुख केन्द्र है। नज्द के "बानू तमीम जनजाति के अब्दुल वहाब नज्दी" ने ही "वहाबी पंथ" की बुनियादी डाली थी।
भारत में सर्वप्रथम १९२७ में हरियाणा के मेवात क्षेत्र में लोग वहाबी विचारधारा से जुड़े थे। इसके बाद "उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद" में इसका मुख्यालय स्थापित किया गया, जिसके कारण भारत में "वहाबी विचारधारा के लोग देवबंदी" कहलाए। भारत में देवबंदियों या वहाबियों की जमात को "तब्लीगी" नाम से भी जाना जाता है। वहाबी कट्टरता और जिहाद में विश्वास करते हैं, इसलिए इनके मदरसों में भी इसी प्रकार की शिक्षा दी जाती है। वहाबियों की एक जमात जिहाद बिन नफ्स (अंतरात्मा से जिहाद) और दूसरी जमात जिहाद बिन सैफ (तलवार के बल पर जिहाद) में यकीन रखती है।
अब्दुल्ला इब्ने-उमर की हदीस के अनुसार नज्द के संबंध में इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने कहा था कि शैतान के सींग यहीं से उगेंगे। एक हदीस में यह भी कहा गया है कि वहाबी शैतान की सलाह मानेंगे। कुरान शरीफ में बताया गया है कि इब्लीस (शैतान) ने अल्लाह के आदेश को मानने से इंकार करते हुए हजरत आदम को सज्दा नहीं किया था। उल्लेखनीय है कि वहाबी भी नबियों (पैगम्बरों) और सूफियों को नहीं मानते। उनके मुताबिक दरगाहों पर जाना, चादर और प्रसाद चढ़ाना इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है, जबकि भारत में दरगाहों की बड़ी मान्यता है। मुसलमान ही नहीं अन्य मत-पंथों के लोग भी अपनी मन्नतें लेकर दरगाहों पर बड़ी संख्या में जाते हैं।
 यह कहना भी गलत न होगा कि आतंकवाद के लिए वहाबी विचारधारा ही जिम्मेदार है। जैश-ए-मोहम्मद, लश्करे- तोएबा, हरकत-उल-अंसार (मुजाहिद्दीन), अल बद्र, अल जिहाद, स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) और महिला आतंकवादी संगठन दुख्तराने-मिल्लत जैसे दुनिया के सौ से ज्यादा आतंकवादी संगठनों के सरगना वहाबी समुदाय के ही हैं। 

Wednesday 24 December 2014

महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी को "भारतरत्न" !

अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य
* पंडित मदन मोहन मालवीय पुण्य स्मरण *
जन्म २५ दिसंबर १८६१                     मोक्ष १२ नवम्बर १९४६ 
संस्थापक :- श्री गंगा महासभा,श्री रामायण महासभा 
                   बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी-वाराणसी,हिन्दू छात्रावास-प्रयाग 
आंदोलक-श्री काशी विश्वनाथ मंदिर-वाराणसी में अछुतो के साथ प्रवेश 
              सुमनांजलि !

               * अखिल भारत हिन्दू महासभा;गंगा महासभा; B.H.U.संस्थापक महामना पं.मदन मोहन मालवीय जी के साथ १८-१९ दिसंबर १९१६ को ब्रिटिश सरकार का समझोता हुवा.

     *उपस्थित महानुभाव-महाराजा ग्वालियर,जयपुर,बीकानेर,पटियाला,अलवर,बनारस,दरभंगा,महाराजा कासिम बाजार मनिन्द्र नंदी,अध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा
       *ब्रिटिश अधिकारी-रोज,सचिव भारत सरकार,लोक निर्माण विभाग २)बार्लो मुख्य अभियंता संयुक्त उत्तर प्रान्त ३)स्टैंडले,अधीक्षण अभियंता,सिंचाई ४)कूपर कार्यकारी अभियंता,सिंचाई ५)आर.बर्न,मुख्य सचिव संयुक्त प्रान्त
अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक पं.मालवीय जी,राष्ट्रिय महामंत्री लाला सुखबीर सिंह आदि अन्य उपस्थित थे.

* सन १९०९ में गंगा जी पर बाँध का प्रस्ताव हुवा था,१९१४ समझोते में हिन्दू तिर्थालूओंको स्नानार्थ निरंतर अविच्छिन्न पर्याप्त पानी मिलेगा.ऐसा १९१६ अनुच्छेद ३२- i में वचन दिया था, "गंगा की अविरल अविच्छिन्न धारा कभी भी रोको नहीं जाएगी l"                                                                                                                      *२६ सप्तम्बर १९१७ को शासनादेश २७२८/ lll- ४९५ जारी हुवा.लाला सुखबीर सिंह महामंत्री हिन्दू महासभा को भेजे पत्र,उसके अनुच्छेद ३२ भाग ii में कहा गया है कि,
" इसके विपरीत कोई भी कदम हिन्दू समाज से पूर्व परामर्श के बिना नहीं उठाया जायेगा."

       महामना पं.मदनमोहन मालवीयजी का जन्म उत्तरप्रदेश के प्रयाग में दिनांक २५ दिसम्बर सन १८६१ को हुआ। इनके पिता ब्रजनाथजी और माता का नाम भूनादेवी था। मालवा के मूल निवासी होने के कारण मालवीय कहलाए गए। महामना मालवीयजी की गणना मूर्धन्य राष्ट्रीय नेताओं में होती है।हिन्दू सभा को पंजाब से निकालकर अखिल भारत स्तर स्थापित करने में उन्होंने आर्य समाजी लाला लाजपत राय जी की सहायता ली। जितनी श्रद्धा और आदर उनके लिए शिक्षित वर्ग में था उतनी ही जन साधारण जनता में भी थी। मालवीयजी की विद्वता असाधारण थी और वह अत्यंत सुसंस्कृत व्यक्ति थे। विनम्रता एवम् शालीनता उनमें कूट-कूटकर भरी थी। वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ वक्ता थे। वह संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेजी तीनों ही भाषाओं में निष्णांत थे। महामनाजी का जीवन विद्यार्थियों के लिए एक महान प्रेरणास्रोत था। उनके स्तर के किसी अन्य नेता के पास जनसाधारण की पहुँच उतनी सरल नहीं थी, जितनी मालवीयजी के पास थी। लोग उनके साथ इतने आदर के साथ बात करते थे मानों वह उनके पिता,बंधू अथवा आप्त हों।
मालवीयजी ने सन १८९३ में कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की और कई वर्षों तक अधिवक्ता भी रहे। इस क्षेत्र में उनको बहुत ख्याति मिली। चौरी-चौरा कांड के १७० भारतीयों को फाँसी की सजा सुनाई गई थी, किंतु मालवीयजी के बुद्धि-कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर १५१ लोगों को फाँसी से छुड़ा लिया। इस अभियोग की ख्याति सारे विश्व में फैल गई। इस अभियोग की तैयारी के लिए वह सायं कुर्सी पर बैठ जाते थे और सैकड़ों पुस्तकों को पढ़कर अपने काम की सामग्री निकाल लेते थे। वह पूरी-पूरी रात जागकर अभियोग के युक्तिवाद की तैयारी करते थे। ब्रिटिश न्यायमूर्ति भी उनकी तीक्ष्ण बुद्धि पर आश्चर्य प्रकट करते थे।
राष्ट्र की सेवा के साथ ही साथ नवयुवकों के चरित्र-निर्माण के लिए और भारतीय संस्कृति की जीवंतता को बनाए रखने के लिए मालवीयजी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय BHU की स्थापना की।
       गौ, गंगा व गायत्री महामना के प्राण थे। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बाकायदा एक बड़ी गौशाला बनवायी थी। इस गौशाला को देखरेख के लिए विश्वविद्यालय के कृषि कॉलेज को सौंपा गया था। गंगा उन्हें इस क़दर प्यारी थीं कि उन्होंने श्रीगंगा महासभा स्थापन कर न केवल गंगाजी की अविरल धारा के लिए बड़े आंदोलन किए वरन गंगा को विश्वविद्यालय के अन्दर भी ले गए थे। जिससे कि पूरा प्रांगण हमेशा पवित्र रहे। न्यायमूर्ति के अनुसार महामना मालवीय उचित न्याय से आधुनिक भारत के निर्माणकर्ता थे। देश में इंजीनियरिंग, फार्मेसी आदि की पढ़ाई का कार्य महामना ने ही प्रारंभ किया था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में देश में पहली बार इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू हुई थी। दशकों तक देश में इंजीनियरिंग की डिग्री ख़ास कर 'इलेक्ट्रिकल' व 'मैकेनिकल' की डिग्री बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज के माध्यम से ही दी जाती थी।
     सनातन धर्मी छात्रों को शाकाहारी भोजन व रहने की व्यवस्था सुलभ कराने के लिए इलाहाबाद में हिन्दू छात्रावास (हिन्दू बोर्डिग हाउस) की स्थापना, भारती भवन पुस्तकालय, दो समाचार पत्र प्रारंभ करने आदि महान कार्य महामना ने किए थे। हिन्दू छात्रावास आज भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा छात्रावास है। न्यायमूर्ति मालवीय के अनुसार महामना हिन्दी के प्रबल समर्थक थे। वह अंग्रेज़ी में बात करने को देशद्रोह मानते थे। महामना के अथक प्रयासों के फलस्वरूप ही तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने १८ अप्रैल १९०० को आदेश जारी कर देवनागरी को सरकारी कार्यालयों व न्यायालयों में प्रयोग की अनुमति दी थी।वही अब उर्दू को बढ़ावा मिल रहा है।
      महामना मूलतः कांग्रेसी थे और बैरिस्टर गांधी के मार्गदर्शक बने थे। जब कांग्रेस ने हिन्दू महासभा से नाता तोड़ दिया तब बापूजी अणे के साथ मिलकर कोलकाता में नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन कर हिन्दू महासभा के साथ गठजोड़ से कांग्रेस को धूल चटाई थी मात्र भाई परमानंदजी ने लाहोर से हिन्दू महासभा की ओर से चुनाव लड़ा।
मालवीयजी आजीवन देश सेवा में लगे रहे और १२ नवम्बर १९४६ मृत्यु पूर्व कांग्रेस से हुई भ्रमनिराशा पर हिन्दूओ के लिए पत्रक निकालकर प्रयाग में देहत्याग किया।

संक्षिप्त जीवनी :-
जन्म-प्रयाग २५ दिसंबर १८६१ 
विवाह-कुंदनदेवी सन १८७८ 
शिक्षा-कोलकाता विश्वविद्यालय से B.A. सन १८८४ ; अलाहाबाद जिला विद्यालय में अध्यापक 
सामाजिक हिन्दू उत्थान कार्य-मध्यभारत हिन्दू समाज समारोह में सहभाग सन दिसंबर १८८५ 
संपादक-हिन्दुस्थान कालाकांकर सन जुलाई १८८७ ; सन १८८९ संपादन छोड़कर अधिवक्ता शिक्षा प्रारंभ 
अधिवक्ता-प्रयाग उच्च न्यायालय दिसंबर १८९३ 
छात्रावास-सन १९०२-१९०३ प्रयाग हिन्दू छात्रावास का निर्माण 
प्रशासन-सन १९०२-१९१२ प्रांतीय कौंसिल सदस्य 
विद्यालय काशी-सन १९०४ काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह की अध्यक्षता में विद्यालय स्थापना भाषण 
सनातन धर्म महासभा अधिवेशन-प्रयाग कुंभ पर्व सन १९०७ ; काशी में भारतीय विश्व विद्यालय खोलने का निर्णय 
संपादक-अभ्युदय सन १९०७ लोक तांत्रिक सिध्दांतो और उदार हिन्दू धर्म का प्रसार 
हिंदी साहित्य संमेलन-अक्तूबर १९१० प्रथम अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण
काशी विश्व विद्यालय-योजना के संबंध मालवीयजी और महाराजा दरभंगा की लॉर्ड हार्डिंग से भेंट ११ अक्तूबर १९११ 
हिन्दू युनिवर्सिटी सोसायटी-गठन २८ नवंबर १९११
अखिल भारत हिन्दू महासभा-१३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार में स्थापना ; बैरिस्टर गांधी के मार्गदर्शक बने।   
बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी-अध्यादेश पारित अक्तूबर १९१५ ; फरवरी १९१६ शिलान्यास। 
लखनऊ पैक्ट-१९१६ विरोध। 
२० अगस्त १९१७ भावी राजनितिक लक्ष्य के संबंध में भारत मंत्री की घोषणा
कांग्रेस मुंबई अधिवेशन-२९/३१ अगस्त १९१८ गरम दल-नरम दल में समन्वय का प्रयास। 
कांग्रेस दिल्ली वार्षिक अधिवेशन-दिसंबर १९१८ की अध्यक्षता। 
सहायता-जालियांवाला बाग़ हत्याकांड में पीडित जनता की सहायता। 
उपकुलपति-नवंबर १९१९ बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी। 
हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द-१६ सप्तम्बर १९२२ लाहोर में भाषण। 
हिन्दू महासभा गया विशेष अधिवेशन-३१ दिसंबर १९२२ मालवीयजी की अध्यक्षता। 
हिन्दू महासभा काशी अधिवेशन-अगस्त १९२३ मालवीयजी की अध्यक्षता। 
अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य मालवीयजी-लाला लाजपत राय के नेतृत्व में कांग्रेस इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन। 
सायमन कमीशन बहिष्कार-नवम्बर १९२६ 
दीक्षांत भाषण-काशी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण। 
दिल्ली में गिरफ़्तारी-२० अगस्त १९३० मालवीयजी और कांग्रेस वर्किंग कमिटी मेम्बर्स को छः मास की सजा। 
मालवीय-अणे जी का त्यागपत्र-कांग्रेस वर्किंग कमिटी द्वारा सांप्रदायिक निर्णय (कम्युनल एवार्ड) पर तटस्थ रहने के कारण। अगस्त १९३४ 
कांग्रेस अधिवेशन मुंबई-सांप्रदायिक निर्णय के सम्बंध में मालवीयजी ने रखा संशोधन प्रस्ताव अमान्य। 
सांप्रदायिक निर्णय विरोधी-दिल्ली में कॉन्फरन्स फरवरी १९३५ 
सनातन धर्म महासभा अधिवेशन-जनवरी १९३६ प्रयाग में अधिवेशन में अंत्यजोद्दार पर प्रस्ताव। 
उपकुलपति पद से त्याग-सप्तम्बर १९३९ त्यागपत्र के साथ सर रामकृषणन् को उपकुलपति का प्रस्ताव। 
गोरक्षा मंडल-सन १९४१ में स्थापना।   



नेहरू-पटेल के इशारेपर हिन्दू महासभा तोड़ने के प्रयास चल रहे थे तब हिन्दू महासभा भवन,मंदिर मार्ग,नई देहली आये श्री वाजपेई को बैरंग लौटानेवाले हिन्दू महासभा को तोड़ने के लिए शस्त्र बनाये गए डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी को नेहरू के इशारेपर कश्मीर ले जाकर छोड़नेवाले हिन्दू महासभा-सावरकर विरोधी को "भारतरत्न" देने के लिए, 
अखिल भारत हिन्दू महासभा १३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार - श्री गंगा महासभा द्वारा आंदोलन कर श्री गंगाजी का अविरल-अविरत प्रवाह छोड़ने का सफल प्रयास -श्री रामायण महासभा,अयोध्या -पूर्व अछूतों के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर प्रवेश आंदोलन-BHU संस्थापक महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी को "भारतरत्न" देने के पीछे हिन्दू महासभा का श्री वाजपेई के नामपर विरोध न हो यही उद्देश्य !

Monday 22 December 2014

धर्म परिवर्तन कानून की नहीं,समान नागरिक संहिता की आवश्यकता !

धर्म परिवर्तन कानून की नहीं खंडित भारत को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है !
१९४६ असेम्ब्ली चुनाव में अखंड भारत समर्थक हिन्दू महासभा को पराभूत करने के लिए सरसंघ चालक ने नेहरू के समर्थन में,अल्पसंख्या के आधारपर देश के बटवारे में अनचाहा सहयोग किया है। ऐसे में यह "हिन्दुराष्ट्र है !" केवल "हिन्दू राजसत्ता" नहीं है और १९९६ से २०१४ तक भाजप ने यूनाइटेड हिन्दू फोरम का हिन्दू संसद का प्रस्ताव ठुकराने के कारन यहां हिन्दू विरोधी गतिविधी को कांग्रेस की मानसिकता से सींचा जा रहा है।
यदि यह हिन्दुराष्ट्र नहीं है,तो माननीय सर संघ चालक स्पष्ट करे !
हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का भी स्वीकार नहीं कर सकते क्यों कि,१९५० से संविधानिक समान नागरिकता अभी तक प्रतीक्षित और आंबेडकरजी उपेक्षित है। विभाजन के विरोध में भी हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अध्यक्ष स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी ने समान न्याय-अधिकार और अवसर की मांग की थी। परंतु,कांग्रेस की भांती संघ नेता शेषाद्रिजी ने भी "और देश बट गया !" में सावरकरजी को द्विराष्ट्रवाद का प्रेरक बताया। स्वर्गीय सुदर्शनजी ने भी गुरु गोलवलकर की भांती सावरकर विरोध में ऐसे ही विचार रखकर अपने आपके संगठन को साफसुथरा और हिन्दू महासभा को सांप्रदायिक-जातिवादी दर्शाने का प्रयास किया। हिन्दू महासभा अकेले सर्वोच्च न्यायालय में १९८५ से यह मांग कर रही है। महामहिम पूर्व राष्ट्रपती तथा पूर्व महा न्यायाधीश भी इसका समर्थन कर चुके है और भाजप शासित NDA जिन वचनों के आधारपर चुनाव जीती थी उनसे मुंह मोड़ लिया था। श्रीराम जन्मस्थान का कब्ज़ा करने "रामसखा" को आगे लाए विहिंप ने बटवारे के लिए पलोक बसु समिती का सपा के साथ मिलकर षड्यंत्र किया। अच्छे दिन का भरोसा देने के लिए सबका साथ क्यों नहीं ?
 10 May 1938 TOI
24 dIC.1985 in S.C.

Sunday 14 December 2014

मुसलमानो का उद्देश्य है,अखंड पाकिस्तान ! इसलिए अछूतोध्दार के साथ धर्मांतरितोंका शुध्दिकरण !

पाकिस्तान की ओर से हो रही घुसपैठ हो या सीमापर गोलीबारी ,मुसलमानो का मुख्य उद्देश्य है,अखंड पाकिस्तान ! इसलिए खंडित भारत में पीछे छूटे अखंड पाकिस्तान के हस्तक बारंबार इन घुसपैठियों को शरण देना हो या सहयोग करते रहेंगे। मुसलमान राष्ट्रवाद के चक्कर में नहीं आता वह,विश्व इस्लाम का सिपाही समझता है। केवल कुरान के आदेश का पालन करता है इसलिए इराक हो या सीरिया विदेशी मुसलमान वहां पहुंचा। गैर मुस्लिम को कुरान के अनुसार पीड़ित करना या हत्या करना यही उनका लक्ष होता है। इसलिए पाकिस्तान के साथ पडोसी होकर भी मित्रता नहीं हो सकती। भले ही वह स्वयं अंतर्गत गृहयुध्द से जूझ रहा हो। क्योकि यहां केवल नामधारी लोकतंत्र विश्व सहायता के लिए है। हालही में पाकिस्तान वायुसेना से पीड़ित आतंकी बने अधिकारी ने पाकिस्तान का दोहरा चेहरा खोलकर रख दिया है। इसे नष्ट करना और खंडित भारत के पूर्व हिन्दुओं का शुध्दिकरण करना ही अखंड भारत के लिए उपयोगी तंत्र है। ऐसा क्यों ?

इस्लाम की स्थापना एक रोमन राजनितिक धर्म सत्ता के विरोध में अरबी शैवों ने की थी। जो धर्माज्ञा देनेवाले ग्रंथ ने भी रोमन साम्राज्यवाद का अनुकरण करने अमानवीय-बलात्कारी-चोरी-डकैती-अपहरण को धर्म समझकर इस्लाम विश्व साम्राज्यवादी बनाया।इस्लाम को माननेवाला कभी लालच से नहीं बिकता। मात्र अब बकरा दाढी नुमा इस्लाम के ठेकेदारो ने फरमाया हैं कि, इस्लामिक किताब को कोई छू भी नही सकता ! परंतु, "टर्की ने कुरान और हदीस के पुनरावलोकन के लिए धर्म को इंसानियत से जोड़े रखे अध्यात्मवादियों की एक अध्ययन समीति नियुक्त की हैं !" टर्की के धर्मगुरुओं का मानना हैं कि कुरआन की कुछ विशेष आयते मुहम्मद के मुंह से कभी निकली ही नही हैं। तथा मुहम्मद के बाद उसमे सैंकड़ो आयतों को खलीफाओं ने स्वार्थ हित हेतू जोड़ा हैं ! अब क्या शांतिदूत टर्की के खिलाफ भी जेहाद करेंगे ? अधर्म और अमानवीयता विरोधी सत्य का ज्ञान ही उन्हें अपने पूर्वजों के धर्मांतरण का त्याग कर शुध्दिकरण के लिए प्रवृत्त करता है।

कुरान की चौबीस आयतें और उन पर दिल्ली कोर्ट का फैसला
श्री इन्द्रसेन (तत्कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, १ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) में मुकदमा चलाया गया।उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।

मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।”
तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- “कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।”
(ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)

          कश्मीर को धर्मांतरित करने निकले औरंगजेब ने श्री गुरु तेगबहादुर सोढी जी को धर्मांतरण के लिए कितनी यम यातनाए दी ? भाई सातिदास,भाई मतिदास,भाई दयालदास ने गुरूजी के प्राण बचाने के लिए कैसे बलिदान दिया वह चांदनी चौक साक्षी है। छत्रपती शिवाजी महाराज ने भी धर्मांतरित नेताजी पालकर की शुद्धी करवाई थी। कश्मीर में सनातनियों के विरोध के पश्चात भी पंडित श्रीभट्ट ने सुलतान जैनुल आब्दीन के कार्यकाल में लाखों धर्मांतरितो की शुद्धि के पश्चात् विषमता रहित हिन्दू समाज के लिए सभी हिन्दुओं को "पंडित" बना दिया था। 
        हिन्दू सभा की बैसाखी १८८२ लाहोर में हुई स्थापना का उद्देश्य भी यही था कि,धर्मान्तरण के लिए प्रवृत्त हो रहे उपेक्षित हिन्दू जातियों को जातिवाद से मुक्त करना। इसके लिए "जाती तोड़क सभा" गठीत हुई थी।
        चिरोल की लन्दन केस में लोकमान्य तिलक जी को आर्थिक सहाय्यता हेतु राष्ट्रिय स्तर पर दान इकठ्ठा किया जा रहा था।तिलक जी को लन्दन से आते ही शनवार बाड़ा,पुणे में सार्वजनिक सन्मान के साथ ३.२५ लक्ष रुपये महाराष्ट्र से दे दिए गए थे।राष्ट्रिय कोष का नाम "तिलक स्वराज्य फंड" था।जो दिनों दिन बढ़ रहा था।मोतीलाल नेहरू ने तिलक जी की उपेक्षा कर यह पार्टी फंड है कहकर देने से मना किया।रु.१,३०,१९,४१५ आणा १५ का यह फंड योग्य रूप से व्यय करने के लिए एक अनुदान उपसमिति लोकमान्य तिलक जी के निधनोत्तर ३१ जुलाई १९२१ में गठित हुई थी।परन्तु ,६ नवम्बर १९२१ को उसे भंग कर कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने कोलकाता तथा नागपुर कार्यकारिणी में खिलाफत आन्दोलन को आर्थिक सहायता हेतु प्रस्ताव पारित कर तिलक स्वराज्य फंड वितरण का सर्वाधिकार अपने पास रख लिया। कॉंग्रेस समिती ने कोई कारण बताये बिना धन का वितरण राष्ट्रद्रोहियो को किया।
मौलवी बदरुल हसन रु.४०,०००००
टी.प्रकाश रु. ७,०००००
च.राजगोपालाचारी रु. १,०००००
बरजाज रु.२०,०००००
बै.मो.क.गाँधी रु.१,००,०००००
कुल रु.१,६८,०००००

प्रश्न अब खड़ा होता है,फरवरी १९२२ बार्डोली कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अछूतोध्दार के लिए २ लक्ष रु.घोषित किये।जून में हुई लखनऊ कमिटी में," २ लक्ष कम है !" कहकर बढाकर ५ लक्ष किया।अछूतोध्दार समिति के निमंत्रक हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद जी को नियुक्त किया गया।तिलक स्वराज्य फंड का संचयन बढ़ ही रहा था। अछूतोध्दार की मांगे बढ़ न जाये इसलिए,मई १९२३ कार्य समिति में, "अछूतोध्दार, कांग्रेस का काम नहीं है,अछुतता का पालन हिन्दू करते है इसलिए इस कार्य की जिम्मेदारी हिन्दू महासभा की है !" इस प्रस्ताव के साथ यह भी प्रस्ताव किया गया कि,"इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने की विनती हिन्दू महासभा को भी की जाये ! " अछूतोध्दार का यह कार्य हिन्दू महासभा पर सौप कर कांग्रेस जिम्मेदारी से मुक्त हुई।

"अछूतोध्दार में मुख्य कार्य शुध्दिकरण का था।" जो, मुसलमानों को रास नहीं आया क्यों की,धर्मान्तरण बंद हो गया था। स्वामी जी पर दबाव डालकर उन्हें पदमुक्त कर वहा कांग्रेसी नेता गंगाधरराव देशपांडे को नियुक्त किया गया। अब ५ लक्ष खर्च करने की भी आवश्यकता नहीं रही ! अछूतोध्दार के लिए पांच संस्थाओ को रु.४३,३८१ ; अलग अलग प्रांतीय कांग्रेस कमिटियो को रु.४१,५०,६६१ दिए गए। उसमे से रु.२४ लक्ष गाँधी ने १८% कथित रूप से अछूत जनसँख्या के गुजरात को दिए। ६९% कथित अछूत जनसँख्या के महाराष्ट्र को १ . ६% सहायता मिली तो,१८% जनसँख्या के कर्णाटक को ०.९३% दिए। अगले कुछ वर्ष में कांग्रेस ने तिलक स्वराज फंड का धन कहा, कैसे खर्च किया ? अभी तक किसी को पता नहीं। उसपर डॉ.आम्बेडकर जी ने उद्विग्नता से कहा की, " It is enough to say that never was there such an organized look of public mony."

       डॉक्टर आंबेडकरजी को दीक्षा देने कुशीनगर से आये महास्थविर चन्द्रमणीजी ने पत्रक निकालकर "यह धर्मान्तरण नहीं,मतांतरण है क्योकि,बौध्द मत हिंदुत्व की शाखा है !" कहा है। कृपया इसे शुध्दिकरण कहे और मुसलमान हिन्दू युवतियों को फांसकर निकाह करते है इसे धर्मान्तरण का षड्यंत्र कहिये ! धर्मान्तरण केवल हिन्दुओ का होता है !
        हिन्दू महासभा के आर्य समाजी नेता स्वामी श्रध्दानंद और पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने "भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा " स्थापन कर बिड़ला लाइन पर देहली में भवन बनाया है।पूर्वाछुतो के जातिवाद के रुक जाने से धर्मांतरण और अखंड पाकिस्तान पर लगी रोक से क्रुध्द हुए रशीद ने स्वामी श्रध्दानंदजी को मिलने का समय बीत जाने के पश्चात शुध्दिकरण का झांसा देकर मिलने के पश्चात गोली चलाई,हत्या कर दी। बैरिस्टर गांधी ने रशीद को भाई तक कहकर उसकी फांसी बचानी चाही थी।

अब जानिए की विभाजनोत्तर भारत किस अवस्था से गुजर रहा है ?
      अखंड भारत विभाजन पश्चात् लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में AMU अलीगढ विद्यालय के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" अखंड भारत विभाजन का सावरकरजी पर आरोप लगानेवाले देखें,देश बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है ! लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।

१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।
         जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह हमारे राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?
        ७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी।संदर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी
        यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।

        उत्तर प्रदेश में ४२% मुसलमान होने का दावा कर रहा राष्ट्रद्रोही सांसद इम्रान मसूद और
*श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया, अल्पसंख्य हो रहे हिन्दुओं के आंकड़े दे रहे है।
" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी। १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ! ऐसा भविष्य व्यक्त किया था। १९९३ में एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे ! अखंड पाकिस्तान के षड्यंत्र जो १९४७ में लिटज-लाहोर में प्रकाशित हुए उससे बचने ( सन २००३ + १८ वर्ष = सन २०२१ ) तक धर्मांतरितो का शुध्दिकरण जलद गति से होना चाहिए !

गांधी वध के दोषी विभाजनकर्ता नेहरू और कॉंग्रेसी ! पढ़े और समझे !


जनसंघ-भाजप का नथुराम गोडसे से कोई नाता नहीं। साक्षी महाराज का हम अभिनंदन करते है कि,उन्होंने एकबार साहस दिखाया और निंदा इसलिए कि,गोडसे-सावरकर पार्टी विरोधी दल के दबाव में वक्तव्य बदला।

हिन्दू महासभा को सत्ता से दूर रखने के लिए नेहरू का साथ देनेवाले,गांधी को विभाजनोत्तर असंतोष के समय गांधी को वाल्मीकि बस्ती में सुरक्षा देनेवाले,१९४९ अयोध्या आंदोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता से जनाधार न बढे इसलिए नेहरू-पटेल के इशारेपर हिन्दू महासभा "हिन्दू" शब्द नहीं निकालती,गैर हिन्दुओं को द्वार नहीं खोलती इसलिए हिन्दू महासभा पार्टी में सेंध लगाकर जनसंघ बनानेवाले,१९६१ सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिन्दू महासभा पर मुर्तिया रखने का आरोप लगाया तब हिन्दू महासभा राजनीतिक कार्य नहीं छोड़ती इसलिए "विश्व हिन्दू धर्म संमेलन" का अपहरण कर विहिंप बनानेवाले कभी एकधारी हिन्दू नहीं थे ! विश्वासघाती,यह शब्द सही है।


संघ की जननी हिन्दू महासभा   
हिन्दू महासभा के नेता धर्मवीर बा शि मुंजे,देवतास्वरूप भाई परमानंद,ग दा सावरकर,वि दा सावरकर,संत पांचलेगावकर महाराज ने मुंजे जी के मानसपुत्र डॉक्टर के ब हेडगेवारजी के नेतृत्व में,अराजकीय रा.स्व.संघ की स्थापना पारस्पारिक सहयोग के लिए की थी। सन १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अधिवेशन में डा.हेडगेवार राष्ट्रिय उपाध्यक्ष पद का चुनाव जीते।गुरु गोलवलकर महामंत्री पद का चुनाव हारे और इस हार का ठीकरा उन्होंने सावरकरजी पर फोड़ा और हिन्दू महासभा का त्याग किया। डा हेडगेवार उन्हें संघ दायित्व देकर शांत कर रहे थे तो सावरकरजी ने संघ का हिन्दू महासभा में विलय कर "हिन्दू मिलेशिया" नया संगठन बनाने की सलाह दे रहे थे।संघ प्रवर्तक डा मुंजे जी ने भी इस बात का समर्थन किया परन्तु,बात नहीं बनी।

डा हेडगेवारजी की अकस्मात मृत्यु के बाद पिंगले जी को सर संघ चालक बनना था परन्तु,गुरूजी ने सरसंघ चालक पद कब्ज़ा किया।सैनिकी शिक्षा विभाग के संचालक जोगदंड को पदच्युत किया।गुरु गोलवलकर ने सावरकर महिमा रोकने के लिए हिन्दू महासभा के विरुध्द शंखनाद किया।इसलिए हिन्दू महासभा को पूरक संगठन बनाने पडे।रामसेना के संस्थापक थे,संघ प्रवर्तक डा.मुंजे-नेतृत्व वर्मा (नागपुर), हिन्दुराष्ट्र सेना डा.परचुरे ग्वालियर ,हिन्दुराष्ट्र दल अमरवीर नथुराम गोडसे द्वारा पुणे में वैकल्पिक संगठन का नेतृत्व भाऊराव मोडक को सौपकर बनाये गए।अर्थात गांधी वध के समय नेहरू समर्थक रहे कथित हिन्दू नेता हिन्दू महासभा विरोधी थे। 
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यह अलगाव कैसे आरंभ हुआ ? देखे !

१९३९ कोल्कता अधिवेशन में गुरु गोलवलकर हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय महामंत्री बनने से रहे और इस हार का ठीकरा सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा से अलग हुए। हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय अध्यक्ष बने डॉक्टर हेडगेवारजी ने उन्हें संघ कार्य में लगवाया। हेडगेवार अकाल मृत्यू पिंगले को सरसंघ चालक बनाने चूका और गुरूजी ने पद हथियाया।
१९४६ असेम्बलि चुनाव में,पाकिस्तान समर्थक-मुस्लिम लीग और अखंड भारत समर्थक हिन्दू महासभा में चुनावी जंग थी। कांग्रेस को हिन्दू-मुस्लिम मत विभाजन का झटका लग रहा था। नेहरू की विघटनवादी मानसिकता ने हिन्दू महासभा को पराजित करने के लिए गुरु गोलवलकर के सावरकर विद्वेष का लाभ उठाया।विभाजन का विरोध कर रही हिन्दू महासभा को रोकने नेहरू ने अखंड हिन्दुस्थान का वचन देकर गुरु गोलवलकर का समर्थन प्राप्त किया।संघ-सभा परस्पर सहयोगी थे,संघ के हिन्दू महासभाई प्रत्याशियों को महासभा ने चुनावी मैदान में उतारा था।गुरूजी ने अंतिम समय कांग्रेस समर्थन की खुलकर घोषणा करते हुए संघ समर्थको को अंतिम समय पर नामांकन वापस लेने का आदेश दिया। परिणामतः हिन्दू महासभा १६% मत लेकर पराभूत हुई तो कांग्रेस-मुस्लिम लीग विजयी।कांग्रेस को गुरु गोलवलकर समर्थन के कारण हिन्दुओं की प्रतिनिधी के रूप में विभाजन करार पर हस्ताक्षर के लिए आमंत्रित किया गया।फिर भी सावरकरजी ने कहा,'संसद में बहुमत से विभाजन रोका जाये !' गुरूजी ने विरोध तक नहीं किया।
विभाजनोत्तर शरणार्थी हिन्दुओ की घोर उपेक्षा हुई तो पाकिस्तान जा रहे लोगो को रोककर उनके मकान,तबेले में रह रहे शरणार्थी हिन्दुओ को भारी वर्षा और ठण्ड के बिच खुली सड़क पर निराश्रित किया गया।इससे क्रुध्द हिन्दू महासभा के पूर्व राष्ट्रिय महामंत्री अमरवीर पं नथुराम गोडसे जी ने कश्मीर आक्रमण के बाद भी पाकिस्तान और मुस्लिम परस्त मानसिकता नहीं बदलने के विरोध में बैरिस्टर गाँधी वध किया।इस घटना की जानकारी नेहरू-पटेल-मोरारजी देसाई-नागरवाला को थी परंतु,पटना में कांग्रेस विसर्जन करने की मांग करनेवाले गांधी को नेहरू-पटेल ने मरने के लिए अकेले छोड़ा !

इस विषय पर एक रोचक सत्य ! गांधी हिन्दू महासभा संस्थापक महामना मालवीयजी के मार्गदर्शन पर मार्च १९२० तक हिन्दू महासभा के साथ थे। लोकमान्य तिलक को प्रतिद्वंद्वी मान रहे ब्रिटिश एजंट मोतीलाल नेहरू ने सी आर दास के द्वारा गांधी को धमकाया। ऐसा हो कि,तिलक की भांती काला पानी भेजे या मार डाले ? अर्थात गांधी व्यक्तिमत्व का नेहरू ने सत्ता प्राप्ती तक उपयोग किया।खिलाफत का नेतृत्व सौपा तिलक स्वराज फंड की राशी एक करोड़ ६८ लाख डकार ली। 
  यह घटना इतिहास प्रमाणित है कि,बै.मो.क.गाँधी ने २१ मई १९४७ को पटना की जनसभा में कांग्रेस विसर्जन की मांग की थी।परंतु,क्यों ?

         अखिल भारत हिन्दू महासभा की हरिद्वार में हुई स्थापना के समय गांधी उपस्थित थे। अ.भा.हिन्दू महासभा संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीयजी की सलाह पर कार्यरत थे। उनका चंपारण किसान आंदोलन हो या रौलेट एक्ट का काला कानून का राष्ट्रिय जनजागरण कर विरोध,गांधी ने अपनी व्यक्तित्व की छाप बनायीं थी।

         अखंड भारत १९४६ चुनाव में हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग में वोटो का बटवारा तय था।कांग्रेस तीसरे नंबर पर थी।जवाहरलाल का प्रधानमंत्री बनना असंभव था। सावरकर और हिन्दू महासभा विरोध के लिए नेहरू ने गुरु गोलवलकर को अखंड भारत का आश्वासन देकर समर्थन मांगा,१९३९ हिन्दू महासभा राष्ट्रिय महामंत्री बनने से चुके गुरूजी ; सावरकर विरोधी बने थे नेहरू ने इसका लाभ उठाकर हिन्दू महासभा प्रत्त्याशियो को नामांकन के अंतिम दिन गुरूजी के खुले समर्थन के साथ नामांकन वापस लेने को कहा।विभाजन के करार पर हिन्दू जनता की ओर से कांग्रेस को हस्ताक्षर का बहुमान किनके कारण मिला ? अखंड भारत विभाजन कि त्रासदी १० लक्ष हिन्दुओ ने झेली।जनसँख्या के अनुपात में भौगोलिक-आर्थिक-सामरिक और प्रशासनिक बटवारा हुवा।

``५५ करोड़ देने बाकि थे तब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ की और सरदार पटेल ने पाकिस्तानी सैनिको की वापसी तक ५५ करोड़ न देने का निर्णय किया।कांग्रेस विसर्जन की मांग कर रहे गाँधी ने ५५ करोड़ देने की जिद की और निर्णय बदला।अपनी सरकार के विरुध्द अनशन करनेवाले गाँधी अब नेहरू के लिए बोझ बने थे।गांधी वध होने की पूर्ण जानकारी होते हुए भी नेहरू-पटेल-मोरारजी ने गाँधी को बलि चढ़ने दिया।                                                                                               


         अखिल भारत हिन्दू महासभा के संस्थापक सदस्य पंडित मदन मोहन मालवीयजी के साथ गांधी अनुयायी थे।अमृतसर अधिवेशन में लोकमान्य तिलक जी का स्वागत धुमधाम के साथ हुआ।मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश आदेश श्रध्दा के साथ पालन करने का प्रस्ताव पारित करते ही तिलक जी ने कड़ा विरोध किया,जनता ने भी उनका साथ दिया परंतु कांग्रेस के सदस्य तक न बने गांधी ने उन्हें शांत किया।बस मोतीलाल को तिलक जी से प्रतिद्वंद्विता के लिए गांधी नामक शस्त्र दिखाई दिया। विदेशी साम्राज्यवाद के हस्तक मोतीलाल नेहरू ने सी.आर.दास द्वारा तिलक जी के जैसे ब्रिटिश जेल या हत्या की धमकीया देकर गांधी को मार्च १९२० में हिन्दू विरोधी अपना समर्थक बनाया। सत्ता प्राप्ति का साधन बनाया, सत्ताप्राप्ति के आड़े आनेवाले या प्रधानमंत्री पद के आड़े आनेवाले सुभाष बाबु-पटेल जैसे नेताओ को रास्ते से हटाने के लिए गाँधी का प्रयोग किया गया।


         सत्ता प्राप्ति के लिए अखंड भारत का विभाजन गाँधी ने मान्य नहीं किया परन्तु नेहरू के मुस्लिम तुष्टिकरण के कारन पाक व्याप्त क्षेत्र के १० लक्ष हिन्दुओ का उत्पीडन हुवा,हत्या,बलात्कार,लुट, आगजनी,धर्मान्तरण,स्थलान्तरण हुवा।फिर भी पाकिस्तान गए मुसलमानों को वापस बुलाकर उनके मकान-तबेले-प्रार्थना स्थलों में आश्रय लिए हिन्दुओ को भारी वर्षा-ठण्ड के बिच रास्ते पर निकाला गया।शरणार्थी हिन्दुओ की उपेक्षा हुई।इतना ही नहीं पाकिस्तान की कश्मीर घुसपैठ को जानबूझकर आँख मुंद बैठे नेताओ ने राजा हरिसिंह की भी उपेक्षा की सरदार पटेल ने पाकिस्तानी सैनिको की कश्मीर से वापसी तक ५५ करोड़ देने पर रोक लगायी उसे गाँधी ने अपने अनशन हट से मनवाया। इन सभी घटनाओ के पश्चात् कुछ हिन्दू का खून खौला और वह हिन्दू महासभाई थे।उन्होंने मुख्य अपराधी ब्रिटिश हस्तक नेहरू के दोष को नहीं समझा।
           पटना में कांग्रेस विसर्जन की मांग कर रहे गाँधी,अपनी पारिवारिक गुलामी छोड़कर हिन्दू महासभा के साथ जायेंगे या हिन्दू महासभा को सत्ता में लायेंगे इस भय से ब्रिटिश गुलाम नेहरू ने वध होने दिया।सरदार पटेल भी प्रार्थना सभा का समय बीत रहा था और गांधी के साथ गुप्त मंत्रणा कर रहे थे। नेहरु-पटेल-मोरारजी देसाई सभी को गांधी वधपूर्व जानकारी थी। सुरक्षा हटा दी गयी थी। अर्थात गोडसे जी के हाथों कांग्रेस का शुध्दीकरण ?
`            गाँधी ना हिन्दू महासभा छोड़ते,नेहरू सत्ता में न आता, ना विभाजन होता, नाही गाँधी वध होता। परंतु,नेहरू ने गांधी वध के साथ हिन्दू महासभा पर लगाम कसने का पूर्ण प्रबंध किया था।  

१९४९ अयोध्या आंदोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता जनाधार में बदली तो,कांग्रेस विसर्जन निश्चित था।नेहरू-पटेल ने सावरकर प्रतिद्वंद्वी गुरु गोलवलकरजी की सहाय्यता से उ.प्र.संघ चालक बसंतराव ओक द्वारा हिन्दू महासभा तोड़कर भारतीय जनसंघ बनाया !

           इन दोनों दलों की अंडर स्टैंडिंग है कि,हिन्दू राजसत्ता की प्रवर्तक हिन्दू महासभा न सत्ता में आये ना गांधी वध के आरोप से कभी न उभरे !
          

अमर हुतात्मा पूर्व हिन्दू महासभा राष्ट्रिय महामंत्री पंडित नथुराम गोडसे ने गाँधी के वध करने के १५० कारण न्यायालय के समक्ष बताये थे।उन्होंने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर
सुनाना चाहते है । अतः उन्होंने वो १५० बयान माइक पर पढ़कर सुनाए। लेकिन कांग्रेस सरकार ने (डर से) नाथूराम गोडसे के गाँधी वध के कारणों पर बैन लगा दिया कि वे बयां भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पायें। गोडसे के उन बयानों में से कुछ बयान क्रमबद्ध रूप में, में लगभग १० भागों में आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा। आप स्वं ही विचार कर सकते है कि गोडसे के बयानों पर नेहरू ने क्यो रोक लगाई ?और गाँधी वध उचित था या अनुचित।
अनुच्छेद, १५ व १६….
..”इस बात को तो मै सदा बिना छिपाए कहता रहा हूँ कि में गाँधी जी के सिद्धांतों के विरोधी सिद्धांतों का प्रचार कर रहा हूँ। मेरा यह पूर्ण विशवास रहा है कि अहिंसा का अत्यधिक प्रचार हिदू जाति को अत्यन्त निर्बल बना देगा और अंत में यह जाति ऐसी भी नही रहेगी कि वह दूसरी जातियों से ,विशेषकर मुसलमानों के अत्त्याचारों का प्रतिरोध कर सके।”
—”हम लोग गाँधी जी कि अहिंसा के ही विरोधी ही नही थे,प्रत्युत इस बात के अधिक विरोधी थे कि गाँधी जी अपने कार्यों व विचारों में मुसलमानों का अनुचित पक्ष लेते थे और उनके सिद्धांतों व कार्यों से हिंदू जाति कि अधिकाधिक हानि हो रही थी।” —–
(पार्ट 1 इससे पहले नोट में हम बता चुके है)

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-2-विस्तार से
अनुच्छेद, ६९ ..
…..”३२ वर्ष से गाँधी जी मुसलमानों के पक्ष में जो कार्य कर रहे थे और अंत में उन्होंने जो पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया दिलाने के लिए अनशन करने का निश्चय किया ,इन बातों ने मुझे विवश किया कि गाँधी जी को समाप्त कर देना चाहिए।“—
अनुच्छेद,७०..भाग ख ..”खिलाफत आन्दोलन जब असफल हो गया तो मुसलमानों को बहुत निराशा हुई और अपना क्रोध उन्होंने हिन्दुओं पर
उतारा।
–”मालाबार,पंजाब,बंगाल ,सीमाप्रांत में हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार हुए। जिसको मोपला विद्रोह के नाम से पुकारा जाता है। उसमे हिन्दुओं कि धन, संपत्ति व जीवन पर सबसे बड़ा आक्रमण हुआ। हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया,स्त्रियों के अपमान हुए। गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौनरहे।”-
—-”प्रत्युत यह कहना शुरू कर दिया कि
मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया।यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।
-और उल्टे मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया। “———

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-3
जैसा की पिछले भाग में बताया गया है कि गोडसे गाँधी की मुस्लिम तुष्टिकरण की निति से किस प्रकार क्षुब्ध था अब उससे आगे के बयान
अनुच्छेद ७० का भाग ग …जब खिलाफत आन्दोलन असफल हो गया -
–इस ध्येय के लिए
गाँधी अली भाइयों ने गुप्त से अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर हमला करने का निमंत्रण दिया.इस षड़यंत्र के पीछे बहुत बड़ा इतिहास है।
-गाँधी जी के एक लेख का अंश नीचे दिया जा रहा है….”मै नही समझता कि जैसे ख़बर फैली है,अली भाइयों को क्यो जेल मे डाला जाएगा और मै आजाद रहूँगा?उन्होंने ऐसा कोई कार्य नही किया है कि जो मे न करू। यदि उन्होंने अमीर अफगानिस्तान को आक्रमण के लिए संदेश भेजा है,तो मै भी उसके पास संदेश भेज दूँगा कि जब वो भारत आयेंगे तो जहाँ तक मेरा बस चलेगा एक भी भारतवासी उनको हिंद से बाहर निकालने में सरकार कि सहायता नही करेगा।”

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-4
अनुच्छेद ७० का भाग ठ..हिन्द के विरूद्ध
हिदुस्तानी –राष्ट्र भाषा के प्रश्न पर गाँधी जी ने मुसलमानों का जिस प्रकार अनुचित पक्षलिया—-किसी
भी द्रष्टि से देखा जाय तो राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार हिन्दी को है। परंतु मुसलमानों खुश करने के लिए वे हिन्दुस्तानी का प्रचार करने लगे-यानि बादशाह राम व बेगम सीता जैसे शब्दों का प्रयोग होने लगा। —हिन्दुस्थानी के रूप में स्कूलों में पढ़ाई जाने लगी इससे कोई लाभ नही था ,प्रत्युत इसलिए की
मुस्लमान खुश हो सके। इससे अधिक सांप्रदायिक अत्याचार और क्या होगा?
अनुच्छेद ७० का भाग ड.—न गाओ वन्देमातरम
कितनी लज्जा जनक बात है की मुस्लमान वन्देमातरम पसंद नही करते। गाँधी जी पर जहाँ तक हो सका उसे बंद करा दिया।
अनुच्छेद ७० का भाग ढ .
गाँधी ने शिवबवनी पर रोक लगवा दी —-शिवबवन ५२ छंदों का एक संग्रह है,जिसमे शिवाजी महाराज की प्रशंसा की गई है.-इसमे एक छंद में कहा गया है की अगर शिवाजी न होते तो सारा देश मुस्लमान हो जाता। -इतिहास और हिंदू धर्म के दमन के अतिरिक्त उनके सामने कोई सरल मार्ग न था।

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-5
अनुच्छेद ७० का भाग फ
….कश्मीर के विषय में गाँधी हमेशा ये कहते रहे की सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौप दी जाय, केवल इसलिए की कश्मीर में मुसाल्मान अधिक है। इसलिए गाँधी जी का मत था की महाराज हरी सिंह को सन्यास लेकर काशी चले जन चाहिए,परन्तु हैदराबाद के विषय में गाँधी की निति भिन्न थी। यद्यपि वहां हिन्दुओं की जनसँख्या अधिक थी ,परन्तु गाँधी जी ने कभी नही कहा की निजाम फकीरी लेकर मक्का चला जाय।
अनुच्छेद ७० का भाग म …………………………
कोंग्रेस ने गाँधीजी को सम्मान देने के लिए चरखे वाले झंडे को राष्ट्रिय ध्वज बनाया।
प्रत्येक अधिवेशन में प्रचुर मात्रा में ये झंडे लगाये जाते थे.
——————————
-इस झंडे के साथ कोंग्रेस का अति घनिष्ट समबन्ध था। नोआखली के १९४६ के दंगों के बाद वह ध्वज गाँधी जी की कुटियापर भी लहरा रहा था, परन्तु जब एक मुस्लमान को ध्वज के लहराने से आपत्ति हुई तो गाँधी ने तत्काल उसे उतरवा दिया। इस प्रकार लाखों करोडो देशवासियों की इस ध्वज के प्रति श्रद्धा को अपमानित किया। केवल इसलिए की ध्वज को उतरने से एक मुस्लमान खुश होता था।

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-6
अनुच्छेद ७८ …………………….गाँधीजी
—————————–सुभाषचंद्र बोस अध्यक्ष पद पर रहते हुए गाँधी जी की निति पर नही चले। फ़िर भी वे इतने लोकप्रिय हुए की गाँधी जी की इच्छा के विपरीत पत्ताभी सीतारमैया के विरोध में प्रबल बहुमत से चुने गए ————————गाँधी जी को दुःख हुआ.उन्होंने कहा की सुभाष की जीत गाँधी की हार है। —————–जिस समय तक सुभाष बोस को कोंग्रेस की गद्दी से नही उतरा गया तब तक गाँधी का क्रोध शांत नही हुआ।
अनुच्छेद ८५ …………………..मुस्लिम लीग देश की शान्ति को भंग कर रही थी। और हिन्दुओं पर अत्याचार कर रही थी। ——————-कोंग्रेस
इन अत्याचारों को रोकने के लिए कुछ भी नही करना चाहती थी,क्यो की वह मुसलमानों को प्रसन्न रखना चाहती थी। गाँधी जी जिस बात को अपने अनुकूल नही पते थे ,उसे दबा देते थे। इसलिए मुझे यह सुनकर आश्चर्य होता है की,आजादी गाँधी जी ने प्राप्त की । मेरा विचार है की मुसलमानों के आगे झुकना आजादी के लिए लडाई नही थी।——————गाँधी व उनके साथी सुभाष को नष्ट करना चाहते थे।

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-7 एवं इति
अनुच्छेद ८८ .गाँधी जी के हिंदू मुस्लिम एकता का सिद्धांत तो उसी समय नष्ट हो गया, जिस समय पाकिस्तान बना। प्रारम्भ से ही मुस्लिम लीग का मत था की भारत एक देश नही है।हिंदू तो गाँधी के परामर्श पर चलते रहे किंतु मुसलमानों ने गाँधी की तरफ़ ध्यान नही दिया और अपने व्यवहार से वे सदा हिन्दुओं का अपमान और अहित करते रहे और अंत में देश दो टुकडों में बँट गया।
. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो,गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |
. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को
मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि
आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने
की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा
हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का
परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
१० . कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमतसे कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का
समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
११ . लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
१२ . 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धीजी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
१३ . मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने
अस्वीकार कर दिया।
१४ . जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि
मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
१५ . पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध,
स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
१६ . 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने
उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया। न्यायलय में गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक

पुस्तक में लिखा- “नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था।खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे।न्यायालय में उपस्थित उन मौजूद आम लोगों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।”



अमर बलिदानी पंडित नथुराम गोडसेजी का माता-पिता को अंतिम पत्र
अमर बलिदानी पंडित नथुराम गोडसेजी का माता-पिता को अंतिम पत्र 
दिनांक १२-११-१९४९                                               अंबाला ↜
परम वंदनीय आई और बाबा 
अत्यंत विनम्रता से अंतिम प्रणाम !
आपके आशीर्वाद विद्युतसंदेश (टेलीग्राम) से मिला। आपने अपने स्वास्थ्य और वृध्दावस्था की स्थिती में यहां तक न आने की मेरी विनती स्वीकार की इससे मुझे बड़ा संतोष हुआ है। आप के छायाचित्र मेरे पास है और उसका पूजन करके ही मैं ब्रह्म में विलीन हो जाऊंगा। 
लौकिक और व्यवहार के कारण आप को तो इस घटना से परम दुःख होगा इसमे कोई संदेह नहीं। परंतु ,मैं यह पत्र कोई दुःख के आवेग से या दुःख की चर्चा के कारण नहीं लिख रहा हूं। 
आप गीता के पाठक है ,आपने पुराणों का भी अध्ययन किया है। 
भगवान श्रीकृष्ण  गीता का उपदेश किया है और वहीं भगवान ने राजसूय यज्ञभूमि पर-युध्दभूमि पर नहीं,शिशुपाल जैसे एक आर्य राजा का वध अपने सुदर्शन चक्र से किया था। कौन कह सकता है कि,श्रीकृष्ण ने पाप किया है ! श्रीकृष्ण ने युध्द में और दूसरी तरह से भी अनेक अहंमान्य और प्रतिष्ठित लोगों की हत्या विश्व के कल्याण के लिए की है। और गीतोपदेश में अर्जुन को अपने बांधवो की हत्या करने के लिए बारबार कहकर अंत में प्रवृत्त किया है। ←
पाप और पुण्य मनुष्य के कृति में नहीं,मनुष्य के मन में होता है। दृष्टों को दान देना पुण्य नहीं समझा जाता। वह अधर्म है। एक सीतादेवी के कारण रामायण की कथा बन गयी,एक द्रौपदी के कारण महाभारत का इतिहास निर्माण हुआ। 
सहस्त्रावधी स्त्रियोंका शील लुटा जा रहा था। और ऐसा करनेवाले राक्षसकों हर तरह से सहाय्य करने के यत्न हो रहे थे ,ऐसी अवस्था में अपने प्राण के भय से या जन निंदा के भय से कुछ भी नहीं करना मुझसे नहीं हुआ। सहस्त्रावधी रमणियों के आशीर्वाद मेरे भी पीछे है। 
मेरा बलिदान मेरे मातृभूमि के चरणों में है। अपना एक परिवार या और कुछ परिवारोंके दृष्टी से हानि अवश्य हो गयी। परंतु ,मेरी दृष्टी के सामने छिन्नविच्छिन्न मंदिर, कटे हुए मस्तकों की राशी,बालकों की क्रूर हत्या रमणियों की विडंबना हर घडी देखने में आती थी। आततायी और अनाचारी लोगोंको मिलनेवाला सहाय्य तोडना मैंने मेरा कर्तव्य समझा।
मेरा मन शुध्द है,मेरी भावना अत्यंत शुध्द थी कहनेवाले लाख कहेंगे तो भी एक क्षण के लिए भी मेरा मन अस्वस्थ नहीं हुआ अगर स्वर्ग होगा तो,मेरा स्थान उसमें निश्चित है। उसके लिए मुझे कोई विशेष प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है। 
अगर मोक्ष होगा तो,मोक्ष की मनीषा मैं करता हूं। दया मांगकर अपने जीवन की भीख लेना मुझे जरा भी पसंद नहीं था। और आज के सरकार को मेरा धन्यवाद है कि,उन्होंने दया के रूप से मेरा वध नहीं किया। दया की भिक्षा से जीवित रहना यही मैं सत्य मृत्यु समझता था। मृत्युदंड देनेवाले में मुझे मारने की शक्ति नहीं है। मेरा बलिदान मेरी मातृभूमि अत्यंत प्रेम से स्वीकार करेंगी। 
मृत्यु मेरे सामने आया नहीं ,मैं मृत्यु के समक्ष खड़ा हुआ हूं। मैं उनकी ओर सुहास्य वदन से देख रहा हूं। और वह भी मुझे एक मित्र के नाते से हस्तांदोलन करता है। भगवद्गीता में तो जीवन और मृत्यु के समस्या का ही विवेचन श्लोक श्लोकों में भरा हुआ है। मृत्यु में ज्ञानी मनुष्य को शोकविव्हल करने की शक्ति नहीं है। मेरे शरीर का नाश होगा पर मैं आपके साथ हूं। आसिंधु सिंधु भारत वर्ष पूरी तरह से स्वतंत्र करने का मेरा ध्येय स्वप्न मेरे शरीर के मृत्यु से मरना असंभव है। 
अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। सरकार ने आपको मुझे मिलने का अंतिम अवसर नहीं दिया। सरकार से किसी भी प्रकार की अपेक्षा न रखते हुए भी वह कहना ही पड़ेगा कि,अपनी सरकार किस प्रकार से मानवता के तत्वोंको अपना रही है। मेरे मित्र गण और चि.दत्ता,गोविन्द,गोपाल आपको कभी अंतर नहीं देंगे। चि.अप्पा के साथ और बातचीत हो जायेगी।वो आपको सवृत्त निवेदन करेगा,इस देश में लाखो मनुष्य ऐसे है कि,जिनके नेत्र से इस बलिदान से अश्रु बहेंगे। वह लोग आपके दुःख में सहभागी है। आप आपको स्वतः को ईश्वर पर निष्ठां के बल पर अवश्य संभालेंगे इसमें संदेह नहीं। 
अखंड भारत अमर रहे ! वंदे मातरम् !
आपके चरणो पर सहस्रशः प्रणाम !

आपका विनम्र नथुराम 

बैरिस्टर गांधी के वधकर्ता नथूराम गोडसे की प्रशंसा पर भले ही संसद में बवाल हो गया हो,परंतु गोडसे से जुड़ा दल हिन्दू महासभा राजधानी में उनकी प्रतिमा लगाकर उन्हें सम्मानित करने की तैयारी में है। पढ़ें, पूरी खबर...
गोडसे की आई मूर्ति, अब लगाने की तैयारी
इकनॉमिक टाइम्स| Dec 16, 2014, 01.02AM IST

वसुधा वेणुगोपाल, नई दिल्ली
महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की तारीफ पर भले ही संसद में बवाल हो गया हो, लेकिन गोडसे से जुड़ा संगठन राजधानी में उसकी प्रतिमा लगाकर उसे सम्मानित करने की तैयारी में है। यहां के मंदिर मार्ग पर मौजूद देश के सबसे पुराने हिंदू संगठनों में से एक हिंदू महासभा ने राजस्थान के किशनगढ़ से गोडसे की प्रतिमा तैयार करवाई है। इस प्रतिमा को उस रूम में रखा गया है, जहां गोडसे अपने दिल्ली दौरे में हत्या की योजना बनाने के लिए ठहरा करता था। हालांकि, प्रतिमा लगाने के लिए स्थान और तारीख का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है।
हिंदू महासभा के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश कौशिक ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि संगठन सरकार को चिट्ठी लिखकर कम से कम देश के 5 उन शहरों के लिए पूछेगा, जहां गोडसे की प्रतिमा लगाई जा सकती है। उन्होंने बताया, 'अगर सरकार इसकी मंजूरी नहीं देती है, तो हम खुद अपने लॉन में इस मूर्ति को स्थापित करेंगे। हमारे यहां सभी महापुरुषों की मूर्ति है। फिर गोडसे की क्यों नहीं?'
मार्बल से बनी गोडसे की इस मूर्ति के लिए इसी साल जुलाई में ऑर्डर दिया गया था और पिछले महीने यह बनकर हिंदू महासभा के ऑफिस में पहुंचा। कौशिक ने बताया, 'हम मूर्ति की स्थापना के लिए सही समय का इंतजार कर रहे हैं। हम इसके लिए राजधानी में एक बेहतर सार्वजनिक स्थल चाहेंगे।' गोडसे हिंदू महासभा का सदस्य था और 1948 में महात्मा गांधी की हत्या से एक दिन पहले उसने इस ऑफिस का दौरा किया था। जिस रूम में वह ठहरा था, उसे इस संगठन ने काफी सहेजकर रखा था।
यह संगठन अब मुख्य तौर पर संस्कृत की वापसी, हिंदू पाकिस्तानियों की सुरक्षा और भारत में पाश्चात्यीकरण के बढ़ते असर को रोकने के लिए काम करता है। कौशिक ने कहा, 'हम नहीं मानते कि गोडसे ने गांधी के साथ जो किया, वह हिंसा थी। वह ब्राह्मण थे। अखबार के संपादक थे। उन्होंने इस कदम को उठाने से पहले सभी विकल्पों का आकलन किया था।'
हिंदू महासभा के इस ऑफिस के परिसर में ही आरएसएस की पहली शाखाएं लगी थीं। इस ऑफिस की दीवार पर सावरकर, मदन मोहन मालवीय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीरें टंगी हैं। गोडसे की तस्वीर अंदरखाने में रखी जाती है और मांगे जाने पर यह पेश की जाती है। ज्यादा खोजबीन करने पर महासभा के मेंबर्स एक तरफ बने कई मकानों की तरफ इशारा करते हैं, जहां तब जंगल हुआ करता है। गोडसे ने यहीं पर गोली चलाने की प्रैक्टिस की थी।