Wednesday 27 July 2016

हाशिम असारी की मृत्यु पश्चात् उनका लडका प्यादा ?

Press Note :- 27 /07 /2016 

श्री अयोध्यापुरी का मुख्य परिचय प्रभु श्रीराम जी के जन्मस्थल के रूप में ही विश्वभर में प्रसिध्द है ! चारधाम में से एक इस पवित्रस्थल पर देश-विदेश के यात्री यहाँ श्रीराम जन्मस्थान दर्शन के लिए आते है और उन यात्रियों के आगमन पर ही यहाँ के स्थानीय उद्योग,व्यवसाय,बाजार में मुद्रा आकर अनेक निवासियों का उदरभरण हो रहा है।कल्पना ही नहीं की जा सकती की यहाँ मंदिर न होता तो ? यदि यहाँ सांप्रदायिक सौहार्द के नाम पर श्रीराम जन्मस्थान को लेकर कोई राजनितिक सौदा हुवा तो,सांप्रदायिक अशांति तो फैलेगी ही यात्रियों का आना   भी बंद हो जायेगा।
पक्षकार हाशिम अंसारी की मृत्यु पश्चात् संत मंडली रोने की बात सामने आई थीं। उनकी भर्त्सना करते हुए,पक्षकार हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता प्रमोद पंडित जोशी ने तर्क दिया है कि,"१९४९ हिन्दू महासभा आंदोलन पश्चात् सत्रह राष्ट्रीय मुसलमानो ने न्यायालय में हलफनामा देकर मंदिर का स्विकार किया था।
अयोध्या परिसर के 17 राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय, *"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए 77 बल्वे हुए।सन 1934 से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को दिया जाये।"* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की अर्जुनसिंग को दी साक्ष*,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके स्तंभों में मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"
सुलतानपुर के विधायक नाजिम ने कुरान को समझने वालों के नाम पत्रक निकालकर मंदिर लौटाने का विवरण दिया था।हाशिम अंसारी नही चाहते थे राजनीति हो और स्वयं राजनीति के शिकार होते रहे।क्यों नही सत्रह मुसलमानों के साथ गये यह प्रश्न है। हाशिम की म्रृत्यु के साथ जिनकी दुकाने बंद हुई वह बिलख बिलख कर रोएं,इनका राम जन्मभुमी से श्रद्धाभाव के अतिरिक्त स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं है ।

माननीय न्यायालय का आदेश है की ,*"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था जैसी है* वैसे ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।*"
* पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था।इस समिती में मद्रास से आये *संशोधक मुहम्मद के के भी थे वह लिखते है*,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"
गैझेटियर ऑफ़ दी टेरिटरीज अंडर गव्हर्मेन्ट ऑफ़ ईस्ट इंडिया कं के पृष्ठ क्र 739-40 के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार 23 मार्च 1528 को श्रीराम जन्मस्थान मंदिर ध्वस्त किया और उस ही मलबे से 14 स्तम्भ चुनकर उसपर खडी की वास्तु कभी मस्जिद नहीं बन पायी क्यों की इन स्तम्भोपर मुर्तिया थी।
न्यायालय के संरक्षण में पूजा-दर्शन हो रहे न्यायालय के आदेश से ताला खुले शिलान्यासित मंदिर को भाजप ने,हिन्दू महासभा सांसद स्वर्गीय बिशनचंद सेठ की सूचना का अनादर कर राजनितिक और आर्थिक लाभ के लिए बाबर का कलंक लगाया और 6 दिसंबर 1992 को मंदिर ही ध्वस्त किया ! ऐसी शिकायत भी निर्मोही अखाड़े ने कोर्टके मूलवाद पत्र 4 ए में की है।
* हिन्दू महासभा और निर्मोही आखाड़े का पक्ष सुनकर उ. न्या. के लखनऊ खंडपीठ के विशेष पूर्ण पीठ ने 1949 हिन्दू महासभा आन्दोलन से जुडी पत्रावलिया प्रस्तुत न करने पर उ. प्र. अपर महाधिवक्ता को मूल रेकोर्ड प्रस्तुत करने को कहकर 14 जुलाई 2010 को सुनवाई निश्चित की थी। लिबरहान रिपोर्ट जमात ए उलेमा ए हिन्द के कार्यक्रम में गृहमंत्री को की गयी मांग के अनुसार प्रधानमंत्री को प्रस्तुत करते ही फ़ाइल गायब होने वार्ता प्रकट हुई 14 जून 2010 को हिन्दू महासभा ने उ.प्र. मुख्यमंत्री को सी.बी.आई. जाँच की मांग कर एफ.आई.आर. के लिए सूचित किया।10 जुलाई को ए. के. सिंग ने हजरत गंज थाने में ऍफ़.आई.आर. लिखी। उ.प्र. सरकार ने 4 जुलाई 2010 को गृह सचिव जाविद अहमद की आख्या पर शपथ पत्र प्रस्तुत कर कहा की," 23 पत्रावलिया उपलब्ध नहीं है।विशेषाधिकारी सुभाष भान साध के पास यह फाइल थी।लिबरहान आयोग में जाते समय उनका एक्सीडेंट हुवा और मृत्यु के साथ फ़ाइल गायब हुई। "मायावती ने गायब फाइल्स की जाँच सी.बी.आई. से करवाने की संस्तुति करते हुए यह फ़ाइल भाजप शासनकाल 2000 में गायब होने की आशंका व्यक्त की थी। 26 जुलाई 2010 को माननीय न्यायालय ने इस विवाद को अनिर्णीत रखा है। ऐसी स्थिति में 30 सप्तम्बर 2010 को न्यायालय ने शर्मा जी निवृत्त होने कारन देकर 1/3 राजनितिक निर्णय थोपते समय 1989 को उ.न्या.ने लताड़े पक्षों को 1/3 हिस्सा दिया।रामसखा बनकर देवकी नंदन अग्रवाल ने जो रामलला विराजमान 1/3 प्राप्त किया उस स्थानपर 1961-62 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिन्दू महासभा पर मुर्तिया रखने का आरोप लगाकर जो याचिका प्रस्तुत की थी वह स्थान निर्मोही आखाड़े का होने की साक्ष ओ.पी.डब्ल्यू.न.1 श्री रामचंद्रदास महाराज वक्तव्य पृष्ठ क्र.55 पर तथा ओ.पी. डब्ल्यू. न 2 देवकी नंदन अग्रवाल उपाख्य रामसखा की साक्ष पृष्ठ क्र 142 पर," 26 दिसंबर 1949 को कुर्की पूर्व और पश्चात् निर्मोही आखाड़े का अधिकार मान्य करते है।"

20 जून 2011 को सर्वराह्कार महंत श्री भाष्कर दास महाराज,उपसरपंच श्री दिनेंद्र्दास महाराज निर्मोही आखाडा और हिन्दू महासभा की ओर से प्रमोद पंडित जोशी-राजन बाबा अयोध्या ने गायब फ़ाइल की रिकव्हरी के लिए सी.बी.आई.जाँच के लिए मांग करते हुए संयुक्त पत्र हनुमान गढी नाका फ़ैजाबाद से प्रकाशित कर मुख्यमंत्री-राज्यपाल महोदय को भेजा था।पता चला है की,सुभाष भान साध को प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी.के.मित्तल, मूल प्रति लिबरहान आयोग देहली में लाते समय फोटोकॉपी बनाकर रखने की सलाह देते थे।गृह सचिव महेश गुप्ता को पता नहीं की कहा से दस्तावेज गायब हुए। साध के पिता बीर भान साध के अनुसार यह हत्या है।उनके अधिवक्ता रणधीर जैन ने दो बार याचिका लगायी परन्तु राजनितिक षड्यंत्र के अंतर्गत इस की जांच नहीं हुई और फ़ाइल न मिलने पर कोई गंभीर नहीं दिखा।मात्र मित्तल को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का व्हाईस चांसलर बनाया गया है।इस हत्या के साथ 1949 हिन्दू महासभा के योगदान तथा न्यायालयीन पक्ष को दबाने का संयुक्त राजनितिक प्रयास हुवा है इतना पक्का।
       इसलिए बाबरी पर चले राजनितिक अभियोग को बंद कर मंदिर विध्वंस की न्यायालयीन प्रक्रिया आरम्भ करने की मांग हिन्दू महासभा करती है।


सिहंस्थ कुंभ में रामानंदीय साधु-संतों ने श्रीराम जन्मभुमी मंदिर-परिसर श्री पंच रामानंदिय निर्मोही आखाडे की है।यह कहकर मोदी सरकार का हस्तक्षेप नकारा था।अयोध्या में राम मंदिर बनने की तारिख घोषणा कर दी है । उन्होंने ऐलान किया है कि 77 एकड़ की जमीन पर राम मंदिर के निर्माण का कार्य इस साल 9 नवंबर से चार सिंहद्वार के साथ शुरू हो जाएगा ।
भाजप ने भी न्यायालय संरक्षित,शिलान्यासित मंदिर को बाबरी कहकर हाशिम अंसारी को पुनर्जिवीत किया था।उसने कहा है कि मस्जिद को तो तोड़ ही दिया गया है, लेकिन अगर मंदिर बनाने की कोशिश हुई तो मंदिर तो बना लोगे लेकिन मुल्क तबाह और बर्बाद हो जाएगा ।यह कहना सांप्रदायिक उन्माद को उकसानेवाला क्यों नहीं कहा गया,प्रश्न शेष। 
संदर्भ-http://i2.wp.com/lokbharat.com/wp-content/uploads/2016/04/hashimansari.jpg?w=700

हाशिम असारी की मृत्यु पश्चात् उनका लडका व्यापारी संतों और सुन्नी वक्फ बोर्ड का प्यादा बनकर रहेगा।संदर्भ-इस्लामी दुनिया दिनांक 20 जुलाई 2016
प्रमोद पंडित जोशी , वरिष्ठ नेता हिन्दू महासभा (श्रीराम जन्मभूमि समन्वयक )

Tuesday 19 July 2016

१९४२ में गोडसेजी का पत्र सावरकरजी को

संघ के खिलाफ टिप्पणी पर राहुल गांधी को समन
एजेंसीशुक्रवार, 11 जुलाई 2014
मुंबई Updated @ 8:41 PM IST

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को संघ के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने के मामले में महाराष्ट्र के भिवंडी की एक अदालत ने शुक्रवार को समन जारी किया है।
"महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा था कि जिन्होंने गांधी को मारा आज वही गांधीवाद की बात करते हैं। राहुल का इशारा संघ की ओर था।" इस मामले में अदालत ने ७ अक्तूबर को सुनवाई के दौरान राहुल को पेश होने को कहा है। रैली में संबोधन के बाद ही संघ ने कांग्रेस उपाध्यक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी।३० मार्च २०१५ भिवंडी में राहुल अनुपस्थित।
 S.C. on 19/07/2016
इस संदर्भ में हिन्दू महासभा की ओर से विश्लेषण

अखिल भारत हिन्दू महासभा वरिष्ठ नेता,राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मवीर डॉक्टर बा शि मुंजे जी के हिन्दू महासभा अधिवेशन पटना प्रस्ताव के साथ सन १९२२ भाई परमानंदजी द्वारा लाहोर में स्थापित हिन्दू स्वयंसेवक संघ,तरुण हिन्दू सभा संस्थापक गणेश दामोदर सावरकर उपाख्य बाबाराव,गढ़ मुक्तेश्वर दल संस्थापक संत श्री पाँचलेगांवकर महाराज के सामायिकीकरण के साथ मुंजेजी के मानसपुत्र डॉक्टर ; स्वातंत्र्य साप्ताहिक संपादक हेडगेवारजी के शिरगांव-रत्नागिरी में स्थानबध्द वीर सावरकरजी से मंत्रणा कर लौटने के पश्चात उनके नेतृत्व को संघचालक के जिम्मेदारी के साथ हिन्दू महासभा की पूरक गैर राजनीतिक,हिन्दू संरक्षक संस्था विजयादशमी सन १९२५ को मोहिते बाड़ा, नागपुर में स्थापित हुई।क्रांतिकारी बाबाराव सावरकरजी के प्रस्ताव पर विदेश में "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" और भारत में "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" नामकरण हुआ तथा बाबारावजी ने लिखी मातृवंदना संघ तथा ध्वज वंदना महासभा ने स्वीकार की है।अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रा रामसिंगजी ने संघ की प्रथम शाखा देहली में,हिन्दू महासभा भवन में लगाई थी। फिर नागपुर से भेजे गए देहली संघ प्रचारक बसंतराव ओक दो वर्ष हिन्दू महासभा भवन में संघ की शाखा लगाया करते थे। {हिंदुत्व की यात्रा-ले गुरुदत्त}
संघ और महासभा परस्पर पूरक थे। {मासिक जनज्ञान दिसंबर १९९८ ले शिवकुमार मिश्र} संघ के विस्तार को ध्यान में रखकर हिन्दू महासभा के संगठनात्मक विस्तार को अनुलक्षित किया गया। इसलिए संघ का महासभा में विलय करके महासभा को सशक्त करते हुए डॉक्टर हेडगेवारजी के नेतृत्व में ही "हिन्दू मिलिशिया" का संगठन खड़ा करने का प्रयास संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने सन १९३९ किया था। {धर्मवीर मुंजे जन्म शताब्दी विशेषांक ले वा कृ दाणी} हेडगेवारजी की असहमती के कारन आगे उनकी असमय मृत्यु के पश्चात हिन्दू संगठन तथा हिन्दू राजनीती-अखंड भारत के लिए हानिकारक सिध्द हुई।
सन १९३८ नागपुर अधिवेशन में वीर सावरकर दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए तब सर संघचालक हेडगेवारजी मध्य भारत हिन्दू महासभा उपाध्यक्ष थे। उनके आयोजन पर नागपुर में वीर सावरकरजी को सशस्त्र संघ स्वयंसेवको ने प्रदर्शन के साथ मानवंदना दी। इस शोभायात्रा में हाथी पर बैठकर बालासाहेब देवरसजी ने शक्कर बांटी। ३०/३१ दिसंबर १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा अधिवेशन के लिए वीर सावरकर तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए।इस अधिवेशन में पदाधिकारियों के भी चुनाव हुए। डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पदपर तो,संघ के वरिष्ठ अधिकारी एम एम घटाटेजी राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य चुने गए। हिन्दू महासभा भवन कार्यालय मंत्री स्व मा स गोलवलकरजी महामंत्री पद का चुनाव हार गए और इस हार का ठीकरा वीर सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा से पृथक हुए।राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेडगेवारजी ने उन्हें क्रोध शांत करने संघ कार्यवाहक स्व पिंगलेजी के साथ सहयोग  लिए भेजा। दुर्भाग्यवश २१ जून १९४० को अकाल समय हेडगेवारजी का निधन हुआ। पिंगलेजी को सरसंघ चालक की जिम्मेदारी संभालनी थी। गोलवलकरजी उस स्थान पर विराजे। हिन्दू महासभा और संघ में सावरकरजी के विरोध के लिए दूरिया बढ़ी। {हिन्दू सभा वार्ता २२ फरवरी १९८८ लेखक अधिवक्ता भगवानशरण अवस्थी}
गोलवलकरजी के निकटवर्ती स्वयंसेवक,पत्रकार,लेखक गंगाधर इन्दूरकरजी ने "रा स्व संघ-अतीत और वर्तमान" पुस्तक लिखी है। वह लिखते है,"वीर सावरकरजी की सैनिकीकरण की योजना के विरोध का कारन,यह भी हो सकता है कि,उन दिनों भारतभर में और खासकर महाराष्ट्र में वीर सावरकरजी के विचारों की जबरदस्त छाप थी। उनके व्यक्तित्व और वाणी का जादू युवकोंपर चल रहा था। युवक वर्ग उनसे बहुत आकर्षित हो रहा था ऐसे में,गोलवलकरजी को लगा हो सकता है कि,यह प्रभाव इसप्रकार बढ़ता गया तो,युवकों पर संघ की छाप कम हो जाएंगी। संभवतः इसलिए हिन्दू महासभा और सावरकरजी से असहयोग की नीति अपनाई हों।" इस विषयपर इन्दूरकरजी ने संघ के वरिष्ठ अधिकारी अप्पा पेंडसे से हुई वार्तालाप का उल्लेख करते हुए लिखा है कि,"ऐसा करके गोलवलकरजी ने युवकोंपर सावरकरजी की छाप पड़ने से तो,बचा लिया। पर ऐसा करके गोलवलकरजी ने संघ को अपने उद्देश्य से दूर कर दिया।"
गोलवलकर-सावरकर परस्पर विरोध - इस कारणवश संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने १७ मार्च १९४० को नागपुर में जगन्नाथप्रसाद वर्मा के संचालन में "रामसेना" का गठन किया गया और हिन्दू महासभा-सावरकर समर्थक युवकों को इसमें समाविष्ट किया। बंगाल में "हिन्दू रक्षा दल" गठित करने में सावरकर भक्त डॉक्टर मुखर्जी ने सहयोग किया। गोलवलकर जी के असहकार के कारन सावरकर जन्म दिन के उपलक्ष में अमरवीर पंडित नथुराम गोडसेजी ने सावरकर निष्ठ हिंदुओं का संमेलन पुणे में १० मई से २८ मई १९४२ संपन्न,कार्यवाहक थे क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत गोगटे {हॉटसन की गोली मारकर हत्या करनेवाले} थे।सावरकरजी की उपस्थिती में शिवराम विष्णु मोडकजी को "हिन्दुराष्ट्र दल" का चालक घोषित किया गया। ( इसप्रकार गोडसेजी संघ कार्यकर्ता नहीं थे ! यह कहने का अवसर संघ नेताओं को प्राप्त हुआ।) शेष रामसेना हिन्दुराष्ट्र दल में विलीन हुई और ग्वालियर के डॉक्टर दत्तात्रय सदाशिव परचुरेजी ने मध्यप्रांत में "हिन्दुराष्ट्र सेना" बनाकर मध्यप्रांत में हिन्दू महासभा को सशक्त राजनीतिक विकल्प के रूप में खड़ा किया था। {महाराष्ट्र हिन्दू महासभा का इतिहास लेखक मामाराव दाते}
रही बात गांधी वध की ! नेहरू-पटेल-मोरारजी देसाई-कमिश्नर नागरवाला को वध के प्रयास की जानकारी पहले से थी।मात्र उन्होंने रोकने के कोई प्रयास नहीं किये। क्योकि,
गांधी ने पटना में कांग्रेस विसर्जन की मांग करके नेहरू का रोष ओढ़ लिया था। वधकर्ता भले ही गोडसे हिन्दू महासभाई थे खंडित भारत में नेहरू को अनशन से मनवानेवाला,प्रधानमंत्री पदपर आरूढ़ करनेवाले से अब कोई लाभ की स्थिती प्राप्त करने का नेहरु का प्रयोजन शेष नहीं बचा था। इसलिए जानकारी रहते हुए भी गांधी को बलि का बकरा बनाया। गांधी, मोतीलाल नेहरू के पिट्ठू सी आर दास के दबाव में मार्च १९२० में आकर हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य मालवीयजी का साथ छोड़कर नेहरू के गुलाम न बनते तो,
न उनका वध होता न गोलवलकरजी की राजनितिक सहायता के बिना १९४६ के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलता न अखण्ड भारत मिश्र सरकार के प्रधानमंत्री नेहरू विभाजन करार पर हस्ताक्षर करके खंडित भारत का प्रधानमंत्री बन सकता था।


Sunday 5 June 2016

हिन्दू महासभा विरोध के ज्योतिषीय संकेत !


हिन्दुराष्ट्र की सुस्पष्ट गर्जना करनेवाली अखिल भारत हिन्दू महासभा की जन्मपत्री तथा पूर्व ऐतिहासिक सन्दर्भ को जोड़कर पढ़ने से हिन्दुराष्ट्रवादी जनता के मन में फरीदाबाद के ज्योतिषी पंडित विश्वनाथजी ने जो हिन्दू सभा वार्ता के विशेषांक में लिखा है वह सत्य है ! ऐसा विश्वास हो जाएगा।
श्रीराम जन्मभुमी पर पक्षकार हिन्दू महासभा की घुड़दौड़ रोकने कब्ज़ा करना या गुटबाजी करवाना ,न्यायालय में विवाद उलझाकर चुनाव लड़ने से रोकना हो या राजनितिक मान्यता रद्द करवाने का षड्यंत्र स्पष्ट हो जायेगा।

पंजाब विश्व विद्यालय के अन्यतम संस्थापक स्वर्गीय श्री बाबू नवीनचंद्र राय तथा राय बहादुर चन्द्रनाथ मित्र ने बैसाखी सन १८८२ के दिन लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना की। प्रथम सभापती स्वर्गीय श्री प्रफुलचन्द्र चट्टोपाध्याय तथा प्रथम महामंत्री बाबू नवीनचंद्र राय बने।
अखण्ड हिन्दुस्थान में हिन्दुओ पर ब्रिटिश राज में हो रहे अन्याय और विधर्मी मुसलमानो की बढ़ती धर्मांधता का प्रभाव रोकने हिन्दू सभा पंजाब को राष्ट्रिय स्तरपर विस्तारीत करने के उद्देश्य से दिसंबर १९१० प्रयागराज में महत्वपूर्ण सम्मेलन महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी के नेतृत्व में हुआ।
पंजाब हिन्दू सभा का छठा अधिवेशन लाला मुरलीधर जी की अध्यक्षता में १९१४ फिरोजपुर में संपन्न हुआ। इस सम्मलेन में अखिल भारत हिन्दू महासभा का शंखनाद हुआ
अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना में लाला लाजपत राय तथा महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। १३ अप्रेल १९१५ की बैसाखी को हरिद्वार में लगे कुम्भ पर्व पर मंगलवार को प्रातः ८:५९ :३९ बजे अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना हुई। कासिम बाजार-बंगाल के राजा मणिन्द्रचन्द्र नंदी की प्रथम अध्यक्षता में राष्ट्रिय अधिवेशन आरम्भ हुआ। इस अधिवेशन में बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उपस्थित थे।
ज्योतिषीय विश्लेषण :-पंडित विश्वनाथजी
स्थापना अधिवेशन के समय प्रातः दो लग्न मेष और वृष थे। इनमे वृष लग्न ही अखिल भारत हिन्दू महासभा  उपयुक्त होगा। विंशोत्तरी दशा की घटनाओं से तारतम्य के पश्चात लगभग २२ अंश ७ कला लग्न की आई। शनि महादशा शेष ३ वर्ष १ माह २२ दिन। बुध महादशा का आरम्भ ५ जून १९१८ को हुआ।

१४ चन्द्र स्पष्ट,कला २७ और विकला १७/२/३०

लग्न :- वृष,हिन्दू महासभा की स्थिर प्रकृति तथा दीर्घायु दर्शाता है।
शुक्र:-लग्नेश राज्यस्थान में,हिन्दू महासभा की राज्य करने की सम्भावना दर्शाता है। नवांश में यह राज्यस्थान में है तथा दशमांश में लग्न में है।
बुध:-बुध धन और त्रिकोण स्थान का स्वामी होने से योगकारक है। योगकारक होकर लाभस्थान में बैठा है। यह त्रिकोणेश होकर केंद्रेश और राज्यकारक सूर्य के साथ होने से राजयोगकारक बन गया है। नवांश और दशमांश में केंद्र में होकर बलवान है।
चन्द्र:-पराक्रमेश चन्द्र राजयोग कारक बुध के साथ लाभस्थान में होने से विजय प्राप्त कराता है। यद्यपि स्वयंमेव कोई विशेष शुभ करने में असमर्थ है।
सूर्य:-केंद्रेश और राज्यकारक गृह होकर योगकारक बुध के साथ लाभ स्थान में बैठा है। यद्यपि शुभ करने में विशेष समर्थ नहीं है। किन्तू ,बुध को राजयोग कारक बनाता है। सूर्य आत्म नवांश का है और दशमांश में अपनी राशी का होकर बलवान है। राज्यकारक सूर्य का बलवान होना राजयोगों को उच्च्कोटी का बनाता है।
मंगल:-सप्तमेश और व्ययेश होने के कारन हानिकारक ग्रह है। लाभ स्थान में बुध के साथ होकर यह बुध की योगकारक क्षमता को हानि पहुंचाता है। मंगल और शनि का आपसी दृष्टी सम्बन्ध महाविनाशकारी होकर हिन्दू महासभा को राजयोगों को धूल धूसरित करता रहता है। गुरु का बल ही मंगल का प्रमुख नियंत्रक है।
शनि:-वृष लग्न के लिए राज्य भावेश और भाग्येश होकर उत्तम कोटि का राजयोग कारक बनता है। परंतु ,इसका राशी में ,अंशों में,नवांश तथा दशमांश में भी मंगल से सम्पूर्ण सम्बन्ध इसकी राजयोग कारक शक्तियों को लगभग पूर्ण नष्ट कर देता है। महाकठोर विरोधी हिन्दू महासभा को प्रभुत्व और अर्थहीन बना देता है। केवल गुरु बलाबल और उसकी शनि पर दृष्टि हिन्दू महासभा को प्रभुत्व संपन्न बना सकती है और राजयोग करा सकती है। यद्यपि मंगल का हानिकारक बल हिन्दू महासभा की पूर्ण आयुभर प्रभावी रहता है। तथापि गुरु हिन्दू महासभा की ,"वृध्दावस्था" में बलवान होकर मंगल को नियंत्रित कर सकता है और राजयोग कारक बना सकता है।
राहू :-राज्यस्थान में,राजस्थान का स्वामी शनि-मंगल की दृष्टि से पीड़ित है। अतः राहू युवावस्था में फलदायी नहीं रहेगा। किन्तू ,वृध्दावस्था में किंचित राजयोग कराता है। राहू ,शुक्र के साथ बैठा है। जिससे शुक्र का अपना प्रभाव तो दूषित होता है। किन्तू ,राहू स्वयं कुछ शुभ बनता है। पुनः राहू ,गुरु के साथ बैठकर गुरु के शुभफल में कुछ कमी करता है। किन्तू ,स्वयं राजयोग कारक  प्रभाव लेकर कुछ राजयोग कारक बनता है।
केतु :- राजयोग कारक बुध की युति में बैठे राजयोग कारक सूर्य की राशी का है। तथा दो शुभ ग्रहों गुरु और शुक्र  दृष्ट होने के कारन कुछ राजयोगकारक बनता है।
गुरु :- आयुःस्थान का स्वामी गुरु राशी और नवांश में,केंद्र में लग्नेश शुक्र की युति में बैठकर हिन्दू महासभा को अति दिर्घायु देता है। लाभेश होकर राज्यस्थान में लग्नेश के साथ युति कर यह किंचित राजयोग करता है। नवांश में पुनः लग्नेश शुक्र के साथ राज्यस्थान में युति और दशमांश में राज्यस्थान पर दृष्टी इसकी राजयोग कारक शक्ति में वृध्दि कर देती है। राशी में राज्यस्थान के स्वामी शनि पर मंगल की दृष्टी के कारन गुरु युवावस्था में बलवान नहीं होता। परंतु ,वृध्दावस्था में प्रभावी होता है। राशी में मृत्युकारक चन्द्र की राशी का स्वामी  चन्द्र लग्न का लग्नेश होकर राज्यस्थान में गुरु का बैठना इसकी राजयोग कारक शक्तियों को बढ़ाता है। दशमांश में चन्द्र लग्नेश होकर चन्द्र लग्न पर दृष्टी इसके बल को पुनः बढाती है। राशी में 'मुल्यकारक ' सूर्य की राशी का स्वामी होकर राज्यस्थान में बैठना और सूर्य होकर राज्यस्थान में बैठना इसकी शक्ति में वृध्दि  करता है। पुनः नवांश में सूर्य लग्नेश होकर राज्यस्थान में बैठना इसकी शक्तियां बढ़ाता है। सूर्य केंद्रेश बुध त्रिकोणेश युति कर जिस लाभ स्थान में बैठते है और राजयोग बनाते है। उस लाभ स्थान का स्वामी होकर राज्यस्थान में बैठने से गुरु उत्तम कोटि  राजयोग बनाता है। राज्यकारक सूर्य,चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न से योगकारक मंगल की राशी में युति से और नवांश में दृष्टी से बली होकर इस उत्तम कोटि के राज्ययोग को उत्तमोत्तम राजयोग बना देता है। गुरु की लग्नेश से युति और राज्यस्थान में उपस्थिती दोनों भावों लग्न और राज्य को प्रभावित कर इस योग का पुनः बल बढ़ा देता है।

महादशा फलित और राजनितिक घटनाक्रम के संदर्भ 
राजयोग कारक बुध की महादशा में लग्नेश शुक्र का अंतर दिनांक २९ अक्टूबर १९२१ से २९ अगस्त १९२४ के मध्य पड़ा। इस काल में अमर बलिदानी स्वामी श्रध्दानंदजी ने शुध्दिकरण का विशाल कार्य किया। बुध महादशा सूर्य दशा में २९ अगस्त १९२४ से ५ जुलाई १९२५ के मध्य हिन्दू महासभा की शक्ति बढ़ी।
संदर्भ :-हिन्दू महासभा नेता डॉक्टर धर्मवीर बा शि मुंजे जी की प्रेरणा से देवतास्वरूप भाई परमानन्द जी का हिन्दू स्वयंसेवक संघ,क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकरजी की तरुण हिन्दू सभा,संत श्री पांचलेगांवकर महाराज गढ़ मुक्तेश्वर दल के संगठनात्मक सहयोग-विलय तथा शिरगांव-रत्नागिरी में स्थानबध्द वीर सावरकरजी के साथ डॉक्टर हेडगेवारजी ने परामर्श लेकर १९२५ की विजयदशमी को नागपूर के मोहिते बाड़े में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की प्रथम शाखा आद्य सरसंघ चालक के पदभार के साथ लगाई। हिन्दू महासभा भवन,देहली में प्राध्यापक रामसिंग के पश्चात उत्तर भारत संघ चालक बसंतराव ओक शाखा लगाते थे। यह शक्ति हिन्दू महासभा की परस्पर पूरक गैर राजनितिक थी।

बुध महादशा चन्द्रदशा में दिनांक ५ जुलाई १९२५ से ५ दिसंबर १९२६ के मध्य हिन्दू महासभा को चुनावों में भारी विजय प्राप्त हुई। इस कारन मोतीलाल नेहरु ने हिन्दू महासभा के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की थी।

बुध महादशा मंगल दशा में ५ दिसंबर १९२६ को अमर बलिदानी स्वामी श्रध्दानंदजी की हत्या हुई।

केतु महादशा ,मंगल दशा में २७ से २९ दिसंबर १९३७ कर्णावती राष्ट्रीय अधिवेशन में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकरजी को भाई परमानन्दजी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की माला पहनाई। सावरकरजी के अध्यक्ष कार्यकाल में महत्वपूर्ण कई परिवर्तन हुए।

भाई परमानन्दजी और सेठ जुगल किशोर बिड़लाजी के महत्वपूर्ण योगदान से ,"हिन्दुराष्ट्र मंदिर" मंदिर मार्ग,नई दिल्ली में लन्दन के प्रिव्ही कोन्सिल से भूमि आवंटित कर बनाया गया। इसमें हिन्दू सेवाश्रम बना फिर मुख्य रूप से भारतोत्पन्न जाती पंथ का दृगोचर कर सेंट्रल हॉल बना और हिन्दू महासभा भवन नामकरण हुआ।

३०/३१ दिसंबर १९३९ कोलकाता में डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी के दायित्व में सावरकरजी की अध्यक्षता में हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न हुआ। डॉक्टर हेडगेवारजी अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुने गए। एम.एम.घटाटे राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चुने गए। इस ही प्रकार हिन्दू महासभा मंत्री पद के चुनाव संपन्न हुए। प्रत्याशी इंद्रप्रकाशजी को ८०,गुरु मा.स.गोलवलकरजी को ४० और ज्योतिशंकर दीक्षित को २ मत समर्थन मिला। मात्र गुरूजी ने अपनी हार का ठीकरा सावरकरजी पर फोड़ा और हिन्दू महासभा का त्याग किया। डॉक्टर हेडगेवारजी को आकस्मिक मृत्यु आई और पिंगले जी को सरसंघ चालक बनना निर्धारित था। उनको हटाकर गुरूजी बलात सरसंघ चालक बने। यही से सावरकर और हिन्दू महासभा विरोध की धार तेज होती गई। { अधिवक्ता श्री भगवान शरण अवस्थी की लेखनी से }


५ जून १९४२ से शुक्र महादशा का आरम्भ। शुक्र- राहू के साथ राज्यस्थान में है। हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सावरकरजी का स्वास्थ्य अनिश्चित रहने लगा और उन्होंने अध्यक्ष पद का त्यागपत्र दिया।

शुक्र महादशा :-शुक्र दशा [ दिनांक ५ जून १९४२ से ५ अक्टूबर १९४५] में हिन्दू महासभा ने तत्कालीन राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। परंतु ,हिन्दू महासभा की शक्ति घटने लगी। सूर्य-चन्द्र की दशाओं में [५ अक्टूबर १९४५ से ५ जून १९४८ ] हिन्दू महासभा की चुनावो में पराजय हुई।

सन १९४६ असेंबली चुनाव में हिन्दू मतदाता क्षेत्र में कांग्रेस के समक्ष हिन्दू महासभा तो,मुस्लिम बहुल क्षेत्र कांग्रेस के समक्ष मुस्लिम लीग खड़ी थी। हिन्दू महासभा की दर्शिकाओ पर संघ स्वयंसेवक-महासभाई संयुक्त खड़े थे। कांग्रेस का दोनों क्षेत्र में हारना निश्चित था। इसलिए नेहरु ने सावरकर विरोधक बने गुरूजी को अखण्ड भारत का वचन देकर जाल में फांस लिया। गुरूजी ने प्रकट समर्थन के साथ संघ-सभाईयो को अंतिम क्षणों में नामांकन वापस लेने का संदेश दिया। वैकल्पिक प्रत्याशी खड़े करना असम्भव था। परिणाम स्वरुप हिन्दू महासभा को १६% मत प्राप्त हुए। { श्री चित्रभूषण ,टाउन हॉल ,नई दिल्ली }
शुक्र महादशा शुक्र दशा चन्द्र अंतर में शुक्र प्रत्यंतर दिनांक २५ जनवरी १९४८ को आरम्भ हुआ। तब विभाजनकर्ता बैरिस्टर गांधी का वध हुआ और हिन्दू महासभा को अपदस्थ करने के प्रयास हुए। संघ-सभाई धरे गए। हिन्दू महासभा की शक्ति निरन्तर घटती गई।

गांधी वध के पश्चात जवाहरलाल के दबाव में आये मुखर्जी को नेहरु ने कहा कि ,'आपकी मंत्री मंडल में स्थिती तब तक बड़ी विवादास्पद रहेगी जब तक कि,हिन्दू महासभा से अपना सम्बन्ध तोड़ नहीं देते  अथवा हिन्दू महासभा राजनीती का परित्याग नहि कर देती या उसके द्वार अहिंदुओ के लिए नहीं खोल दिए जाते। ' इस संदर्भ में डॉक्टर मुखर्जी ने हिन्दू महासभा नेताओं को प्रस्ताव दिए थे। वह पत्र उपलब्ध है। दो वर्ष विवाद चला। इस कालखण्ड में वीर सावरकरजी गांधी वध के आरोप में १० फरवरी १९४९ तक अभियुक्त थे। { पंडित ब्रजनारायण ब्रजेश १९६९ नागपूर अधिवेशन भाषण से }
अखिल भारत हिन्दू महासभा से ,"हिन्दू" शब्द निकालने की मुखर्जी की मांग सावरकरजी ने स्पष्ट ठुकराई और मुखर्जी ने हिन्दू महासभा त्याग दी। पश्चात उद्योगमंत्री पद भी १९५० में त्याग दिया। उत्तर भारत संघ चालक बसंतराव ओक इस तांक में बैठे ही थे। मुखर्जी को नए दल के निर्माण में संघ समर्थन मिला मात्र स्पष्ट आश्वासन संघ नेतृत्व ने नहीं दिया। {हिंदुत्व की यात्रा -लेखक गुरुदत्त }
बिहार,मुंगेर के संघ स्वयंसेवक टेकचंद शर्मा ने मुखर्जी को जनसंघ स्थापना के लिए निमत्रित किया। पंजाब के बलराज भल्ला ने प्रदेश जनसंघ बनाया। पंजाब के साथ हिमाचल,दिल्ली इकाई जनसंघ का गठन २१ मई १९५१ जालंधर में हुआ। जून १९५१ नागपूर संघ शिक्षा वर्ग में मुखर्जी को आमंत्रित करके गुरूजी ने आशीर्वाद और समर्थन देकर विस्तार में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। तब दिनांक २१ सितंबर १९५१ को कोलकाता में मुखर्जी ने ,'पीपल्स पार्टी'की स्थापना करते समय कहा कि ,"विभाजन के बाद हिन्दू महासभा की आवश्यकता नहीं है और किसी देश में ऐसी संस्था जातीय ही कहलाएगी। और कभी भी जीवित नहीं रह सकती है। इसलिए,राष्ट्रवादियो एवं जातीवादियो का ऐक्य कभी नहीं हो सकता।" इन्हे २१ अक्टूबर १९५१ को भारतीय जनसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया तब मंच पर गुरु गोलवलकर उपस्थित थे।

सूर्य महादशा दिनांक ५ जून १९६२ से ५ जून १९६८
चन्द्र महादशा दिनांक ५ जून १९६८ से ५ जून १९७८
मंगल महादशा दिनांक ५ जून १९७८ से ५ जून १९८५ तक हिन्दू महासभा की शक्ति निरन्तर घटती रही।

२१ जुलाई १९८४ बाल्मीकि भवन-अयोध्या में हिन्दू महासभा नेता ,गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत श्री अवैद्यनाथ महाराज अध्यक्ष बनवाकर भाजप समर्थकों ने ,"श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिती " बनाई। कांग्रेस के पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना को महामंत्री ,पूर्व हिन्दू महासभाई परमहंस रामचन्द्रदास महाराज तथा नृत्यगोपाल दास महाराज को उपाध्यक्ष और संघ प्रचारक ओमकार भावे,दिनेशचंद्र त्यागी,महेश नारायण सिंह को सहमंत्री बनाया गया था।
५ जून १९८५ राहू महादशा का आरम्भ होते ही हिन्दू महासभा के भाग्य में धीमा परिवर्तन आया। हिन्दू महासभा ने सर्वोच्च न्यायालय में दिसंबर १९८५ को संवैधानिक समान नागरिकता लागु करने के लिए याचिका प्रस्तुत की।
राहू महादशा ,गुरु दशा १३ फरवरी १९८८ से ११ जुलाई १९९० तक ,
हिन्दू महासभा का सांसद चुनाव जीता।
११ जुलाई १९९० से १७ मई १९९३ तक राहू महादशा शनि दशा रही।
चुने गए सांसद श्री महंत अवैद्यनाथ महाराज को ११ अगस्त १९९१ मुरादाबाद में हुई उत्तर प्रदेश हिन्दू महासभा इकाई ने पूर्व विधायक ओमप्रकाश पासवान,तारकेश्वर शुक्ल,छोटेलाल गुप्ता,अशोक लोहिया के साथ पक्षद्रोह के आरोप में निष्कासित किया। {दैनिक आज-गोरखपुर दिनांक ३० अगस्त १९९१}


१७ मई १९९३ से ५ दिसंबर १९९५ तक राहू महादशा में बुध दशा बुध योगकारक परिवर्तन और उन्नती दर्शाते है। २३ दिसंबर १९९६ से २३ दिसंबर १९९९ राहू महादशा शुक्र दशा में,हिन्दू महासभा को प्रगति के अवसर।
५ जून २००३ से गुरु महादशा ५ जून २०१९ तक रहेगी। यह कालखण्ड सर्वोत्तम माना गया है।

वरिष्ठ ग्रहों का संचार :-
प्लूटो -राजनितिक ग्रह प्लूटो का संचार १९५३ तक ठीक था। ६ दिसंबर १९९२ को न्यायालय संरक्षित,शिलान्यासित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर तोडा गया उस दिन से प्लूटो पुनः (प्रतिवादी ३/१९५० फ़ैजाबाद) हिन्दू महासभा के पक्ष में चल रहा है। सन २०१९ तक प्रबल रूप से पक्ष में रहेगा। सन २०५० के बाद भी दीर्घकाल तक पक्ष में रहेगा। यह कालखण्ड हिन्दू महासभा के प्रभाव में वृध्दि का होगा।

नेपच्यून -२०३६ तक पक्ष में रहेगा।

हर्षल -सन १९८० से अप्रेल २०१७ पक्ष में रहेगा। २००९ विशेष पक्ष लेगा। यही समय सत्ताप्राप्ति का है और उसे रोकने के लिए हिन्दू महासभा विरोधी सक्रीय होंगे।

* ६ दिसंबर १९९२ से २०१७ तक वरिष्ठ ग्रहों का संचार हिन्दू महासभा के पक्ष में ,मंदिर पुनर्निर्माण में सफलता के लिए मंदिर ध्वन्सियो की गिरफ़्तारी के लिए जनजागरण,न्यायालयीन आंदोलन करने आवश्यक।
* रूढ़िवादी परपरागत हिंदुत्व को छोड़ सुधारवादी-क्रांतिकारी हिंदुत्व से लाभ।
प्रबल राज्यशक्ति अपनी छद्म हिंदूवादी शक्ति के बल पर समान नागरिकता की पक्षधर हिन्दू महासभा को उभरने नहीं देगी।
राज्यकारक सूर्य की चन्द्र ,बुध और मंगल की युति है। सूर्य की मंगल युति के पश्चात चन्द्र और बुध के प्रभाव का अलग से विचार करने की आवश्यकता ,मंगल के विचार की आवश्यकता।
मंगल न केवल राज्यस्थानेश शनि से पूर्ण सम्बन्ध रखता है अपितु,राज्ययोग के प्रमुख स्तम्भ राज्यकारक सूर्य से तथा हिन्दू महासभा को राज्य सत्ता दिलानेवाले गुरु से पूर्ण सम्बन्ध रखता है। इसका सम्बन्ध राजयोग कारक बुध से भी है। अर्थ स्पष्ट है -
"हिन्दू महासभा को छल-बल-धन से रोका गया है। हिन्दू महासभा निष्ठो को बाहर का रास्ता दिखाना , अंतर्गत विवाद में उलझाना ,असंगठित करने का जो षड्यंत्र हो रहा है उससे उभरकर संगठित बल से ही हिन्दू महासभा आगे बढ़ेगी।" {ज्योतिषाचार्य पंडित विश्वनाथ -फरीदाबाद}

भृगु संहिता के अनुसार-
दीर्घकाल में भाग्य का लाभ होगा। व्यवधान डाले जाएंगे। गुप्तशत्रु के कारन अपयश के पश्चात लाभ होगा। अनुष्ठान पूर्वक महामृत्युंजय मन्त्र जाप। आपदुद्धारण मंत्र जाप। पंचमेश-लाभेश की पूजा कर पातको की क्षमा मांगकर दान ,स्वर्णमृग को ताम्बे के कलश में रखकर गौ घृत भरकर विद्वान ब्राह्मण को दान के साथ महाविष्णु स्मरण।


Monday 30 May 2016

हिन्दुओ , हमें क्यों जनसँख्या बढ़ानी चाहिए ?

इस्लाम को देश की सीमाएं स्वीकार नहीं,खंडित भारत का संविधान स्वीकार नहीं। विश्व इस्लाम का बढ़ता आतंकवाद और भारतीय मूल के लड़ाकुओं का सीरिया में लड़ते रहना। जम्मू-कश्मीर ,केरल में बढ़ता इस्लामी सिकंजा। उत्तर प्रदेश में ४२% मुसलमानो के बल चल रही राजनितिक उठापठक और भाजप की १९९० से समाजवादी पार्टी से सांठगांठ को बिहार में मीम के साथ जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सांठगांठ पर हिन्दुओ का भयग्रस्त होना और समान नागरिकता लागु करने का विरोध-विलंब कर रही भाजप की केंद्र सरकार राष्ट्रीयता में विषमता का राजनितिक लाभ उठा रही है। कांग्रेस की राह चल रही भाजप की राजनीती से हिन्दू असुरक्षित हुआ है। हिन्दुओ की शस्त्र शिक्षा से पल्ला झाड़ने का दुष्कृत्य भाजप अध्यक्ष ने किया है।
हिन्दुओ , हमें क्यों जनसँख्या बढ़ानी चाहिए ?




 ७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर इस्लाम के लिए "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी। {संदर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी}

       यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।
ISIS की धमकियां और भारतीय युवको की बगदादी की सेना में रुची एक धार्मिक विषय है ! यहाँ सरकार कुछ नहीं कर सकती। मुस्लिम पर्सनल लॉ के सामने सरकार ने घुटने टेक दिए। समान नागरिकता के मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध पर उत्तर मोदी और शाही इमाम की बैठक में मिल चूका है।
  जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह हमारे राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?

श्री इन्द्रसेन (तत्कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, १ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) में मुकदमा चलाया गया।

उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।
मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।”
तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- “कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।”
(ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)
 *श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया था।
" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी। १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में  एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में २०२१ तक हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे !

मुस्लिम मुक्त भारत ! क्यों ?



अखण्ड भारत का विभाजन अल्पसंख्या के आधारपर हुआ है।
लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय के प्रा.कसमदीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के ' मराठा ' और दिल्ली के ओर्गनायजर में २१ अगस्त १९४७ को छपा था, " हिन्दुस्थान बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है,लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा."
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है. 
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना.
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे.उदहारण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये. 
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना. 
४) अलीगढ विद्यालय जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये.

     १८ अक्तूबर १९४७ के दैनिक नवभारत में एक लेख छपा था, विभाजन के बाद भी पाकिस्तान सरकार और उसके एजंट भारत में प्रजातंत्र को दुर्बल बनाने तथा उसमे स्थान स्थान पर छोटे छोटे पाकिस्तान खड़े करने के लिए जो षड्यंत्र कर रहे है उसका उदहारण जूनागढ़,हैदराबाद और कश्मीर बनाये जा रहे है.          

 'हिन्दुस्थान हेरोल्ड' के अनुसार निजाम सरकार दो करोड़ रूपया लगाकर वहा के अछूतों को मुसलमान बनाने के लिए एक विशाल आन्दोलन खड़ा कर रही है हिन्दुओ को डराकर राज्य से भगाया जा रहा है.
विद्यमान परिस्थिती में जनसँख्या जिहाद,लव्ह जिहाद,भूमी जिहाद,सैन्य शिक्षा के लिए अफगानिस्तान जा रहे युवक सीरिया पहुँच रहे है।
  
 *श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया था।
" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी। १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में  एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में २०२१ तक हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे !
संतो ने हिन्दुओं को,"हम दो हमारे दो",की परंपरा तोड़ने का उज्जैन कुंभ में संदेश दिया है।

Wednesday 4 May 2016

En route to Liberhan, Babri files got lost in officer’s mystery death


बहन मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री न होती तो ?
Hindu Mahasabha 1949 Ayodhya Files Loss,Mayawati Promise for C.B.I. Enquiry
En route to Liberhan, Babri files got lost in officer’s mystery death
  Manish Sahu

Allegations of murder and an investigation hanging fire are the key elements of the mystery behind the 23 missing files on the Ram Janmabhoomi-Babri Masjid dispute.
Appearing before the Lucknow bench of the Allahabad High Court on Tuesday, UP Chief Secretary Atul Gupta submitted a letter from the Home Secretary stating that the missing files had last been taken by Subhash Bhan Sadh, Officer on Special Duty in the Communalism Control Cell of the UP Home Department, who later died in an accident.
But several things were left unsaid. Sadh died in an “accident” on way to Delhi to appear before the Liberhan Commission probing the Babri Masjid demolition — its report was submitted on June 30, almost 17 years after the Ayodhya incident.
He boarded the Kashi-Vishwanath Express in Lucknow on April 30, 2000 since he had to appear before the Liberhan Commission the next day. Just as the train entered New Delhi’s Tilak Bridge station, he met with an “accident”.
In a petition in the Delhi High Court, his father, Bir Bhan Sadh, said his son was carrying secret files which were never found. He alleged that his son was murdered, pushed from a running train as it slowed down at Tilak Bridge station. He fell in the gap between the platform and the train. Rushed to the Ram Manohar Lohia Hospital, Sadh died the next day.
The Delhi High Court asked the Delhi Police to investigate Sadh’s death and file a report by August 22, 2000. Family advocate Randhir Jain said a report was filed and a reinvestigation directed. But the reinvestigation report was never filed, he said. In January 2002, the court asked the CID to investigate. Jain said there was again no progress.
“There were several loopholes in the police theory. They claimed that Subhash Sadh was carrying secret files but he was travelling second class. They did not record statements of co-passengers.
The accident story was based on the statement of a vendor who, from another platform, saw Subhash fall from the train.”
Jain said that Sadh was carrying contact numbers of several officials and lawyers he was supposed to meet but the police made no attempt to contact any of them. He said he got to know of the “accident” only through an anonymous phone call. The caller, who remains untraced, also told him that Sadh had been taken to RML Hospital.
Son Sunil Sadh knows nothing about the investigation.
When Principal Secretary (Home) Fateh Bahadur was asked about the investigation into Sadh’s death, he said: “The matter is before the court. Whatever we have to say, we will tell the court.”
V K Mittal, who was then Principal Secretary (Home) and is now Vice-Chancellor of Bundelkhand University, said: “When the incident took place, I was in Delhi and also visited the hospital. I was told that if he was carrying original files, the photocopies would be in our possession, and that if he was carrying photocopies, then the originals would be with us.”


  Link- http://m.financialexpress.com/news/en-route-to-liberhan-babri-files-got-lost-in-officer-s-mystery-death/487150/

Monday 2 May 2016

त्रिदंडी स्वामी के समानांतर हिन्दू महासभा का अधिवेशन असफल,संत समागम !

प्रेस नोट: -दिनांक २ मई २०१६ मुंबई कार्यालय हिन्दू महासभा
लखनऊ में हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय नेतृत्व का दावा करनेवाले दो फर्जी / समानांतर गुटों में हाथापाई हुई थी। एक गुट रामानुज संत जो विहिंप केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल सदस्य त्रिदंडी जियर स्वामी है।दूसरा कथित स्वामी चक्रपाणि दोनों २००६ दिसंबर विवाद पूर्व अखिल भारत हिन्दू महासभा राष्ट्रिय कार्यकारिणी द्वारा स्वीकृत सदस्य तक नहीं है। श्रीराम जन्मभुमी कब्जे के लिए ही हिन्दू महासभा में गुटबाजी भाजपा समर्थकों ने फैलाई है। और यह फर्जी हिन्दू महासभाई उज्जैन में हिन्दू महासभा का अधिवेशन सुमेरू पीठ के आचार्य नरेंद्रानंद महाराज श्री के आवाहन पर पैसठ संतो की सहायता से एक मई को कर चुके है। रितेश गुरु उज्जैन के आश्रम में त्रिदंडी स्वामी के समर्थक नौ दिन से डेरा डाले बैठे थे। कार्यक्रम के लिए इंदौर से आठ और उज्जैन से सात कथित हिन्दू महासभाई पधारे।जो शाम को छह बजे तक पंडाल से बाहर आ गए। श्री नरेंद्रानंद महाराज ने आगे से सहायता करने से मना कर दिया।त्रिदंडी स्वामी भी समानांतर हिन्दू महासभा का नेतृत्व करने में उत्साहित नहीं है। सतना के देवेन्द्र पाण्डे ने मंच का सञ्चालन किया।परेल-मुंबई हिन्दू महासभा अध्यक्ष श्री दिनेश भोगले को हिन्दू महासभा का संतो को परिचय करवाने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया परंतु,डायरी पढ़ने के कारन सात मिनट में संतो ने उन्हें उपहास कर वापस जाने को कहा। उदासीन आखाड़े के संत डॉक्टर बिंदु के साथ विवाद हुआ।रविंद्र और देवेन्द्र पांडे का झगड़ा हुआ। उपलब्ध चित्र पोस्ट कर रहे है।






 संत समागम के कारन उपस्थित संत भंडारा और लिफाफा लेने पहुंचे थे।
अखिल भारत हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने ७ जून २००२ को प्रस्ताव पारित कर "श्रीराम जन्मभुमी सैकड़ो वर्षो की परंपरा से अधिपती रहे श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाडा को लौटाने का निर्णय लिया हैं !"
इसके प्रस्ताव के विपरीत अर्थात विहिंप के इशारे पर चलनेवाले समानांतर कब्जा करने निकले नकली हिन्दू महासभाई है !
त्रिदंडी और चक्रपाणि २००६ दिसंबर विवादपुर्व हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा स्विकृत आजीव सदस्य तक नहीं होने के कारण कथित स्वामी चक्रपाणि को कोर्ट दो बार बाहर कर चुका है।
श्रीराम जन्मभूमि कब्जे के लिए प्रसार माध्यमों के द्वारा हिन्दू महासभा का समानांतर राष्ट्रीय नेतृत्व स्थापित करने का भाजपा का षडयंत्र चल रहा है।मात्र हिन्दू महासभा ने इससे पहले ही २३ दिसंबर २०१५ को सुप्रीम कोर्ट के पास ज्ञापन दे दिया है।

 इसलिए भाजप समर्थक कोई पार्टी ही नहीं होने के कारन सुब्रम्हण्यम स्वामी को पक्षकार बनाकर त्रिदंडी स्वामी,स्वामी चक्रपाणि के माध्यम से देश को गुमराह किया जा रहा है।इसमें विहिंप नेता के करीबी मुंबई हिन्दू महासभा नेता त्रिदंडी का साथ दे रहे है।
राम जन्मभुमी २३ मार्च १५२८ पुर्व से श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाडा की है और बाबर ने मंदिर छोड़ने के लिए दिया हुकुमनामा भी उनके पास है। १८८५ से आखाड़ा स्वामित्व की लड़ाई लड़ रहा है और २६ जुलाई २००९ को सुनवाई १९४९ अयोध्या आंदोलन हिन्दू महासभा की फ़ाइल के अभाव में रुकी है। मात्र मुख्यमंत्री मायावतीजी के चलते इसकी FIR लिखी गई और भाजप शासनकाल २००० में सुभाष भान साध की हत्या के साथ तिलक ब्रिज स्टेशन पर धक्का देकर फ़ाइल चुराए जाने के रहस्य का पता चला और इस हत्या या फ़ाइल गायब करनेवाले मित्तल को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का उपकुलगुरु बनाए जाने का रहस्य खुला था। भाजप श्रीराम मंदिर विध्वंस के आरोप के साथ मंदिर अधिपत्य को हथियाने के अनेक षड्यंत्र करवा चुकी है।
कृपया प्रसार माध्यम भ्रम न फैलाएं ! सुमेरु पीठ शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज जो,हिन्दू महासभा के सदस्य नहीं है की अध्यक्षता में उनके शिबिर में विहिंप समर्थक संत,श्री शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती,रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य,राघवाचार्य की उपस्थिती में रामानुज श्री जियर त्रिदंडी स्वामी के समानांतर हिन्दू महासभा असफल संत अधिवेशन का विरोध हिन्दू महासभा इंदौर,उज्जैन कार्यकर्ता कपिल शर्मा,संजय झोल,महेश राठोड ने किया, त्रिदंडी समर्थक देवेन्द्र पाण्डे ,बंटी ठाकुर से झड़प हुई !

Sunday 24 April 2016

हिन्दू विवाह करे और गर्भ प्रतिबंधक साधनों का प्रयोग बंद करो !


अल्पसंख्या के आधारपर विखंडित भारत के समक्ष देश का स्वामित्व रखनेवाला हिन्दू अल्पसंख्यक होने का जो संकट खड़ा है उसके लिए सभी राजनितिक संगठनो की हिन्दू विश्वासघात की नेहरु-पटेल के साथ प्रतिबध्दता का दुष्परिणाम है।राष्ट्रीयता में विषमता,ब्रिटिश सरकार की देन थी और उसके लिए १९३५ का संविधान कम्युनल अवॉर्ड बनाया गया था। विभाजनोत्तर सभी राजनितिक दलों की आवश्यकता राष्ट्रीयता में विषमता बन गयी है।
आजकल एक ट्रेंड चल रहा है अविवाहित, कथित हिन्दू,हिन्दुओ को कितने बच्चे पैदा करने है वह उपदेश दे रहे है।
२००१-२०११ जनगणना के अनुसार मुस्लिम जनसँख्या २४.६० % बढ़ी वही हिन्दू १६.७६ % बढ़ी। तुलनात्मक दृष्टया २९.५२ % तेजी से मुस्लिम जनसँख्या वृध्दी हुई है। जो,अखण्ड पाकिस्तान का राजमार्ग बनेगा। इसलिए इस जनसँख्या वृध्दी पर चिंतित नेता हिन्दुओ को ज्यादा बच्चे पैदा करने का मार्गदर्शन कर रहे है। आज तक टी व्ही चैनल पर ऊपरवाला देख रहा है दिनांक २३ अप्रेल २०१६ रात १० बजे कार्यक्रम चल रहा था। इसमें भाजप-विहिंप के नेता कॉमन सिव्हिल कोड तक आकर रुक रहे थे। ठोस कारन बताया नहीं जा रहा था। वह संदर्भ दे रहे है -

        *श्री.शंकर शरण जी ने  दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में लिखे लेख पर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया था। १८९१ ब्रिटीश भारत सरकार के जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल के सर्वेक्षण अनुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी।सन १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना के नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ! ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में  एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित भारत में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक द वाईडेनिंग डीवाईड में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ! ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में (अर्थात २००३+१८=२०२१ में ?) हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बौध्द-शैव-वैष्णव भी) अल्पसंख्यांक होंगे !
शुध्दिकरण आग्रा से आरंभ हुआ तो,विहिंप-भाजप ने कन्नी कांट दी !

       अब इसका प्रतिकारात्मक उत्तर तिन/चार हिन्दू के बच्चे या समान नागरिकता के अनुसार ? बहुपत्नी-गर्भपात विरोध-परिवार नियोजन इस्लाम में धर्म विरोधी ? समान नागरिकता पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का संविधान विरोधी उत्तर। ऐसे में,पाकिस्तान लेकर भी संविधान का विरोध करनेवालों की राष्ट्रीयता समाप्त करने का निर्णय लेना नितांत आवश्यक हो गया है ! 
इस्लाम का इतिहास,२२ मई ७१२ सिंध नरेश दाहिर पर इस्लामी सैनिक एवं गद्दार द्वीप नौकायन करनेवाले बसैया हिन्दू की सहायता से मोहम्मद बिन कासिम ने विजय पाई।मीम के सांसद-विधायक भाई की मुस्लिम आक्रमण को सहायता करने की खुली धमकी,भारतमाता की जय नहीं कहूंगा ! पर गृह मंत्रालय ने अब तक क्या कार्यवाही की ? लव्ह जिहाद की गृहमंत्री को कोई जानकारी नहीं ऐसे सिध्द होता है। वहीं लव्ह जिहाद के विरुध्द बोलनेवाले हिंदुत्ववादी नेता-सांसद को भाजप का चेहरा न मानना स्पष्ट करता है कि,भाजप देशद्रोहियों की बढती जनसंख्या-आतंकी राष्ट्रद्रोही गतिविधी-खुली धमकियों को सामान्य कहकर अखंड पाकिस्तान की कांग्रेस नीति को ही आगे बढ़ा रही है।

            अखंड भारत विभाजन पश्चात् लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था।  जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" अखंड भारत विभाजन का सावरकरजी पर आरोप लगानेवाले देखें,देश बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है ! लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
 
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।

       ६ दिसंबर १९९२ को न्यायालय संरक्षित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर ध्वस्त करने के पश्चात दूसरे खिलाफत का आरंभ हुआ है।राष्ट्रद्रोही संगठित हुए। १९९३ मुंबई ब्लास्ट के पश्चात ७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी।(संदर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी) इसके लिए न्यायालय संरक्षित-शिलान्यासित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर ध्वस्त करनेवाली भाजप जिम्मेदार है।

       यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।

                जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह हमारे राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?

        ३१ जुलाई १९८६ देहली के मेट्रो पोलीटिन कोर्ट ने हिंदू महासभा नेताओ की मांगपर उन २४ आयातो को विघातक,विद्वेषक,घृणा फैलानेवाली माना है।उनको जब तक कुराण से निकाला नहीं जाता,एल.जी.वेल्स अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की रुपरेखा में लिखते है," जब तक दिव्य ग्रंथ का अस्तित्व है अरब राष्ट्र सभ्य राष्ट्रो की पंक्ती में बैठने के लायक नही है !"इसलिए ईसिस या आई एस आई या एल ई टी या अल कायदा विभिन्न नामो से चल रहे मुस्लिम ब्रदरहुड के वैश्विक कार्यकलापों को देखकर विभाजनोत्तर भारत के स्वामियों की सुरक्षा के लिए मुस्लिम जनसँख्या का बढ़ना,लव्ह जिहाद,भूमि जिहाद हानिकारक है। इनकी नागरिकता समाप्त किये बिना संविधान का अनुपालन और समान नागरिकता का स्वीकार नहीं करेंगे !

Thursday 21 April 2016

पूर्व गृहमंत्री पी.चिदंबरम पर राष्ट्रद्रोह का अभियोग चलाया जाएं - हिन्दू महासभा

यह प्रसार माध्यमों ने प्रकाशित किया था। फिर भी चिदु और दिग्गी ने संघ कार्यकर्ता रहे हेमंत करकरे के साथ मिलकर प्रज्ञा-पुरोहित पर आरोप लगाकर हेमंत करकरे की हत्या में संघ का हाथ दिखाने का प्रयास करते हुए मुश्रीफ की पुस्तक विमोचन में उपस्थित रहे।


CNN-IBN channel कि 13 अप्रेल 2013 रिपोर्ट, जिसमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बारे में बताया गया कि कैसे जांच करनेवाले अधिकारीयों के उत्पिडन से उनके आधे शरीर को लकवा मार गया है और वो एक समय आत्महत्त्या का प्रयास भी कर चुकी हैं ,उनके भाई ने बताया कि जेल में चार लोगों ने घेरकर उनकी इतनी पिटाई की कि, उनका एक फेफड़ा तक उससे फट गया .............. .......और रिपोर्ट में ये भी बताया गया की इतने महीनों से उन्हें प्राणीयो की भांती रखा जा रहा है जेल में और विशेष तो यह है कि,अब तक उनके ऊपर एक भी आरोप प्रमाणित नही हुए है. प्रज्ञा और पुरोहित के पास क्या मिला ? आसिमानंद को जबरन हस्ताक्षर लेकर फ्रेम किया जा रहा है यह आरोप हम निम्न आधारपर कर रहे है।

* एस.गुरुमूर्ति का लेख:-*चेन्नई से प्रकाशित होनेवाले ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के २४ जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है। मुख्यत: भारत-पाकिस्तान के बीच चलनेवाली ‘समझौता एक्सप्रेस’में हुए बम विस्फोट और उसके लिए लम्बे अन्तराल पश्चात् सरकारी जांच यंत्रणा ने तथाकथित हिंदू आतंकवादियों को धर दबोचने के विषय में लिखा है।

‘‘२० जनवरी २०१३ को, जयपुर में कांग्रेस के तथाकथित चिंतन शिबिर में केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगाव में हुए बम विस्फोट के लिए हिन्दुओ को जिम्मेदार बताया था। शिंदे का वक्तव्य प्रसिद्ध होने के दूसरे ही दिन लष्कर-ए-तोयबा का नेता हफीज सईद ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।अत: सईद की इस मांग के लिए शिंदे ही जिम्मेदार हो सकते थे।क्यो कि,ऐसा प्रकट हो रहा है कि,काँग्रेस के इशारेपर आतंकी हमले होते है या हमले की पूर्व सूचना इनको होती है.अब हम इस बम विस्फोट के तथ्यों पर विचार करेंगे !’’

‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा समिति ने २९ जून २००९ को पारित किए प्रस्ताव में यह कहा है कि, *‘२००७ के फरवरी में समझौता एक्सप्रेस में जो बम विस्फोट हुए उसके लिए लष्कर-ए-तोयबा का मुख्य समन्वयक कासमानी अरिफ जिम्मेदार है।’* इस कासमानी को दाऊद इब्राहिम कासकर ने आर्थिक सहायता की थी। दाऊद ने ‘अल् कायदा’को भी धन की सहायता की थी। इस सहायता के ऐवज में* समझौता एक्सप्रेस पर हमला करने के लिए ‘अल् कायदा’ने ही आतंकी उपलब्ध कराए थे।"* अब बताओ हिंदू आतंकवाद कहासे आया ?
     सुरक्षा समिति का यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ की वेब साईट पर भी उपलब्ध है ! दो दिन पश्चात् अर्थात दि. १ जुलाई २००९ को अमेरिका के (युएसए) कोषागार विभाग (ट्रेझरी डिपार्टमेंट) ने एक सार्वजनिक पत्रक में कहा है कि," अरिफ कासमानी ने बम विस्फोट के लिए लष्कर-ए-तोयबा के साथ सहयोग किया।" *अमेरिका ने अरिफ कासमानी सहित कुल चार पाकिस्तानी नागरिकों के नाम भी घोषित किए है। अमेरिकन सरकार के इस आदेश का क्रमांक १३२२४ है और वह भी अमरीकी सरकारी वेब साईट पर उपलब्ध है।’’*
    ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ और अमेरिका ने लष्कर-ए-तोयबा तथा कासमानी के विरुद्ध कारवाई घोषित करने के उपरांत , छ: माह पश्चात् पाकिस्तान के *गृहमंत्री रहमान मलिक ने कहा कि *, 'पाकिस्तान के आतंकवादी,समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में शामिल थे।परंतु ,ले.कर्नल पुराहित ने पाकिस्तान में रहनेवाले आतंकवादियों को इसके लिए सुपारी दी थी।(? हास्यास्पद ) ' (संदर्भ – ‘इंडिया टुडे’ ऑन लाईन,२४ जनवरी २०१०)
      ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ या अमेरिका अथवा पाकिस्तान के गृहमंत्री की भी बात छोड़ दो,अमेरिकाने इस विषय की एक स्वतंत्र यंत्रणा से जांच की, उसमें से और कुछ तथ्य सामने आये है। लगभग १० माह बाद सेबास्टियन रोटेल्ला इस खोजी पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में डेव्हिड कोलमन हेडली का भी हाथ था।" और यह उसकी तीसरी पत्नी फैजा आऊतल्लाह ने अपने कबुलनामें में बताया है। रोटेल्ला के रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘२००८ में मुंबई में हुए बम विस्फोट के बारे में अमेरिकी सरकारी यंत्रणा को चेतावनी दी गई थी।’
रोटेल्ला आगे कहते है कि,‘ मुझे इस हमले में घसीटा गया है, ऐसा फैजा ने कहा है।’ (वॉशिंग्टन पोस्ट दि.५ नवम्बर २०१०) २००८ के अप्रेल में लिखी अपनी जांच रिपोर्ट के अगले भाग में रोटेल्ला कहते है कि, ‘‘फैजा,* इस्लामाबाद में के (अमेरिकी) दूतावास में भी गई थी और '२००८ में मुंबई में विस्फोट होगे !' ऐसी सूचना भी उसने दी थी।’’*
       ‘‘सन् २००७ में,* समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट *के मामले की जांच के चलते समय ही, *इस हमले में ‘सीमी’ *(स्टुडण्ट्स इस्लामिक मुव्हमेंट ऑफ इंडिया) * का भी सहभाग था*, ऐसे प्रमाण मिले है। ‘इंडिया टुडे’ के १९ सप्तम्बर २००८ के अंक में के समाचार का शीर्षक था ‘मुंबई में रेलगाडी में हुए विस्फोट और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान का हाथ ! सफदर नागोरी’ उस समाचार में लष्कर-ए-तोयबा और पाकिस्तान के सहभाग का पूरा ब्यौरा दिया गया है। ‘सीमी’ के नेताओं की नार्को टेस्ट भी की गई, उससे यह स्पष्ट होता है। *इंडिया टुडे के समाचार के अनुसार,* सीमी के महासचिव सफदर नागोरी, उसका भाई कमरुद्दीन नागोरी और अमील परवेज की नार्को टेस्ट बंगलोर में अप्रेल २००७ में की गई थी। इस जांच के निष्कर्ष ‘इंडिया टुडे’ के पास उपलब्ध है। उससे स्पष्ट होता है कि, भारतीय राष्ट्रद्रोही सीमी के कार्यकर्ताओं ने, सीमापार के पाकिस्तानियों की सहायता से, यह बम विस्फोट किए थे। उनके नाम एहतेशाम और नासीर यह सिमी कार्यकर्ताओं के नाम है। उनके साथ कमरुद्दीन नागोरी भी था।
पाकिस्तानियों ने, सूटकेस कव्हर इंदौर के कटारिया मार्केट से खरीदा था। इस जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि, उस सूटकेस में पांच बम रखे गए थे और टायमर स्विच से उनका विस्फोट किया गया।’’




     ‘‘यह सभी प्रमाण समक्ष होते हुए भी महाराष्ट्र का पुलीस विभाग, इस दिशा से आगे क्यों नहीं बढा ? ऐसा प्रश्न निर्माण होना स्वाभाविक है। महाराष्ट्र पुलीस विभाग के कुछ लोगों को समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट का मामला कैसे भी करके मालेगाव बम विस्फोट से जोड़ना था ? ऐसा प्रतीत होता है। क्या राजनीतिक दबाव था ? तो,वह कौन थे यह स्पष्ट होना चाहिये. महाराष्ट्र के दहशतवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने, अपने अधिवक्ता के माध्यम से, विशेष न्यायाधीश को बताया था कि, "मालेगाव बम विस्फोट मामले के आरोपी कर्नल पुरोहित ने ही समझौता एक्सप्रेस के बम विस्फोट के लिए आरडीएक्स उपलब्ध कराया था।"परंतु,* ‘नॅशनल सेक्युरिटी गार्ड’ इस केन्द्र सरकार की यंत्रणा ने बताया था कि *,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग ही नहीं हुवा ! पोटॅशियम क्लोरेट और सल्फर इन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था।"और तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शिवराज पाटील ने भी इस विधान की पुष्टी की थी। मजे की बात तो यह है कि, उसी दिन १७ नवम्बर २००८ को दहशतवाद विरोधी दस्ते के अधिवक्ता ने भी अपना पूर्व में दिया बयान वापस लिया था।परंतु,अवसरवादी पाकिस्तान ने तत्काल घोषित किया की, 'सचिव स्तर की बैठक में समझौता एक्सप्रेस पर हुए हमले में कर्नल पुरोहित के सहभाग का मुद्दा उपस्थित किया जाएगा।' अंत में *२० जनवरी २००९ को दशतवाद विरोधी दस्ते ने अधिकृत रूप में मान्य किया कि,'समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स उपलब्ध नहीं कराया था।' फिर भी समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट आरोप को लष्कर-ए-तोयबा और ‘सीमी’ से ध्यान हटाकर कर्नल पुरोहित और उसके द्वारा भगवा रंग-हिन्दू आतंकवाद से जोड़ा गया ! मात्र २६/११ मुंबई हमले पूर्व की NCP नेता दामोदर तांडेल की प्रेस सूचना होते हुए भी उसे रोकने में शिथिलता दिखानेवाली महाराष्ट्र पुलीस यंत्रणा और सत्ताधारी कांग्रेस पर राष्ट्रद्रोहियों का प्रभाव होने का यह प्रमाण है ? और इसकी भी जांच होनी चाहिए कि,कौन से दल के नेता राष्ट्रद्रोही आतंकवादीयो को राजाश्रय देते रहे है।

खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा !

 अखंड भारत को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधान का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया। उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.तिलक स्मृतीदिन के पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।

          वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है !" ऐसा कहा। ८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल (ब्रिटिश) सदस्य बनाये गए ,इस सायमन कमिशन ने "जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स" बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी।

१९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई।इस 'नेहरू रिपोर्ट' ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडने आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य का निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने इस बैठक में संपूर्ण स्वाधीनता की मांग रखकर गांधी की ब्रिटीश वसाहती राज्य की मांग का विरोध किया। इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने ब्रिटीश वसाहती राज्य का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश रानी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की "चोगम परिषद" बनी जो आज भी होती है।
        गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड (सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर पार्लियामेंट में विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला। हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत सामाजिक विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१ अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा। 
                   
      स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर भारत को वसाहत राज्य देने की घोषणा की। तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की। सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा। मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया। ( विभाजानोत्तर आश्रयार्थि मुस्लिमों का विरोध आज भी जारी है।) २० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की योजना प्रकट हुई।७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर "धर्मचक्र" या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' ऐसी मांग की। डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला।इसलिए पुणे मे बनाया पारित मसौदा आंबेडकरजी ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें भगवा ध्वज देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.जी ने भी आश्वासन दिया था।परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई सूनने तयार नही था।                                                    
जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी। फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की ! उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ ब्रिटिश संविधान के आधार पर स्थापित हुई। उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये, डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४-राष्ट्रीयता में विषमता का समापन करनेवाले समान नागरिकता का सूत्रपात किया,हिन्दू कोड बिल बनाया।विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये। राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकरजी के विरोध मे रबरस्टेम्प पदाधिकारी बनाया गया।संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये,२४७३ पर बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को भारत एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया। इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा."५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे ? इसका कोई पता नही। और क्या इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी जिम्मेदार कहोंगे ?आम्बेडकरजी के अनुयायी विषय को जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान समीक्षा समिती के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ? नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्तलिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता, बंधुत्व और नागरी सुरक्षा नही,महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है !