Saturday 9 April 2016

NIIT J&K काला विधी विधान-१९४४ अभिशाप !

काला विधी विधान-१९४४ जम्मू कश्मीर के लिए अभिशाप !

           देश दुनिया जानती है अखंड भारत का धार्मिक अल्पसंख्य जनसँख्या के अनुपात में भौगोलिक विभाजन होकर पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण हुवा.अब एक बांग्लादेश है. विभाजन पश्चात् ६६७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने २७ अक्तू.१९४७ को नेहरू को ज्ञापन देकर मुस्लिम लीगी पाकिस्तान समर्थको को पाकिस्तान भेजने की मांग की थी.लियाकत-आम्बेडकर समझौता जन संख्या अदल बदल पर हुवा.नेहरू नहीं माना.पंजाब ने भी आखिरी गाड़ी भर कर पाकिस्तान भेजी और पंजाब को मुस्लिम विहीन बनाया था.
            अब देखते है क्या है पेच शरणार्थी हिन्दुओ के लिए !
             अखंड भारत विभाजन की ३ जुलाई १९४७ की घोषणा के पश्चात २ लक्ष हिन्दू शरणार्थी जम्मू कश्मीर आये.विभाजनोत्तर २० अक्तूबर १९४७ को पापस्थान ने कबायलीयों के साथ सेना की घुसपैठ जम्मू-काश्मीर में करवाई।२६ अक्तूबर को महाराजा हरीसिंघजी ने खंडित भारत के साथ विलय स्वीकार किया। परंतु, नेहरू शेख अब्दुल्लाह के समर्थन में थे।हमारी सेना और स्वयंसेवकों ने पाकिस्तानियों को खदेड़ने में सफलता प्राप्त करते ही १ जनवरी १९४८ नेहरू ने युध्द विराम की घोषणा की। १३अगस्त को कब्जे का विवाद सुरक्षा परिषद ले जाया गया।५ जनवरी १९४९ को सुरक्षा परिषद ने पापस्थान को आक्रांता घोषित किया और आदेश देकर घुसपैठीयो को वापस बुलाने का संदेश दिया। मात्र नेहरू के गाझी पद के कारण १/३ पाक अधिव्याप्त (अधिकृत नहीं ! ) कश्मीर का निर्माण हुवा। १४ मार्च १९५० डिक्सन आयोग बना उसने जनमत संग्रह की बात छेड दी,१९५१ मे ग्राहम्ग्रीन एक निरर्थक आयोग बना।

          १३ जुलाई १९५३ अब्दुल्लाह ने जम्मू-काश्मीर राज्य को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर किया। तब, नेहरू ने उसे हटाकर १६ अगस्त १९५३ को बक्षी गुलाम मोहम्मद को मुख्यमंत्री बनाया।हिन्दू महासभा-जनसंघ के अनेक संयुक्त आंदोलन-विरोध के पश्चात १ अप्रेल १९५९ को प्रवेश पारपत्र बंद कीया गया।
           हिंदू शरणार्थी आज भी कश्मीर में नागरिक नहीं है ! काला विधी विधान-१९४४ पुर्व के निवासी हिन्दू मतदाता, निशुल्क शिक्षा से वंचित, निवृत्ती वेतन से वंचित, विकलांग सुविधा-सेवा से वंचित, किरायेदारी से वंचित, नम्बरदार नहि बन सकते, निशुल्क विधी-विधान-न्यायिक सहायता से वंचित, सरकारी नोकरी से वंचित, अस्थायी धारा ३७० समाप्त करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास परंतु गैर काँग्रेसी सरकारो ने भी ऐसा नहि किया। बहुमत के लिए सुन्नतियों का हिन्दुओं को ब्लैक मेलिंग करना जारी है। धारा ३५ अ ने भी हिंदू शरणार्थीयो को वंचित रखा। तो, धारा ७ अ ने पापस्थान गये मुसलमान स्थलांतरितो को पुनः जम्मू-कश्मीर में बसाने का विधिवत विधान बनाया।सन २००२ में सर्वोच्च न्यायालय ने इस विधान को समाप्त किया.
      संसद के सत्र मे धारा ३५-अ तथा ७(२) मे सरकार को संशोधन करना होगा। धारा ६ ख के अनुसार, १९ जुलाई १९४८ के पूर्व या पश्चात आये शरणार्थी हिन्दू जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिक माने जाये। हिंदू शरणार्थी लोक-विधान सभा के मतदाता बने।नागरिकता का अधिकार समानता से प्राप्त हो। निर्वासित हिंदूओ को अपनी संपत्ती के साथ जम्मू-कश्मीर मे पुनः बसाया जाये। अभी तक चुनाव आयोग,मानवाधिकार आयोग,अल्प संख्यक आयोग, एम्नेस्टी इंटर नैशनल,प्रदेश सरकार तथा केंद्र सरकार ने क्या किया ? इस पर श्वेत पत्र निकलना चाहिए था. परन्तु,माननीय न्यायालय ने पाकिस्तान से आये हिन्दुओ को वापसी का रास्ता खोलकर हिन्दू महासभा की मांग को उचित माना है.धर्मान्तरण-बलात्कार-लुट से झुझ रहे हिन्दुओ को पाकिस्तान में वोटिंग से रोका जाता है.नागरिकता मान्य नहीं.ऐसे में क्या खंडित हिन्दुस्थान में जैसे को तैसा विधान बनाकर पाकिस्तान के हिन्दुओ को सन्मान से जीवनयापन करने पाकिस्तान को विवश नहीं किया जा सकता ?

               * विभाजनोत्तर जम्मू-कश्मीर में १९४४ पूर्व के नागरिको को मतदाता माना परन्तु विभाजन और विलय की तिथि को अनदेखा किया और प्रदेश सरकार ने  निर्वाचन विधान के अनुच्छेद ४-ए में पाकिस्तान से आये शरणार्थी २ लक्ष हिन्दुओ को विधान सभा चुनाव से दूर रखा.
               * १९५४ नेहरू प्रणित मुख्यमंत्री बक्षी गुलाम मोहम्मद ने निः शुल्क शिक्षा से शर्णार्थियो को वंचित रखा.
               * २० जुलाई १९७६ के विकलांग-सेवा निवृत्त नागरिको की पेंशन विधान से हिन्दू शर्णार्थियो को दूर रखा गया ; २४ नवम्बर के विधान में कृत्रिम अंग निः शुल्क रोपण से हिन्दुओ की उपेक्षा की गयी.
                 * मुस्लिम नैशनल कॉन्फरन्स के मुख्यमंत्री शैख़ अब्दुल्ला ने हिन्दू शर्णार्थियो को किराये के मकान-जमीन के अधिकार से भी वंचित किया.
                 * १९८० के अधिनियम ने ग्राम नम्बरदार प्रदेश का स्थायी नागरिक कहकर शर्णार्थियो की बस्ती में बाहरी नम्बरदार थोपा.
                 *१५ दिसंबर १९८४ के अध्यादेश से २० सूत्री कार्यक्रम में निर्धनों को निः शुल्क विधि विधान की सहाय्यता केवल स्थायी निवासियों के लिए लागु हुई.
                 * शरणार्थी हिन्दू कश्मीर में सरकारी नौकरी या चपरासी तक नहीं बन सकते.
                   जम्मू-कश्मीर विधान सभा को सभी विधि विधान बनाने सुधरने का अधिकार अस्थायी धारा ३७० ने दिया है.१९५४ केंद्र सरकार ने ३७० के साथ भारतीय संविधान की धारा ३५ ए जोड़कर शरणार्थी हिन्दुओ को मूल अधिकार से वंचित रखा है. वहि, धारा ७(२) में १९४७ में पाकिस्तान गए नागरिको को वापसी पर अनुमति है. यही विरोधाभास है.
                     १९५४ में इसी धारा को आधार बनाकर धारा ६(२) बनी है के अनुसार पाकिस्तान चले गए लोग विशेष अनुज्ञा (पार पत्र ) लेकर जम्मू-कश्मीर आ सकते है और उसे मान्य करने का अधिकार केंद्र के पास है. अभी अभी एक शिकायत आई थी सैय्यद शाह गिलानी की चिट्ठी पर एक विघटन-आतंकवादी पाक से आया था.जब की यह अधिनियम केवल १० वर्ष के लिए था.फिर भी यह जारी है तो संशोधन करना होगा.
                     धारा ६ ख (i) (ii) के अनुसार १९ जुलाई १९४८ पूर्व जो खंडित भारत (जम्मू-कश्मीर समेत) में आये वह नागरिकता का अधिकारी है.हिन्दू शरणार्थी इस धारा के अनुसार अधिकारी है.परन्तु,जम्मू-कश्मीर सरकार ने शरणार्थी हिन्दुओ को वंचित ही रखने का मन बनाया है इसलिए विधानसभा मतदान से भी वंचित है.
        पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थी नागरिको को हिन्दू महासभा की मांग पर नागरिकता मिली. पाकिस्तान से पलायन कर रहे हिन्दू स्वाभाविक हिन्दुस्थान ही आयेंगे.पाकिस्तान-बांगला देश देने के पश्चात् भी जो मुसलमान आ रहे है वह शरणार्थी कभी नहीं हो सकते फिर भी उनको द्वार खुले रखने का तात्पर्य अखंड पाकिस्तान ही होगा,फिर हिन्दू शरणार्थी बनकर कहा जायेंगे ? कितने करोड़ मुस्लिम घुसपैठिये खंडित हिन्दुस्थान की राजनितिक-आर्थिक-सामाजिक-भौगोलिक-आंतरिक सुरक्षा को अस्थिर-असुरक्षित बनाए है ! जम्मू-कश्मीर सरकार शरणार्थी हिन्दुओ को प्रादेशिक-राष्ट्रिय नागरिकता और विस्थापित पंडितो के पुनर्वास पर प्रत्यक्ष कारवाही विधेयक लाएं !

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