Wednesday 30 December 2015

रोमनों की विश्वपर सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा,येशु उनकी शिकार हुए !

रोमनों की विश्वपर सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा अलेक्झांडर पूर्व से रही है। होलिओदोरस और डेमिट्रियस ने वैष्णव पंथ स्वीकार कर भारतीयता में एकरस हो गए। मात्र राक्षसी मिनेण्डर ने बुध्द मत का स्वीकार कर भी रोमन सत्ता स्थापित नहीं कर सका।
महात्मा येशु बैथलहैम में जन्मे परंतु उस समय जेरूशलेम पर नीरो की सत्ता थी। ज्यूलियस सीझर के पश्चात ऑगस्टस से नीरो तक की स्वर्ण मुद्रा भारतीय बाजार में आती रही है। येशु जन्म के पूर्व इस्रायल के मृत सागर परिसर के निवासी सेमिटिक वंशीय कमारियन्स लोगो ने ज्यु पंथ की स्थापना की थी। वह रोमनों की प्रतिदिन छल की मानसिकता के कारन येशु जन्म के दो तीनसौ वर्ष पूर्व से क्राइस्ट अर्थात पालनहार की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह वही लोग है जो अंतिम भोजन को ,"लास्ट सपर" कहते थे। रोमन राजसत्ता में लकड़ी के वधस्तम्भ पर बांधकर पत्थर मारकर मृत्यु दंड देने की परंपरा थी।

येशु के जन्म-मरण की रहस्यमय कथाए प्रचलित है। वह शेफर्ड बनकर भारत भूमि में आने जगन्नाथ पूरी में वेद अध्ययन और लद्दाख हेमिस बुध्द मठ में त्रिपिटक का ज्ञान लेने की भी बाते लिखी गई है। येशु ने वैदिक तथा बुध्द मत का संयुक्त प्रसार जेरूशलेम लौटकर करने की भी बात होती है। इनके समर्थक / अनुयायी गण बढ़ने लगे तब रोमन सत्ता के सामने संकट जैसी स्थिती उत्पन्न हुई इसलिए रोमन सरकार ने येशु की पकड़ने के लिए सैनिक भेजे थे। तरह शिष्यों के साथ लास्ट सपर हो रहा था। तब आए सैनिको को सभी के चहरे एक जैसे दिखाई दिए। सैनिको ने पूछा चमत्कारिक येशु कौन है तब ज्युडास इस्केरियट ने अंगुली निर्देश कर येशु को पकड़वा दिया।
शुक्रवार को येशु को क्रुसिफिक्शन कर पत्थर मारकर मार डाला इसे "गुड फ्रायडे" और रविवार को जीवित पाकर "ईस्टर सन्डे" कहा जाता है। इस घटना की पश्चात येशु कहा थे ? कोई कहता है कश्मीर में उनकी और उनकी पत्नी मेंडेलिन की कब्र है। अर्थात काले येशु रोम कभी गए ही नहीं।

ओल्ड टेस्टामेंट ज्यु लोगो के तालमुद का एक हिस्सा है। उसपर श्रध्दा रखनेवालों का प्रभावी संगठन बनकर ज्यु पंथ की पुनर्रचना हुई। जिसके कारन रोमनों की सत्ता ध्वस्त हुई। रोमनों को धर्मसत्ता के प्रभाव का जैसे आकलन हुआ उन्होंने पुनः इस्रायल पर आक्रमण किया। हेरोड,पायलट,जॉन द बैप्टिस्ट को रोमन अर्थात कैथलिक पंथ प्रसार हेतु ज्युडास से दीक्षित करवाकर भेजा। अर्थात बाइबल का नामोनिशान नहीं था। वह तीसरी शताब्दी तक निर्माण होता रहा। जर्मन लेखक विंटरनिट्स लिखते है,"बाइबल के कुछ भागपर महात्मा बुध्द के विचार तथा ग्रंथो का परिणाम हुआ है !"
जॉन द बैप्टिस्ट द्वारा धर्म दीक्षा देकर गले में येशु को क्रूसीफिक्शन के लिए जो वधस्तम्भ था उसे भय के प्रतिक के रूप में पूजनीय बनाया गया। जो ज्यु इसका स्वीकार नहीं करेगा उसे येशु विरोधी,पाखंडी कहकर बलि चढ़ाया गया।
ईसा ३२५ में रोमन राजा कॉन्स्टैन्टाइन ने चर्च की धार्मिक सत्ता पुराण मतावलम्बी ज्यु-यहूदी लोगो से छीनकर स्वयं नया धार्मिक नेता बना और धर्मपीठ वेटिकन ले गया। जहा बौध्द-वैष्णव पंथ संगठित थे और वेटिकन वेद वाटिका थी। इस प्रकार धार्मिक आधार के लिए बने बाइबल के माध्यम से रोम की राजसत्ता को धार्मिक माध्यम से प्रसारित किया जाने लगा। बाइबल पठन और अध्ययन की सक्ती की जाने लगी।
धर्मान्तरण के लिए "इन्क्विझिशन" या अन्वीक्षा मंडल की स्थापना तृतीय इनोसंट ने की। इस मंडल ने येशु भक्त ज्यु-यहूदी पंथ के मानिकियन,आरियन,प्रिस्किलियन,पालियन,बोगोमाईल,काथुरी,वाल्डेंशियन,आल्बीजेंशियन,लोलार्ट,हुझाइट,आदि लोगो पर शस्त्र चलाये। क्योकि,वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वैराग्य का पालन करनेवाले लोग नृत्यांगनाओं के साथ भोगविलास में डूबे विशाल राजप्रासाद में रहकर आज्ञा छोड़नेवाले पोप की अवज्ञा करते थे।
इन्क्विझिशन के प्रवर्तक तृतीय इनोसंट ने अकेले ही सत्ताईस हजार तथा अध्यक्ष तार्किमादा ने स्पेन पर अधिसत्ता स्थापित करते हुए आठ हजार आठ सौ पाखंडियो को चिता पर जलाया। भगोड़े साढ़े छह हजार येशु भक्तो की प्रतिमा बनाकर जलाई गई। ९६५०४ लोगो को प्रायश्चित्त की आड़ में जलाया। तीन लाख लोगो को निष्कासित किया। कब्र खोदकर जलाया गया।  (संदर्भ :- The Horros Of Inquisition लेखक Joseph McCabe तथा Tarque Mada & The Spanish Inquisition लेखक Clement Wood )
मृत सागर के निकट पहाड़ो में सन १९५० से १९५७ के मध्य अनेक सांकेतिक दस्तावेज प्राप्त हुए है। इस डेड सी स्क्रॉल के अनुसार येशु के चरित्र से साम्यता दर्शानेवाली विभूती येशु जन्म के पूर्व होकर गई थी। इन दस्तावेजो के आधारपर प्रस्थित ख्रिश्च्यानिटी और चमत्कार प्राचीन कमारियन्स लोगो की देन है। पोप और बिशप इसपर मौन है।
५२६ में ब्रिटेन पर धार्मिक सत्ता थोपकर रोमन  विस्तार आरम्भ हुआ। ब्रिटेन ने अमेरिका को भी धार्मिक प्रसार के माध्यम से सत्ता विस्तार किया। ब्रिटेन के गैंगरीन कालमानक ने भारत के पंचांग मकर संक्रांत,कर्क संक्रांत -छोटा दिन और बड़ा दिन मध्य बनाकर दस माह का कालमानक बारह माह का किया। देश और दुनिया में भारतीय पंचांग की महत्ता कितनी है ? नासा तक इसका प्रयोग करते है !

Friday 18 December 2015

क्या गाँधी ने अंतिम समय " हे राम " कहा था?

 गाँधी वध की प्रथम जानकारी विश्व में प्रसारित करनेवाले जेम्स मायकल को भी विश्वास नहीं. युनायटेड प्रेस इंटर नैशनल के लिए कार्यरत मायकल गाँधी वध के समय बिडला हॉउस में थे.मायकल के अनुसार सरकारी पत्रक में इसका उल्लेख किया है. " हे राम"गाँधी के अंतिम शब्द ! गोली लगने के ७ मिनट पश्चात् गाँधी का निधन हुवा. उस बिच उन्होंने कुछ नहीं कहा ऐसा 'फोर्बस'के संपादक मायकल ने १९९७ में खुलासा किया.गोली दागने के पहले गाँधी-नाथूराम के बिच संवाद हुवा था ऐसा कहनेवाले उन्हें वहा मिले थे," देरी कर दी !" ऐसा गाँधी ने नाथूराम को कहा था.

करीब 90 साल के हो गए के.डी. मदान के जेहन में उस मंजर की यादें जीवंत हैं जब नाथूराम गोडसे ने शांति के दूत को गोलियों से छलनी कर दिया था।
के.डी. मदान उस दिन भी 5, अल्बुकर्क रोड (अब 5, तीस जनवरी मार्ग) पर अपनी रिकार्डिंग मशीनों के साथ पहुंच गए थे। समय रहा होगा शाम के चार-साढ़े चार बजे। उन्हें बापू की प्रार्थना सभा की रिकार्डिंग करनी होती थी। प्रार्थना सभा को आकाशवाणी रात के साढ़े आठ बजे प्रसारित करती थी।

गाली और गोली से परे गांधी-दर्शन
गांधीजी की प्रार्थना सभाओं में भजन सुनने और बापू के दर्शन करने से मदान को बेहद आनंद की अनभूति होती थी इसलिए वे उसे इस मौके को चूकते नहीं थे। बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा का सिलसिला सितम्बर,1947 से शुरू हुआ था और तब ही से मदान रिकार्डिंग के लिए आने लगे थे।
बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति भवन) में ठीक उस स्थान की तरफ इशारा करते हुए जहां पर बापू की हत्या हुई थी, मदान कहते हैं, जब बिड़ला हाउस के भीतर से गांधीजी प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए निकले तब मेरी घड़ी के हिसाब से 5 बजकर 16 मिनट का वक्त था। हालांकि यह कहा जाता है कि 5 बजकर 17 मिनट पर उन पर गोली चली... तो मैं समझता हूं कि बापू 5.10 पर निकले होंगे।
उस दिन बापू से मिलने सरदार पटेल आए थे कुछ जरुरी बात करने के लिए.... आम तौर पर बापू 5.10 पर निकल जाते थे, लेकिन उस दिन कुछ देर हो गई थी ... तो सरदार पटेल को खुद ही कहा कि आप जाइए मेरी प्रार्थना का वक्त हो गया है... मुझे जाना है। वो 5.10 पर निकले होंगे और जब तक वहां पहुंचे 5.15 मिनट से ऊपर हो गए थे।
गांधी को किस तरह याद रखें हम?
फिर वे उस रास्ते को इशारा करके बताते हैं जिससे गांधीजी प्रार्थना सभा स्थल पर आया करते थे। उनकी आयु और उनके स्वास्थ्य की वजह से हमेशा उनके कंधे और हाथ मनु और आभा के कंधों पर रहते थे। उस दिन भी उन्हीं के कंधों पर उनका हाथ था और यहां तक पहुंचे।
मदान बताते हैं, गांधीजी सितंबर में कलकत्ता से दिल्ली आए। कभी बिड़ला भवन तो कभी मंदिर मार्ग में ठहरते थे। सितंबर 1947 में ऑल इंडिया रेडियो ने तय किया कि प्रार्थना सभा रोजाना रिकॉर्ड की जाएगी और उसे 8.30 बजे प्रसारित किया जाएगा। जब दफ्तर में पूछा गया तो मैंने कहा कि मैं ही चला जाया करूंगा। मैं ठीक 4.30 यहां आ जाया करता था और इक्विपमेंट सेट कर देता था और 5 बजे गांधीजी आते थे। वे वक्त के बड़े पक्के थे।
तीस जनवरी के दिन रोज की तरह गांधीजी प्रार्थना सभा के लिए आए। आभा और मनु उनके साथ थे। तभी पहली गोली की आवाज आई। मुझे ऐसा लगा कि दस दिन पहले जो पटाखा चला था वैसा ही हुआ है। उसी एहसास में था कि दूसरी गोली चली। मैं इक्विपमेंट छोड़कर भागा। उस तरफ गया जहां काफी भीड़ थी। वहां पर बहुत से लोग इकट्ठे थे। मैं और आगे आया तभी तीसरी गोली चली मैंने अपनी आंखों से देखा। बाद में पता चला कि गोली चलाने वाले का नाम नाथूराम गोडसे था। उसने खाकी कपड़े पहने थे। उसका कद काफी मेरे जैसा ही था। डीलडौल भी मेरी जैसी ही थी। तीसरी गोली चलाने के बाद उसने दुबारा से हाथ जोड़े। मैंने सुना है पहली गोली चलाते हुए भी हाथ जोड़े थे उसके बाद लोगों ने कर उसे पकड़ लिया उसने किसी भी तरह का विरोध नहीं किया बल्कि अपनी जो रिवॉल्वर थी उसे भी उनके हवाले कर दिया।
अचानक पहुंची पुलिस
गांधीजी का यह आदेश था कि कोई भी पुलिस वाला उनकी प्रार्थना सभा में नहीं होगा। लेकिन मदान बताते हैं, जब यह हादसा हुआ तो कुछ लोगों ने पुलिस को इत्तला की होगी। पुलिस वहां आ गई और हत्यारे को पुलिस के हवाले कर दिया। मैंने उसे ले जाते हुए देखा।
दरअसल, वहां पर पुलिसकर्मी इसलिए नजर आए क्योंकि समीप ही स्थित संसद मार्ग थाने पर तैनात डीएसपी सरदार जसवंत सिंह और तुगलक रोड थाने में इंस्पेक्टर दसौंदा सिंह अचानक पहुंच गए थे। जसवंत सिंह के पोते संजीव चौधरी ने बताया कि ये दोनों पुलिस अफसर तुगलक रोड थाने से बिड़ला हाउस इसलिए महिन्द्रा जीप पर आए ताकि देख सकें कि वहां पर हालात काबू में हैं। वे जैसे ही गेट पर पहुंचे, गोली चलने की आवाज आई। दोनों भागकर अंदर गए। वहां भगदड़ का मंजर था। गांधीजी को बिड़ला हाउस के अंदर ले जाया जा रहा था।
घटनास्थल पर ही पकडा गया गोडसे
दोनों पुलिसवालों ने वहां कुछ लोगों के साथ मिलकर तुरंत गोडसे को पकड़ लिया। मदान ने कहा कि गोडसे के प्रति उनके मन में नफरत का भाव है। वे उसक बारे में बात करने से बचते हैं। गोडसे के बारे में इतना ही जानता हूं कि मैंने उसे गोली चलाते हुए देखा था। उस दिन उसने खाकी कपड़े पहने थे।
गांधीजी ने बचाई थी नौकरी
गांधीजी मदान को रेडियो वाला बाबू कह कर बुलाते थे। मदान बताते हैं, "शाम 5 बजे से 5.30 बजे उनकी स्पीच का समय होता था। उसके बाद 8.30 पर मैं उसे रेडियो पर प्रसारित करता था। कभी-कभी गांधीजी आधे घंटे से ज्यादा बोल जाते थे। मेरे लिए बड़ा मुश्किल होता था गांधीजी की स्पीच को एडिट करना। मैंने यह बात बापू की सहयोगी डॉ. सुशीला नायर को बताई कि उन्हें कहे कि एडिटिंग करने में काफी परेशानी होती है। उन दिनों एडिटिंग सिस्टम भी काफी खराब हुआ करता था। सुशीला जी सुनते ही गुस्सा हो गई कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई गांधी की बातों को एडिट करने की, मैं इसकी शिकायत सूचना और प्रसारण मंत्री सरदार पटेल से करूंगी। मैंने सोचा कि मेरी नौकरी तो जानी ही है तो मैंने बड़ी हिम्मत करके एक दिन प्रार्थना सभा से ठीक पहले अपनी परेशानी गांधीजी को बताई। गांधीजी ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा, जैसे ही 28 मिनट पूरे हो आप उंगुली उठा देना। उसके बाद साढ़े 28 मिनट पर मैं उंगली उठा दिया करता था, जैसे ही मेरी उंगली गांधीजी देखते थे, वे कहते, बस, कल बात करेंगे।"
तुगलक रोड थाना
उन दिनों यह जगह संसद मार्ग थाने के अंतर्गत आती थी, 1941 में तुगलक रोड थाना बना। जसवंत सिंह पंजाब पुलिस के अफसर थे। पंजाब पुलिस के अफसरों को दिल्ली में पांच साल प्रतिनियुक्ति पर गुजारने होते थे। वे 1952 में वापस पंजाब चले गए थे। उनकी 1964 में करनाल में मृत्यु हो गई थी।
गांधीजी की हत्या का एफआईआर
पुलिस ने गांधीजी की हत्या का एफआईआर कनाट प्लेस में एम-56 में रहने वाले नंदलाल मेहता से पूछ कर लिखा। मेहता उस वक्त वहां पर ही थे। मेहता के बारे में अधिक जानकारी जुटाने के इरादे से हम एम-56 में गए तो वहां पर किसी ने उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी। हालांकि कुछ लोगों ने बताया कि मेहता गांधीवादी थे। वे गुजराती मूल के थे। वे 1968 में अहमदाबाद चले गए थे। वहां पर ही उनकी मौत हो गई थी।
पहले भी हुआ था बापू पर हमला
यह सबको मालूम है कि 30 जनवरी,1948 से पहले भी गांधीजी पर बिड़ला हाउस में हमला हुआ था। उस दिन भी मदान वहां पर थे। जनवरी के महीने की 20 तारीख को प्रार्थना सभा हो रही थी यहां पर। सभी बैठे हुए थे। तभी एक विस्फोट हुआ। किसी को चोट तो नहीं आई लेकिन ये पता चला कि किसी ने पटाखा चलाया है। बाद में मालूम हुआ कि वो एक क्रूड देसी किस्म का बम था जिसमें नुकसान पहुंचाने की ''कपैसिटी" नहीं थी। अगले दिन अखबारों में छपा कि मदन लाल पाहवा नाम के शख्स ने पटाखा चलाया था और उसकी ये भी मंशा थी कि गांधीजी को किसी तरीके से चोट पहुंचाई जाए। उसी दिन प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा कि जिस किसी ने भी यह कोशिश की थी उसे मेरी तरफ से माफ कर दिया जाए।
- विवेक शुक्ला
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Sunday 13 December 2015

BJP की इच्छा है कि,कमलेश तिवारी को बलि का बकरा बनाए !

कमलेश तिवारी द्वारा की गई कथित प्रेषित पर प्रमाणित / पूर्व प्रकाशित पुस्तको में मुद्रित पढ़कर सुनाई टिप्पणी केवल , "आजम खान के द्वारा संघ को समलैगिक कहे जाने के विरोध में की गई थी.!" ऐसे मे प्रश्न यह है कि, "ऐसी कोई समलैंगिकता की बात या टिप्पणी जिसका कोई लिखित प्रकाशित प्रमाण संघ कार्यकर्ताओ पर आरोप नही है !" अपने आपको हिन्दू महासभाई कहनेवाले कमलेश तिवारी ने किसके कहने से टिपण्णी कर दी ? अब यह संघ की इच्छा है कि, कमलेश तिवारी को बलि का बकरा बनाए या आजम खान के उस समलैंगिकता वाले वक्तव्य का उत्तर वह दे या ना दे.! क्योकि,कमलेश सपा-भाजप के संयुक्त षड्यंत्र का शिकार हुआ है !.

माननीय अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष हुआ करते थे। महाधिवक्ता वेदप्रकाश शर्मा श्रीराम जन्मभूमि का कामकाज देखते थे उनके साथ आप भी सहाय्यक के रूप में उपस्थित हुआ करते थे ,उच्च न्यायालय ने हिन्दू महासभा की श्रीराम जन्मभूमि पर फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट की मांग का स्वीकार करते ही पहली सुनवाई पर शर्माजी को धक्का देकर पत्रकारों को गलत जानकारी देने का चित्रण वाहिनियों पर देखने को मिला इसलिए उनको २००४ हिंमस राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने राम जन्मस्थान मंदिर तथा विष्णु बाग,लखनऊ कार्यालय स्थानांतरण दस्तावेजों में पार्टी विरोधी कार्य के कारण निष्कासित किया था । उन्होंने बजरंग दल सीतापुर प्रखंड नेता कमलेश तिवारी को लखनऊ कार्यालय में चौकिदारी के बहाने भेजा था ।
२००९ उच्च न्यायालय में श्रीराम जन्मभुमी पर सन १८८५ से चल रही रामानंदीय निर्मोही आखाडे के मालिकाना अधिकार की सुनवाई और १९५० पक्षकार हिन्दू महासभा की साक्ष के पश्चात,१९४९ हिन्दू महासभा अयोध्या आंदोलन की फाईल्स जो,सन २००० में भाजपा शासनकाल में लिबरहान आयोग में साक्ष देने निकले SDO सुभाष भान साध के पास थी को तिलक ब्रिज स्थानक पर धक्का देकर मारकर गायब की गई थी इसके अभाव में, "२६ जुलाई २०१० को रामानंदीय निर्मोही आखाडे के मालिकाना अधिकार की सुनवाई डी व्ही शर्मा न्यायमुर्ती ने अनिर्णित रखी थी।
हमने मुख्यमंत्री उ प्र को PTI. द्वारा फैक्स भेजकर फाईल्स गुम होने की FIR लिखने का निवेदन कर CBI जांच की मांग की थी । तद्नुसार, मायावतीजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपरोक्त खुलासा किया था । समाचार में यह भी प्रकट हुआ है कि,साध से फाईल्स गायब करवाने में सहयोगी रहे मित्तल को बुंदेलखंड युनिवर्सिटी का उपकुलगुरू पद का इनाम दिया गया था ।
रामानंदीय निर्मोही आखाडे के मालिकाना अधिकार १४ अगस्त १९४१ फैजाबाद नझुल में भी, "तीन गुंबद मंदिर रामकोट,प्लॉट क्र ५८३ कब्जा महंत रघुनाथ दास,पुजारी रामसकल दास,रामसुभग दास निर्मोही आखाडे " के नाम हैं । बाबर का हुकुमनामा भी निर्मोही आखाड़े को दिया था वह भी हैं ।
२६ जुलाई को मालिकाना अधिकार की सुनवाई अनिर्णित रखते ही भाजपा के इशारेपर कार्यरत हिन्दू महासभा से निष्कासित अधिवक्ता ने कमलेश तिवारी को उ प्र हिन्दू महासभा अध्यक्ष के रूप में याचिकाकर्ता बनाकर प्रस्तुत किया और इस अधिकार में, राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का विवाद जो षड्यंत्र के अंतर्गत निर्माण किए गए थे का लाभ उठाया । ३० सप्तंबर को राजनीतिक षडयंत्र का २:७७ भूमि के १/३ का निर्णय आया उस दिन मिडिया ने भी भाजप नेता अधिवक्ता रवी शंकर प्रसाद को हिन्दू महासभा अधिवक्ता के रूप में प्रस्तूत किया था। हमारे कहनेपर ही रात को अनेक चैनलों ने पट्टी बंद की थी । इस बटवारे का प्रसाद (भाजप) ने स्वागत किया !  ऐसा हिन्दू महासभा की भूमिका में दिखाया गया था । वास्तव में मिडिया भाजपा और हिन्दू महासभा को जोडकर दिखाता हैं वह अज्ञानतावश हो रहा हैं!
हिन्दू महासभा राष्ट्रीय अध्यक्ष और निर्मोही आखाडा सुप्रीम कोर्ट गएं इसलिए २:७७ एकड़ १९९१ में भाजपा ने विवादित बनाई भुमी का १/३ बटवारा रूका । यह भुमी ६७:७७ एकड हैं और उसके मालिकाना अधिकार को हडपने का भाजपा सीधा षडयंत्र कर रही है । इसके लिए अपने अपने हस्तक हिन्दू महासभा में भेजकर भाजप- विहिंप समर्थक गुट राष्ट्रीय अध्यक्ष हिंमस को विवादित बनाएं रखे हैं । कमलेश तिवारी भी इसकी एक कडी हैं ।
पलोक बसु समिती १/३ बटवारे के लिए राम जन्मभूमि न्यास द्वारा तुलसी भवन,रामघाट,अयोध्या में संचालित करती थी । हर महीने के तिसरे शनिवार को सुप्रीम कोर्ट को धता बताकर निर्णय ले रहे थे, तब न भाजप विरोध में थी न भाजप द्वारा संचालित कथित हिन्दू महासभा नेता ? हमारे उ प्र हिन्दू महासभा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं के साथ विरोध करने पहुंचते रहे। समाचारों में यह प्रकाशित हैं । महंत श्री नृत्यगोपाल दास और रामविलास वेदांती महाराज को मिलकर न्यास द्वारा चलाएं जा रहे बँटवारे के षडयंत्र का विरोध किया तो,हमारे निकलते ही पत्रकारों को निमंत्रित कर अपना भी विरोध प्रकट करने को लिखने को कहनेवाले कथित संतों पर हम कैसे श्रद्धा रखे? यह भी प्रश्न उभर आता है। श्रीराम पर अपार श्रध्दा रखनेवाले वास्तविकता से अनभिज्ञ है।
प्रश्न यह है कि,कमलेश तिवारी द्वारा दिया वक्तव्य समयोचित था ? या भाजप प्रेरित समयानुकूल था ?  क्योंकि, ६ दिसंबर को हिन्दू महासभा मंदिर विध्वंसीयों को राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तारी और मंदिर पुनर्निर्माण संकल्प कार्यक्रम ले  रही थी।वह इस नौटंकी के कारन पूर्ण सफल नहीं हुआ।  में उलझ गए। भाजप कमलेश तिवारी को अखिल भारत हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए कितने ही षडयंत्र करे हिन्दू महासभा निष्ठ इसे पहचान गएं हैं ! और आगे की सोचकर ही हिन्दू महासभा राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने ६ जून २००० को ६७:७७ एकड श्रीराम जन्मस्थान मंदिर परिसर १८८५ से न्यायालय में अधिपत्य के लिए लड रहे रामानंदीय निर्मोही आखाडे को लौटाने तक लडने का प्रस्ताव पारित किया हैं ! और उसका अनुमोदन राष्ट्रीय महामंत्री सतीष मदान जी ने किया हैं । जो,सभी हिन्दू महासभा की वैधानिक प्रदेश / राष्ट्रीय कार्यकारिणीयों के लिए बंधनकारक हैं।फर्जी इकाई भी इसके विपरीत नहीं चल सकती।
भाजप ने पूर्व हिन्दू महासभाई अधिवक्ता के माध्यम से कमलेश तिवारी को आगे करके हिन्दू महासभा पर कब्जे के लिए अधिक हवा देने सपा के साथ मिलकर भाजप ने रासुका लगाकर कमलेश को विवादित, चर्चित अवश्य बनाया हों उसे बलि का बकरा नहीं बनाने देंगे ! हम हिन्दू होने के नाते कमलेश के साथ खडे भी हैं और रहेंगे ! क्योंकि,हिंदुत्व के साथ विश्वासघात की राजनीति का आरंभ गुरू गोलवलकर जी के सरसंघचालक पद हडपने के साथ आरंभ हुआ !  ऐसा इतिहास हैं ।
मात्र भाजप में हिंमत है तो,३१ जुलाई १९८६ मेट्रो पॉलिटीन कोर्ट- देहली ने,"हिन्दू महासभा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्व इंद्रसेन शर्मा की मांग पर कुराण की विवादित कही गई 24 आयत निकालने का संसद में प्रस्ताव रखकर दिखाएं ! " कमलेश तिवारी भी मुक्त हो जाएगा !
श्रीराम जन्मभुमी रामानंदीय निर्मोही आखाडे को लौटाने की १९४९ तक चली ७८ परंपरा का निर्वहन करो । श्रीराम जन्मभूमि सीव्हील सूट हड़पने का षड्यंत्र बंद करो ! इसके लिए संसद में शिलान्यास करनेवाली कॉग्रेस भी सहयोग करेगी । भाजप में वह इमानदारी नहीं है,यदि होती तो,वाजपेई जी फ़ास्ट ट्रेक की सुनवाई आरम्भ होते ही छह महीने का कार्यकाल छोड़कर संसद भंग नहीं करते ! भाजप न्यायालय में पक्षकार ही नही हैं और हिन्दू महासभा के एजंडे मंदिर आंदोलन, संविधानिक समान नागरिकता की मांग के लिए अकेले सुप्रीम कोर्ट में लड रही हिन्दू महासभा तथा डॉ मुखर्जी को नेहरू के इशारे पर बली चढाने के पश्चात धारा ३७० हटाने के हिन्दू महासभा के एजेंडे पर हिन्दुओं को गुमराह कर सत्ता, पैसा ऐंठने का किया षडयंत्र नहीं करते ! राष्ट्रहित में,कमलश तिवारी को श्यामाप्रसाद मुखर्जी के जैसा बलि का बकरा बनाने का यह षड्यंत्र रोकने का हिन्दू महासभा आवाहन करती हैं ! 

जो हिन्दू महासभा का सदस्य नहीं वह विहिप वाला कमलेश को नियुक्त किया था। न्यायालय ने भी दो बार डिसमिस किया हो वह कमलेश को नियुक्त या निष्कासित कैसे करता है देखे !