Saturday 3 March 2018

श्रीराम जन्म मंदिर ध्वंसी कह रहे है,हमने आंदोलन शुरु किया मंदिर हम बनाएंगे !

दिनांक ३ मार्च २०१८

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर औरंगजेब से मुक्त कर श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को लौटानेवाले छत्रपती शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय प्रवक्ता श्री प्रमोद पंडित जोशी ने स्पष्ट किया है कि,

" श्रीराम जन्मस्थान मंदिर का कब्जा छोडने का हुकुमनामा बाबर ने श्री पंच रामानंदिय निर्मोही आखाडे के महंत श्यामानंद को भेजा और खैरबकी 23 मार्च 1528 को मीर बाँकी ने श्यामानंद का गला काटकर मंदिर तोडा !" यह सत्य कथित हिंदू जब तक स्वीकार नही करते, कब्जे की मानसिकता रखते है तब तक विवाद बनाए रखना चाह रहे दल और मुसलमान,भाजप द्वारा राजनितिक-आर्थिक लाभ के लिए अपप्रचारीत बाबरी का आग्रह करेंगे !
*गैझेटियर ऑफ़ दी टेरिटरीज अंडर गव्हर्मेन्ट ऑफ़ ईस्ट इंडिया कं के पृष्ठ क्र ७३९-४० के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार," २३ मार्च १५२८ को श्रीराम जन्मस्थान मंदिर ध्वस्त किया और उस ही मलबे से १४ स्तम्भ चुनकर उसपर खडी की वास्तु कभी मस्जिद नहीं बन पायी क्यों की इन स्तंभोपर मुर्तिया थी।"

स्वातंत्र्यवीर सावरकर प्रेरित अखिल भारत हिन्दू महासभा आंदोलन दिनांक २३-२४ दिसंबर १९४९ को श्रीराम जन्मस्थान कलंकमुक्त हुवा और मंदिर को २६ दिसंबर १९४९ को " विवादग्रस्त वास्तु " घोषित कर संविधान की धारा १४५ के अंतर्गत सरकार ने अपने कब्जे में ले ली और श्रीराम जी की पूजा, अर्चना, भोग की सरकारी वेतन से चार पुजारियों द्वारा व्यवस्था लगा दी,मंदिर परिसर के दो सौ गज क्षेत्र में गैरहिंदू प्रवेश पर प्रतिबंध लगाकर पुजारी और एक भंडारी सरकारी वेतन पर नियुक्त कर गर्भगृह में सेवा करने जाने की अनुमति प्रदान की।मात्र दर्शन के लिए लोहे के शिकंजे से अनुमति प्रदान की।इस व्यवस्था में स्वयं प्रशासन ने कोई परिवर्तन नहीं किया।
*माननीय न्यायालय का आदेश है कि ,"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था," जैसी है वैसे " ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।"
हिन्दू महासभा के सन १९४९ आन्दोलन के बाद से लांछन रहित यह श्रीराम जन्मस्थान मंदिर न्यायालय संरक्षित है।**सन १९५० हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा गोपाल सिंग विशारद द्वारा चली 3/1950 न्यायालयीन कार्यवाही में अयोध्या परिसर के १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय, *"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए ७७ बल्वे हुए।सन १९३४ से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को सौप दिया जाये।"
हलफनामा लिखनेवाले - वली मुहमद पुत्र हस्नु मु.कटरा ; अब्दुल गनी पुत्र अल्लाबक्ष मु.बरगददिया ; अब्दुल शफुर पुत्र इदन मु.उर्दू बाजार ; अब्दुल रज्जाक पुत्र वजीर मु.राजसदन ; अब्दुल सत्तार समशेर खान मु.सय्यदबाड़ा ; शकूर पुत्र इदा मु.स्वर्गद्वार ; रमजान पुत्र जुम्मन मु.कटरा ; होसला पुत्र धिराऊ मु.मातगैंड ;महमद गनी पुत्र शरफुद्दीन मु.राजा का अस्तम्बल ; अब्दुल खलील पुत्र अब्दुरस्समद मु.टेडीबाजार ; मोहमद हुसेन पुत्र बसाऊ मु.मीरापुर डेराबीबी ; मोहमदजहां पुत्र हुसेन मु.कटरा ; लतीफ़ पुत्र अब्दुल अजीज मु.कटरा ; अजीमुल्ला पुत्र रज्जन मु.छोटी देवकाली ; मोहमद उमर पुत्र वजीर मु.नौगजी ; फिरोज पुत्र बरसाती मु.चौक फ़ैजाबाद ; नसीबदास पुत्र जहान मु.सुतहटी

सुल्तानपुर के विधायक नाजिम ने भी एक पत्रक निकालकर मंदिर हिन्दुओ को सौपकर इबादत करने की भावना प्रकट की थी।

* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की पुलिस अधिकारी अर्जुनसिंग को दी साक्ष,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके खंभों में भी मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"
पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था। इस समिती में मद्रास से आये।

*संशोधक मुहम्मद के के भी थे वह लिखते है*

,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"

न्यायालय संरक्षित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर का शिलान्यास होकर भी उसे बाबर का कलंक लगाकर छह दिसंबर १९९२ को ढहाना,संविधान के प्रथम स्वर्ण पृष्ठ पर अंकित राष्ट्र पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम अर्थात संविधान के अपमान में मंदिर विध्वंस राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है ! २३ मार्च १५२८ पूर्व से श्रीराम जन्मस्थान अधिपति रहे,सन १८८५ से मालिकाना अधिकार के लिए न्यायालय में लड़ रहे रामानंदीय निर्मोही आखाड़े ने दिनांक ६ दिसंबर १९९२ को इसकी FIR लिखवाकर मूल वादपत्र 4 A में अंतर्भाव कर दो सौ करोड़ का मंदिर विध्वंस भरपाई दावा ब्रह्मलीन महंत श्री जगन्नाथ दास महाराज ने किया है।

१९४९ अयोध्या आंदोलक/पक्षकार हिंदू महासभा का तर्क :-१४ अगस्त १९४१ नझुल रेकोर्ड फ़ैजाबाद में श्रीराम जन्मस्थान मंदिर रामकोट प्लाट क्रमांक ५८३,वर्णन- तिन गुम्बद मंदिर,कब्ज़ा-महंत श्री रघुनाथ दास,राम सकल दास,राम सुभग दास रामानंदीय निर्मोही आखाडा है। १९५० केस में १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने मंदिर मान्य किया है। तब ही से २०० गज परिसर में गैर हिन्दू प्रवेश प्रतिबंधित है। विरोधको की अभ्यर्थना निरस्त कर न्यायालय के संरक्षण में दर्शन-पुजन-भोग-उत्सव की व्यवस्था हो रही है।श्रीराम जन्मस्थान मंदिर गर्भगृह में हिंदू महासभा ने रखी मुर्तिया हटाने का आरोप कर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने याचिका लगाकर केस को पुनार्विवादित किया तब स्व श्री देवकी नंदन अग्रवाल उपाख्य रामसखा ब्रह्मलीन परमहंस महंत रामचंद्र दास महाराज ने श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाड़े के पक्ष में साक्ष दी है।इसलिए १ /३ भूमी रामसखा या रामलला विराजमान रामानंदीय निर्मोही आखाड़ा को मिलनी चाहिए।
सन १९८९ उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष तथा विहिंप को सभी वाद पीछे लेने का उच्च न्यायलय ने आदेश देकर बेदखल किया है।इसलिए सम्पूर्ण ६७;७७ से अधिक एकड़ भूमी केवल रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को ही सौपने की अपेक्षा है।
 AIMPLB पक्षकार ही नही है !२६ जुलाई २०१० को १९४९ अयोध्या आंदोलन की फाइल के अभाव में निर्मोही अखाड़े की १८८५ से चल रही स्वामित्व की सुनवाई न्यायालय ने रोकी थी। उत्तर पदेश सरकार ने शपथपत्र में फाइल्स गायब होने की बात कही। तब हमने मुख्यमंत्री मायावती को FIR करने की सूचना देकर स्पष्टीकरण माँगा तब उन्होंने प्रेस के समक्ष २००० भाजप शासनकाल में फाइल्स गायब होने की जानकारी के साथ साथ सुभाषभान साध के पास यह फाइल्स थी और वह लिबरहान आयोग में साक्ष देने जा रहे थे तब उनकी संदेहास्पद मृत्यु के साथ फाइल्स गायब हुई ! कहा। अधिक पता करने पर जानकारी मिली की इस कृत्य को परिणाम देनेवाले किसी मित्तल को भाजप शासनकाल में बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का उपकुलगुरु के रूप में इनाम दिया गया। परंतु ३० सप्तम्बर को राजनितिक उद्देश्य से अचानक १/३ निर्णय जो कुल ६७:७७ एकड़ भूमि का २:७७ एकड़ हिस्सा जो भाजप सरकार ने १९९१ में रामानंदीय निर्मोही आखाड़े के विरोध के पश्चात भी विवादित बनाकर कब्जे की हुई भूमि पर आया है। उसका निर्मोही आखाडा और सहयोगी हिन्दू महासभा ने सर्वोच्च न्यायालय में विरोध किया और ९ मई २०११ को माननीय न्यायालय ने ३० सप्तम्बर के १/३ निर्णय को निरस्त किया है।
अब शांत मस्तिष्क से निष्पक्ष होकर सोचे "मंदिर को राजनीतिक-आर्थिक षडयंत्र के लिये बाबर का कलंक लगाना आवश्यक था ?"

अपेक्षा -राम जन्मस्थान मंदिर एवं परिसर की ६७:७७ एकड़ से अधिक भूमि संत शिरोमणि तुलसीदास,समर्थ श्री रामदास,संत रविदास,बंदा बैरागी,संत ज्ञानेश्वर जी के पिताश्री विट्ठल पंत कुलकर्णी के श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को ७८ वी बार सौपने की हिन्दू परंपरा का पालन और मंदिर पुनर्निर्माण किया जाएं !
केवल व्हाट्स एप 9702340379 नाम-ग्राम के साथ हो !