Thursday 21 April 2016

धर्मवीर डॉक्टर बा.शि.मुंजे रा.स्व.संघ प्रवर्तक !


धर्मवीर डॉक्टर बा.शि.मुंजे एक आदर्श टिळक भक्त,हिन्दुराष्ट्र के कर्णधार जो उपेक्षा का जीवन व्यतितकर श्रेयहीन मृत्यु का स्वीकार करनेवाले महान तपस्वी, त्यागी हिन्दू महासभा नेता और रा.स्व.संघ प्रवर्तक नेता जिन्हे हिन्दू महासभा के अतिरिक्त अन्यत्र कोई सन्मान नहीं। 

१२ दिसंबर १८७२ बिलासपुर में जन्मे बालकृष्ण शिवराम मुंजे रायपुर,नागपुर में प्रार्थमिक शिक्षा के पश्चात् मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर बने और मुंबई महापालिका के स्वास्थ्य विभाग में नौकरी कर रहे थे। १८९८ में उनकी लोकमान्य टिळक के साथ प्रथम भेट हुई और राजनीतिक क्रांति के बीज का अंकुर निकला। १८९९ में मुंजे अफ्रीका में चल रहे बोअर वॉर के चिकित्सा दल में ब्रिटिश सरकार द्वारा चुनकर भेजे गए एकमात्र भारतीय डॉक्टर थे। यहाँ उनकी बैरिस्टर गांधी की भेट हुई तथा वर्ण संघर्ष का युध्द भूमि पर अनुभव किया। अफ्रीका से लौटकर पिता से मिलकर नागपुर के महल में नेत्र चिकित्सालय खोला,"नेत्र चिकित्सा" संस्कृत ग्रंथ लिखा।

सन १९०४ मुंबई में कांग्रेस अधिवेशन में पहुंचे डॉक्टर मुंजे ने सामाजिक सुधार पर एक लेख लिखा और लोकमान्य जी को दिखाकर प्रकाशित किया। १९०५ नागपुर कांग्रेस अधिवेशन के तत्काल पश्चात् बनारस में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में डॉ.मुंजे के समर्थन पर टिळक जी ने स्वदेशी का आव्हान किया और लोकमान्य तिलक ने पुणे के लकड़ी पुल के पास विदेशी वस्तुओं की होली का आयोजन कर युवा वीर सावरकर के हाथों उस होली का दहन किया था। 

कोलकाता अधिवेशन के पश्चात् हुए सुरत अधिवेशन में तिलकजी का साथ देकर जहाल मत का प्रदर्शन का कांग्रेस अधिवेशन को चौपट कर दिया था। लोकमान्य के कारावास के कारन वह हिन्दू महासभा के स्वामी श्रध्दानंद जी द्वारा चलाएं जा रहे शुध्दिकरण कार्य के समर्थन में खड़े रहे। मोपला कांड के प्रतिरोध में उन्होंने बीस दिन मालाबार-केरल में स्वामी श्रध्दानंद जी के साथ रहकर जो कार्य किया उसके लिए हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे श्री शंकराचार्य कुर्तकोटि जी ने नागपुर के "विश्व हिन्दू धर्म संमेलन" में "धर्मवीर" उपाधी से सन्मानित किया।लखनऊ पैक्ट के विरोध में तिलक विरोध में खड़े हुए। लोकमान्य तिलक के स्वर्गारोहण के पश्चात् कांग्रेस उत्तराधिकारी बनने के लिए अरविंद घोष का पांडुचेरी साथ छोड़ प्रयास किया। परंतु,ब्रिटिश सरकार हस्तक मोतीलाल नेहरू ने सी.आर.दास के द्वारा गांधी को कालकोठी या हत्या का भय दिखाकर ब्रिटिश सरकार विरोधी गांधी की हिन्दू महासभा पोषक नीति से तोड़कर अपने तबेले में बांध दिया था। गांधी के समर्थन पर मोतीलाल अमृतसर अधिवेशन में तिलक विरुध्द नेतृत्व कब्जाने में सफल हुए थे। डॉक्टर धर्मवीर मुंजे कांग्रेस का नेतृत्व करते तो,अखंड भारत के मानचित्र में वृध्दी होती। 

१९२३ स्वराज पक्ष से नागपुर चुनाव लडकर लेजिस्लेटिव्ह कौंसिल में डॉक्टर मुंजे जी ने पदार्पण किया था। अंदमान के कालकोठी से छूटे ग़दर क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकर (बाबाराव) ने क्षयरोग से ग्रस्त होते हुए भी नागपुर जाकर धर्मवीर मुंजेजी से भेट की और वि दा सावरकर की मुक्ती के लिए समर्थन मांगा इस क्रिया कलाप में नेहरू-गांधी के असहयोग से निराश होकर लौटे। अकोला में गणेश विसर्जन की मस्जिद के सामने से सवाद्य शोभायात्रा का विरोध तोडने हिन्दू महासभा के नेता मामासाहेब जोगळेकर के प्रयास को सबल करने हेतू "तरुण हिन्दू सभा" का गठन करने की प्रेरणा दी। अंडमान की कालकोठी से लौटकर लाहोर में १९२२ में "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" की स्थापना करनेवाले भाई परमानंद छिब्बर को १९२३ बनारस हिन्दू महासभा अधिवेशन में समाविष्ट कर संगठन को और बल दिया।  

नागपुर में न.ता.कुंटे द्वारा प्रातः-संध्या समय में युवकों को लाठी-तलवार चलाने की शिक्षा दी जा रही थी। सन १९२४ गणेश विसर्जन शोभायात्रा पर मस्जिद से पथराव हुआ तब धर्मवीर मुंजे जी के मानसपुत्र-स्वातंत्र्य साप्ताहिक के संपादक-डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवारजी के नेतृत्व में छत्रपती रघुजी भोसले,परेल-मुंबई हिन्दू महासभा कार्यालय में कार्यरत प्रधान जी ने किये प्रतिकार की प्रशंसा बाबाराव ने भी की।धर्मवीर मुंजे जी ने हेडगेवार जी को वीर सावरकर जो शिरगाव-रत्नागिरी में स्थानबध्द रहते प्लेग के प्रादुर्भाव से बचने दामले जी के घर में रह रहे सावरकर जी से मिलने भेजा और आते ही बाबाराव द्वारा लिखे हरदास शास्त्री द्वारा शुध्द किए ध्वज वंदना और मातृ वंदना के साथ भगवा ध्वज स्वीकारकर हिन्दू महासभा को पूरक युवक संगठन के रूप में सन १९२५ के दशहरा को मोहिते वाड़ा-नागपुर में हिन्दू स्वयंसेवक संघ,तरुण हिन्दू सभा,गढ़ मुक्तेश्वर दल के स्वयंसेवक मिलाकर रास्व संघ की पहली शाखा लगी।मात्र अभ्यंकर जी के साथ पक्षांतर्गत विवाद में उन्हें स्वराज पक्ष छोड़ना पड़ा और वह पूर्ण कालिक हिन्दू महासभाई बने। इस समय हिन्दू महासभा केवल राष्ट्रीय हिन्दू जागरण में लिप्त स्वराज पक्ष के जैसे कांग्रेस की सदस्यता के साथ संगठनात्मक अंग था। हेडगेवारजी भी इस ही प्रकार हिन्दू महासभाई होते हुए भी कांग्रेस के सदस्य थे।बेलगांव में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी बैठक के पश्चात उस ही मंच पर १९२५ दिसंबर में हिन्दू महासभा की बैठक हुई और गांधी-नेहरू के विरोध में भाई परमानंद जी ने राजनीती का हिन्दू करण करने के लिए हिन्दू महासभा को कांग्रेस की राजनीतिक गुलामी से मुक्त होने का प्रस्ताव दिया। अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने इसका समर्थन नहीं किया। 

रोम,लंदन,जर्मनी,स्पेन,अफ्रीका होकर आएं मुंजे जी सैनिकी प्रशाला बनाने के इच्छुक थे। सरदार पटेल के भाई विट्ठलभाई जो अंतिम काल में अपनी संपत्ती नेताजी सुभाष को देना चाहते थे वह विट्ठलभाई डॉक्टर मुंजे को जनरल कहते थे। "मिलिटराइज इण्डिया" के लिए उन्होंने ब्रिटिश सरसेनापती को समझाकर अनुकूल करने के लिए बहोत परिश्रम किए। जब फायरिंग क्लब को मान्यता मिली तब उन्हें "फिल्ड मार्शल" कहा जाने लगा। कोलकाता में सरकार द्वारा मिल रही भूमि छोड़ वह रामभूमि-नासिक आए। यहां उन्होंने १९३५ में "सेन्ट्रल हिन्दू मिलिट्री एज्युकेशन सोसायटी" की स्थापना की। द्वितीय विश्व युध्द के नभ छाए थे उसका लाभ उठाकर सन १९३७ की श्रीराम नवमी को "भोंसला मिलिट्री स्कुल" की शिला रखी।

महामानव बाबासाहेब आंबेडकर की येवला धर्मांतरण की घोषणा रोकने के लिए शेठ बिड़लाजी के साथ जाकर मिले।सैनिकीकरण की दिशा में चल रहे मस्तिष्क ने उन्हें सिक्ख पंथ का स्वीकार करने का मार्गदर्शन किया। मात्र आंबेडकरजी ने उपेक्षित समाज के हाथ में कृपाण आते ही वह सामाजिक उपेक्षा का प्रतिशोध लेगा या गांधी की 1939 गोलमेज परिषद में खलिस्तान निर्माण को बल मिलेगा कहकर नकारा था।
वीर सावरकर अनिर्बन्ध मुक्त हुए तो,उन्हें हिन्दू महासभा में लाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद दिलवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।तब भी आंबेडकरजी ने ११ मई १९३७ दैनिक जनता में सावरकर अनिर्बंध मुक्ती पर स्वागत करनेवाला लेख लिखा। भाई परमानंदजी ने सन १९३७ में गांधी-पटेल से वर्धा में मिलकर अखंड भारत के लिए १९३५ संविधान की संघराज्य आख्या को समर्थन मांगा। कांग्रेस ने जब अक्टूबर १९३७ मुस्लिम लीग अधिवेशन में पारित संघराज्य विरोधी प्रस्ताव के समर्थन में अखंड भारत के लिए १९३५ संविधान की संघराज्य आख्या का मौन रहकर समर्थन किया तब वीर सावरकरजी ने २७ दिसंबर १९३७ कर्णावती (अहमदाबाद) अखिल भारत हिन्दू महासभा का अध्यक्ष पद भाई परमानंदजी से स्वीकारकर जो भाषण दिया उसमें ,"भारत में दो विरोधी राष्ट्र साथ साथ रह रहे है !" कहा था।
हिन्दू महासभा का संगठनात्मक विस्तार रास्व संघ के विस्तार पर निर्भर था। सन १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा अधिवेशन में सावरकर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर निर्विरोध चुने गए। डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तो,घटाटे राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बने मात्र,गोलवलकर गुरूजी महामंत्री पद का चुनाव हार गए तो,सावरकरजी पर हार का ठीकरा फोड़कर हिन्दू महासभा त्याग दी। हेडगेवारजी ने उन्हें मनाकर सरकार्यवाह पिंगले के साथ संघ कार्य में लगा दिया था। दूरद्रष्टा धर्मवीर मुंजेजी ने हेडगेवार को संघ का हिन्दू महासभा में विलय कर "हिन्दू मिलेशिया" स्थापन करने का सुझाव दिया था। बाबाराव भी इस प्रस्ताव के विरोध में गोलवलकर षड्यंत्र में फंस गए। और अत्यंत दुर्भाग्यवश हेडगेवार निधन के साथ गोलवलकर का पिंगले जी को सरसंघ चालक बनने से रोककर संघ नेतृत्व कब्जाकर हिन्दू महासभा विरोध में, नेहरू के समर्थन में खड़ा रहना धर्मवीर मुंजे पर मर्माघात सिध्द हुआ।विभाजन में प्रत्यक्ष दोषी के विचारवाहक जब सावरकरजी के १९३७ के भाषण को द्विराष्ट्रवादी कह रहे थे तब बाबाराव भी गोलवलकर गुरूजी के सम्मोहन में थे।    
सभी से नाराज होकर धर्मवीर मुंजे "भोंसला मिलिट्री स्कुल" के प्रांगण में एक झुग्गी में रहते थे। घुड़सवारी उनका शौक था। ४ मार्च १९४८ को घोड़े से गिरकर उनका देहावसान हुआ। इस उपेक्षित धर्मवीर को संघ स्वयंसेवक-हिन्दू महासभा के साथ साथ हिंदुत्ववादीयों को सतत स्मरण करना चाहिए ! 

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