Wednesday 27 July 2016

हाशिम असारी की मृत्यु पश्चात् उनका लडका प्यादा ?

Press Note :- 27 /07 /2016 

श्री अयोध्यापुरी का मुख्य परिचय प्रभु श्रीराम जी के जन्मस्थल के रूप में ही विश्वभर में प्रसिध्द है ! चारधाम में से एक इस पवित्रस्थल पर देश-विदेश के यात्री यहाँ श्रीराम जन्मस्थान दर्शन के लिए आते है और उन यात्रियों के आगमन पर ही यहाँ के स्थानीय उद्योग,व्यवसाय,बाजार में मुद्रा आकर अनेक निवासियों का उदरभरण हो रहा है।कल्पना ही नहीं की जा सकती की यहाँ मंदिर न होता तो ? यदि यहाँ सांप्रदायिक सौहार्द के नाम पर श्रीराम जन्मस्थान को लेकर कोई राजनितिक सौदा हुवा तो,सांप्रदायिक अशांति तो फैलेगी ही यात्रियों का आना   भी बंद हो जायेगा।
पक्षकार हाशिम अंसारी की मृत्यु पश्चात् संत मंडली रोने की बात सामने आई थीं। उनकी भर्त्सना करते हुए,पक्षकार हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता प्रमोद पंडित जोशी ने तर्क दिया है कि,"१९४९ हिन्दू महासभा आंदोलन पश्चात् सत्रह राष्ट्रीय मुसलमानो ने न्यायालय में हलफनामा देकर मंदिर का स्विकार किया था।
अयोध्या परिसर के 17 राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय, *"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए 77 बल्वे हुए।सन 1934 से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को दिया जाये।"* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की अर्जुनसिंग को दी साक्ष*,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके स्तंभों में मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"
सुलतानपुर के विधायक नाजिम ने कुरान को समझने वालों के नाम पत्रक निकालकर मंदिर लौटाने का विवरण दिया था।हाशिम अंसारी नही चाहते थे राजनीति हो और स्वयं राजनीति के शिकार होते रहे।क्यों नही सत्रह मुसलमानों के साथ गये यह प्रश्न है। हाशिम की म्रृत्यु के साथ जिनकी दुकाने बंद हुई वह बिलख बिलख कर रोएं,इनका राम जन्मभुमी से श्रद्धाभाव के अतिरिक्त स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं है ।

माननीय न्यायालय का आदेश है की ,*"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था जैसी है* वैसे ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।*"
* पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था।इस समिती में मद्रास से आये *संशोधक मुहम्मद के के भी थे वह लिखते है*,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"
गैझेटियर ऑफ़ दी टेरिटरीज अंडर गव्हर्मेन्ट ऑफ़ ईस्ट इंडिया कं के पृष्ठ क्र 739-40 के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार 23 मार्च 1528 को श्रीराम जन्मस्थान मंदिर ध्वस्त किया और उस ही मलबे से 14 स्तम्भ चुनकर उसपर खडी की वास्तु कभी मस्जिद नहीं बन पायी क्यों की इन स्तम्भोपर मुर्तिया थी।
न्यायालय के संरक्षण में पूजा-दर्शन हो रहे न्यायालय के आदेश से ताला खुले शिलान्यासित मंदिर को भाजप ने,हिन्दू महासभा सांसद स्वर्गीय बिशनचंद सेठ की सूचना का अनादर कर राजनितिक और आर्थिक लाभ के लिए बाबर का कलंक लगाया और 6 दिसंबर 1992 को मंदिर ही ध्वस्त किया ! ऐसी शिकायत भी निर्मोही अखाड़े ने कोर्टके मूलवाद पत्र 4 ए में की है।
* हिन्दू महासभा और निर्मोही आखाड़े का पक्ष सुनकर उ. न्या. के लखनऊ खंडपीठ के विशेष पूर्ण पीठ ने 1949 हिन्दू महासभा आन्दोलन से जुडी पत्रावलिया प्रस्तुत न करने पर उ. प्र. अपर महाधिवक्ता को मूल रेकोर्ड प्रस्तुत करने को कहकर 14 जुलाई 2010 को सुनवाई निश्चित की थी। लिबरहान रिपोर्ट जमात ए उलेमा ए हिन्द के कार्यक्रम में गृहमंत्री को की गयी मांग के अनुसार प्रधानमंत्री को प्रस्तुत करते ही फ़ाइल गायब होने वार्ता प्रकट हुई 14 जून 2010 को हिन्दू महासभा ने उ.प्र. मुख्यमंत्री को सी.बी.आई. जाँच की मांग कर एफ.आई.आर. के लिए सूचित किया।10 जुलाई को ए. के. सिंग ने हजरत गंज थाने में ऍफ़.आई.आर. लिखी। उ.प्र. सरकार ने 4 जुलाई 2010 को गृह सचिव जाविद अहमद की आख्या पर शपथ पत्र प्रस्तुत कर कहा की," 23 पत्रावलिया उपलब्ध नहीं है।विशेषाधिकारी सुभाष भान साध के पास यह फाइल थी।लिबरहान आयोग में जाते समय उनका एक्सीडेंट हुवा और मृत्यु के साथ फ़ाइल गायब हुई। "मायावती ने गायब फाइल्स की जाँच सी.बी.आई. से करवाने की संस्तुति करते हुए यह फ़ाइल भाजप शासनकाल 2000 में गायब होने की आशंका व्यक्त की थी। 26 जुलाई 2010 को माननीय न्यायालय ने इस विवाद को अनिर्णीत रखा है। ऐसी स्थिति में 30 सप्तम्बर 2010 को न्यायालय ने शर्मा जी निवृत्त होने कारन देकर 1/3 राजनितिक निर्णय थोपते समय 1989 को उ.न्या.ने लताड़े पक्षों को 1/3 हिस्सा दिया।रामसखा बनकर देवकी नंदन अग्रवाल ने जो रामलला विराजमान 1/3 प्राप्त किया उस स्थानपर 1961-62 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिन्दू महासभा पर मुर्तिया रखने का आरोप लगाकर जो याचिका प्रस्तुत की थी वह स्थान निर्मोही आखाड़े का होने की साक्ष ओ.पी.डब्ल्यू.न.1 श्री रामचंद्रदास महाराज वक्तव्य पृष्ठ क्र.55 पर तथा ओ.पी. डब्ल्यू. न 2 देवकी नंदन अग्रवाल उपाख्य रामसखा की साक्ष पृष्ठ क्र 142 पर," 26 दिसंबर 1949 को कुर्की पूर्व और पश्चात् निर्मोही आखाड़े का अधिकार मान्य करते है।"

20 जून 2011 को सर्वराह्कार महंत श्री भाष्कर दास महाराज,उपसरपंच श्री दिनेंद्र्दास महाराज निर्मोही आखाडा और हिन्दू महासभा की ओर से प्रमोद पंडित जोशी-राजन बाबा अयोध्या ने गायब फ़ाइल की रिकव्हरी के लिए सी.बी.आई.जाँच के लिए मांग करते हुए संयुक्त पत्र हनुमान गढी नाका फ़ैजाबाद से प्रकाशित कर मुख्यमंत्री-राज्यपाल महोदय को भेजा था।पता चला है की,सुभाष भान साध को प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी.के.मित्तल, मूल प्रति लिबरहान आयोग देहली में लाते समय फोटोकॉपी बनाकर रखने की सलाह देते थे।गृह सचिव महेश गुप्ता को पता नहीं की कहा से दस्तावेज गायब हुए। साध के पिता बीर भान साध के अनुसार यह हत्या है।उनके अधिवक्ता रणधीर जैन ने दो बार याचिका लगायी परन्तु राजनितिक षड्यंत्र के अंतर्गत इस की जांच नहीं हुई और फ़ाइल न मिलने पर कोई गंभीर नहीं दिखा।मात्र मित्तल को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का व्हाईस चांसलर बनाया गया है।इस हत्या के साथ 1949 हिन्दू महासभा के योगदान तथा न्यायालयीन पक्ष को दबाने का संयुक्त राजनितिक प्रयास हुवा है इतना पक्का।
       इसलिए बाबरी पर चले राजनितिक अभियोग को बंद कर मंदिर विध्वंस की न्यायालयीन प्रक्रिया आरम्भ करने की मांग हिन्दू महासभा करती है।


सिहंस्थ कुंभ में रामानंदीय साधु-संतों ने श्रीराम जन्मभुमी मंदिर-परिसर श्री पंच रामानंदिय निर्मोही आखाडे की है।यह कहकर मोदी सरकार का हस्तक्षेप नकारा था।अयोध्या में राम मंदिर बनने की तारिख घोषणा कर दी है । उन्होंने ऐलान किया है कि 77 एकड़ की जमीन पर राम मंदिर के निर्माण का कार्य इस साल 9 नवंबर से चार सिंहद्वार के साथ शुरू हो जाएगा ।
भाजप ने भी न्यायालय संरक्षित,शिलान्यासित मंदिर को बाबरी कहकर हाशिम अंसारी को पुनर्जिवीत किया था।उसने कहा है कि मस्जिद को तो तोड़ ही दिया गया है, लेकिन अगर मंदिर बनाने की कोशिश हुई तो मंदिर तो बना लोगे लेकिन मुल्क तबाह और बर्बाद हो जाएगा ।यह कहना सांप्रदायिक उन्माद को उकसानेवाला क्यों नहीं कहा गया,प्रश्न शेष। 
संदर्भ-http://i2.wp.com/lokbharat.com/wp-content/uploads/2016/04/hashimansari.jpg?w=700

हाशिम असारी की मृत्यु पश्चात् उनका लडका व्यापारी संतों और सुन्नी वक्फ बोर्ड का प्यादा बनकर रहेगा।संदर्भ-इस्लामी दुनिया दिनांक 20 जुलाई 2016
प्रमोद पंडित जोशी , वरिष्ठ नेता हिन्दू महासभा (श्रीराम जन्मभूमि समन्वयक )

Tuesday 19 July 2016

१९४२ में गोडसेजी का पत्र सावरकरजी को

संघ के खिलाफ टिप्पणी पर राहुल गांधी को समन
एजेंसीशुक्रवार, 11 जुलाई 2014
मुंबई Updated @ 8:41 PM IST

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को संघ के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने के मामले में महाराष्ट्र के भिवंडी की एक अदालत ने शुक्रवार को समन जारी किया है।
"महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा था कि जिन्होंने गांधी को मारा आज वही गांधीवाद की बात करते हैं। राहुल का इशारा संघ की ओर था।" इस मामले में अदालत ने ७ अक्तूबर को सुनवाई के दौरान राहुल को पेश होने को कहा है। रैली में संबोधन के बाद ही संघ ने कांग्रेस उपाध्यक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी।३० मार्च २०१५ भिवंडी में राहुल अनुपस्थित।
 S.C. on 19/07/2016
इस संदर्भ में हिन्दू महासभा की ओर से विश्लेषण

अखिल भारत हिन्दू महासभा वरिष्ठ नेता,राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मवीर डॉक्टर बा शि मुंजे जी के हिन्दू महासभा अधिवेशन पटना प्रस्ताव के साथ सन १९२२ भाई परमानंदजी द्वारा लाहोर में स्थापित हिन्दू स्वयंसेवक संघ,तरुण हिन्दू सभा संस्थापक गणेश दामोदर सावरकर उपाख्य बाबाराव,गढ़ मुक्तेश्वर दल संस्थापक संत श्री पाँचलेगांवकर महाराज के सामायिकीकरण के साथ मुंजेजी के मानसपुत्र डॉक्टर ; स्वातंत्र्य साप्ताहिक संपादक हेडगेवारजी के शिरगांव-रत्नागिरी में स्थानबध्द वीर सावरकरजी से मंत्रणा कर लौटने के पश्चात उनके नेतृत्व को संघचालक के जिम्मेदारी के साथ हिन्दू महासभा की पूरक गैर राजनीतिक,हिन्दू संरक्षक संस्था विजयादशमी सन १९२५ को मोहिते बाड़ा, नागपुर में स्थापित हुई।क्रांतिकारी बाबाराव सावरकरजी के प्रस्ताव पर विदेश में "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" और भारत में "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" नामकरण हुआ तथा बाबारावजी ने लिखी मातृवंदना संघ तथा ध्वज वंदना महासभा ने स्वीकार की है।अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रा रामसिंगजी ने संघ की प्रथम शाखा देहली में,हिन्दू महासभा भवन में लगाई थी। फिर नागपुर से भेजे गए देहली संघ प्रचारक बसंतराव ओक दो वर्ष हिन्दू महासभा भवन में संघ की शाखा लगाया करते थे। {हिंदुत्व की यात्रा-ले गुरुदत्त}
संघ और महासभा परस्पर पूरक थे। {मासिक जनज्ञान दिसंबर १९९८ ले शिवकुमार मिश्र} संघ के विस्तार को ध्यान में रखकर हिन्दू महासभा के संगठनात्मक विस्तार को अनुलक्षित किया गया। इसलिए संघ का महासभा में विलय करके महासभा को सशक्त करते हुए डॉक्टर हेडगेवारजी के नेतृत्व में ही "हिन्दू मिलिशिया" का संगठन खड़ा करने का प्रयास संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने सन १९३९ किया था। {धर्मवीर मुंजे जन्म शताब्दी विशेषांक ले वा कृ दाणी} हेडगेवारजी की असहमती के कारन आगे उनकी असमय मृत्यु के पश्चात हिन्दू संगठन तथा हिन्दू राजनीती-अखंड भारत के लिए हानिकारक सिध्द हुई।
सन १९३८ नागपुर अधिवेशन में वीर सावरकर दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए तब सर संघचालक हेडगेवारजी मध्य भारत हिन्दू महासभा उपाध्यक्ष थे। उनके आयोजन पर नागपुर में वीर सावरकरजी को सशस्त्र संघ स्वयंसेवको ने प्रदर्शन के साथ मानवंदना दी। इस शोभायात्रा में हाथी पर बैठकर बालासाहेब देवरसजी ने शक्कर बांटी। ३०/३१ दिसंबर १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा अधिवेशन के लिए वीर सावरकर तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए।इस अधिवेशन में पदाधिकारियों के भी चुनाव हुए। डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पदपर तो,संघ के वरिष्ठ अधिकारी एम एम घटाटेजी राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य चुने गए। हिन्दू महासभा भवन कार्यालय मंत्री स्व मा स गोलवलकरजी महामंत्री पद का चुनाव हार गए और इस हार का ठीकरा वीर सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा से पृथक हुए।राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेडगेवारजी ने उन्हें क्रोध शांत करने संघ कार्यवाहक स्व पिंगलेजी के साथ सहयोग  लिए भेजा। दुर्भाग्यवश २१ जून १९४० को अकाल समय हेडगेवारजी का निधन हुआ। पिंगलेजी को सरसंघ चालक की जिम्मेदारी संभालनी थी। गोलवलकरजी उस स्थान पर विराजे। हिन्दू महासभा और संघ में सावरकरजी के विरोध के लिए दूरिया बढ़ी। {हिन्दू सभा वार्ता २२ फरवरी १९८८ लेखक अधिवक्ता भगवानशरण अवस्थी}
गोलवलकरजी के निकटवर्ती स्वयंसेवक,पत्रकार,लेखक गंगाधर इन्दूरकरजी ने "रा स्व संघ-अतीत और वर्तमान" पुस्तक लिखी है। वह लिखते है,"वीर सावरकरजी की सैनिकीकरण की योजना के विरोध का कारन,यह भी हो सकता है कि,उन दिनों भारतभर में और खासकर महाराष्ट्र में वीर सावरकरजी के विचारों की जबरदस्त छाप थी। उनके व्यक्तित्व और वाणी का जादू युवकोंपर चल रहा था। युवक वर्ग उनसे बहुत आकर्षित हो रहा था ऐसे में,गोलवलकरजी को लगा हो सकता है कि,यह प्रभाव इसप्रकार बढ़ता गया तो,युवकों पर संघ की छाप कम हो जाएंगी। संभवतः इसलिए हिन्दू महासभा और सावरकरजी से असहयोग की नीति अपनाई हों।" इस विषयपर इन्दूरकरजी ने संघ के वरिष्ठ अधिकारी अप्पा पेंडसे से हुई वार्तालाप का उल्लेख करते हुए लिखा है कि,"ऐसा करके गोलवलकरजी ने युवकोंपर सावरकरजी की छाप पड़ने से तो,बचा लिया। पर ऐसा करके गोलवलकरजी ने संघ को अपने उद्देश्य से दूर कर दिया।"
गोलवलकर-सावरकर परस्पर विरोध - इस कारणवश संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने १७ मार्च १९४० को नागपुर में जगन्नाथप्रसाद वर्मा के संचालन में "रामसेना" का गठन किया गया और हिन्दू महासभा-सावरकर समर्थक युवकों को इसमें समाविष्ट किया। बंगाल में "हिन्दू रक्षा दल" गठित करने में सावरकर भक्त डॉक्टर मुखर्जी ने सहयोग किया। गोलवलकर जी के असहकार के कारन सावरकर जन्म दिन के उपलक्ष में अमरवीर पंडित नथुराम गोडसेजी ने सावरकर निष्ठ हिंदुओं का संमेलन पुणे में १० मई से २८ मई १९४२ संपन्न,कार्यवाहक थे क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत गोगटे {हॉटसन की गोली मारकर हत्या करनेवाले} थे।सावरकरजी की उपस्थिती में शिवराम विष्णु मोडकजी को "हिन्दुराष्ट्र दल" का चालक घोषित किया गया। ( इसप्रकार गोडसेजी संघ कार्यकर्ता नहीं थे ! यह कहने का अवसर संघ नेताओं को प्राप्त हुआ।) शेष रामसेना हिन्दुराष्ट्र दल में विलीन हुई और ग्वालियर के डॉक्टर दत्तात्रय सदाशिव परचुरेजी ने मध्यप्रांत में "हिन्दुराष्ट्र सेना" बनाकर मध्यप्रांत में हिन्दू महासभा को सशक्त राजनीतिक विकल्प के रूप में खड़ा किया था। {महाराष्ट्र हिन्दू महासभा का इतिहास लेखक मामाराव दाते}
रही बात गांधी वध की ! नेहरू-पटेल-मोरारजी देसाई-कमिश्नर नागरवाला को वध के प्रयास की जानकारी पहले से थी।मात्र उन्होंने रोकने के कोई प्रयास नहीं किये। क्योकि,
गांधी ने पटना में कांग्रेस विसर्जन की मांग करके नेहरू का रोष ओढ़ लिया था। वधकर्ता भले ही गोडसे हिन्दू महासभाई थे खंडित भारत में नेहरू को अनशन से मनवानेवाला,प्रधानमंत्री पदपर आरूढ़ करनेवाले से अब कोई लाभ की स्थिती प्राप्त करने का नेहरु का प्रयोजन शेष नहीं बचा था। इसलिए जानकारी रहते हुए भी गांधी को बलि का बकरा बनाया। गांधी, मोतीलाल नेहरू के पिट्ठू सी आर दास के दबाव में मार्च १९२० में आकर हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य मालवीयजी का साथ छोड़कर नेहरू के गुलाम न बनते तो,
न उनका वध होता न गोलवलकरजी की राजनितिक सहायता के बिना १९४६ के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलता न अखण्ड भारत मिश्र सरकार के प्रधानमंत्री नेहरू विभाजन करार पर हस्ताक्षर करके खंडित भारत का प्रधानमंत्री बन सकता था।