Thursday, 21 April 2016

खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा !

 अखंड भारत को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधान का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया। उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.तिलक स्मृतीदिन के पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।

          वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है !" ऐसा कहा। ८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल (ब्रिटिश) सदस्य बनाये गए ,इस सायमन कमिशन ने "जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स" बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी।

१९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई।इस 'नेहरू रिपोर्ट' ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडने आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य का निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने इस बैठक में संपूर्ण स्वाधीनता की मांग रखकर गांधी की ब्रिटीश वसाहती राज्य की मांग का विरोध किया। इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने ब्रिटीश वसाहती राज्य का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश रानी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की "चोगम परिषद" बनी जो आज भी होती है।
        गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड (सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर पार्लियामेंट में विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला। हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत सामाजिक विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१ अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा। 
                   
      स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर भारत को वसाहत राज्य देने की घोषणा की। तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की। सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा। मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया। ( विभाजानोत्तर आश्रयार्थि मुस्लिमों का विरोध आज भी जारी है।) २० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की योजना प्रकट हुई।७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर "धर्मचक्र" या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' ऐसी मांग की। डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला।इसलिए पुणे मे बनाया पारित मसौदा आंबेडकरजी ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें भगवा ध्वज देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.जी ने भी आश्वासन दिया था।परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई सूनने तयार नही था।                                                    
जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी। फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की ! उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ ब्रिटिश संविधान के आधार पर स्थापित हुई। उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये, डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४-राष्ट्रीयता में विषमता का समापन करनेवाले समान नागरिकता का सूत्रपात किया,हिन्दू कोड बिल बनाया।विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये। राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकरजी के विरोध मे रबरस्टेम्प पदाधिकारी बनाया गया।संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये,२४७३ पर बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को भारत एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया। इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा."५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे ? इसका कोई पता नही। और क्या इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी जिम्मेदार कहोंगे ?आम्बेडकरजी के अनुयायी विषय को जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान समीक्षा समिती के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ? नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्तलिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता, बंधुत्व और नागरी सुरक्षा नही,महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है ! 

No comments:

Post a Comment