Sunday 25 February 2018

राम जन्मभूमी कलंक मुक्ति १९४९ आन्दोलन प्रेरक सावरकरजी


दिनांक २४ दिसंबर १९४९ कोलकाता में अखिल भारत हिन्दू महासभा का अधिवेशन डॉक्टर ना.भा.खरे जी की अध्यक्षता में होने जा रहा था। इस अधिवेशन में हिन्दू महासभा के महान नेता वीर सावरकर जी उपस्थित रहे इसलिए उनकी इच्छा के अनुसार निर्देश में सक्रियता लाने के लिए दिनांक ९-१० दिसंबर १९४९ को हिन्दू महासभा भवन, मंदिर मार्ग,नई देहली केंद्रीय कार्यालय में एक बैठक हुई थी। उ.प्र.हिन्दू महासभा अध्यक्ष सावरकरनिष्ठ महंत श्री दिग्विजयनाथ जी गोरक्षपीठ पर "श्रीराम जन्मभूमि कलंकमुक्ति आन्दोलन" की जिम्मेदारी सौपी गयी थी और हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठाकुर गोपालसिंग विशारद,कमिश्नर के के के नय्यर तथा हिन्दू महासभाई निर्मोही आखाडा महंतश्री तथा उनके समर्थक सुदर्शनदास पहाडी,राम बिलास दास,राम सकल दास,बलदेव दास,रामचरण दास तथा अभिराम दास,बृन्दावन दास,गुदड़ बाबा,राम सुभग दास संत-महंतो ने मिलकर किये कलंकमुक्त आंदोलन में उस ही दिन सफलता मिली और मंदिर में घंटानाद भी हुवा।इस घटना में हिन्दू महासभा के नगर पार्षद तथा दिगंबर आखाडा महंतश्री परमहंस रामचंद्र दासजी महाराज का रामानंदीय निर्मोही आखाडा सहयोग में महत्वपुर्ण योगदान रहा।
कोलकाता अधिवेशन के लिए वीर सावरकरजी निकले तब उनके साथ श्री.रा.स.भट जी थे। लोहमार्ग यान (ट्रेन) में हुई वार्ता में वीर सावरकरजी ने, 'अधिकतर लोगो को ऐसा असत्य विश्वास है की,मै हिन्दू महासभा के कामकाज से निवृत्त हो जाऊंगा। मेरे नेतृत्व पर विश्वास रखनेवाले हिन्दू सभाईयोंको मै आश्वासन देता हूँ की,इस कार्य में मै फंस भी जाऊ तो भी आप यह कार्य न छोड़े ! पहले से अधिक लोग हिन्दू महासभा की ओर आकर्षित होंगे। 'इस वक्तव्य से स्पष्ट होता है की,राम जन्मभूमी कलंक मुक्ति १९४९ आन्दोलन एक राजनितिक लाभ और हिंदुत्व का शंखनाद करने की उनकी ही योजना थी।
मुंबई से कोलकाता प्रवास में अधिकांश लोहमार्ग स्थानकोपर सावरकर दर्शन के लिए भीड़ उमड़ती रही। सत्कार होते थे और सावरकरजी द्वार पर खड़े रहकर सभी का अभिवादन का स्वीकार करते थे। कोलकाता स्थानक पर स्वागत स्वीकार कर बाहर निकलने में ही उन्हें एक घंटा लगा। शोभायात्रा निकाली गयी,हुगली नदीपर "हावरा ब्रिज" खचाखच भरा था। चित्तरंजन पार्क-मैदान में हो रहे इस अधिवेशन के लिए महाराष्ट्र से पधारे हिन्दू महासभाईयो के लिए अग्रिमपंक्ति में व्यवस्था कर दी गयी थी। आपटे-गोडसेजी के लिए सन्मान में जयकारा दिया जा रहा था। सावरकरजी का जयकारा हो रहा था।
ध्वनिक्षेपक बंद पड़ने से वीर सावरकरजी का भाषण दुसरे दिन हुवा ; एक लक्ष हिन्दू बैठे थे। वीर जी ने सभा के आरम्भ में हाथ उठाकर प्रश्न किया, " स्वतंत्रता किसने प्राप्त की ? कौन से राजनितिक दल ने ? कांग्रेस ने ? समाजवादियो ने ? साम्यवादियो ने ? हिन्दू महासभाईयो ने ? पूर्व अस्पृश्यों ने ? नहीं ! सभी दलों ने मिलकर ! इतना ही नहीं जिन्हों ने गर्भगृह में बैठकर ईश्वर की प्रार्थना की उन्हें भी इस स्वतंत्रता का श्रेय जाता है !"
जब मै विलायत में पकड़ा गया तब, वहा मैंने वहां "राम-राम" कविता लिखी थी। (श्रीराम जन्मस्थान कलंक मुक्ति का समाचार उन्हें प्राप्त हुवा था।) उसमे मैंने लिखा था कि,"हिन्दुस्थान को जब स्वातंत्र्य प्राप्त होगा तब मेरी अस्थिया जहा भी पड़ी हो वही आनंद विभोर होकर नाचने लगेगी ! क्या "यह" आनंददायी घटना नहीं है ? आज मेरा देश स्वतंत्र है और मै जीवित खड़ा हूँ। ऐसे समय मै क्यू न आनंद से विभोर होकर नाचू ?" कहकर उन्होंने अपना बुट जोर से मंच पर पटका। १५ मिनट तक तालिया बजती रही। { यह है, श्रीराम जन्मभूमी का नि:श्रेयस कलंकमुक्ती आंदोलन और उसके प्रेरक की उदारता और दुसरे वह जो मंदिर को कलंक लगाकर राजनीतिक और आर्थिक रोटियां सेंकनेवाले मंदिर ध्वंसी ! }  
आगे वीर जी ने कहां," गत पांच वर्ष में हिन्दू महासभाईयो ने बलिदान की जो परंपरा खडी की है,उसे इतिहास में विकल्प नहीं।" मृत्यु पत्र में हुतात्मा पं.नाथूराम गोडसे जी ने सोरटी सोमनाथ के पुनरुध्दार के लिए एक सहस्त्र रुपये दान दिए थे। उसका सन्दर्भ ध्यान में रखकर उन्होंने उनके अप्रत्यक्ष गौरव में कहा कि , "सोरटी सोमनाथ का मंदिर कौन खड़ा कर रहा है ? मै ? आप? नहीं, नहीं, सरदार पटेल को धन्यवाद देना चाहिए।" श्रीराम जन्मस्थान मंदिर पुनरुध्दार के लिए यह प्रेरणा थी।पटेल उसे अपने उद्देश्य से निपटना चाहते थे और हिन्दू महासभा को श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को  ७८ वी बार श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर लौटाने के संकल्प से बद्ध !

सावरकर प्रतिमा पूजक अवसरवादी-मंदिर ध्वंसी श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाडा-रामघाट-अयोध्या को लौटाने का प्रस्ताव पारित कर सार्वजनिक करे ! सावरकरजी को यही श्रद्धांजली होगी !