Monday 30 November 2015

६ दिसंबर १९९२ मंदिर ध्वंसी नेताओ को राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तार करने की मांग !


न्यायालय संरक्षित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर का शिलान्यास होकर भी उसे बाबर का कलंक लगाकर छह दिसंबर १९९२ को ढहाना,संविधान के प्रथम स्वर्ण पृष्ठ पर अंकित राष्ट्र पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम अर्थात संविधान के अपमान में मंदिर विध्वंस राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है ! २३ मार्च १५२८ पूर्व से अधिपति रहे,१८८५ से मालिकाना अधिकार के लिए न्यायालय में लड़ रहे रामानंदीय निर्मोही आखाड़े ने ६ दिसंबर १९९२ को इसकी FIR लिखवाकर मूल वादपत्र 4 A में अंतर्भाव कर दो सौ करोड़ का भरपाई दावा ब्रह्मलीन महंत श्री जगन्नाथ दास महाराज ने किया है।
कार्तिक कृ.नवमी संवत २००६ श्री हनुमान जयंती अक्टूबर सन १९४९
श्री रामायण महासभा के प्रधान महंत श्री रामचंद्रदास महाराज,संयुक्त मंत्री ठाकुर गोपालसिंग विशारद,संगठक अभिरामदास महाराज सभी हिन्दू सभाई थे। रामायण महासभा की सार्वजनिक सभा प.पू.श्री वेदांती राम पदार्थ दासजी महाराज की अध्यक्षता में हनुमान गढ़ी पर संपन्न हुई थी। तदनुसार,श्री राम चरित मानस के १०८ नव्हान्न पाठ आरंभ हुए।
समापन के समय अ.भा.धर्म संघ संस्थापक प.पू .श्री करपात्रीजी महाराज,उ.प्र.हिन्दू महासभा अध्यक्ष महंत श्री दिग्विजयनाथ जी,कांग्रेस के नेता बाबा राघवदास जी महाराज उपस्थित थे।उनके प्रवचनो के पश्चात बड़ा स्थान के अध्यक्ष महंत श्री बिंदुगाद्याचार्यजी और श्री रघुवीर प्रसादाचार्यजी ने अपने समापन भाषण में,"श्रीराम जन्मभूमि उध्दार के लिए इस प्रकार ११०८ नव्हान्न पाठ यज्ञ का आवाहन किया।"
मार्गशीर्ष शु.२ श्रीराम जानकी विवाह के दिन यह कार्यक्रम निश्चित हुआ था।श्रीराम जन्मभूमि परिसर स्वच्छ करने के लिए सैकड़ो साधू और अयोध्या नगरवासीयो ने पूर्व संध्या से कार्यारंभ किया।इनमे रामानंदीय निर्मोही आखाडा महंत श्री बलदेवदास,जन्मस्थान महंत तथा हिन्दू महासभा नगर कार्याध्यक्ष श्री हरिहर दास महाराज,दिगंबर आखाडा के महंत श्री तथा हिन्दू महासभा के नगर पार्षद परमहंस श्री रामचंद्रदास महाराज,तपस्वीयो की छांवनी के अधिरिसंत दास,बाबा बृन्दावनदास,फ़ैजाबाद जिला हिन्दू महासभा अध्यक्ष ठाकुर गोपालसिंगजी कार्यरत थे।पौ फटने से पूर्व परिसर स्वच्छ किया गया।
वेदांती श्रीराम पदार्थदास महाराज जी की अध्यक्षता में, नव्हान्न पाठ कर्ता संख्या ११०८ भोर में ही स्थानापन्न हुई थी।प्रत्यक्षदर्शीयो के अनुसार जन्मस्थान से लेकर श्री हनुमान गढ़ी तक क्रम से पाठक बैठे थे और उनमें मुसलमान भी बड़ी संख्या में पाठ पढने बैठे थे।



२४ दिसंबर १९४९,कलंकमुक्त मंदिर को २६ दिसंबर को " विवादग्रस्त वास्तु " घोषित कर संविधान की धारा १४५ के अंतर्गत सरकार ने अपने कब्जे में ले ली और श्रीराम जी की पूजा, अर्चना, भोग की सरकारी वेतन से व्यवस्था लगा दी,मंदिर परिसर के दो सौ गज क्षेत्र में गैरहिंदू प्रवेश पर प्रतिबंध लगाकर चार पुजारी एक भंडारी सरकारी वेतन पर नियुक्त कर गर्भगृह में सेवा करने जाने की अनुमति प्रदान की।मात्र दर्शन के लिए लोहे के शिकंजे से अनुमति प्रदान की।इस व्यवस्था में स्वयं प्रशासन ने कोई परिवर्तन नहीं किया।

हिन्दू महासभा के सन १९४९ आन्दोलन के बाद से लांछन रहित यह श्रीराम जन्मस्थान मंदिर न्यायालय संरक्षित है।**सन १९५० हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा गोपाल सिंग विशारद द्वारा चली 3/1950 न्यायालयीन कार्यवाही में अयोध्या परिसर के १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय, *"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए ७७ बल्वे हुए।सन १९३४ से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को सौप दिया जाये।" वली मुहमद पुत्र हस्नु मु.कटरा ; अब्दुल गनी पुत्र अल्लाबक्ष मु.बरगददिया ; अब्दुल शफुर पुत्र इदन मु.उर्दू बाजार ; अब्दुल रज्जाक पुत्र वजीर मु.राजसदन ; अब्दुल सत्तार समशेर खान मु.सय्यदबाड़ा ; शकूर पुत्र इदा मु.स्वर्गद्वार ; रमजान पुत्र जुम्मन मु.कटरा ; होसला पुत्र धिराऊ मु.मातगैंड ;महमद गनी पुत्र शरफुद्दीन मु.राजा का अस्तम्बल ; अब्दुल खलील पुत्र अब्दुरस्समद मु.टेडीबाजार ; मोहमद हुसेन पुत्र बसाऊ मु.मीरापुर डेराबीबी ; मोहमदजहां पुत्र हुसेन मु.कटरा ; लतीफ़ पुत्र अब्दुल अजीज मु.कटरा ; अजीमुल्ला पुत्र रज्जन मु.छोटी देवकाली ; मोहमद उमर पुत्र वजीर मु.नौगजी ; फिरोज पुत्र बरसाती मु.चौक फ़ैजाबाद ; नसीबदास पुत्र जहान मु.सुतहटी

सुल्तानपुर के विधायक नाजिम ने भी एक पत्रक निकालकर मंदिर हिन्दुओ को सौपकर इबादत करने की भावना प्रकट की थी।
* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की पुलिस अधिकारी अर्जुनसिंग को दी साक्ष,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके खंभों में भी मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"

*माननीय न्यायालय का आदेश है कि ,"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था," जैसी है वैसे " ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।"

१९४९ अयोध्या आंदोलक/पक्षकार हिंदू महासभा का तर्क :-१४ अगस्त १९४१ नझुल रेकोर्ड फ़ैजाबाद में श्रीराम जन्मस्थान मंदिर रामकोट प्लाट क्रमांक ५८३,वर्णन- तिन गुम्बद मंदिर,कब्ज़ा-महंत श्री रघुनाथ दास,राम सकल दास,राम सुभग दास रामानंदीय निर्मोही आखाडा है। १९५० केस में १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने मंदिर मान्य किया है तब ही २०० गज परिसर में गैर हिन्दू प्रवेश प्रतिबंधित है। विरोधको की अभ्यर्थना निरस्त कर न्यायालय के संरक्षण में दर्शन-पुजन-भोग-उत्सव की व्यवस्था हो रही है।श्रीराम जन्मस्थान मंदिर गर्भगृह में हिंदू महासभा ने रखी मुर्तिया हटाने आरोप कर सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका लगाकर केस को पुनार्विवादित किया तब श्री देवकी नंदन अग्रवाल उपाख्य रामसखा ने निर्मोही आखाड़े के पक्ष में साक्ष दी है।इसलिए १ /३ भूमी रामसखा-विहिंप या रामलला विराजमान-श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज को देना न्यायोचित नहीं। सन १९८९ उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष तथा विहिंप को सभी वाद पीछे लेने का आदेश देकर बेदखल किया है।इसलिए सम्पूर्ण भूमी केवल रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को ही सौपना अनिवार्य है।

पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था। इस समिती में मद्रास से आये।
*संशोधक मुहम्मद के के भी थे वह लिखते है*
,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"
Published - 22 Jan.2015 Dainik Jagaran-Meerut

*गैझेटियर ऑफ़ दी टेरिटरीज अंडर गव्हर्मेन्ट ऑफ़ ईस्ट इंडिया कं के पृष्ठ क्र ७३९-४० के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार," २३ मार्च १५२८ को श्रीराम जन्मस्थान मंदिर ध्वस्त किया और उस ही मलबे से १४ स्तम्भ चुनकर उसपर खडी की वास्तु कभी मस्जिद नहीं बन पायी क्यों की इन स्तंभोपर मुर्तिया थी।"

इस प्रकार न्यायालय के संरक्षण में पूजा-दर्शन हो रहे न्यायालय के आदेश से ताला खुले,कांग्रेस द्वारा शिलान्यासित लांछन रहित मंदिर को भाजप ने,हिन्दू महासभा सांसद स्वर्गीय बिशन चंद सेठकी सूचना का अनादर कर राजनितिक और आर्थिक लाभ के लिए बाबर का कलंक लगाया और ६ दिसंबर १९९२ को मंदिर ही ध्वस्त किया ! 
२६ जुलाई २०१० को १९४९ अयोध्या आंदोलन की फाइल के अभाव में निर्मोही अखाड़े की १८८५ से चल रही स्वामित्व की सुनवाई न्यायालय ने रोकी थी। उत्तर पदेश सरकार ने शपथपत्र में फाइल्स गायब होने की बात कही। तब हमने मुख्यमंत्री मायावती को FIR करने की सूचना देकर स्पष्टीकरण माँगा तब उन्होंने प्रेस के समक्ष २००० भाजप शासनकाल में फाइल्स गायब होने की जानकारी के साथ साथ सुभाषभान साध के पास यह फाइल्स थी और वह लिबरहान आयोग में साक्ष देने जा रहे थे तब उनकी संदेहास्पद मृत्यु के साथ फाइल्स गायब हुई ! कहा। अधिक पता करने पर जानकारी मिली की इस कृत्य को परिणाम देनेवाले किसी मित्तल को भाजप शासनकाल में बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का उपकुलगुरु के रूप में इनाम दिया गया। परंतु ३० सप्तम्बर को राजनितिक उद्देश्य से अचानक १/३ निर्णय ६७:७७ एकड़ भूमि का २:७७ एकड़ हिस्सा जो भाजप ने १९९१ में निर्मोही आखाड़े के विरोध के पश्चात विवादित बनाकर कब्जे की भूमि पर आया उसका निर्मोही आखाडा और सहयोगी हिन्दू महासभा ने सर्वोच्च न्यायालय में विरोध किया और ९ मई २०११ को माननीय न्यायालय ने ३० सप्तम्बर के १/३ निर्णय को निरस्त किया है।
 श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर ध्वस्त करने के पश्चात दूसरे खिलाफत का आरंभ हुआ ! ऐसा आरोप हिन्दू महासभा के वरिष्ठ विचारक प्रमोद पंडित जोशी ने लगाया है।उन्होंने कहा इस घटना के पश्चात सिमी का स्वरुप और कार्य बदल गया। देश में दंगे,पडोसी देशो में हत्या,मंदिर विध्वंस,हिन्दुओ का पलायन हुआ। तस्लीमा नसरीन जैसी निरपेक्ष खंडित भारत की शरण में आई। १९९३ मुंबई बम ब्लास्ट हुए ,अलगाववादी हुर्रियत की स्थापना हुई और 
७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी। (सन्दर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी) अब श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर पुनर्निर्माण के लिए ,भाजप का न्यायालय के माध्यम से कब्ज़ा-बटवारा-भुनी अधिग्रहण का षड्यंत्र रोकने के लिए श्रीराम भक्तों को मंदिर ध्वंसी,राष्ट्रद्रोहियों को संगठित करनेवाले नेताओ को राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तार करने की मांग के लिए जल्द ही शीतकालीन संसद सत्र में जंतर मंतर-देहली में प्रदर्शन करना होगा !

प्रमुख मांग -श्रीराम जन्मस्थान मंदिर एवं परिसर की ६७:७७ एकड़ भूमि तथा मंदिर के नामपर अवैधानिक पध्दतिसे जोड़े साढ़े चौदसौ करोड़,ब्याज समेत रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को सौपकर ७८ बार मंदिर परिसर आखाड़े को सौपने की परंपरा का पालन और मंदिर पुनर्निर्माण किया जाएं !


राष्ट्रिय प्रवक्ता हिन्दू महासभा प्रमोद पंडित जोशी

Sunday 29 November 2015

गणतंत्र दिवस २६ जनवरी

 गणतंत्र दिवस २६ जनवरी का स्पष्ट अर्थ यह है कि, "१५ अगस्त १९४७ पूर्व स्थापित संविधान सभा का कार्य, २६ नवम्बर १९४९ को नेहरु के निर्णय पर रोककर ब्रिटिश गव्हर्नर-राष्ट्रपती माउन्ट बेटन की सत्ता का अंत और नेताजी सुभाष के अज्ञातवास का प्रारंभ !
 भारतीय संविधान निर्माण पूर्वोत्तर-मसौदा समिती के अध्यक्ष डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरजी को संविधान निर्माता कहकर इतिहास का उलटफेर करनेवाले कांग्रेस नेता संविधानिक की त्रूटीयो से बचने के लिये उनको संविधान निर्माता कहकर अपनी भूलों का ठीकरा भारतरत्न डॉ.आंबेडकरजी पर फोडने के पक्षधर क्यों है ? इसपर आंबेडकर अनुयायी कहनेवाले जागृत क्यों नहीं होते ? यह एक आश्चर्य है !

 अखंड भारत को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य रहे अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधानों का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया गया। उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.तिलक स्मृतीदिन के पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।

ब्रिटिश भारत का संविधान
वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है !" ऐसा कहा। ८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल (ब्रिटिश) सदस्य बनाये गए ,इस सायमन कमिशन ने "जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स" बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी।

संपूर्ण स्वाधीनता के विरोध में नेहरू रिपोर्ट और गांधी का हठ,
 "ब्रिटीश वसाहती राज्य" (ब्रिटिश कॉलोनी)
१९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई थी। इस 'नेहरू रिपोर्ट' ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे कि ,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडने आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य का निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने इस बैठक में संपूर्ण स्वाधीनता की मांग रखकर गांधी की "ब्रिटीश वसाहती राज्य" की मांग का विरोध किया।
इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने "ब्रिटीश वसाहती राज्य" का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश महारानी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की "चोगम परिषद" बनी जो आज भी कार्यरत है।
 प्रथम गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड (सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर पार्लियामेंट में विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला। हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत सामाजिक विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१ अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा।अल्पसंख्यांक शब्द प्रचलित हुए और वक्फ बोर्ड का निर्माण हुआ।


अखंड भारत की एक राष्ट्रीयता- एक नागरिकता मे विभाजन हुवा.बहुसंख्यंक हिंदुओं की (काफिर) एकता के विरोध मे अली बंधूओ ने जो षड्यंत्र खेला उसके अनुसार, डॉ.आंबेडकरजी को दौलताबाद के किले मे दर्शन करने जाते समय मुस्लीम चौकीदार ने डॉ.आंबेडकर जी को हौदे से पानी लेने से मना कर पानी अछूत हो जायेगा कहकर जातीय नीचता की भावना को जलाया और पानी लेने से रोका। कही भी न छुने की शर्थ पर मुसलमान चौकीदार ने उन्हें उपर जाने दिया।जिसके कारण डॉ.आंबेडकर जी ने येवला-नासिक मे १९३६ में धर्मांतरण की घोषणा की थी। तब भी हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,शेठ जुगल किशोर बीडला जी ने डॉ.आंबेडकरजी से मिलकर हिंदुत्व सशक्त करने सामाजिक उत्थान के लिये यह घोषणा बीस वर्ष रोकी।१९५६ दीक्षा भुमी नागपुर में धर्मान्तरण नहीं मतांतरण हुआ ! उस समय जो सावरकरजी ने स्थानबद्धता से पत्र लिखकर,'धर्मांतरण से राष्ट्रांतर होगा ऐसा न करे !' कहा उसके अनुसार !

परिणाम यह हुवा की,मुस्लीम बहुल क्षेत्र के निजाम राज मे पुर्वाछुतो के बलात हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की धमकी डॉ.आंबेडकरजी ने मक्रणपूर परिषद मे दी थी । १० मई १९३७ सावरकरजी की अनिर्बंध मुक्तता पर डॉ.आंबेडकरजी ने दि.११ मई १९३७ के दैनिक जनता मे अभिनंदनपर लेख लिखा। पुणे में संविधान मसौदा निर्माण मे सहयोग किया,हिंदूओ के सैनिकीकरण के धर्मवीर डॉ.मुंजेजी के प्रयास को सबल करने पुर्वाछुतो को सेना मे भर्ती पर लगे प्रतिबंध को निकालने डॉ.आम्बेडकर जी ने महाराज्यपाल की भेट ली और "महार रेजिमेंट" का निर्माण हुवा। और ऐसा करने से मुसलमानो का प्रचंड पाकिस्तान का षड्यंत्र विफल हुवा।
                             
स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर भारत को वसाहत राज्य देने की घोषणा की। तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की। सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा। मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया। ( विभाजानोत्तर आश्रयार्थि मुस्लिमों का विरोध आज भी जारी है।)
२० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की योजना प्रकट हुई।७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर "धर्मचक्र" या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' ऐसी मांग की। डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला।इसलिए पुणे मे बनाया पारित मसौदा आंबेडकरजी ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें "भगवा ध्वज" देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.आंबेडकरजी ने भी आश्वासन दिया था।
परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई मांग सूनने तयार नही था।

जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी। फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की ! उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ ब्रिटिश संविधान के आधार पर स्थापित हुई। उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये, डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४-राष्ट्रीयता में विषमता का समापन करनेवाले "समान नागरिकता" का सूत्रपात किया,जो सावरकरजी ने १९३८ जयपुर में मांग रखी थी।
डॉ.आंबेडकरजी ने हिन्दू कोड बिल बनाया और विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये।इसलिए नेहरू उनसे रुष्ट हुए और आंबेडकरजी मंत्री मंडल से बाहर !
             राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकरजी के विरोध मे रबरस्टेम्प पदाधिकारी बनाया गया। संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये थे ,उनमे से २४७३ पर ही बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को भारत एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया।

मात्र इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा ?" ५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे ? इसका कोई पता नही। और क्या इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी को जिम्मेदार कहोंगे ? आम्बेडकरजी के अनुयायी इस विषय को जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान स्वर्ण जयंती महोत्सव वर्ष में हिन्दू महासभा की मांग पर वाजपेई सरकार द्वारा गठित "संविधान समीक्षा समिती" के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ?
ये कुछ वाक्य बाबा साहेब आंबेडकरजी ने इस्लाम के विषय में कहे थे।
हिन्दू- मुस्लिम एकता, एक अंसभव कार्य हैं। भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक मात्र हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर और सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है। मुसलामनों की निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान ने भी अपने शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।
(प्रमाण सार डा डॉ.आंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्गमय, खण्ड १५१)

ब्रिटीश सोच का संविधान अस्थायी जातीय आरक्षण, राष्ट्रीयता में विषमता फैलाता है ! राष्ट्रीय स्तरपर आर्थिक पिछडे विषमता रहित राष्ट्रीय नागरिको को योग्यता/आवश्यकता के अनुसार आरक्षण हो ! इसमें कोई सांप्रदायिक,जातिवादी सोच नहीं उलटे पंथ निरपेक्ष,समानता की मांग है।
 नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्त लिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता,नागरिकता में बंधुत्व और अखंड पाकिस्तान के सतत षड्यंत्र के कारन आतंरिक नागरी सुरक्षा नही, महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है !

महंगाई के लिए अखंड भारत तोड़कर पाकिस्तान देने के बाद अराष्ट्रीय आश्रयार्थियो / घुसपैठियों की बढती जनसँख्या जिम्मेदार है ! सरकार चाहे किसी की भी हों ! यह दूरदृष्टि से जानकर दिनांक १० अगस्त १९४७ को हिन्दू महासभा भवन ,मंदिर मार्ग,नई दिल्ली-१ अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रिय अध्यक्ष स्वा.वीर सावरकरजी की अध्यक्षता में हिन्दू परिषद् संपन्न हुई ; सावरकर जी ने कहा," अब निवेदन,प्रस्ताव,विनती नहीं ! अब प्रत्यक्ष कृति का समय है। " सर्व पक्षीय हिन्दुओंको हिन्दुस्थान को पुनः अखंड बनाने के कार्य में लग जाना चाहिए !" ; "रक्तपात टालने के लिए हमने पाकिस्तान को मान्यता दी ? ऐसा नेहरू का युक्तिवाद असत्य है ; इससे रक्तपात तो टलनेवाला नहीं है। परन्तु,फिरसे रक्तपात की धमकिया देकर मुसलमान अपनी मांगे रखते रहेंगे। उसका अभी प्रतिबन्ध अभी नहीं किया तो इस देश में १४ पाकिस्तान हुए बिना नहीं रहेंगे। उनकी ऐसी मांगो को जैसे को तैसा उत्तर देकर नष्ट करना होगा। रक्तपात से भयभीत होकर नहीं चलेगा ! इसलिए ' हिन्दुओं को पक्ष भेद भूलकर संगठित होकर सामर्थ्य' संपादन करना चाहिए और देश विभाजन नष्ट करना चाहिए ! " ऐसा कहा था।
राष्ट्रिय जनता अभी नींद से जागी नहीं तो ? लव्ह जिहाद,भूमी जिहाद,जनसँख्या जिहाद,धर्मान्तरण से २०२१ में बहुसंख्यंक इस देश में अल्पसंख्य हो जाएगा। फिर न बचेगा सिक्ख,बौध्द,जैन,लिंगायत,वैष्णव,शैव,आर्य न अनार्य ! संविधान को समीक्षा करने के अधिकार से न रोके !
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