Wednesday 30 December 2015

रोमनों की विश्वपर सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा,येशु उनकी शिकार हुए !

रोमनों की विश्वपर सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा अलेक्झांडर पूर्व से रही है। होलिओदोरस और डेमिट्रियस ने वैष्णव पंथ स्वीकार कर भारतीयता में एकरस हो गए। मात्र राक्षसी मिनेण्डर ने बुध्द मत का स्वीकार कर भी रोमन सत्ता स्थापित नहीं कर सका।
महात्मा येशु बैथलहैम में जन्मे परंतु उस समय जेरूशलेम पर नीरो की सत्ता थी। ज्यूलियस सीझर के पश्चात ऑगस्टस से नीरो तक की स्वर्ण मुद्रा भारतीय बाजार में आती रही है। येशु जन्म के पूर्व इस्रायल के मृत सागर परिसर के निवासी सेमिटिक वंशीय कमारियन्स लोगो ने ज्यु पंथ की स्थापना की थी। वह रोमनों की प्रतिदिन छल की मानसिकता के कारन येशु जन्म के दो तीनसौ वर्ष पूर्व से क्राइस्ट अर्थात पालनहार की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह वही लोग है जो अंतिम भोजन को ,"लास्ट सपर" कहते थे। रोमन राजसत्ता में लकड़ी के वधस्तम्भ पर बांधकर पत्थर मारकर मृत्यु दंड देने की परंपरा थी।

येशु के जन्म-मरण की रहस्यमय कथाए प्रचलित है। वह शेफर्ड बनकर भारत भूमि में आने जगन्नाथ पूरी में वेद अध्ययन और लद्दाख हेमिस बुध्द मठ में त्रिपिटक का ज्ञान लेने की भी बाते लिखी गई है। येशु ने वैदिक तथा बुध्द मत का संयुक्त प्रसार जेरूशलेम लौटकर करने की भी बात होती है। इनके समर्थक / अनुयायी गण बढ़ने लगे तब रोमन सत्ता के सामने संकट जैसी स्थिती उत्पन्न हुई इसलिए रोमन सरकार ने येशु की पकड़ने के लिए सैनिक भेजे थे। तरह शिष्यों के साथ लास्ट सपर हो रहा था। तब आए सैनिको को सभी के चहरे एक जैसे दिखाई दिए। सैनिको ने पूछा चमत्कारिक येशु कौन है तब ज्युडास इस्केरियट ने अंगुली निर्देश कर येशु को पकड़वा दिया।
शुक्रवार को येशु को क्रुसिफिक्शन कर पत्थर मारकर मार डाला इसे "गुड फ्रायडे" और रविवार को जीवित पाकर "ईस्टर सन्डे" कहा जाता है। इस घटना की पश्चात येशु कहा थे ? कोई कहता है कश्मीर में उनकी और उनकी पत्नी मेंडेलिन की कब्र है। अर्थात काले येशु रोम कभी गए ही नहीं।

ओल्ड टेस्टामेंट ज्यु लोगो के तालमुद का एक हिस्सा है। उसपर श्रध्दा रखनेवालों का प्रभावी संगठन बनकर ज्यु पंथ की पुनर्रचना हुई। जिसके कारन रोमनों की सत्ता ध्वस्त हुई। रोमनों को धर्मसत्ता के प्रभाव का जैसे आकलन हुआ उन्होंने पुनः इस्रायल पर आक्रमण किया। हेरोड,पायलट,जॉन द बैप्टिस्ट को रोमन अर्थात कैथलिक पंथ प्रसार हेतु ज्युडास से दीक्षित करवाकर भेजा। अर्थात बाइबल का नामोनिशान नहीं था। वह तीसरी शताब्दी तक निर्माण होता रहा। जर्मन लेखक विंटरनिट्स लिखते है,"बाइबल के कुछ भागपर महात्मा बुध्द के विचार तथा ग्रंथो का परिणाम हुआ है !"
जॉन द बैप्टिस्ट द्वारा धर्म दीक्षा देकर गले में येशु को क्रूसीफिक्शन के लिए जो वधस्तम्भ था उसे भय के प्रतिक के रूप में पूजनीय बनाया गया। जो ज्यु इसका स्वीकार नहीं करेगा उसे येशु विरोधी,पाखंडी कहकर बलि चढ़ाया गया।
ईसा ३२५ में रोमन राजा कॉन्स्टैन्टाइन ने चर्च की धार्मिक सत्ता पुराण मतावलम्बी ज्यु-यहूदी लोगो से छीनकर स्वयं नया धार्मिक नेता बना और धर्मपीठ वेटिकन ले गया। जहा बौध्द-वैष्णव पंथ संगठित थे और वेटिकन वेद वाटिका थी। इस प्रकार धार्मिक आधार के लिए बने बाइबल के माध्यम से रोम की राजसत्ता को धार्मिक माध्यम से प्रसारित किया जाने लगा। बाइबल पठन और अध्ययन की सक्ती की जाने लगी।
धर्मान्तरण के लिए "इन्क्विझिशन" या अन्वीक्षा मंडल की स्थापना तृतीय इनोसंट ने की। इस मंडल ने येशु भक्त ज्यु-यहूदी पंथ के मानिकियन,आरियन,प्रिस्किलियन,पालियन,बोगोमाईल,काथुरी,वाल्डेंशियन,आल्बीजेंशियन,लोलार्ट,हुझाइट,आदि लोगो पर शस्त्र चलाये। क्योकि,वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वैराग्य का पालन करनेवाले लोग नृत्यांगनाओं के साथ भोगविलास में डूबे विशाल राजप्रासाद में रहकर आज्ञा छोड़नेवाले पोप की अवज्ञा करते थे।
इन्क्विझिशन के प्रवर्तक तृतीय इनोसंट ने अकेले ही सत्ताईस हजार तथा अध्यक्ष तार्किमादा ने स्पेन पर अधिसत्ता स्थापित करते हुए आठ हजार आठ सौ पाखंडियो को चिता पर जलाया। भगोड़े साढ़े छह हजार येशु भक्तो की प्रतिमा बनाकर जलाई गई। ९६५०४ लोगो को प्रायश्चित्त की आड़ में जलाया। तीन लाख लोगो को निष्कासित किया। कब्र खोदकर जलाया गया।  (संदर्भ :- The Horros Of Inquisition लेखक Joseph McCabe तथा Tarque Mada & The Spanish Inquisition लेखक Clement Wood )
मृत सागर के निकट पहाड़ो में सन १९५० से १९५७ के मध्य अनेक सांकेतिक दस्तावेज प्राप्त हुए है। इस डेड सी स्क्रॉल के अनुसार येशु के चरित्र से साम्यता दर्शानेवाली विभूती येशु जन्म के पूर्व होकर गई थी। इन दस्तावेजो के आधारपर प्रस्थित ख्रिश्च्यानिटी और चमत्कार प्राचीन कमारियन्स लोगो की देन है। पोप और बिशप इसपर मौन है।
५२६ में ब्रिटेन पर धार्मिक सत्ता थोपकर रोमन  विस्तार आरम्भ हुआ। ब्रिटेन ने अमेरिका को भी धार्मिक प्रसार के माध्यम से सत्ता विस्तार किया। ब्रिटेन के गैंगरीन कालमानक ने भारत के पंचांग मकर संक्रांत,कर्क संक्रांत -छोटा दिन और बड़ा दिन मध्य बनाकर दस माह का कालमानक बारह माह का किया। देश और दुनिया में भारतीय पंचांग की महत्ता कितनी है ? नासा तक इसका प्रयोग करते है !

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