Thursday, 2 April 2015

हिन्दू महासभा का सदस्य बनना है ? स्वीकार है तो .....



 अखंड भारत का हिन्दू , विविध जाती-पंथ समुदाय की महासभा बनाकर कार्यरत थी। सन १८६४ में उत्तर भारत गव्हर्नर ने ब्रिटिश पार्ल्यामेंट को प्रस्ताव दिया कि,"यदि इस देश पर दीर्घकाल शासन करना है तो, हिंदुओ का पल्ला छोड़कर मुसलमानों का दामन पकड़ना चाहिए। " और सन १८७७ में अमीर अली ने " राष्ट्रिय मोहम्मडन असोशिएशन " की राजनितिक संस्था बनायीं।
बहुसंख्यक हिन्दू जाती-पंथ में विघटित थे ! तब पंजाब विश्वविद्यालय लाहोर संस्थापकों में से एक बाबू नविन चन्द्र राय तथा पंजाब उच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश राय बहादुर चन्द्रनाथ मित्र ने बैसाखी सन १८८२ लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना की। 
प्रारंभिक उद्देश्य :- धर्मांतरण के विरोध में शुध्दिकरण,अछूतोध्दार के साथ जातिभेद नष्ट करना था।
                       प्रथम सभापति प्रफुल्लचंद्र चट्टोपाध्याय और प्रथम महामंत्री बाबू नवीनचंद्र राय बने थे। 
        सन १८५७ क्रांति के पश्चात हिन्दू राजनीती का आंदोलन न उभरे ; जो, ब्रिटिश सरकार के विरुध्द असंतोष उत्पन्न करें। इस भय से आशंकित सरकार ने विरोधी तत्वों को अवसर देने के बहाने अंग्रेजी पढ़े-लिखे युवकों को साथ लेकर राजनितिक वायुद्वार खोलने का मन बनाया।

          पूर्व सेनाधिकारी रहे एलन ऑक्टोव्हियन ह्यूम को,पाद्रीयों की सलाह पर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट तथा वाइसराय लॉर्ड डफरिन ने परस्पर परामर्श से ऐसा संगठन खड़ा करने को कहा कि,वह ब्रिटिश साम्राज्य से ईमानदार रहने की शपथ लिए शिक्षित हो और इसमें २०% मुसलमान भी हो ! यह थी Conress स्थापना की पृष्ठभूमि।
  
      हिन्दू सभा के बढते प्रभाव के कारण २८ दिसंबर सन १८८५ मुंबई के गोकुलदास संस्कृत विद्यालय में धर्मांतरित व्योमेशचंद्र बैनर्जी को राष्ट्रिय सभा का राष्ट्रिय अध्यक्ष चुनकर कार्यारंभ हुआ। इसके प्रथम अधिवेशन से लेकर सन १९१७-१८ तक "God Save the King ...." से आरंभ और  "Three cheers for the king of England & Emperor of India " प्रार्थना से समापन होता रहा। 
        हिन्दू सभा अध्यक्ष सन १९१० सरदार गुरबक्श सिंग बेदीजी के प्रस्ताव और पंडित मदन मोहन मालवीय तथा पंजाब केसरी लाला लाजपत रायजी के प्रयास से १३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार में कुंभ पर्व के बीच कासीम बाजार बंगाल नरेश मणीन्द्रचन्द्र नंदी की अध्यक्षता में अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना हुई तब पंडित मदन मोहन मालवीयजी के अनुयायी बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उपस्थित थे।   
  
 मेरे हिन्दू बंधू-बहनों,मेरा पक्ष हिन्दू महासभा आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है.था,उसे हिन्दू महासभा विरोधियो ने क्षति पहुँचाने के लिए अपनी जागिर समझ कर लुट लिया.कुछ कार्य भी हो रहा है इसलिए, हमें निराश नहीं होना चाहिए हम कार्यकर्ताओ को स्थानीय,तहसील,जिला,प्रदेश इकाई को सशक्त कर दिखाना है.हिन्दू महासभा की जन्मपत्री के अनुसार,इसे रोकने के प्रयास हो रहे है.हिन्दू महासभा क्रांतिकारी पक्ष है,कभी पंचांग देखकर कार्य नहीं किया.
               हिन्दू महासभा ने सत्ता के लिए कभी समझोता नहीं किया.निराश भी नहीं हुए, लड़ते रहे,संघर्ष करते रहे.चढाव-उतराव तो प्रकृति का नियम है.धैर्य,पराक्रम और सावधानता की आवश्यता है.आप का कार्यक्षेत्र में बढ़ता प्रभाव देखकर ."सत्ता के मोह में,बढती हिंदुत्व की शक्ति का पतन करनेवाले विश्वासघाती हिन्दू प्रलोभन देकर फसायेंगे.ऐसे अप्रकट शत्रुओंसे सावधान रहकर केवल हिन्दू महासभा को सामर्थ्यवान करते समय धर्मवीर मुंजे,भाई परमानन्द,वीर सावरकर,प्रा.रामसिंह, महंतश्री दिग्विजयनाथ जी महाराज का आदर्श सामने रखो.पद,पैसा,प्रतिष्ठा की लालसा इन विरोधको के जाल से बचना चाहिए.अपने बनकर पास आये लोगो के द्वारा किया गया विश्वासघात यशस्विता का शिखर गांठने में बड़ी समस्या होगी.सावरकर जी ने हमें आशावाद दिया है,वही हमारे लिए प्रेरणा है.उच्च आदर्श यतार्थवाद हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा.अवास्तव इच्छा स्वप्नवत होती है,इसलिए हताश हुए बिना सक्रीय रहना चाहिए.उच्च मनःस्थिति के महानुभाव झूजते हुए प्रवाह के उद्गम की ओर आगे बढते है और ऐसे ही लोग देश-धर्म-समाज को पतन से बचाते है.
                 संगठन कोई भी हो बल संवर्धन,प्रत्याघाती क्षमता,अनुशासन,विनयशीलता और चारित्र्य हमारे व्यक्तिमत्व में निखार लाते है.अच्छा साहित्य,राजनीती,इतिहास,तत्वज्ञान,अध्यात्म पढ़ना चाहिए,विचार-व्याख्यान प्रस्तुत करना चाहिए.
निजी स्वार्थ के लिए सामाजिक-राष्ट्रिय कर्तव्योंको अनदेखा न करे,इस कलियुग में चरित्रहीन-भ्रष्टाचारी लोगोंको सफल होते देख मत्सर भी न करे नाही सत्य एवं प्रामाणिकता से अपनी निष्ठां छोड़े.प्रलोभन देकर आपका चरित्रहनन करने की योजना गैर हिन्दू नहीं करेंगे,यह ध्यान में रखना चाहिए.
            दूसरो से तुलना करके उसकी इर्ष्यासे हम अपनी और राष्ट्र संस्कृति को हानि पहुंचाते है और हिन्दू महासभा ने प्रत्यक्ष अनुभव कोलकाता अधिवेशन १९३९ की घटना में लिया है.पारस्परिक क्रोध-द्वेष,मत्सर,इर्ष्या का संबंधो पर दुष्परिणाम होता है.अपनी भूल का ठीकरा किसी और पर न फोड़े क्षमा करने की महानता होगी तो व्यवधान भी नहीं आयेंगे.यदि किसी से भूल हुई भी है तो उसे एकांत में समझाना योग्य.यशस्विता के लिए कभी साहस और चिटी के जैसी सातत्यता,संयम चाहिए. लोभ का अंत नहीं होता और समाधान से प्रगति के रस्ते खुलते है.समयानुसार सिध्दान्तो में परिवर्तन कुछ सीमा तक/ कुछ समय के लिए स्वीकार करना चाहिए. पिछली भूलो से कुछ सिखना चाहिए समझदार लोग भूलो को सुधारकर सिखाते है.कोई चमत्कार या तंत्र सफलता नहीं देगी.कर्तव्यच्युतता-असातत्य के कारण असफलता आती है.
            आप को कार्यकर्त्ता ही नहीं भविष्य में नेता भी बनना है.आप का संगठन कार्य,व्यक्तिमत्व और ज्ञान सहकर्मियों की कार्यक्षमता बढ़ने पर प्रकट होता है. सहकर्मी आप का कार्य अपनी क्षमता पर झेलने को तयार भी हो आप को वहा पहुँचाना आवश्यक होता है.मेरा पद कोई छीन न ले इस भय से यह कार्य आत्मघाती नहीं बनाना चाहिए.महान नेता श्रेय-सन्मान सहकर्मियों को देता है इस प्रतिष्ठा के कारण सहकर्मी भी अधिक परिश्रम लेते है.जो नेता बनने की होड़ में अपने सहकर्मी- वरिष्ठ -कनिष्ठो के साथ प्रामाणिक नहीं भर्त्सना करे वह अधिक समय नेता नहीं बने रह सकता.कलंक-निष्ठाहीनता निचा दिखाएगी अपमानित करेगी और यह निजी नहीं सामूहिक हानि होगी. अच्छा संगठक बनने गुण संपन्न-सज्जन बने,अपने आप को पहचाने और सुधारे.पारिवारिक-सामाजिक-राष्ट्रिय जिम्मेदारी का स्वीकार करे/ कराये.सहकर्मियों को सूचना देना संपर्क में रहना,समस्या समझना क्षमता का उपयोग करना.नयी वार्ता समाचार प्राप्त करते रहना.संकोच बिना प्रश्न प्रवास में मैत्री-प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास करना. अपनी ही बात रखते दूसरो की भी सुने.श्रवण बहोत कुछ जानकारी दे जाता है.
            अध्यात्मिक-यौगिक क्रिया एकाग्रता बढ़ाती है.उसके लिए विवाद से दूर रखना चाहिए.अपना सम्पूर्ण लक्ष,विचार और ध्येय चिंतन उस उद्दिष्ट को समर्पित होना चाहिए.आँखे-कान-जिव्हा-इन्द्रिय नियंत्रण में हो.विवेक वैराग्य एक अच्छा नेता बनाएगा ! हिन्दू महासभा में ऐसे नेताओ की शृंखला में आप का भी नाम हो !

        हिन्दूराष्ट्र को आप से आप का सब कुछ चाहिए.देश विभाजन की राजनीती हो रही है.राष्ट्रीयता में विषमता का विष फैला हुवा है.हमें धीर गंभीरता पूर्वक स्थिति का सामना करना है.हिन्दू संसद एकमात्र विकल्प है उसके लिए आगामी लोकसभा में भ्रष्टाचार मुक्तता,समान नागरिकता के साथ श्रीराम जन्मस्थान मंदिर श्री पञ्च रामानंदीय निर्मोही अखाड़े को सौपने पर विवाद का हल निकलेगा यह विश्वास देनेवाले प्रत्याशी तयार करने होगे.

2 comments:

  1. हमें हर स्तर पर अपने anuyayion को apnew विरोधिओन को हर प्रकार से समझा कर कूटनीति से अथवा भय से एकजुट रख एक सशक्त अक्षुण्ण अखण्ड भारत की नींव रख अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ हिन्दू राष्ट्र के स्वप्न को साकार कराना हैं

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  2. हिंदुओं को हर स्तर पर दबाया जा रहा है। इसका प्रतिकार करना और हिंदुओं को एकजुट होने का समय आ गया है।अन्यथा अपने ही देश में हम अल्पसंख्यक हो जाएंगे।

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