Sunday, 29 November 2015

गणतंत्र दिवस २६ जनवरी

 गणतंत्र दिवस २६ जनवरी का स्पष्ट अर्थ यह है कि, "१५ अगस्त १९४७ पूर्व स्थापित संविधान सभा का कार्य, २६ नवम्बर १९४९ को नेहरु के निर्णय पर रोककर ब्रिटिश गव्हर्नर-राष्ट्रपती माउन्ट बेटन की सत्ता का अंत और नेताजी सुभाष के अज्ञातवास का प्रारंभ !
 भारतीय संविधान निर्माण पूर्वोत्तर-मसौदा समिती के अध्यक्ष डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरजी को संविधान निर्माता कहकर इतिहास का उलटफेर करनेवाले कांग्रेस नेता संविधानिक की त्रूटीयो से बचने के लिये उनको संविधान निर्माता कहकर अपनी भूलों का ठीकरा भारतरत्न डॉ.आंबेडकरजी पर फोडने के पक्षधर क्यों है ? इसपर आंबेडकर अनुयायी कहनेवाले जागृत क्यों नहीं होते ? यह एक आश्चर्य है !

 अखंड भारत को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य रहे अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधानों का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया गया। उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.तिलक स्मृतीदिन के पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।

ब्रिटिश भारत का संविधान
वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है !" ऐसा कहा। ८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल (ब्रिटिश) सदस्य बनाये गए ,इस सायमन कमिशन ने "जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स" बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी।

संपूर्ण स्वाधीनता के विरोध में नेहरू रिपोर्ट और गांधी का हठ,
 "ब्रिटीश वसाहती राज्य" (ब्रिटिश कॉलोनी)
१९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई थी। इस 'नेहरू रिपोर्ट' ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे कि ,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडने आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य का निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने इस बैठक में संपूर्ण स्वाधीनता की मांग रखकर गांधी की "ब्रिटीश वसाहती राज्य" की मांग का विरोध किया।
इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने "ब्रिटीश वसाहती राज्य" का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश महारानी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की "चोगम परिषद" बनी जो आज भी कार्यरत है।
 प्रथम गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड (सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर पार्लियामेंट में विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला। हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत सामाजिक विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१ अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा।अल्पसंख्यांक शब्द प्रचलित हुए और वक्फ बोर्ड का निर्माण हुआ।


अखंड भारत की एक राष्ट्रीयता- एक नागरिकता मे विभाजन हुवा.बहुसंख्यंक हिंदुओं की (काफिर) एकता के विरोध मे अली बंधूओ ने जो षड्यंत्र खेला उसके अनुसार, डॉ.आंबेडकरजी को दौलताबाद के किले मे दर्शन करने जाते समय मुस्लीम चौकीदार ने डॉ.आंबेडकर जी को हौदे से पानी लेने से मना कर पानी अछूत हो जायेगा कहकर जातीय नीचता की भावना को जलाया और पानी लेने से रोका। कही भी न छुने की शर्थ पर मुसलमान चौकीदार ने उन्हें उपर जाने दिया।जिसके कारण डॉ.आंबेडकर जी ने येवला-नासिक मे १९३६ में धर्मांतरण की घोषणा की थी। तब भी हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,शेठ जुगल किशोर बीडला जी ने डॉ.आंबेडकरजी से मिलकर हिंदुत्व सशक्त करने सामाजिक उत्थान के लिये यह घोषणा बीस वर्ष रोकी।१९५६ दीक्षा भुमी नागपुर में धर्मान्तरण नहीं मतांतरण हुआ ! उस समय जो सावरकरजी ने स्थानबद्धता से पत्र लिखकर,'धर्मांतरण से राष्ट्रांतर होगा ऐसा न करे !' कहा उसके अनुसार !

परिणाम यह हुवा की,मुस्लीम बहुल क्षेत्र के निजाम राज मे पुर्वाछुतो के बलात हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की धमकी डॉ.आंबेडकरजी ने मक्रणपूर परिषद मे दी थी । १० मई १९३७ सावरकरजी की अनिर्बंध मुक्तता पर डॉ.आंबेडकरजी ने दि.११ मई १९३७ के दैनिक जनता मे अभिनंदनपर लेख लिखा। पुणे में संविधान मसौदा निर्माण मे सहयोग किया,हिंदूओ के सैनिकीकरण के धर्मवीर डॉ.मुंजेजी के प्रयास को सबल करने पुर्वाछुतो को सेना मे भर्ती पर लगे प्रतिबंध को निकालने डॉ.आम्बेडकर जी ने महाराज्यपाल की भेट ली और "महार रेजिमेंट" का निर्माण हुवा। और ऐसा करने से मुसलमानो का प्रचंड पाकिस्तान का षड्यंत्र विफल हुवा।
                             
स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर भारत को वसाहत राज्य देने की घोषणा की। तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की। सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा। मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया। ( विभाजानोत्तर आश्रयार्थि मुस्लिमों का विरोध आज भी जारी है।)
२० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की योजना प्रकट हुई।७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर "धर्मचक्र" या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' ऐसी मांग की। डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला।इसलिए पुणे मे बनाया पारित मसौदा आंबेडकरजी ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें "भगवा ध्वज" देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.आंबेडकरजी ने भी आश्वासन दिया था।
परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई मांग सूनने तयार नही था।

जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी। फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की ! उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ ब्रिटिश संविधान के आधार पर स्थापित हुई। उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये, डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४-राष्ट्रीयता में विषमता का समापन करनेवाले "समान नागरिकता" का सूत्रपात किया,जो सावरकरजी ने १९३८ जयपुर में मांग रखी थी।
डॉ.आंबेडकरजी ने हिन्दू कोड बिल बनाया और विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये।इसलिए नेहरू उनसे रुष्ट हुए और आंबेडकरजी मंत्री मंडल से बाहर !
             राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकरजी के विरोध मे रबरस्टेम्प पदाधिकारी बनाया गया। संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये थे ,उनमे से २४७३ पर ही बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को भारत एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया।

मात्र इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा ?" ५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे ? इसका कोई पता नही। और क्या इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी को जिम्मेदार कहोंगे ? आम्बेडकरजी के अनुयायी इस विषय को जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान स्वर्ण जयंती महोत्सव वर्ष में हिन्दू महासभा की मांग पर वाजपेई सरकार द्वारा गठित "संविधान समीक्षा समिती" के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ?
ये कुछ वाक्य बाबा साहेब आंबेडकरजी ने इस्लाम के विषय में कहे थे।
हिन्दू- मुस्लिम एकता, एक अंसभव कार्य हैं। भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक मात्र हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर और सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है। मुसलामनों की निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान ने भी अपने शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।
(प्रमाण सार डा डॉ.आंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्गमय, खण्ड १५१)

ब्रिटीश सोच का संविधान अस्थायी जातीय आरक्षण, राष्ट्रीयता में विषमता फैलाता है ! राष्ट्रीय स्तरपर आर्थिक पिछडे विषमता रहित राष्ट्रीय नागरिको को योग्यता/आवश्यकता के अनुसार आरक्षण हो ! इसमें कोई सांप्रदायिक,जातिवादी सोच नहीं उलटे पंथ निरपेक्ष,समानता की मांग है।
 नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्त लिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता,नागरिकता में बंधुत्व और अखंड पाकिस्तान के सतत षड्यंत्र के कारन आतंरिक नागरी सुरक्षा नही, महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है !

महंगाई के लिए अखंड भारत तोड़कर पाकिस्तान देने के बाद अराष्ट्रीय आश्रयार्थियो / घुसपैठियों की बढती जनसँख्या जिम्मेदार है ! सरकार चाहे किसी की भी हों ! यह दूरदृष्टि से जानकर दिनांक १० अगस्त १९४७ को हिन्दू महासभा भवन ,मंदिर मार्ग,नई दिल्ली-१ अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रिय अध्यक्ष स्वा.वीर सावरकरजी की अध्यक्षता में हिन्दू परिषद् संपन्न हुई ; सावरकर जी ने कहा," अब निवेदन,प्रस्ताव,विनती नहीं ! अब प्रत्यक्ष कृति का समय है। " सर्व पक्षीय हिन्दुओंको हिन्दुस्थान को पुनः अखंड बनाने के कार्य में लग जाना चाहिए !" ; "रक्तपात टालने के लिए हमने पाकिस्तान को मान्यता दी ? ऐसा नेहरू का युक्तिवाद असत्य है ; इससे रक्तपात तो टलनेवाला नहीं है। परन्तु,फिरसे रक्तपात की धमकिया देकर मुसलमान अपनी मांगे रखते रहेंगे। उसका अभी प्रतिबन्ध अभी नहीं किया तो इस देश में १४ पाकिस्तान हुए बिना नहीं रहेंगे। उनकी ऐसी मांगो को जैसे को तैसा उत्तर देकर नष्ट करना होगा। रक्तपात से भयभीत होकर नहीं चलेगा ! इसलिए ' हिन्दुओं को पक्ष भेद भूलकर संगठित होकर सामर्थ्य' संपादन करना चाहिए और देश विभाजन नष्ट करना चाहिए ! " ऐसा कहा था।
राष्ट्रिय जनता अभी नींद से जागी नहीं तो ? लव्ह जिहाद,भूमी जिहाद,जनसँख्या जिहाद,धर्मान्तरण से २०२१ में बहुसंख्यंक इस देश में अल्पसंख्य हो जाएगा। फिर न बचेगा सिक्ख,बौध्द,जैन,लिंगायत,वैष्णव,शैव,आर्य न अनार्य ! संविधान को समीक्षा करने के अधिकार से न रोके !
http://abhmsofficial.blogspot.in

No comments:

Post a Comment