अखंड भारत में कम्युनिस्ट आंदोलनों के जनक एम एन रॉय को कानपूर कांड में जुलाई १९३१ में बंदी बनाया गया था। ९ जनवरी १९३२ को उन्हें १२ वर्ष का कारावास सुनाया गया। मात्र,२० नवंबर १९३६ को मुक्त कर दिया गया था। यह कैसे संभव हुआ ?
१९४१ में कम्युनिस्ट पार्टी में दो फाड़ हुए। एक प्रतिबंधित और दूसरा गुट सीपीआई महामंत्री पी सी जोशी के नेतृत्व में कार्यरत था। बंदी नेताओ ने ब्रिटिश सरकार का साथ देना स्वीकार किया तब २४ जुलाई १९४२ को उनपर लगा प्रतिबंध हटा था।
यह वही गृहसचिव थे जो,वीर सावरकरजी की अंदमान मुक्ती पर कठोर हुए थे, रेजीनॉल्ड मैक्सवेल ! मैक्सवेल के साथ सी पी जोशी का पत्रव्यवहार भारत देश और देशभक्तों के साथ विश्वासघात था।
"An alliance existed between the Politbureau of fhe Communist Party & the Home Department of the Govt.of india by which Mr.P.C.Joshi was placing at the disposal of the Govt.of india,the services of his party members.
कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता एस एस बाटलीवाल ने दिनांक २२ फरवरी १९४६ को पत्रकार परिषद में इस समझौते उल्लेख किया और कहा कि,"पी सी जोशी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को देशभक्त आंदोलको के पीछे गुप्तचरी करने के लिए लगाया और CID को सूचना प्रेषित की। "
नेताजी सुभाषचंद्र बॉस आझाद हिन्द फ़ौज अन्य क्रांतिकारियों की गतिविधियों की जानकारी कांग्रेस नेता तथा सरकार को देना,उन्हें बंदी बनवाना कम्युनिस्टों का विशेष कार्य था।
(दैनिक बॉम्बे क्रॉनिकल दिनांक १७ मार्च १९४६ से स्ट्रगल फॉर फ्रीडम के लेखक आर सी मुजुमदार ने उद्घृत किया है। )
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