अल्पसंख्य धर्म की बाहुल्यता के पश्चात खंडित हुए भारत अर्थात हिंदुराष्ट्र की विश्व में धर्मवाद के कारन उपेक्षा होती रही है। जो भी देश उठा भारत में हिंदुराष्ट्रवाद के विरोध में खड़ा हुआ। क्योकि,हिंदुराष्ट्र के प्रहरी जातिवाद,धर्मांतरण,राष्ट्रीयता में विषमता पर गरल छोड़ते रहे है। बृहत्तर भारत ने सिकुड़ते हुए सन ६२९ के पश्चात स्थापित किये हुए अधर्म की मानसिकतावाले इस्लाम का संकट झेलकर खंड खंड होना स्वीकार किया ? शेष बचे हिंदुराष्ट्र में धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाया जा रहा है और ओबामा वापस लौटकर भारत को ही उपदेश दे रहा है। यह है,गांधीवादी मोदी और ओबामा की मित्रता का दुष्परिणाम !
अब इन गैर मुस्लिम राष्ट्रों में बढती इस्लामी जनसँख्या के कारन यही चित्र वहां भी दृष्योत्तर हो रहे है। यह क्यों और कैसे हो रहा है वह समझने के लिए पूर्व इतिहास और अधर्म की आज्ञा देनेवाले ग्रंथ को समझने की आवश्यकता है।
** ७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी। (संदर्भ:- २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी)
** एल.जी.वेल्स अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की रुपरेखा में लिखते है," जब तक दिव्य ग्रंथ का अस्तित्व है अरब राष्ट्र सभ्य राष्ट्रो की पंक्ती में बैठने के लायक नही है !"
** जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?
** यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था।
वह लिखते है,'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !'
९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए "इस्लामी बॉम्ब" का धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी।' ऐसा कहा। झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।
*अब कुरान में ऐसी कौनसी आयत है कि,अमेरिकन पाद्री उसे जलाने का अभियान छेड़ चुके थे ?
** कुराण की चौबीस आयतें और उन पर मेट्रो पोलीटिन कोर्ट, देहली का निर्णय
स्व.श्री इन्द्रसेन शर्मा ( तत्कालीन राष्ट्रिय उपाध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा ) और राजकुमार आर्य जी ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छपवाया जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत उनपर (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, १ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) न्यायालयीन विवाद चलाया गया। वह आयत पढ़े !
१ -“फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको’ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर लें ‘नमाज’ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।” (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ ख पृ. ३६८)
२ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१)
३ - “निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (५.४.१०१. पृ. २३९)
४ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१)
५ - “जिन लोगों ने हमारी “आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं।” (५.४.५६ पृ. २३१)
६ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र’ को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे।” (१०.९.२३ पृ. ३७०)
७ - “अल्लाह ‘काफिर’ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।” (१०.९.३७ पृ. ३७४)
८ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान’ वाले हो।” (६.५.५७ पृ. २६८)
९ - “फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।” (२२.३३.६१ पृ. ७५९)
१० - “(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।”
११ - “और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।” (२१.३२.२२ पृ. ७३६)
१२ - “अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों’ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (२६.४८.२० पृ. ९४३)
१३ - “तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (१०.८.६९. पृ. ३५९)
१४ - “हे नबी! ‘काफिरों’ और ‘मुनाफिकों’ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (२८.६६.९. पृ. १०५५)
१५ - “तो अवश्य हम ‘कुफ्र’ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।” (२४.४१.२७ पृ. ८६५)
१६ - “यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम’ की) आग। इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों’ का इन्कार करते थे।” (२४.४१.२८ पृ. ८६५)
१७ - “निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों’ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत’ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।” (११.९.१११ पृ. ३८८)
१८ - “अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक’ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम’ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।” (१०.९.६८ पृ. ३७९)
१९ - “हे नबी! ‘ईमान वालों’ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहनेवाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।” (१०.८.६५ पृ. ३५८)
२० - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।” (६.५.५१ पृ. २६७)
२१ - “किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन’ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया’ देने लगे।” (१०.९.२९. पृ. ३७२)
२२ - “…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०)
२३ - वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर’ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।” (५.४.८९ पृ. २३७)
२४ - उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान’ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (१०.९.१४. पृ. ३६९)
***** माननीय न्यायालय ने माना,"उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।" मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।” तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- “कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि," ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।”
(ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)
प्रेषित मोहमद का व्यंगचित्र छापनेवाले तथा अल बगदादी व्यंगचित्र छापनेपर, ७ जनवरी २०१५ पैरिस के धार्मिक पाखंड पर प्रहार करनेवाले "शार्ली हैब्डो" नियतकालिक पर इस्लामी दहशदगर्दों ने हमला कर १५ लोगों के प्राणहरण कर लिए। इस्लामिक बर्बरता के ४ हमलों के पश्चात् फ्रांसिसी संगठीत हुए।९ जनवरी को इस्लामी आतंकवाद के विरोध प्रदर्शन में लाखों लोगों का जत्था सडक पर उतरा।
शार्ली हैब्डो के विशेषांक की लाखो प्रतीयां तीन बार छपी,मोहमद की चित्र पुनः छपी थी।उसके साथ लिखा था, मैं हूं शार्ली.जाओ तुम्हे माफ कर दिया।
इसके पश्चात् ११ जनवरी को,डेस्ट्रन में सुदान से आएं शरनार्थी युवकों का गुट जो अेक सामाजिक संस्था के किराए के मकान में रह रहे थे।मुस्लिम शरणार्थी यहां आने के पश्चात् स्थानिय निवासीयों के साथ उनकी झडपे हो रही थी,उन्हें यहां से निकल जाने की धमकियां भी दी जा रही थी।एक दिन शरणार्थी ने दरवाजा खोला तो,बाहर ५ स्वस्तिक लाल रंग में रंगा था। उसने उस कथित सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता को शिकायत की।पुलिस में रिपोर्ट हुई,पुलिस इसे हल्के लिया और ११ जनवरी को शरणार्थीयों मे से एक खालिद इद्रिस बेहेरेई रात को सिगारेट लेने बाहर निकला वह वापस लौटा नहीं।सुबह धुंडनेपर उसका शव मकान के पिछे मिला।इस मुद्दे को हवा देकर कथित सामाजिक संस्था ने गडबडी फैलाने का प्रयास किया।इस घटना की जांच में संदेहास्पद नाम आगे आया,पेगीडा !
"पॅट्रिओटिक युरोपियन अगेन्स्ट इस्लामायझेशन अॉफ द वेस्ट" जर्मन में इसका संक्षेप मे नामकरण हुवा,पेगीडा !
यह संस्था अेक वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई और जर्मनी के बाहर फ्रांस,पोर्तुगाल,ब्रिटन तक फैली।प्रत्येक देश में इसके समर्थक है और समय समय पर इस्लामी आतंकवाद विरोध प्रदर्शन के लिये सडक पर उतरते है।इस्लाम विरोधी साहित्य भी बेचते है।विविध देशों में मुसलमानों की बढती जनसंख्या और संकट,जिसके कारण मूल निवासीयों पर हो रहे अत्याचार का उल्लेख करते समय हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का उदाहरण दिया गया है।
इस संस्था के अध्यक्ष लूट्झ बाकमॅन ४० वर्षिय है और गत दो दशक से जर्मनी विचारधारा का प्रसारक रहा लूट्झ शेफ था।इसके भाषण जहाल-आक्रमक होने के कारण डेस्ट्रन में लोकप्रियता प्राप्त हुई।शार्ली हैब्डो के समर्थन में चार शहरों में निकले प्रदर्शनकारीयों की संख्या से स्पष्ट है कि,युरोपियन देशों में भी इस्लाम विरोधी जनभावना अधिक तीव्र हो रही है।
हिटलर जैसी वेशभुषा किया हुवा अपना चित्र और उसके निचे "ही इज बॅक" लिखकर प्रसार माध्यमों में आया तो,सरकार ने उसे बंदी बनाया,पेगीडा को नेस्तनाबुत करने की बात हो रही है।विशेष बात यही है कि,इस्लाम के भस्मासुर के विरोध में विश्व खडा हो रहा है।
और खंडित भारत को अखंड पाकिस्तान बनाने की खुली योजनाओं पर हमें धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाया जा रहा है।बब्बर शेर कहे गए मोदी आसाम की चुनावी सभा में अजान पर भाषण रोकने की ब्रिटिश कॉंग्रेस की परंपरा का वहन कर रहे है।
लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय AMU के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" हिन्दुस्थान बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है,लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।
१८ अक्तूबर १९४७ के दैनिक नवभारत में एक लेख छपा था," विभाजन के बाद भी पाकिस्तान सरकार और उसके एजंट भारत में प्रजातंत्र को दुर्बल बनाने तथा उसमे स्थान स्थान पर छोटे छोटे पाकिस्तान खड़े करने के लिए जो षड्यंत्र कर रहे है उसका उदहारण जूनागढ़,हैदराबाद और कश्मीर बनाये जा रहे है।" फिर भी हम जागृत नहीं हुए तो,*श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा ने प्रकाशित किया था।
" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी. १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ! ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे ! #हिन्दूअल्पसंख्य२०२१
रही बात शुध्दिकरण की, यह प्रक्रिया निरंतर चल रही है। जम्मू-कश्मीर शासक जैनुल आब्दीन के कार्यकाल में पंडित श्रीभट्ट ने सनातनियों का विरोध झेलकर हजारो (पूर्व हिन्दू) धर्मातरितो का शुध्दिकरण कर हिन्दुओं को "कश्मीरी पंडित" बनाया था। छत्रपती शिवाजी महाराज ने धर्मांतरित नेताजी पालकर का शुध्दिकरण किया था। गुरु श्री तेगबहादुर महाराज ने औरंगजेब का छल स्वीकार किया परंतु,धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया।हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद-पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने "भारतीय शुध्दि सभा" बिड़ला लाइन्स में बनायीं। धर्मान्तरितो का शुध्दिकरण कोई नया विषय नहीं है।अब्दुल रशीद ने इस ही लिए स्वामी श्रध्दानंदजी की शुध्दी की आड़ में मिलकर हत्या की थी।
प्रश्न फिर भी खड़ा है कि,सत्तांतर के पश्चात क्या हमारी विश्वसनीय सरकार है ?
या हिन्दू राजसत्ता स्थापित करने के वीर सावरकरजी के ९ अगस्त १९४७ के भाषण के अनुसार सक्रियता दिखानी है ? या पेगिडा का भारत में प्रसार करना चाहिए ?
Dt.27/03/2016 Edited
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