Friday 18 December 2015

क्या गाँधी ने अंतिम समय " हे राम " कहा था?

 गाँधी वध की प्रथम जानकारी विश्व में प्रसारित करनेवाले जेम्स मायकल को भी विश्वास नहीं. युनायटेड प्रेस इंटर नैशनल के लिए कार्यरत मायकल गाँधी वध के समय बिडला हॉउस में थे.मायकल के अनुसार सरकारी पत्रक में इसका उल्लेख किया है. " हे राम"गाँधी के अंतिम शब्द ! गोली लगने के ७ मिनट पश्चात् गाँधी का निधन हुवा. उस बिच उन्होंने कुछ नहीं कहा ऐसा 'फोर्बस'के संपादक मायकल ने १९९७ में खुलासा किया.गोली दागने के पहले गाँधी-नाथूराम के बिच संवाद हुवा था ऐसा कहनेवाले उन्हें वहा मिले थे," देरी कर दी !" ऐसा गाँधी ने नाथूराम को कहा था.

करीब 90 साल के हो गए के.डी. मदान के जेहन में उस मंजर की यादें जीवंत हैं जब नाथूराम गोडसे ने शांति के दूत को गोलियों से छलनी कर दिया था।
के.डी. मदान उस दिन भी 5, अल्बुकर्क रोड (अब 5, तीस जनवरी मार्ग) पर अपनी रिकार्डिंग मशीनों के साथ पहुंच गए थे। समय रहा होगा शाम के चार-साढ़े चार बजे। उन्हें बापू की प्रार्थना सभा की रिकार्डिंग करनी होती थी। प्रार्थना सभा को आकाशवाणी रात के साढ़े आठ बजे प्रसारित करती थी।

गाली और गोली से परे गांधी-दर्शन
गांधीजी की प्रार्थना सभाओं में भजन सुनने और बापू के दर्शन करने से मदान को बेहद आनंद की अनभूति होती थी इसलिए वे उसे इस मौके को चूकते नहीं थे। बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा का सिलसिला सितम्बर,1947 से शुरू हुआ था और तब ही से मदान रिकार्डिंग के लिए आने लगे थे।
बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति भवन) में ठीक उस स्थान की तरफ इशारा करते हुए जहां पर बापू की हत्या हुई थी, मदान कहते हैं, जब बिड़ला हाउस के भीतर से गांधीजी प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए निकले तब मेरी घड़ी के हिसाब से 5 बजकर 16 मिनट का वक्त था। हालांकि यह कहा जाता है कि 5 बजकर 17 मिनट पर उन पर गोली चली... तो मैं समझता हूं कि बापू 5.10 पर निकले होंगे।
उस दिन बापू से मिलने सरदार पटेल आए थे कुछ जरुरी बात करने के लिए.... आम तौर पर बापू 5.10 पर निकल जाते थे, लेकिन उस दिन कुछ देर हो गई थी ... तो सरदार पटेल को खुद ही कहा कि आप जाइए मेरी प्रार्थना का वक्त हो गया है... मुझे जाना है। वो 5.10 पर निकले होंगे और जब तक वहां पहुंचे 5.15 मिनट से ऊपर हो गए थे।
गांधी को किस तरह याद रखें हम?
फिर वे उस रास्ते को इशारा करके बताते हैं जिससे गांधीजी प्रार्थना सभा स्थल पर आया करते थे। उनकी आयु और उनके स्वास्थ्य की वजह से हमेशा उनके कंधे और हाथ मनु और आभा के कंधों पर रहते थे। उस दिन भी उन्हीं के कंधों पर उनका हाथ था और यहां तक पहुंचे।
मदान बताते हैं, गांधीजी सितंबर में कलकत्ता से दिल्ली आए। कभी बिड़ला भवन तो कभी मंदिर मार्ग में ठहरते थे। सितंबर 1947 में ऑल इंडिया रेडियो ने तय किया कि प्रार्थना सभा रोजाना रिकॉर्ड की जाएगी और उसे 8.30 बजे प्रसारित किया जाएगा। जब दफ्तर में पूछा गया तो मैंने कहा कि मैं ही चला जाया करूंगा। मैं ठीक 4.30 यहां आ जाया करता था और इक्विपमेंट सेट कर देता था और 5 बजे गांधीजी आते थे। वे वक्त के बड़े पक्के थे।
तीस जनवरी के दिन रोज की तरह गांधीजी प्रार्थना सभा के लिए आए। आभा और मनु उनके साथ थे। तभी पहली गोली की आवाज आई। मुझे ऐसा लगा कि दस दिन पहले जो पटाखा चला था वैसा ही हुआ है। उसी एहसास में था कि दूसरी गोली चली। मैं इक्विपमेंट छोड़कर भागा। उस तरफ गया जहां काफी भीड़ थी। वहां पर बहुत से लोग इकट्ठे थे। मैं और आगे आया तभी तीसरी गोली चली मैंने अपनी आंखों से देखा। बाद में पता चला कि गोली चलाने वाले का नाम नाथूराम गोडसे था। उसने खाकी कपड़े पहने थे। उसका कद काफी मेरे जैसा ही था। डीलडौल भी मेरी जैसी ही थी। तीसरी गोली चलाने के बाद उसने दुबारा से हाथ जोड़े। मैंने सुना है पहली गोली चलाते हुए भी हाथ जोड़े थे उसके बाद लोगों ने कर उसे पकड़ लिया उसने किसी भी तरह का विरोध नहीं किया बल्कि अपनी जो रिवॉल्वर थी उसे भी उनके हवाले कर दिया।
अचानक पहुंची पुलिस
गांधीजी का यह आदेश था कि कोई भी पुलिस वाला उनकी प्रार्थना सभा में नहीं होगा। लेकिन मदान बताते हैं, जब यह हादसा हुआ तो कुछ लोगों ने पुलिस को इत्तला की होगी। पुलिस वहां आ गई और हत्यारे को पुलिस के हवाले कर दिया। मैंने उसे ले जाते हुए देखा।
दरअसल, वहां पर पुलिसकर्मी इसलिए नजर आए क्योंकि समीप ही स्थित संसद मार्ग थाने पर तैनात डीएसपी सरदार जसवंत सिंह और तुगलक रोड थाने में इंस्पेक्टर दसौंदा सिंह अचानक पहुंच गए थे। जसवंत सिंह के पोते संजीव चौधरी ने बताया कि ये दोनों पुलिस अफसर तुगलक रोड थाने से बिड़ला हाउस इसलिए महिन्द्रा जीप पर आए ताकि देख सकें कि वहां पर हालात काबू में हैं। वे जैसे ही गेट पर पहुंचे, गोली चलने की आवाज आई। दोनों भागकर अंदर गए। वहां भगदड़ का मंजर था। गांधीजी को बिड़ला हाउस के अंदर ले जाया जा रहा था।
घटनास्थल पर ही पकडा गया गोडसे
दोनों पुलिसवालों ने वहां कुछ लोगों के साथ मिलकर तुरंत गोडसे को पकड़ लिया। मदान ने कहा कि गोडसे के प्रति उनके मन में नफरत का भाव है। वे उसक बारे में बात करने से बचते हैं। गोडसे के बारे में इतना ही जानता हूं कि मैंने उसे गोली चलाते हुए देखा था। उस दिन उसने खाकी कपड़े पहने थे।
गांधीजी ने बचाई थी नौकरी
गांधीजी मदान को रेडियो वाला बाबू कह कर बुलाते थे। मदान बताते हैं, "शाम 5 बजे से 5.30 बजे उनकी स्पीच का समय होता था। उसके बाद 8.30 पर मैं उसे रेडियो पर प्रसारित करता था। कभी-कभी गांधीजी आधे घंटे से ज्यादा बोल जाते थे। मेरे लिए बड़ा मुश्किल होता था गांधीजी की स्पीच को एडिट करना। मैंने यह बात बापू की सहयोगी डॉ. सुशीला नायर को बताई कि उन्हें कहे कि एडिटिंग करने में काफी परेशानी होती है। उन दिनों एडिटिंग सिस्टम भी काफी खराब हुआ करता था। सुशीला जी सुनते ही गुस्सा हो गई कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई गांधी की बातों को एडिट करने की, मैं इसकी शिकायत सूचना और प्रसारण मंत्री सरदार पटेल से करूंगी। मैंने सोचा कि मेरी नौकरी तो जानी ही है तो मैंने बड़ी हिम्मत करके एक दिन प्रार्थना सभा से ठीक पहले अपनी परेशानी गांधीजी को बताई। गांधीजी ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा, जैसे ही 28 मिनट पूरे हो आप उंगुली उठा देना। उसके बाद साढ़े 28 मिनट पर मैं उंगली उठा दिया करता था, जैसे ही मेरी उंगली गांधीजी देखते थे, वे कहते, बस, कल बात करेंगे।"
तुगलक रोड थाना
उन दिनों यह जगह संसद मार्ग थाने के अंतर्गत आती थी, 1941 में तुगलक रोड थाना बना। जसवंत सिंह पंजाब पुलिस के अफसर थे। पंजाब पुलिस के अफसरों को दिल्ली में पांच साल प्रतिनियुक्ति पर गुजारने होते थे। वे 1952 में वापस पंजाब चले गए थे। उनकी 1964 में करनाल में मृत्यु हो गई थी।
गांधीजी की हत्या का एफआईआर
पुलिस ने गांधीजी की हत्या का एफआईआर कनाट प्लेस में एम-56 में रहने वाले नंदलाल मेहता से पूछ कर लिखा। मेहता उस वक्त वहां पर ही थे। मेहता के बारे में अधिक जानकारी जुटाने के इरादे से हम एम-56 में गए तो वहां पर किसी ने उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी। हालांकि कुछ लोगों ने बताया कि मेहता गांधीवादी थे। वे गुजराती मूल के थे। वे 1968 में अहमदाबाद चले गए थे। वहां पर ही उनकी मौत हो गई थी।
पहले भी हुआ था बापू पर हमला
यह सबको मालूम है कि 30 जनवरी,1948 से पहले भी गांधीजी पर बिड़ला हाउस में हमला हुआ था। उस दिन भी मदान वहां पर थे। जनवरी के महीने की 20 तारीख को प्रार्थना सभा हो रही थी यहां पर। सभी बैठे हुए थे। तभी एक विस्फोट हुआ। किसी को चोट तो नहीं आई लेकिन ये पता चला कि किसी ने पटाखा चलाया है। बाद में मालूम हुआ कि वो एक क्रूड देसी किस्म का बम था जिसमें नुकसान पहुंचाने की ''कपैसिटी" नहीं थी। अगले दिन अखबारों में छपा कि मदन लाल पाहवा नाम के शख्स ने पटाखा चलाया था और उसकी ये भी मंशा थी कि गांधीजी को किसी तरीके से चोट पहुंचाई जाए। उसी दिन प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा कि जिस किसी ने भी यह कोशिश की थी उसे मेरी तरफ से माफ कर दिया जाए।
- विवेक शुक्ला
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