रास्वसंघ की जननी हिन्दू महासभा ने गुलाम नबी आझाद की टिपण्णी पर कांग्रेस की मुस्लिम धर्मान्धता का आरोप लगाया ! राष्ट्रिय प्रवक्ता प्रमोद पंडित जोशी ने ब्लॉग के माध्यम से प्रेस नोट जारी कर कहा है।
कांग्रेस के गुलाम और कहने के नबी ,जमीयत उलेमा ए हिन्द के मंच से संघ की तुलना ISIS से कर रहे थे।जमीयत के मंच पर तमाम धार्मिक नेताओं के साथ ही कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेता भी मौजूद थे।इस कार्यक्रम के मंच पर जमीयत के अध्यक्ष अरशद मदनी और महमूद मदनी समेत यूपी की समाजवादी पार्टी सरकार में कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर, कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल और नवाब इकबाल महमूद जैसे कई नेता मौजूद थे।सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम भी अर्थात सर्व दलीय मुस्लिम संमेलन में, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने जमीयत के मंच पर पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी का लिखा संदेश भी पढ़ा। कांग्रेस ने इस मंच पर खड़े गुलाम को धर्मांध नहीं कहा ! यही आश्चर्य है ! क्योकि,यही वह संघटन है जो मुंबई आझाद मैदान दंगाईयो को मुक्त करने के लिए न्यायालयीन सहायता कर रहा है।२६/११ के हमलावर रहे कांग्रेस के कारन आसाम,बंगाल,कश्मीर में घुसपैठ और आतंकी घटनाओ को प्रोत्साहन मिलता रहा है। मीम के सांसद और विधायक के आंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के साथ सम्बन्ध है। जिसे कांग्रेस ने और बाद में अब भाजप ने सहायता ली और दी है।
* रास्वसंघ स्थापना और हिन्दू महासभा
अखिल भारत हिन्दू महासभा वरिष्ठ नेता,राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मवीर डॉक्टर बा शि मुंजे जी के हिन्दू महासभा अधिवेशन पटना प्रस्ताव के साथ सन १९२२ भाई परमानंदजी द्वारा लाहोर में स्थापित "हिन्दू स्वयंसेवक संघ",तरुण हिन्दू सभा संस्थापक गणेश दामोदर सावरकर उपाख्य बाबाराव,गढ़ मुक्तेश्वर दल संस्थापक संत श्री पाँचलेगांवकर महाराज के सामायिकीकरण के साथ मुंजेजी के मानसपुत्र डॉक्टर ; स्वातंत्र्य साप्ताहिक के संपादक हेडगेवारजी की शिरगांव-रत्नागिरी में स्थानबध्द वीर सावरकरजी से मंत्रणा कर लौटने के पश्चात उनके नेतृत्व को संघचालक के जिम्मेदारी के साथ हिन्दू महासभा की पूरक गैर राजनीतिक,हिन्दू संरक्षक संस्था RSS विजयादशमी सन १९२५ को मोहिते बाड़ा, नागपुर में स्थापित हुई।
क्रांतिकारी बाबाराव सावरकरजी के प्रस्ताव पर विदेश में "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" और भारत में "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" नामकरण हुआ तथा बाबारावजी ने लिखी मातृवंदना रा स्व संघ ने तथा ध्वज वंदना महासभा ने स्वीकार की है।अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रा रामसिंगजी ने रा स्व संघ की प्रथम शाखा देहली में,हिन्दू महासभा भवन में लगाई थी। फिर नागपुर से भेजे गए देहली संघ प्रचारक बसंतराव ओक दो वर्ष हिन्दू महासभा भवन में संघ की शाखा लगाया करते थे। {संदर्भ-हिंदुत्व की यात्रा-ले गुरुदत्त}
रा स्व संघ और महासभा परस्पर पूरक थे। {संदर्भ-मासिक जनज्ञान दिसंबर १९९८ ले शिवकुमार मिश्र} संघ के विस्तार को ध्यान में रखकर हिन्दू महासभा के संगठनात्मक विस्तार को अनुलक्षित किया गया। इसलिए संघ का महासभा में विलय करके महासभा को सशक्त करते हुए डॉक्टर हेडगेवारजी के नेतृत्व में ही "हिन्दू मिलिशिया" का संगठन खड़ा करने का प्रयास संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने सन १९३९ में किया था। {संदर्भ-धर्मवीर मुंजे जन्म शताब्दी विशेषांक ले वा कृ दाणी} हेडगेवारजी की असहमती के कारन तथा आगे उनकी असमय मृत्यु के पश्चात हिन्दू संगठन तथा हिन्दू राजनीती-अखंड भारत के लिए हानिकारक सिध्द हुई।
सन १९३८ नागपुर अधिवेशन में वीर सावरकर अखिल भारत हिन्दू महासभा के दूसरी बार राष्ट्रिय अध्यक्ष चुने गए तब सर संघचालक हेडगेवारजी मध्य भारत हिन्दू महासभा उपाध्यक्ष थे। उनके आयोजन पर नागपुर में वीर सावरकरजी को सशस्त्र संघ स्वयंसेवको ने प्रदर्शन के साथ मानवंदना दी थी । इस शोभायात्रा में हाथी पर बैठकर हिन्दू महासभाई बालासाहेब देवरसजी ने शक्कर बांटी थी।
३०/३१ दिसंबर १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा अधिवेशन के लिए वीर सावरकर तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए।इस अधिवेशन में पदाधिकारियों के भी चुनाव हुए। डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर तो,संघ के वरिष्ठ अधिकारी एम एम घटाटेजी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चुने गए। हिन्दू महासभा भवन कार्यालय मंत्री रहे स्व मा स गोलवलकरजी महामंत्री पद का चुनाव हार गए और इस हार का ठीकरा उन्होंने वीर सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा से पृथक हुए।राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेडगेवारजी ने उन्हें क्रोध शांत करने संघ कार्यवाहक स्व पिंगलेजी के साथ सहयोग के लिए भेजा। दुर्भाग्यवश २१ जून १९४० को अकाल समय हिन्दू महासभा राष्ट्रिय उपाध्यक्ष हेडगेवारजी का निधन हुआ। ऐसे में पिंगलेजी को सरसंघ चालक की जिम्मेदारी संभालनी थी।परंतु, गोलवलकरजी उस स्थान पर विराजे। इनके कारन हिन्दू महासभा और संघ में सावरकरजी के विरोध के लिए दूरिया बढ़ी। {संदर्भ-हिन्दू सभा वार्ता २२ फरवरी १९८८ लेखक अधिवक्ता भगवानशरण अवस्थी}
गोलवलकरजी के निकटवर्ती स्वयंसेवक,पत्रकार,लेखक गंगाधर इन्दूरकरजी ने "रा स्व संघ-अतीत और वर्तमान" पुस्तक लिखी है। वह लिखते है,"वीर सावरकरजी की सैनिकीकरण की योजना के विरोध का कारन,यह भी हो सकता है कि,उन दिनों भारतभर में और खासकर महाराष्ट्र में वीर सावरकरजी के विचारों की जबरदस्त छाप थी। उनके व्यक्तित्व और वाणी का जादू युवकोंपर चल रहा था। युवक वर्ग उनसे बहुत आकर्षित हो रहा था ऐसे में,गोलवलकरजी को लगा हो सकता है कि,यह प्रभाव इसप्रकार बढ़ता गया तो,युवकों पर संघ की छाप कम हो जाएंगी। संभवतः इसलिए हिन्दू महासभा और सावरकरजी से असहयोग की नीति अपनाई हों।" इस विषयपर इन्दूरकरजी ने संघ के वरिष्ठ अधिकारी अप्पा पेंडसे से हुई वार्तालाप का उल्लेख करते हुए लिखा है कि,"ऐसा करके गोलवलकरजी ने युवकोंपर सावरकरजी की छाप पड़ने से तो,बचा लिया। पर ऐसा करके गोलवलकरजी ने संघ को अपने उद्देश्य से दूर कर दिया।"
इस कारणवश संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने १७ मार्च १९४० को नागपुर में जगन्नाथप्रसाद वर्मा के संचालन में "रामसेना" का गठन किया और हिन्दू महासभा-सावरकर समर्थक युवकों को इसमें समाविष्ट किया। बंगाल में "हिन्दू रक्षा दल" गठित करने में सावरकर भक्त डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने सहयोग किया। सावरकर जन्म दिन के उपलक्ष में अमरवीर पंडित नथुराम गोडसेजी ने सावरकर निष्ठ हिंदुओं का संमेलन पुणे में १० मई से २८ मई १९४२ संपन्न करने समारोह किया उसके कार्यवाह वासुदेव बलवंत गोगटे {हॉटसन की गोली मारकर वध करनेवाले} थे।सावरकरजी की उपस्थिती में शिवराम विष्णु मोडकजी को "हिन्दुराष्ट्र दल" दल चालक घोषित किया गया। ( इसप्रकार संघ स्वयंसेवक रहे गोडसेजी संघ कार्यकर्ता नहीं थे ! यह कहने का अवसर संघ को प्राप्त हुआ। ) शेष रामसेना हिन्दुराष्ट्र दल में विलीन हुई और डॉक्टर दत्तात्रय सदाशिव परचुरेजी ने मध्यप्रांत में "हिन्दुराष्ट्र सेना" बनाकर मध्यप्रांत में हिन्दू महासभा को सशक्त राजनीतिक विकल्प के रूप में खड़ा किया था। {संदर्भ-महाराष्ट्र हिन्दू महासभा का इतिहास लेखक मामाराव दाते}
रही बात गांधी वध की ! नेहरू-पटेल-मोरारजी देसाई-कमिश्नर नागरवाला को वध के प्रयास की जानकारी पहले से ही थी।
गांधी ने पटना में कांग्रेस विसर्जन की मांग करके नेहरू का रोष ओढ़ लिया था। वधकर्ता भले ही गोडसे हिन्दू महासभाई थे खंडित भारत में नेहरू को अनशन से मनवानेवाला,प्रधानमंत्री पदपर आरूढ़ करनेवाले से कोई लाभ की स्थिती प्राप्त करने का प्रयोजन शेष नहीं बचा था। इसलिए जानकारी रहते हुए भी गांधी को बलि का बकरा बनाया गया। गांधी को मोतीलाल नेहरू के पिट्ठू सी आर दास ने हत्या-कारावास जैसे दबाव में नेहरू के तबेले में बांध दिया। यदि,हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य मालवीयजी का साथ छोड़कर गांधी ,नेहरू के गुलाम न बनते तो,
लाहोर से ढाका व्हाया देहली दस मिल चौड़े कॉरिडोर के प्रस्ताव पर न उनका वध होता न गोलवलकरजी की मदत के बिना १९४६ के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलता न नेहरू विभाजन करार पर हस्ताक्षर करके भारत का प्रधानमंत्री बन सकता था ?
कांग्रेस पर गुरु गोलवलकरजी के अनंत उपकार है। इसलिए,संघ को कुछ भी बोलने से पूर्व कांग्रेस को दस बार सोचना चाहिए ! गुलाम नबी आझाद की हिन्दू महासभा तीव्र शब्दों में निंदा करती है !
1949 अयोध्या आंदोलन में सफल हिन्दू महासभा का जनाधार न बढे इसलिए नेहरू-पटेल के इशारेपर गुरूजी ने बसंतराव ओक की सहायता से डॉ मुखर्जी को हिन्दू महासभा तोड़कर जनसंघ नहीं बनाया होता तो,कांग्रेस की क्या स्थिती बनती चुनाव में ? इसपर गंभीरता से सोचे ,कांग्रेस नेता संघ को कभी न कोसे ! गुरूजी के उपकार पर सत्ता संपादन कर वर्षो तक जनसंघ द्वारा हिन्दू महासभा के वोट कटिंग का लाभ कांग्रेस ने उठाया है !
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