१७ सितम्बर १९४८ को मराठवाडा निजाम की चंगुल से आजाद हो गया.उसमें स्वातंत्र्यवीर सावरकर एवं बाबासाहब आंबेडकरजी की क्या भूमिका रही आये,देखें:-
वीर सावरकर ने ११ अक्तूबर १९३८ को भागानगर[हैदराबाद] नि:शस्त्र प्रतिकार मंडल की स्थापना की घोषणा पूणे की शनिवारवाडा की सभा में कर दी.
श्री वाय.डी.जोशी और श्री आ.गो.केसकर की प्रेरणा इसके पीछे रही है.
वे चाहते थे कि वीर सावरकर हैदराबाद के नि:शस्त्र सत्याग्रह का नेतृत्व करे.
इस नि:शस्त्र प्रतिकार मंडल के अध्यक्ष पद पर मराठा अखबार के संपादक श्री ग.वि.केतकर और सचिव के पद पर नथुराम गोडसे को नियुक्त किया.
अन्य सभासदों में श्री शंकर दाते और मसूरकर महाराज शामिल थे.
मण्डल के सदस्योंने महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों और गांव-गांव में जाकर नि:शस्त्र सत्याग्रह के प्रति चेतना जगाने के कार्य को प्रारम्भ कर दिया.
हैदराबाद में हो रहे हिन्दुओंपर अत्याचार की कहानी घर-घर जाकर बताना,विग्यापन छपवाकर बांटना,चन्दा इकट्ठा करना,सत्याग्रह के लिए स्वयंसेवकों को तय्यार करना,इत्यादि कार्य बडी तीव्र गति से प्रारम्भ किए गए.
२५ नवम्बर १९३८ के एक वक्तव्य में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने नि:शस्त्र सत्याग्रह की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा:-
"राज्य में हिंदुओं के समूल उच्छाद पर क्या कहें!हिंदुओं ने अपने उपर हो रहे अन्याय के प्रति कानूनी ढंग से सभी उपाय किये है.जब निजाम सरकार हिंदू प्रजा की रक्षा के प्रति अपना उत्तरदायित्व ही नही समझती तो विवश होकर सत्याग्रह के लिए कदम उठाना पड रहा है.राज्य में हो रहे हिंदुओंके दमन पर आर्यसमाज ने बाहर के हिंदुओं का ध्यान आकृष्ट किया है.उसके हजारो कार्यकर्ता जेलों में बंद किये जा चुके है.कईयों को मौत के घाट उतार दिया गया है."
स्वातंत्र्यवीर सावरकर की अध्यक्षता में २८ और २९ दिसम्बर १९३८ को नागपुर में हिंदुमहासभा का अधिवेशन सम्पन्न हुआ.
इसमें भागानगर[हैद्राबाद]नि:शस्त्र प्रतिकार मंडल के आंदोलन को मान्यता दी गई.
श्री ग.वि.केतकर की अध्यक्षता में गठित मंडल को विसर्जित कर इसकी पुनर्रचना की गयी.
१९जनवरी १९३९ से यह आंदोलन हिंदू महासभा के तत्वावधान में प्रारम्भ करने का निश्चय किया गया.
सर गोकुलचंद नारंग,भाई परमानंद,इंद्रप्रकाश और चांदकरण शारदा की एक समिती सावरकर जी ने बनाई.सावरकर जी के निर्देशानुसार अनेक स्थानों पर महासभा की ओर से आंदोलन किए गए.
स्वयंसेवकों के लिए शिविर खोले गए.
सावरकरजी ने धूलपेठ दंगों की निष्पक्ष जांच के लिए शंकर उपाख्य मामाराव दाते,वि.स.मोडक,ग.स.काले और अन्यों को भेजा.
उनके रिपोर्ट के अनुसार स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने ११ जनवरी सन १९३९ को हैद्राबाद के प्रधान मंत्री श्री अकबर हैदरी को पत्र लिखकर राज्य में हिंदुओं पर हो रहे अन्याय,अत्याचार की शिकायत की तथा इस पर रोक लगाने का अनुरोध किया.उन्होंने पत्र में लिखा-
"मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि महासभा को राज्य के मुसलमानों अथवा निजाम के प्रति कोई द्वेष नही है,महासभा तो यह चाहती है कि चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू सभी को समान रूप से प्रगति का अवसर मिले,नौकरियों में वर्ग विशेष को ध्यान में रखकर स्थान न दिया जाय,बल्कि योग्यता के आधार पर नौकरियों में समावेश हो,न्याय और समान तत्व पर कायदे कानून की रचना हो.महासभा वैधता-पूर्ण उपायों द्वारा सम्मानपूर्वक समझौता करने के पक्ष में है.यदि यह प्रस्ताव सरकार ठुकराती है तो विवश होकर सत्याग्रह तीव्र करना पडेगा."
इस पत्र के उत्तर में अकबर हैदरी ने हिन्दुओंपर हो रहे अन्याय अत्याचार की बात को अस्वीकार कर दिया,भेदभाव की नीति चल रही है इस बात से भी इन्कार किया.
इससे सावरकरजी ने आंदोलन को और तीव्र किया.
राज्य में स्पष्ट रूप से नागरिक अधिकारों की मांग सावरकरजी ने रखी.
सावरकर जी समस्त भारतीयों को निजाम के खिलाफ खडा करना चाहते थे और इस मजहबी हुकूमत को नष्ट कर प्रजा का शासन लाना चाहते थे.
इस कार्य के प्रचार-प्रसार के लिए श्री भिडे और नथुराम गोडसे को दक्षिण महाराष्ट्र में तथा श्री दाते और बाबूराव काले को बारसी के दौरे पर भेजा गया.
पूरे महाराष्ट्र से कार्यकर्ताओं के जत्थे हैदराबाद की ओर निकल पडे.
हैदराबाद में वंदे मातरम गीत गाने पर प्रतिबंध था.
अन्य कार्यकर्ताओं के साथ नथुराम गोडसे ने हैदराबाद जाकर वंदे मातरम गीत गाया,उसे २५ कोडों की सजा सुनायी गयी.
हर कोडॆ की फटकार के साथ उसने वंदे मातरम की उंची आवाज लगायी
.[अंत में जब सरदार पटेल ने निजाम के खिलाफ पुलिस ऐक्शन लिया तब नथुराम ने कहा कि महात्माजी के रहते यह कार्रवाई करना सरदार पटेल के लिए बेहद कठिन था.]
१० महिनों में कुल ४००० स्वयंसेवक जेलों में जा चुके थे.
पूना,मंबई,नागपूर,अकोला आदि स्थानों पर स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण दिया गया और हैद्राबाद,गुलबर्गा,बीदर,नांदेड,हदगांव,मुरुम,तुलजापुर,जालना,परभणी,औरंगाबाद,वैजापुर,पैठण आदि स्थानों पर सावरकर जी के निर्देशानुसार सत्याग्रह कर जेल भरे गये.
१३ सत्याग्रहियों की जेलों में मृत्यू हो गई.
कई जगह सत्याग्रहियों के उपर रजाकारी गुंडों ने हमला किया.
सावरकरजी ने २४ अप्रैल १९३९ को सरकार को आगाह किया कि यदि सरकार शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह कर रहे सत्याग्रहियो को गुंडों के हाथ सौंपकर अपने उत्तरदायित्व से मुकरना चाहती है तो इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी.सत्याग्रहियों की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है.सरकार सत्याग्रहियों को हिंसा और दमन के द्वारा आतंकित कर उन्हें सत्याग्रह से रोक देगी ऐसा समझना उसकी भूल होगी.इससे सत्याग्रह शिथिल होने की बजाय और तीव्र होगा.हिन्दुओं के कष्टों का उचित निराकरण ही राज्य में स्थायी शांति ला सकता है.
डा.आंबेडकर जी की भूमिका:-मराठवाडा के साथ पूरा हैदराबाद संस्थान का दलितवर्ग एक तरफ निर्धनता और दूसरी तरफ निजामी अत्याचार,दो पाटों के बीच पिसा जा रहा था.निजाम मीर उस्मान अली खान ने डा.बाबासाहब आंबेडकर को २५ करोड का लालच दिखाकर इस्लाम स्वीकारने का प्रस्ताव भेजा था.यदि दलितवर्ग इस्लाम को ग्रहण करता है तो उन्हें ऊंचे ओहदों पर रखा जाएगा इत्यादि सुविधा देने की बात कही थी.डा.अम्बेडकर ने निजाम के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि,"राज्य के दलित भाई आर्थिक दृष्टी से जरूर निर्धन है लेकिन वे मन से निर्धन नही है.रही मेरे इस्लाम ग्रहण करने की बात मेरे जमीर को खरीदने की ताकत किसी में भी नही है."बाबासाहब अम्बेडकर ने १८-११-१९४७ तथा २७-११-१९४७ को एक परिपत्र निकालकर जोर-जबरदस्ती धर्मांतरित किये हुये दलितों को आवाहन किया की वे वापस घर आवें.यह पत्र २८नवम्बर के नैशनल स्टैण्डर्ड नामक दैनिक में प्रकाशित किया गया.
सावरकरजी के अस्वस्थ रहते हुए इस आंदोलन का नेतृत्व आगे चलकर आर्य समाज के पं नरेंद्रजी ने और अंत में स्टेट कांग्रेस के स्वामी रामानंद तीर्थ ने किया.इस आंदोलन से कई राष्ट्रवादी मुस्लिम भी जुडे,जैसे की-पत्रकार शहीद शोएब उल्ला खान,अजमेर के सय्यद फय्याज अली,मौलाना सिराजुल हसन तिरमिजी,पंजाब के समाजवादी कार्यकर्ता मुंशी अहमद्दीन,कराची के मियां मौसन अली,सातारा के मौलाना कमरुद्दिन,इत्यादि.अंत में सरदार पटेल ने लिए हुए पुलिस ऐक्शन के बाद निजाम साहब शरण आ गये और मराठवाडा आजाद हो गया.
संदर्भ:
१.भारत सरकार द्वारा प्रकाशित हेडगेवार चरित्र,पृ.क्र.१३८,
२.चंद्रशेखर लोखंडे लिखित हैदराबाद मुक्तिसंग्राम का इतिहास,
३.मासिक ब्रह्मपंथ,विजय जोशी,
४.आर्यसमाज और डा,अम्बेडकर-कुशलदेव शास्त्री,
५.डा.आम्बेडकरांची समग्र भाषणे,खंड ७;
६.नथुराम गोडसे-अंतिम निवेदन.
लेखक पूर्व सेनानी Madhusudan Cherekar द्वारा 5 सितंबर 2012 को प्रकाशित
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