Tuesday 23 February 2016

श्रीराम मंदिर / बाबरी मस्जिद मामले में १० मार्च को सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला !

Press Note :- Dt.23 Feb.2016

* पर्शियन ग्रन्थ हदिका ए शहादा के लेखक मिर्झाजान ने सन 1856 में पृष्ठ 7 पर लिखा है,"अयोध्या,मथुरा,वाराणसी में हिन्दुओ की आस्था जुडी हुई है।जिन्हें बाबर के आदेश से ध्वस्त करके मस्जिदे बनाई गयी।"
बाबर का लिखित आदेश रामानंदीय निर्मोही आखाड़े को ↷

* ऑस्ट्रेलियन मिशनरी जोसेफ टायफेंथालेर सन 1766-71 के बिच यहाँ घूमकर वापस लौटा तब 1785 में हिस्ट्री एंड जिओग्राफी इंडिया ग्रन्थ लिखा उसके पृष्ठ 235-254 पर लिखा है,"बाबर ने राम जन्मभूमि स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनायीं,उसमे मंदिर के स्तंभों का प्रयोग किया गया है।मुसलमानों के विरोध के पश्चात् भी हिन्दू वहा पूजा अर्चना के लिए आते है।इस परिसर में राम का पालना (राम चबुतरा) पर परिक्रमा  की जाती है।देश के कोने कोने से यात्री आकर यहाँ धूमधाम से उत्सव मानते है।"
* हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फ़ैजाबाद के ले.कार्नेजी सन 1870 में लिखते है,"राम जन्म मंदिर में काले पत्थर के वजनदार स्तम्भ थे।उनपर सुन्दर नक्काशिकाम किया गया था।उन्हें मंदिर गिराए जाने के पश्चात् कथित मस्जिद में लगाया गया।" अनेक मुस्लिम विद्वानों के अनेक प्रमाण ग्रन्थ में समान विचार है।
श्रीराम पुत्र वंश के श्री गुरु नानकदेव बेदीजी यहाँ दर्शन-शरयू स्नान करने आये थे।प्रयाग कुम्भ में आएं श्रीराम पुत्र वंश के श्री गुरु गोबिंदसिंग जी सोढ़ी महाराज मंदिर मुक्त करने निर्मोही आखाडा के महंत श्री वैष्णवदास महाराज के आग्रह पर आये थे।
 23 मार्च 1528 (खैर बकी) को मीर बांकी ने बाबर के इशारे पर श्री निर्मोही आखाडा-रामघाट के पुजारी श्री श्यामानंद जी का शिर कांटकर मंदिर प्रवेश किया और मुर्तिया न मिलने पर तोप से मंदिर ध्वस्त किया।दो वर्ष चले युध्द में महताब सिंग भीटी,रणविजय सिंग,देवीदीन पांडेय,स्वामी महेशानंद और जयराज कुमारी ने बलिदान दिया।1556 से 1606 के बिच 20 बार लड़कर स्वामी बलरामाचार्य जी ने मंदिर पर कब्ज़ा बनाये रखा।ओरंगजेब के कार्यकाल में 30 बार लड़कर मंदिर कब्जाया उनमे श्री गुरु गोबिंदसिंग जी भी एक थे।कुंवर गोपालसिंग,ठा जगदम्बा सिंग-गजराज सिंग जी ने भी प्रचंड योगदान देकर मंदिर कब्जे दिया।नबाब सआदत अली के कार्यकाल में अमेटी के गुरुदत्त सिंग,पिपरा के राजकुमार सिंग ने मंदिर मुक्त कर निर्मोही सौपा।नासिर उद्दीन हैदर के कार्यकाल में मकरही नरेश ने मंदिर अस्तित्व बनाये रखा।वाजिद अली शाह के कार्यकाल में निर्मोही आखाड़े के बाबा उध्दवदास महाराज और रामचरण दास महाराज जी ने गोंडा नरेश की सहायता से लड़कर मंदिर मुक्त करवाया।31 मई 1855 को बहादुर शाह जफ़र के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के विद्रोह में हरिद्वार के कुम्भ में स्वामी पूर्णानंद महाराज ने शंखनाद किया तब आमिर अली की मध्यस्तता में वाजिद अली ने बाबा रामचरण दास जी से समझौता कर मंदिर की मान्यता मान ली।ब्रिटिश सरकार ने बाबा और अली को फांसी दी और वाजिद अली को पकड कर ले गए।वाजिद अली के द्वारा नियुक्त व्यवस्थापक मौलवी अब्दुल करीम " गुम इश्ते हालात ए अयोध्या" में लिखते है,राम जन्मस्थान,सीता रसोई गिराकर मस्जिद बनवाई गई थी !
       ब्रिटिश सरकार के उकसावे पर मो.अजगर ने जन्मस्थान मंदिर की दिवार में दरवाजा बनाने को लेकर 13 दिसंबर 1877 को आवेदन देकर विवाद खड़ा किया। निर्मोही आखाड़े के महंत खेमदास जी ने उसका विरोध किया।
19 जनवरी 1885 को निर्मोही अखाड़े के महंत श्री रघुबरदास महाराज ने कम से कम राम चबूतरे पर प्राप्त पूजन के आधार पर जिला कोर्ट में अनुमति मांगी।
18 मार्च 1886 को कमिश्नर ऑफ़ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में की अपील पर न्या.डब्ल्यू यंग ने वास्तविकता को जाने बिना "विवादित स्थल-मस्जिद द जन्मस्थान" कहकर अपील ठुकराई और वह विवाद का कारन बना है।
14 अगस्त 1941 नझुल विभाग-फ़ैजाबाद ने श्रीराम जन्मस्थान रामकोट,अयोध्या को प्लाट क्रमांक 583 वर्णन तीन गुम्बद मंदिर कब्ज़ा रघुनाथदास,राम सकलदास,राम सुभगदास निर्मोही आखाडा लिखा है।क्यों की,ब्रिटिश अभिलेख में भी रामचरण दास,बलदेव दास को जन्मभूमि व्यवस्थापक और चबूतरे के मंदिर में भोग राग उत्सव की भी व्यवस्था निर्मोही आखाड़े के पास लिखित है।
24 दिसंबर 1949 अखिल भारत हिन्दू महासभा का राष्ट्रिय अधिवेशन कोलकाता में हो रहा था।स्वातंत्र्यवीर सावरकर उपस्थित रहनेवाले थे।उनके कट्टर भक्त गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत तथा उ प्र हिन्दू महासभा अध्यक्ष दिग्विजयनाथ जी महाराज के नेतृत्व में श्रीराम जन्मस्थान पर भजन-संकीर्तन हो रहे थे।दिनांक 24 की भोर में कड़ाके ठण्ड के बिच श्रीराम विग्रह का प्राकट्य हुवा।हवालदार अबुल बरकत खां प्राकट्य देखकर दंग रह गया।इस साधना में निर्मोही आखाड़े के तपस्वी हिन्दू महासभाई सुदर्शन दास पहाड़ी,राम बिलास दास,राम सकल दास,बलदेव दास,राम चरण दास के साथ हनुमान गढी के अभिराम दास,बृन्दावन दास का योगदान महत्वपूर्ण रहा था।
हिन्दू महासभा 1949 अयोध्या आन्दोलन के बाद से यह मंदिर न्यायालय संरक्षित है।**1950-51 हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा गोपाल सिंग विशारद द्वारा चली 3/1950 न्यायालयीन कार्यवाही में अयोध्या परिसर के 17 राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय,
*"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए 77 बल्वे हुए।सन 1934 से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को दिया जाये।"*
टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की अर्जुनसिंग को दी साक्ष*,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके स्तंभों में मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"
माननीय न्यायालय का आदेश है की ,*"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था जैसी है* वैसे *ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।*"
पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था।इस समिती में मद्रास से आये *संशोधक मुहम्मद के के भी थे वह लिखते है*,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"


गैझेटियर ऑफ़ दी टेरिटरीज अंडर गव्हर्मेन्ट ऑफ़ ईस्ट इंडिया कं के पृष्ठ क्र 739-40 के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार 23 मार्च 1528 को श्रीराम जन्मस्थान मंदिर ध्वस्त किया और उस ही मलबे से 14 स्तम्भ चुनकर उसपर खडी की वास्तु कभी मस्जिद नहीं बन पायी क्यों की इन स्तम्भोपर मुर्तिया थी।
न्यायालय के संरक्षण में पूजा-दर्शन हो रहे न्यायालय के आदेश से ताला खुले शिलान्यासित मंदिर को भाजप ने,हिन्दू महासभा सांसद स्वर्गीय बिशन चंद सेठकी सूचना का अनादर कर राजनितिक और आर्थिक लाभ के लिए बाबर का कलंक लगाया और 6 दिसंबर 1992 को मंदिर ही ध्वस्त किया ! ऐसी शिकायत भी रामानंदीय निर्मोही अखाड़े के ब्रह्मलीन महंत श्री जगन्नाथदास महाराज ने कोर्टके मूलवाद पत्र 4 ए में की है तथा दो सौ करोड़ का हर्जाना माँगा है। 
हिन्दू महासभा और निर्मोही आखाड़े का पक्ष सुनकर उ न्या के लखनऊ खंडपीठ के विशेष पूर्ण पीठ ने 1949 हिन्दू महासभा आन्दोलन से जुडी पत्रावलिया प्रस्तुत न करने पर उ प्र अपर महाधिवक्ता को मूल रेकोर्ड प्रस्तुत करने को कहकर 14 जुलाई 2010 को सुनवाई निश्चित की थी। लिबरहान रिपोर्ट जमात ए उलेमा ए हिन्द के कार्यक्रम में गृहमंत्री को की गयी मांग के अनुसार प्रधानमंत्री को प्रस्तुत करते ही फ़ाइल गायब होने वार्ता प्रकट हुई 14 जून 2010 को हिन्दू महासभा ने उ प्र मुख्यमंत्री को सी बी आई जाँच की मांग कर एफ आई आर लिखने के लिए सूचित किया।10 जुलाई को ए के सिंग ने हजरत गंज थाने में एफ आई आर लिखी। उ प्र सरकार ने 4 जुलाई 2010 को गृह सचिव जाविद अहमद की आख्या पर शपथ पत्र प्रस्तुत कर कहा की," 23 पत्रावलिया उपलब्ध नहीं है।विशेषाधिकारी सुभाष भान साध के पास यह फाइल थी।लिबरहान आयोग में जाते समय उनका एक्सीडेंट हुवा और मृत्यु के साथ फ़ाइल गायब हुई।" मुख्यमंत्री मायावती ने गायब फाइल्स की जाँच सी बी आई से करवाने की संस्तुति करते हुए यह फ़ाइल भाजप शासनकाल २००० में गायब होने की आशंका व्यक्त की थी। 26 जुलाई 2010 को माननीय न्यायालय ने इस विवाद को अनिर्णीत रखा है।
ऐसी स्थिति में 30 सप्तम्बर 2010 को न्यायालय ने न्यायमूर्ती डी वी शर्मा जी निवृत्त होने कारन देकर विवादित 2:77 एकड़ भूमि का 1/3 बटवारा निर्णय थोपते समय 1989 को उ न्या ने लताड़े पक्षों को 1/3 हिस्सा दिया।जब की "रामसखा" बनकर देवकी नंदन अग्रवाल ने जो "रामलला विराजमान" 1/3 प्राप्त किया उस स्थानपर 1961-62 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिन्दू महासभा पर मुर्तिया रखने का आरोप लगाकर जो याचिका प्रस्तुत की थी वह स्थान निर्मोही आखाड़े का होने की साक्ष ओ पी डब्ल्यू न 1 श्री रामचंद्रदास महाराज वक्तव्य पृष्ठ क्र 55 पर तथा ओ पी डब्ल्यू न 2 देवकी नंदन अग्रवाल उपाख्य रामसखा की साक्ष पृष्ठ क्र 142 पर लिखित, "26 दिसंबर 1949 को कुर्की पूर्व और पश्चात् निर्मोही आखाड़े का अधिकार मान्य करते है।"
सुभाष भान साध को प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी के मित्तल मूल प्रति लिबरहान आयोग देहली में लाते समय फोटोकॉपी बनाकर रखने की सलाह देते थे।गृह सचिव महेश गुप्ता को पता नहीं की कहा से दस्तावेज गायब हुए। साध के पिता बीर भान साध के अनुसार यह हत्या है।उनके अधिवक्ता रणधीर जैन ने दो बार देहली में याचिका लगायी परन्तु राजनितिक षड्यंत्र के अंतर्गत इस की जांच नहीं हुई और फ़ाइल न मिलने पर कोई गंभीर नहीं दिखा।मात्र मित्तल को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का व्हाईस चांसलर बनाया गया।इस हत्या के साथ 1949 हिन्दू महासभा के योगदान तथा न्यायालयीन पक्ष को दबाने का संयुक्त राजनितिक प्रयास हुवा है।
हिन्दू महासभा की मांग है कि ,बाबरी पर चले राजनितिक अभियोग को बंद कर मंदिर विध्वंस की न्यायालयीन प्रक्रिया आरम्भ करे।राम जन्मस्थान मंदिर विध्वंस कहकर 6 दिसम्बर 1992 श्रीराम जन्म मंदिर ध्वन्सियो को "मंदिर विध्वंस के राष्ट्रद्रोही आरोप" में गिरफ़्तार करे ऐसी हमारी राष्ट्रपति महोदय के पास 17 जून 2005 तथा 30 जुलाई 2010 से लंबित इस मांग पर सरकार-राष्ट्रपति-न्यायमूर्ती महोदय तत्काल कार्यवाही करे।
प्रमोद पंडित जोशी ,राष्ट्रिय प्रवक्ता अखिल भारत हिन्दू महासभा 

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