पाकिस्तान की ओर से हो रही घुसपैठ हो या सीमापर गोलीबारी ,मुसलमानो का मुख्य उद्देश्य है,अखंड पाकिस्तान ! इसलिए खंडित भारत में पीछे छूटे अखंड पाकिस्तान के हस्तक बारंबार इन घुसपैठियों को शरण देना हो या सहयोग करते रहेंगे। मुसलमान राष्ट्रवाद के चक्कर में नहीं आता वह,विश्व इस्लाम का सिपाही समझता है। केवल कुरान के आदेश का पालन करता है इसलिए इराक हो या सीरिया विदेशी मुसलमान वहां पहुंचा। गैर मुस्लिम को कुरान के अनुसार पीड़ित करना या हत्या करना यही उनका लक्ष होता है। इसलिए पाकिस्तान के साथ पडोसी होकर भी मित्रता नहीं हो सकती। भले ही वह स्वयं अंतर्गत गृहयुध्द से जूझ रहा हो। क्योकि यहां केवल नामधारी लोकतंत्र विश्व सहायता के लिए है। हालही में पाकिस्तान वायुसेना से पीड़ित आतंकी बने अधिकारी ने पाकिस्तान का दोहरा चेहरा खोलकर रख दिया है। इसे नष्ट करना और खंडित भारत के पूर्व हिन्दुओं का शुध्दिकरण करना ही अखंड भारत के लिए उपयोगी तंत्र है। ऐसा क्यों ?
इस्लाम की स्थापना एक रोमन राजनितिक धर्म सत्ता के विरोध में अरबी शैवों ने की थी। जो धर्माज्ञा देनेवाले ग्रंथ ने भी रोमन साम्राज्यवाद का अनुकरण करने अमानवीय-बलात्कारी-चोरी-डकैती-अपहरण को धर्म समझकर इस्लाम विश्व साम्राज्यवादी बनाया।इस्लाम को माननेवाला कभी लालच से नहीं बिकता। मात्र अब बकरा दाढी नुमा इस्लाम के ठेकेदारो ने फरमाया हैं कि, इस्लामिक किताब को कोई छू भी नही सकता ! परंतु, "टर्की ने कुरान और हदीस के पुनरावलोकन के लिए धर्म को इंसानियत से जोड़े रखे अध्यात्मवादियों की एक अध्ययन समीति नियुक्त की हैं !" टर्की के धर्मगुरुओं का मानना हैं कि कुरआन की कुछ विशेष आयते मुहम्मद के मुंह से कभी निकली ही नही हैं। तथा मुहम्मद के बाद उसमे सैंकड़ो आयतों को खलीफाओं ने स्वार्थ हित हेतू जोड़ा हैं ! अब क्या शांतिदूत टर्की के खिलाफ भी जेहाद करेंगे ? अधर्म और अमानवीयता विरोधी सत्य का ज्ञान ही उन्हें अपने पूर्वजों के धर्मांतरण का त्याग कर शुध्दिकरण के लिए प्रवृत्त करता है।
कश्मीर को धर्मांतरित करने निकले औरंगजेब ने श्री गुरु तेगबहादुर सोढी जी को धर्मांतरण के लिए कितनी यम यातनाए दी ? भाई सातिदास,भाई मतिदास,भाई दयालदास ने गुरूजी के प्राण बचाने के लिए कैसे बलिदान दिया वह चांदनी चौक साक्षी है। छत्रपती शिवाजी महाराज ने भी धर्मांतरित नेताजी पालकर की शुद्धी करवाई थी। कश्मीर में सनातनियों के विरोध के पश्चात भी पंडित श्रीभट्ट ने सुलतान जैनुल आब्दीन के कार्यकाल में लाखों धर्मांतरितो की शुद्धि के पश्चात् विषमता रहित हिन्दू समाज के लिए सभी हिन्दुओं को "पंडित" बना दिया था।
हिन्दू सभा की बैसाखी १८८२ लाहोर में हुई स्थापना का उद्देश्य भी यही था कि,धर्मान्तरण के लिए प्रवृत्त हो रहे उपेक्षित हिन्दू जातियों को जातिवाद से मुक्त करना। इसके लिए "जाती तोड़क सभा" गठीत हुई थी।
चिरोल की लन्दन केस में लोकमान्य तिलक जी को आर्थिक सहाय्यता हेतु राष्ट्रिय स्तर पर दान इकठ्ठा किया जा रहा था।तिलक जी को लन्दन से आते ही शनवार बाड़ा,पुणे में सार्वजनिक सन्मान के साथ ३.२५ लक्ष रुपये महाराष्ट्र से दे दिए गए थे।राष्ट्रिय कोष का नाम "तिलक स्वराज्य फंड" था।जो दिनों दिन बढ़ रहा था।मोतीलाल नेहरू ने तिलक जी की उपेक्षा कर यह पार्टी फंड है कहकर देने से मना किया।रु.१,३०,१९,४१५ आणा १५ का यह फंड योग्य रूप से व्यय करने के लिए एक अनुदान उपसमिति लोकमान्य तिलक जी के निधनोत्तर ३१ जुलाई १९२१ में गठित हुई थी।परन्तु ,६ नवम्बर १९२१ को उसे भंग कर कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने कोलकाता तथा नागपुर कार्यकारिणी में खिलाफत आन्दोलन को आर्थिक सहायता हेतु प्रस्ताव पारित कर तिलक स्वराज्य फंड वितरण का सर्वाधिकार अपने पास रख लिया। कॉंग्रेस समिती ने कोई कारण बताये बिना धन का वितरण राष्ट्रद्रोहियो को किया।
मौलवी बदरुल हसन रु.४०,०००००
टी.प्रकाश रु. ७,०००००
च.राजगोपालाचारी रु. १,०००००
बरजाज रु.२०,०००००
बै.मो.क.गाँधी रु.१,००,०००००
कुल रु.१,६८,०००००
प्रश्न अब खड़ा होता है,फरवरी १९२२ बार्डोली कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अछूतोध्दार के लिए २ लक्ष रु.घोषित किये।जून में हुई लखनऊ कमिटी में," २ लक्ष कम है !" कहकर बढाकर ५ लक्ष किया।अछूतोध्दार समिति के निमंत्रक हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद जी को नियुक्त किया गया।तिलक स्वराज्य फंड का संचयन बढ़ ही रहा था। अछूतोध्दार की मांगे बढ़ न जाये इसलिए,मई १९२३ कार्य समिति में, "अछूतोध्दार, कांग्रेस का काम नहीं है,अछुतता का पालन हिन्दू करते है इसलिए इस कार्य की जिम्मेदारी हिन्दू महासभा की है !" इस प्रस्ताव के साथ यह भी प्रस्ताव किया गया कि,"इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने की विनती हिन्दू महासभा को भी की जाये ! " अछूतोध्दार का यह कार्य हिन्दू महासभा पर सौप कर कांग्रेस जिम्मेदारी से मुक्त हुई।
"अछूतोध्दार में मुख्य कार्य शुध्दिकरण का था।" जो, मुसलमानों को रास नहीं आया क्यों की,धर्मान्तरण बंद हो गया था। स्वामी जी पर दबाव डालकर उन्हें पदमुक्त कर वहा कांग्रेसी नेता गंगाधरराव देशपांडे को नियुक्त किया गया। अब ५ लक्ष खर्च करने की भी आवश्यकता नहीं रही ! अछूतोध्दार के लिए पांच संस्थाओ को रु.४३,३८१ ; अलग अलग प्रांतीय कांग्रेस कमिटियो को रु.४१,५०,६६१ दिए गए। उसमे से रु.२४ लक्ष गाँधी ने १८% कथित रूप से अछूत जनसँख्या के गुजरात को दिए। ६९% कथित अछूत जनसँख्या के महाराष्ट्र को १ . ६% सहायता मिली तो,१८% जनसँख्या के कर्णाटक को ०.९३% दिए। अगले कुछ वर्ष में कांग्रेस ने तिलक स्वराज फंड का धन कहा, कैसे खर्च किया ? अभी तक किसी को पता नहीं। उसपर डॉ.आम्बेडकर जी ने उद्विग्नता से कहा की, " It is enough to say that never was there such an organized look of public mony."
डॉक्टर आंबेडकरजी को दीक्षा देने कुशीनगर से आये महास्थविर चन्द्रमणीजी ने पत्रक निकालकर "यह धर्मान्तरण नहीं,मतांतरण है क्योकि,बौध्द मत हिंदुत्व की शाखा है !" कहा है। कृपया इसे शुध्दिकरण कहे और मुसलमान हिन्दू युवतियों को फांसकर निकाह करते है इसे धर्मान्तरण का षड्यंत्र कहिये ! धर्मान्तरण केवल हिन्दुओ का होता है !
हिन्दू महासभा के आर्य समाजी नेता स्वामी श्रध्दानंद और पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने "भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा " स्थापन कर बिड़ला लाइन पर देहली में भवन बनाया है।पूर्वाछुतो के जातिवाद के रुक जाने से धर्मांतरण और अखंड पाकिस्तान पर लगी रोक से क्रुध्द हुए रशीद ने स्वामी श्रध्दानंदजी को मिलने का समय बीत जाने के पश्चात शुध्दिकरण का झांसा देकर मिलने के पश्चात गोली चलाई,हत्या कर दी। बैरिस्टर गांधी ने रशीद को भाई तक कहकर उसकी फांसी बचानी चाही थी।
अब जानिए की विभाजनोत्तर भारत किस अवस्था से गुजर रहा है ?
अखंड भारत विभाजन पश्चात् लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में AMU अलीगढ विद्यालय के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" अखंड भारत विभाजन का सावरकरजी पर आरोप लगानेवाले देखें,देश बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है ! लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।
जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह हमारे राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?
७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी।संदर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी
यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।
उत्तर प्रदेश में ४२% मुसलमान होने का दावा कर रहा राष्ट्रद्रोही सांसद इम्रान मसूद और
*श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया, अल्पसंख्य हो रहे हिन्दुओं के आंकड़े दे रहे है।
" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी। १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ! ऐसा भविष्य व्यक्त किया था। १९९३ में एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे ! अखंड पाकिस्तान के षड्यंत्र जो १९४७ में लिटज-लाहोर में प्रकाशित हुए उससे बचने ( सन २००३ + १८ वर्ष = सन २०२१ ) तक धर्मांतरितो का शुध्दिकरण जलद गति से होना चाहिए !
इस्लाम की स्थापना एक रोमन राजनितिक धर्म सत्ता के विरोध में अरबी शैवों ने की थी। जो धर्माज्ञा देनेवाले ग्रंथ ने भी रोमन साम्राज्यवाद का अनुकरण करने अमानवीय-बलात्कारी-चोरी-डकैती-अपहरण को धर्म समझकर इस्लाम विश्व साम्राज्यवादी बनाया।इस्लाम को माननेवाला कभी लालच से नहीं बिकता। मात्र अब बकरा दाढी नुमा इस्लाम के ठेकेदारो ने फरमाया हैं कि, इस्लामिक किताब को कोई छू भी नही सकता ! परंतु, "टर्की ने कुरान और हदीस के पुनरावलोकन के लिए धर्म को इंसानियत से जोड़े रखे अध्यात्मवादियों की एक अध्ययन समीति नियुक्त की हैं !" टर्की के धर्मगुरुओं का मानना हैं कि कुरआन की कुछ विशेष आयते मुहम्मद के मुंह से कभी निकली ही नही हैं। तथा मुहम्मद के बाद उसमे सैंकड़ो आयतों को खलीफाओं ने स्वार्थ हित हेतू जोड़ा हैं ! अब क्या शांतिदूत टर्की के खिलाफ भी जेहाद करेंगे ? अधर्म और अमानवीयता विरोधी सत्य का ज्ञान ही उन्हें अपने पूर्वजों के धर्मांतरण का त्याग कर शुध्दिकरण के लिए प्रवृत्त करता है।
कुरान की चौबीस आयतें और उन पर दिल्ली कोर्ट का फैसला
श्री इन्द्रसेन (तत्कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, १ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) में मुकदमा चलाया गया।उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।
मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।”
तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- “कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।”
(ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)
हिन्दू सभा की बैसाखी १८८२ लाहोर में हुई स्थापना का उद्देश्य भी यही था कि,धर्मान्तरण के लिए प्रवृत्त हो रहे उपेक्षित हिन्दू जातियों को जातिवाद से मुक्त करना। इसके लिए "जाती तोड़क सभा" गठीत हुई थी।
चिरोल की लन्दन केस में लोकमान्य तिलक जी को आर्थिक सहाय्यता हेतु राष्ट्रिय स्तर पर दान इकठ्ठा किया जा रहा था।तिलक जी को लन्दन से आते ही शनवार बाड़ा,पुणे में सार्वजनिक सन्मान के साथ ३.२५ लक्ष रुपये महाराष्ट्र से दे दिए गए थे।राष्ट्रिय कोष का नाम "तिलक स्वराज्य फंड" था।जो दिनों दिन बढ़ रहा था।मोतीलाल नेहरू ने तिलक जी की उपेक्षा कर यह पार्टी फंड है कहकर देने से मना किया।रु.१,३०,१९,४१५ आणा १५ का यह फंड योग्य रूप से व्यय करने के लिए एक अनुदान उपसमिति लोकमान्य तिलक जी के निधनोत्तर ३१ जुलाई १९२१ में गठित हुई थी।परन्तु ,६ नवम्बर १९२१ को उसे भंग कर कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने कोलकाता तथा नागपुर कार्यकारिणी में खिलाफत आन्दोलन को आर्थिक सहायता हेतु प्रस्ताव पारित कर तिलक स्वराज्य फंड वितरण का सर्वाधिकार अपने पास रख लिया। कॉंग्रेस समिती ने कोई कारण बताये बिना धन का वितरण राष्ट्रद्रोहियो को किया।
मौलवी बदरुल हसन रु.४०,०००००
टी.प्रकाश रु. ७,०००००
च.राजगोपालाचारी रु. १,०००००
बरजाज रु.२०,०००००
बै.मो.क.गाँधी रु.१,००,०००००
कुल रु.१,६८,०००००
प्रश्न अब खड़ा होता है,फरवरी १९२२ बार्डोली कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अछूतोध्दार के लिए २ लक्ष रु.घोषित किये।जून में हुई लखनऊ कमिटी में," २ लक्ष कम है !" कहकर बढाकर ५ लक्ष किया।अछूतोध्दार समिति के निमंत्रक हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद जी को नियुक्त किया गया।तिलक स्वराज्य फंड का संचयन बढ़ ही रहा था। अछूतोध्दार की मांगे बढ़ न जाये इसलिए,मई १९२३ कार्य समिति में, "अछूतोध्दार, कांग्रेस का काम नहीं है,अछुतता का पालन हिन्दू करते है इसलिए इस कार्य की जिम्मेदारी हिन्दू महासभा की है !" इस प्रस्ताव के साथ यह भी प्रस्ताव किया गया कि,"इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने की विनती हिन्दू महासभा को भी की जाये ! " अछूतोध्दार का यह कार्य हिन्दू महासभा पर सौप कर कांग्रेस जिम्मेदारी से मुक्त हुई।
"अछूतोध्दार में मुख्य कार्य शुध्दिकरण का था।" जो, मुसलमानों को रास नहीं आया क्यों की,धर्मान्तरण बंद हो गया था। स्वामी जी पर दबाव डालकर उन्हें पदमुक्त कर वहा कांग्रेसी नेता गंगाधरराव देशपांडे को नियुक्त किया गया। अब ५ लक्ष खर्च करने की भी आवश्यकता नहीं रही ! अछूतोध्दार के लिए पांच संस्थाओ को रु.४३,३८१ ; अलग अलग प्रांतीय कांग्रेस कमिटियो को रु.४१,५०,६६१ दिए गए। उसमे से रु.२४ लक्ष गाँधी ने १८% कथित रूप से अछूत जनसँख्या के गुजरात को दिए। ६९% कथित अछूत जनसँख्या के महाराष्ट्र को १ . ६% सहायता मिली तो,१८% जनसँख्या के कर्णाटक को ०.९३% दिए। अगले कुछ वर्ष में कांग्रेस ने तिलक स्वराज फंड का धन कहा, कैसे खर्च किया ? अभी तक किसी को पता नहीं। उसपर डॉ.आम्बेडकर जी ने उद्विग्नता से कहा की, " It is enough to say that never was there such an organized look of public mony."
डॉक्टर आंबेडकरजी को दीक्षा देने कुशीनगर से आये महास्थविर चन्द्रमणीजी ने पत्रक निकालकर "यह धर्मान्तरण नहीं,मतांतरण है क्योकि,बौध्द मत हिंदुत्व की शाखा है !" कहा है। कृपया इसे शुध्दिकरण कहे और मुसलमान हिन्दू युवतियों को फांसकर निकाह करते है इसे धर्मान्तरण का षड्यंत्र कहिये ! धर्मान्तरण केवल हिन्दुओ का होता है !
हिन्दू महासभा के आर्य समाजी नेता स्वामी श्रध्दानंद और पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने "भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा " स्थापन कर बिड़ला लाइन पर देहली में भवन बनाया है।पूर्वाछुतो के जातिवाद के रुक जाने से धर्मांतरण और अखंड पाकिस्तान पर लगी रोक से क्रुध्द हुए रशीद ने स्वामी श्रध्दानंदजी को मिलने का समय बीत जाने के पश्चात शुध्दिकरण का झांसा देकर मिलने के पश्चात गोली चलाई,हत्या कर दी। बैरिस्टर गांधी ने रशीद को भाई तक कहकर उसकी फांसी बचानी चाही थी।
अब जानिए की विभाजनोत्तर भारत किस अवस्था से गुजर रहा है ?
अखंड भारत विभाजन पश्चात् लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में AMU अलीगढ विद्यालय के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" अखंड भारत विभाजन का सावरकरजी पर आरोप लगानेवाले देखें,देश बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है ! लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।
जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह हमारे राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?
७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी।संदर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी
यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।
उत्तर प्रदेश में ४२% मुसलमान होने का दावा कर रहा राष्ट्रद्रोही सांसद इम्रान मसूद और
*श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया, अल्पसंख्य हो रहे हिन्दुओं के आंकड़े दे रहे है।
" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी। १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ! ऐसा भविष्य व्यक्त किया था। १९९३ में एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे ! अखंड पाकिस्तान के षड्यंत्र जो १९४७ में लिटज-लाहोर में प्रकाशित हुए उससे बचने ( सन २००३ + १८ वर्ष = सन २०२१ ) तक धर्मांतरितो का शुध्दिकरण जलद गति से होना चाहिए !
No comments:
Post a Comment