Sunday 14 December 2014

गांधी वध के दोषी विभाजनकर्ता नेहरू और कॉंग्रेसी ! पढ़े और समझे !


जनसंघ-भाजप का नथुराम गोडसे से कोई नाता नहीं। साक्षी महाराज का हम अभिनंदन करते है कि,उन्होंने एकबार साहस दिखाया और निंदा इसलिए कि,गोडसे-सावरकर पार्टी विरोधी दल के दबाव में वक्तव्य बदला।

हिन्दू महासभा को सत्ता से दूर रखने के लिए नेहरू का साथ देनेवाले,गांधी को विभाजनोत्तर असंतोष के समय गांधी को वाल्मीकि बस्ती में सुरक्षा देनेवाले,१९४९ अयोध्या आंदोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता से जनाधार न बढे इसलिए नेहरू-पटेल के इशारेपर हिन्दू महासभा "हिन्दू" शब्द नहीं निकालती,गैर हिन्दुओं को द्वार नहीं खोलती इसलिए हिन्दू महासभा पार्टी में सेंध लगाकर जनसंघ बनानेवाले,१९६१ सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिन्दू महासभा पर मुर्तिया रखने का आरोप लगाया तब हिन्दू महासभा राजनीतिक कार्य नहीं छोड़ती इसलिए "विश्व हिन्दू धर्म संमेलन" का अपहरण कर विहिंप बनानेवाले कभी एकधारी हिन्दू नहीं थे ! विश्वासघाती,यह शब्द सही है।


संघ की जननी हिन्दू महासभा   
हिन्दू महासभा के नेता धर्मवीर बा शि मुंजे,देवतास्वरूप भाई परमानंद,ग दा सावरकर,वि दा सावरकर,संत पांचलेगावकर महाराज ने मुंजे जी के मानसपुत्र डॉक्टर के ब हेडगेवारजी के नेतृत्व में,अराजकीय रा.स्व.संघ की स्थापना पारस्पारिक सहयोग के लिए की थी। सन १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अधिवेशन में डा.हेडगेवार राष्ट्रिय उपाध्यक्ष पद का चुनाव जीते।गुरु गोलवलकर महामंत्री पद का चुनाव हारे और इस हार का ठीकरा उन्होंने सावरकरजी पर फोड़ा और हिन्दू महासभा का त्याग किया। डा हेडगेवार उन्हें संघ दायित्व देकर शांत कर रहे थे तो सावरकरजी ने संघ का हिन्दू महासभा में विलय कर "हिन्दू मिलेशिया" नया संगठन बनाने की सलाह दे रहे थे।संघ प्रवर्तक डा मुंजे जी ने भी इस बात का समर्थन किया परन्तु,बात नहीं बनी।

डा हेडगेवारजी की अकस्मात मृत्यु के बाद पिंगले जी को सर संघ चालक बनना था परन्तु,गुरूजी ने सरसंघ चालक पद कब्ज़ा किया।सैनिकी शिक्षा विभाग के संचालक जोगदंड को पदच्युत किया।गुरु गोलवलकर ने सावरकर महिमा रोकने के लिए हिन्दू महासभा के विरुध्द शंखनाद किया।इसलिए हिन्दू महासभा को पूरक संगठन बनाने पडे।रामसेना के संस्थापक थे,संघ प्रवर्तक डा.मुंजे-नेतृत्व वर्मा (नागपुर), हिन्दुराष्ट्र सेना डा.परचुरे ग्वालियर ,हिन्दुराष्ट्र दल अमरवीर नथुराम गोडसे द्वारा पुणे में वैकल्पिक संगठन का नेतृत्व भाऊराव मोडक को सौपकर बनाये गए।अर्थात गांधी वध के समय नेहरू समर्थक रहे कथित हिन्दू नेता हिन्दू महासभा विरोधी थे। 
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यह अलगाव कैसे आरंभ हुआ ? देखे !

१९३९ कोल्कता अधिवेशन में गुरु गोलवलकर हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय महामंत्री बनने से रहे और इस हार का ठीकरा सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा से अलग हुए। हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय अध्यक्ष बने डॉक्टर हेडगेवारजी ने उन्हें संघ कार्य में लगवाया। हेडगेवार अकाल मृत्यू पिंगले को सरसंघ चालक बनाने चूका और गुरूजी ने पद हथियाया।
१९४६ असेम्बलि चुनाव में,पाकिस्तान समर्थक-मुस्लिम लीग और अखंड भारत समर्थक हिन्दू महासभा में चुनावी जंग थी। कांग्रेस को हिन्दू-मुस्लिम मत विभाजन का झटका लग रहा था। नेहरू की विघटनवादी मानसिकता ने हिन्दू महासभा को पराजित करने के लिए गुरु गोलवलकर के सावरकर विद्वेष का लाभ उठाया।विभाजन का विरोध कर रही हिन्दू महासभा को रोकने नेहरू ने अखंड हिन्दुस्थान का वचन देकर गुरु गोलवलकर का समर्थन प्राप्त किया।संघ-सभा परस्पर सहयोगी थे,संघ के हिन्दू महासभाई प्रत्याशियों को महासभा ने चुनावी मैदान में उतारा था।गुरूजी ने अंतिम समय कांग्रेस समर्थन की खुलकर घोषणा करते हुए संघ समर्थको को अंतिम समय पर नामांकन वापस लेने का आदेश दिया। परिणामतः हिन्दू महासभा १६% मत लेकर पराभूत हुई तो कांग्रेस-मुस्लिम लीग विजयी।कांग्रेस को गुरु गोलवलकर समर्थन के कारण हिन्दुओं की प्रतिनिधी के रूप में विभाजन करार पर हस्ताक्षर के लिए आमंत्रित किया गया।फिर भी सावरकरजी ने कहा,'संसद में बहुमत से विभाजन रोका जाये !' गुरूजी ने विरोध तक नहीं किया।
विभाजनोत्तर शरणार्थी हिन्दुओ की घोर उपेक्षा हुई तो पाकिस्तान जा रहे लोगो को रोककर उनके मकान,तबेले में रह रहे शरणार्थी हिन्दुओ को भारी वर्षा और ठण्ड के बिच खुली सड़क पर निराश्रित किया गया।इससे क्रुध्द हिन्दू महासभा के पूर्व राष्ट्रिय महामंत्री अमरवीर पं नथुराम गोडसे जी ने कश्मीर आक्रमण के बाद भी पाकिस्तान और मुस्लिम परस्त मानसिकता नहीं बदलने के विरोध में बैरिस्टर गाँधी वध किया।इस घटना की जानकारी नेहरू-पटेल-मोरारजी देसाई-नागरवाला को थी परंतु,पटना में कांग्रेस विसर्जन करने की मांग करनेवाले गांधी को नेहरू-पटेल ने मरने के लिए अकेले छोड़ा !

इस विषय पर एक रोचक सत्य ! गांधी हिन्दू महासभा संस्थापक महामना मालवीयजी के मार्गदर्शन पर मार्च १९२० तक हिन्दू महासभा के साथ थे। लोकमान्य तिलक को प्रतिद्वंद्वी मान रहे ब्रिटिश एजंट मोतीलाल नेहरू ने सी आर दास के द्वारा गांधी को धमकाया। ऐसा हो कि,तिलक की भांती काला पानी भेजे या मार डाले ? अर्थात गांधी व्यक्तिमत्व का नेहरू ने सत्ता प्राप्ती तक उपयोग किया।खिलाफत का नेतृत्व सौपा तिलक स्वराज फंड की राशी एक करोड़ ६८ लाख डकार ली। 
  यह घटना इतिहास प्रमाणित है कि,बै.मो.क.गाँधी ने २१ मई १९४७ को पटना की जनसभा में कांग्रेस विसर्जन की मांग की थी।परंतु,क्यों ?

         अखिल भारत हिन्दू महासभा की हरिद्वार में हुई स्थापना के समय गांधी उपस्थित थे। अ.भा.हिन्दू महासभा संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीयजी की सलाह पर कार्यरत थे। उनका चंपारण किसान आंदोलन हो या रौलेट एक्ट का काला कानून का राष्ट्रिय जनजागरण कर विरोध,गांधी ने अपनी व्यक्तित्व की छाप बनायीं थी।

         अखंड भारत १९४६ चुनाव में हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग में वोटो का बटवारा तय था।कांग्रेस तीसरे नंबर पर थी।जवाहरलाल का प्रधानमंत्री बनना असंभव था। सावरकर और हिन्दू महासभा विरोध के लिए नेहरू ने गुरु गोलवलकर को अखंड भारत का आश्वासन देकर समर्थन मांगा,१९३९ हिन्दू महासभा राष्ट्रिय महामंत्री बनने से चुके गुरूजी ; सावरकर विरोधी बने थे नेहरू ने इसका लाभ उठाकर हिन्दू महासभा प्रत्त्याशियो को नामांकन के अंतिम दिन गुरूजी के खुले समर्थन के साथ नामांकन वापस लेने को कहा।विभाजन के करार पर हिन्दू जनता की ओर से कांग्रेस को हस्ताक्षर का बहुमान किनके कारण मिला ? अखंड भारत विभाजन कि त्रासदी १० लक्ष हिन्दुओ ने झेली।जनसँख्या के अनुपात में भौगोलिक-आर्थिक-सामरिक और प्रशासनिक बटवारा हुवा।

``५५ करोड़ देने बाकि थे तब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ की और सरदार पटेल ने पाकिस्तानी सैनिको की वापसी तक ५५ करोड़ न देने का निर्णय किया।कांग्रेस विसर्जन की मांग कर रहे गाँधी ने ५५ करोड़ देने की जिद की और निर्णय बदला।अपनी सरकार के विरुध्द अनशन करनेवाले गाँधी अब नेहरू के लिए बोझ बने थे।गांधी वध होने की पूर्ण जानकारी होते हुए भी नेहरू-पटेल-मोरारजी ने गाँधी को बलि चढ़ने दिया।                                                                                               


         अखिल भारत हिन्दू महासभा के संस्थापक सदस्य पंडित मदन मोहन मालवीयजी के साथ गांधी अनुयायी थे।अमृतसर अधिवेशन में लोकमान्य तिलक जी का स्वागत धुमधाम के साथ हुआ।मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश आदेश श्रध्दा के साथ पालन करने का प्रस्ताव पारित करते ही तिलक जी ने कड़ा विरोध किया,जनता ने भी उनका साथ दिया परंतु कांग्रेस के सदस्य तक न बने गांधी ने उन्हें शांत किया।बस मोतीलाल को तिलक जी से प्रतिद्वंद्विता के लिए गांधी नामक शस्त्र दिखाई दिया। विदेशी साम्राज्यवाद के हस्तक मोतीलाल नेहरू ने सी.आर.दास द्वारा तिलक जी के जैसे ब्रिटिश जेल या हत्या की धमकीया देकर गांधी को मार्च १९२० में हिन्दू विरोधी अपना समर्थक बनाया। सत्ता प्राप्ति का साधन बनाया, सत्ताप्राप्ति के आड़े आनेवाले या प्रधानमंत्री पद के आड़े आनेवाले सुभाष बाबु-पटेल जैसे नेताओ को रास्ते से हटाने के लिए गाँधी का प्रयोग किया गया।


         सत्ता प्राप्ति के लिए अखंड भारत का विभाजन गाँधी ने मान्य नहीं किया परन्तु नेहरू के मुस्लिम तुष्टिकरण के कारन पाक व्याप्त क्षेत्र के १० लक्ष हिन्दुओ का उत्पीडन हुवा,हत्या,बलात्कार,लुट, आगजनी,धर्मान्तरण,स्थलान्तरण हुवा।फिर भी पाकिस्तान गए मुसलमानों को वापस बुलाकर उनके मकान-तबेले-प्रार्थना स्थलों में आश्रय लिए हिन्दुओ को भारी वर्षा-ठण्ड के बिच रास्ते पर निकाला गया।शरणार्थी हिन्दुओ की उपेक्षा हुई।इतना ही नहीं पाकिस्तान की कश्मीर घुसपैठ को जानबूझकर आँख मुंद बैठे नेताओ ने राजा हरिसिंह की भी उपेक्षा की सरदार पटेल ने पाकिस्तानी सैनिको की कश्मीर से वापसी तक ५५ करोड़ देने पर रोक लगायी उसे गाँधी ने अपने अनशन हट से मनवाया। इन सभी घटनाओ के पश्चात् कुछ हिन्दू का खून खौला और वह हिन्दू महासभाई थे।उन्होंने मुख्य अपराधी ब्रिटिश हस्तक नेहरू के दोष को नहीं समझा।
           पटना में कांग्रेस विसर्जन की मांग कर रहे गाँधी,अपनी पारिवारिक गुलामी छोड़कर हिन्दू महासभा के साथ जायेंगे या हिन्दू महासभा को सत्ता में लायेंगे इस भय से ब्रिटिश गुलाम नेहरू ने वध होने दिया।सरदार पटेल भी प्रार्थना सभा का समय बीत रहा था और गांधी के साथ गुप्त मंत्रणा कर रहे थे। नेहरु-पटेल-मोरारजी देसाई सभी को गांधी वधपूर्व जानकारी थी। सुरक्षा हटा दी गयी थी। अर्थात गोडसे जी के हाथों कांग्रेस का शुध्दीकरण ?
`            गाँधी ना हिन्दू महासभा छोड़ते,नेहरू सत्ता में न आता, ना विभाजन होता, नाही गाँधी वध होता। परंतु,नेहरू ने गांधी वध के साथ हिन्दू महासभा पर लगाम कसने का पूर्ण प्रबंध किया था।  

१९४९ अयोध्या आंदोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता जनाधार में बदली तो,कांग्रेस विसर्जन निश्चित था।नेहरू-पटेल ने सावरकर प्रतिद्वंद्वी गुरु गोलवलकरजी की सहाय्यता से उ.प्र.संघ चालक बसंतराव ओक द्वारा हिन्दू महासभा तोड़कर भारतीय जनसंघ बनाया !

           इन दोनों दलों की अंडर स्टैंडिंग है कि,हिन्दू राजसत्ता की प्रवर्तक हिन्दू महासभा न सत्ता में आये ना गांधी वध के आरोप से कभी न उभरे !
          

अमर हुतात्मा पूर्व हिन्दू महासभा राष्ट्रिय महामंत्री पंडित नथुराम गोडसे ने गाँधी के वध करने के १५० कारण न्यायालय के समक्ष बताये थे।उन्होंने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर
सुनाना चाहते है । अतः उन्होंने वो १५० बयान माइक पर पढ़कर सुनाए। लेकिन कांग्रेस सरकार ने (डर से) नाथूराम गोडसे के गाँधी वध के कारणों पर बैन लगा दिया कि वे बयां भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पायें। गोडसे के उन बयानों में से कुछ बयान क्रमबद्ध रूप में, में लगभग १० भागों में आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा। आप स्वं ही विचार कर सकते है कि गोडसे के बयानों पर नेहरू ने क्यो रोक लगाई ?और गाँधी वध उचित था या अनुचित।
अनुच्छेद, १५ व १६….
..”इस बात को तो मै सदा बिना छिपाए कहता रहा हूँ कि में गाँधी जी के सिद्धांतों के विरोधी सिद्धांतों का प्रचार कर रहा हूँ। मेरा यह पूर्ण विशवास रहा है कि अहिंसा का अत्यधिक प्रचार हिदू जाति को अत्यन्त निर्बल बना देगा और अंत में यह जाति ऐसी भी नही रहेगी कि वह दूसरी जातियों से ,विशेषकर मुसलमानों के अत्त्याचारों का प्रतिरोध कर सके।”
—”हम लोग गाँधी जी कि अहिंसा के ही विरोधी ही नही थे,प्रत्युत इस बात के अधिक विरोधी थे कि गाँधी जी अपने कार्यों व विचारों में मुसलमानों का अनुचित पक्ष लेते थे और उनके सिद्धांतों व कार्यों से हिंदू जाति कि अधिकाधिक हानि हो रही थी।” —–
(पार्ट 1 इससे पहले नोट में हम बता चुके है)

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-2-विस्तार से
अनुच्छेद, ६९ ..
…..”३२ वर्ष से गाँधी जी मुसलमानों के पक्ष में जो कार्य कर रहे थे और अंत में उन्होंने जो पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया दिलाने के लिए अनशन करने का निश्चय किया ,इन बातों ने मुझे विवश किया कि गाँधी जी को समाप्त कर देना चाहिए।“—
अनुच्छेद,७०..भाग ख ..”खिलाफत आन्दोलन जब असफल हो गया तो मुसलमानों को बहुत निराशा हुई और अपना क्रोध उन्होंने हिन्दुओं पर
उतारा।
–”मालाबार,पंजाब,बंगाल ,सीमाप्रांत में हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार हुए। जिसको मोपला विद्रोह के नाम से पुकारा जाता है। उसमे हिन्दुओं कि धन, संपत्ति व जीवन पर सबसे बड़ा आक्रमण हुआ। हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया,स्त्रियों के अपमान हुए। गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौनरहे।”-
—-”प्रत्युत यह कहना शुरू कर दिया कि
मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया।यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।
-और उल्टे मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया। “———

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-3
जैसा की पिछले भाग में बताया गया है कि गोडसे गाँधी की मुस्लिम तुष्टिकरण की निति से किस प्रकार क्षुब्ध था अब उससे आगे के बयान
अनुच्छेद ७० का भाग ग …जब खिलाफत आन्दोलन असफल हो गया -
–इस ध्येय के लिए
गाँधी अली भाइयों ने गुप्त से अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर हमला करने का निमंत्रण दिया.इस षड़यंत्र के पीछे बहुत बड़ा इतिहास है।
-गाँधी जी के एक लेख का अंश नीचे दिया जा रहा है….”मै नही समझता कि जैसे ख़बर फैली है,अली भाइयों को क्यो जेल मे डाला जाएगा और मै आजाद रहूँगा?उन्होंने ऐसा कोई कार्य नही किया है कि जो मे न करू। यदि उन्होंने अमीर अफगानिस्तान को आक्रमण के लिए संदेश भेजा है,तो मै भी उसके पास संदेश भेज दूँगा कि जब वो भारत आयेंगे तो जहाँ तक मेरा बस चलेगा एक भी भारतवासी उनको हिंद से बाहर निकालने में सरकार कि सहायता नही करेगा।”

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-4
अनुच्छेद ७० का भाग ठ..हिन्द के विरूद्ध
हिदुस्तानी –राष्ट्र भाषा के प्रश्न पर गाँधी जी ने मुसलमानों का जिस प्रकार अनुचित पक्षलिया—-किसी
भी द्रष्टि से देखा जाय तो राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार हिन्दी को है। परंतु मुसलमानों खुश करने के लिए वे हिन्दुस्तानी का प्रचार करने लगे-यानि बादशाह राम व बेगम सीता जैसे शब्दों का प्रयोग होने लगा। —हिन्दुस्थानी के रूप में स्कूलों में पढ़ाई जाने लगी इससे कोई लाभ नही था ,प्रत्युत इसलिए की
मुस्लमान खुश हो सके। इससे अधिक सांप्रदायिक अत्याचार और क्या होगा?
अनुच्छेद ७० का भाग ड.—न गाओ वन्देमातरम
कितनी लज्जा जनक बात है की मुस्लमान वन्देमातरम पसंद नही करते। गाँधी जी पर जहाँ तक हो सका उसे बंद करा दिया।
अनुच्छेद ७० का भाग ढ .
गाँधी ने शिवबवनी पर रोक लगवा दी —-शिवबवन ५२ छंदों का एक संग्रह है,जिसमे शिवाजी महाराज की प्रशंसा की गई है.-इसमे एक छंद में कहा गया है की अगर शिवाजी न होते तो सारा देश मुस्लमान हो जाता। -इतिहास और हिंदू धर्म के दमन के अतिरिक्त उनके सामने कोई सरल मार्ग न था।

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-5
अनुच्छेद ७० का भाग फ
….कश्मीर के विषय में गाँधी हमेशा ये कहते रहे की सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौप दी जाय, केवल इसलिए की कश्मीर में मुसाल्मान अधिक है। इसलिए गाँधी जी का मत था की महाराज हरी सिंह को सन्यास लेकर काशी चले जन चाहिए,परन्तु हैदराबाद के विषय में गाँधी की निति भिन्न थी। यद्यपि वहां हिन्दुओं की जनसँख्या अधिक थी ,परन्तु गाँधी जी ने कभी नही कहा की निजाम फकीरी लेकर मक्का चला जाय।
अनुच्छेद ७० का भाग म …………………………
कोंग्रेस ने गाँधीजी को सम्मान देने के लिए चरखे वाले झंडे को राष्ट्रिय ध्वज बनाया।
प्रत्येक अधिवेशन में प्रचुर मात्रा में ये झंडे लगाये जाते थे.
——————————
-इस झंडे के साथ कोंग्रेस का अति घनिष्ट समबन्ध था। नोआखली के १९४६ के दंगों के बाद वह ध्वज गाँधी जी की कुटियापर भी लहरा रहा था, परन्तु जब एक मुस्लमान को ध्वज के लहराने से आपत्ति हुई तो गाँधी ने तत्काल उसे उतरवा दिया। इस प्रकार लाखों करोडो देशवासियों की इस ध्वज के प्रति श्रद्धा को अपमानित किया। केवल इसलिए की ध्वज को उतरने से एक मुस्लमान खुश होता था।

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-6
अनुच्छेद ७८ …………………….गाँधीजी
—————————–सुभाषचंद्र बोस अध्यक्ष पद पर रहते हुए गाँधी जी की निति पर नही चले। फ़िर भी वे इतने लोकप्रिय हुए की गाँधी जी की इच्छा के विपरीत पत्ताभी सीतारमैया के विरोध में प्रबल बहुमत से चुने गए ————————गाँधी जी को दुःख हुआ.उन्होंने कहा की सुभाष की जीत गाँधी की हार है। —————–जिस समय तक सुभाष बोस को कोंग्रेस की गद्दी से नही उतरा गया तब तक गाँधी का क्रोध शांत नही हुआ।
अनुच्छेद ८५ …………………..मुस्लिम लीग देश की शान्ति को भंग कर रही थी। और हिन्दुओं पर अत्याचार कर रही थी। ——————-कोंग्रेस
इन अत्याचारों को रोकने के लिए कुछ भी नही करना चाहती थी,क्यो की वह मुसलमानों को प्रसन्न रखना चाहती थी। गाँधी जी जिस बात को अपने अनुकूल नही पते थे ,उसे दबा देते थे। इसलिए मुझे यह सुनकर आश्चर्य होता है की,आजादी गाँधी जी ने प्राप्त की । मेरा विचार है की मुसलमानों के आगे झुकना आजादी के लिए लडाई नही थी।——————गाँधी व उनके साथी सुभाष को नष्ट करना चाहते थे।

गाँधी वध क्यों? …जानिए …..पार्ट-7 एवं इति
अनुच्छेद ८८ .गाँधी जी के हिंदू मुस्लिम एकता का सिद्धांत तो उसी समय नष्ट हो गया, जिस समय पाकिस्तान बना। प्रारम्भ से ही मुस्लिम लीग का मत था की भारत एक देश नही है।हिंदू तो गाँधी के परामर्श पर चलते रहे किंतु मुसलमानों ने गाँधी की तरफ़ ध्यान नही दिया और अपने व्यवहार से वे सदा हिन्दुओं का अपमान और अहित करते रहे और अंत में देश दो टुकडों में बँट गया।
. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो,गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |
. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को
मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि
आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने
की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा
हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का
परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
१० . कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमतसे कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का
समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
११ . लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
१२ . 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धीजी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
१३ . मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने
अस्वीकार कर दिया।
१४ . जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि
मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
१५ . पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध,
स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
१६ . 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने
उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया। न्यायलय में गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक

पुस्तक में लिखा- “नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था।खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे।न्यायालय में उपस्थित उन मौजूद आम लोगों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।”



अमर बलिदानी पंडित नथुराम गोडसेजी का माता-पिता को अंतिम पत्र
अमर बलिदानी पंडित नथुराम गोडसेजी का माता-पिता को अंतिम पत्र 
दिनांक १२-११-१९४९                                               अंबाला ↜
परम वंदनीय आई और बाबा 
अत्यंत विनम्रता से अंतिम प्रणाम !
आपके आशीर्वाद विद्युतसंदेश (टेलीग्राम) से मिला। आपने अपने स्वास्थ्य और वृध्दावस्था की स्थिती में यहां तक न आने की मेरी विनती स्वीकार की इससे मुझे बड़ा संतोष हुआ है। आप के छायाचित्र मेरे पास है और उसका पूजन करके ही मैं ब्रह्म में विलीन हो जाऊंगा। 
लौकिक और व्यवहार के कारण आप को तो इस घटना से परम दुःख होगा इसमे कोई संदेह नहीं। परंतु ,मैं यह पत्र कोई दुःख के आवेग से या दुःख की चर्चा के कारण नहीं लिख रहा हूं। 
आप गीता के पाठक है ,आपने पुराणों का भी अध्ययन किया है। 
भगवान श्रीकृष्ण  गीता का उपदेश किया है और वहीं भगवान ने राजसूय यज्ञभूमि पर-युध्दभूमि पर नहीं,शिशुपाल जैसे एक आर्य राजा का वध अपने सुदर्शन चक्र से किया था। कौन कह सकता है कि,श्रीकृष्ण ने पाप किया है ! श्रीकृष्ण ने युध्द में और दूसरी तरह से भी अनेक अहंमान्य और प्रतिष्ठित लोगों की हत्या विश्व के कल्याण के लिए की है। और गीतोपदेश में अर्जुन को अपने बांधवो की हत्या करने के लिए बारबार कहकर अंत में प्रवृत्त किया है। ←
पाप और पुण्य मनुष्य के कृति में नहीं,मनुष्य के मन में होता है। दृष्टों को दान देना पुण्य नहीं समझा जाता। वह अधर्म है। एक सीतादेवी के कारण रामायण की कथा बन गयी,एक द्रौपदी के कारण महाभारत का इतिहास निर्माण हुआ। 
सहस्त्रावधी स्त्रियोंका शील लुटा जा रहा था। और ऐसा करनेवाले राक्षसकों हर तरह से सहाय्य करने के यत्न हो रहे थे ,ऐसी अवस्था में अपने प्राण के भय से या जन निंदा के भय से कुछ भी नहीं करना मुझसे नहीं हुआ। सहस्त्रावधी रमणियों के आशीर्वाद मेरे भी पीछे है। 
मेरा बलिदान मेरे मातृभूमि के चरणों में है। अपना एक परिवार या और कुछ परिवारोंके दृष्टी से हानि अवश्य हो गयी। परंतु ,मेरी दृष्टी के सामने छिन्नविच्छिन्न मंदिर, कटे हुए मस्तकों की राशी,बालकों की क्रूर हत्या रमणियों की विडंबना हर घडी देखने में आती थी। आततायी और अनाचारी लोगोंको मिलनेवाला सहाय्य तोडना मैंने मेरा कर्तव्य समझा।
मेरा मन शुध्द है,मेरी भावना अत्यंत शुध्द थी कहनेवाले लाख कहेंगे तो भी एक क्षण के लिए भी मेरा मन अस्वस्थ नहीं हुआ अगर स्वर्ग होगा तो,मेरा स्थान उसमें निश्चित है। उसके लिए मुझे कोई विशेष प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है। 
अगर मोक्ष होगा तो,मोक्ष की मनीषा मैं करता हूं। दया मांगकर अपने जीवन की भीख लेना मुझे जरा भी पसंद नहीं था। और आज के सरकार को मेरा धन्यवाद है कि,उन्होंने दया के रूप से मेरा वध नहीं किया। दया की भिक्षा से जीवित रहना यही मैं सत्य मृत्यु समझता था। मृत्युदंड देनेवाले में मुझे मारने की शक्ति नहीं है। मेरा बलिदान मेरी मातृभूमि अत्यंत प्रेम से स्वीकार करेंगी। 
मृत्यु मेरे सामने आया नहीं ,मैं मृत्यु के समक्ष खड़ा हुआ हूं। मैं उनकी ओर सुहास्य वदन से देख रहा हूं। और वह भी मुझे एक मित्र के नाते से हस्तांदोलन करता है। भगवद्गीता में तो जीवन और मृत्यु के समस्या का ही विवेचन श्लोक श्लोकों में भरा हुआ है। मृत्यु में ज्ञानी मनुष्य को शोकविव्हल करने की शक्ति नहीं है। मेरे शरीर का नाश होगा पर मैं आपके साथ हूं। आसिंधु सिंधु भारत वर्ष पूरी तरह से स्वतंत्र करने का मेरा ध्येय स्वप्न मेरे शरीर के मृत्यु से मरना असंभव है। 
अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। सरकार ने आपको मुझे मिलने का अंतिम अवसर नहीं दिया। सरकार से किसी भी प्रकार की अपेक्षा न रखते हुए भी वह कहना ही पड़ेगा कि,अपनी सरकार किस प्रकार से मानवता के तत्वोंको अपना रही है। मेरे मित्र गण और चि.दत्ता,गोविन्द,गोपाल आपको कभी अंतर नहीं देंगे। चि.अप्पा के साथ और बातचीत हो जायेगी।वो आपको सवृत्त निवेदन करेगा,इस देश में लाखो मनुष्य ऐसे है कि,जिनके नेत्र से इस बलिदान से अश्रु बहेंगे। वह लोग आपके दुःख में सहभागी है। आप आपको स्वतः को ईश्वर पर निष्ठां के बल पर अवश्य संभालेंगे इसमें संदेह नहीं। 
अखंड भारत अमर रहे ! वंदे मातरम् !
आपके चरणो पर सहस्रशः प्रणाम !

आपका विनम्र नथुराम 

बैरिस्टर गांधी के वधकर्ता नथूराम गोडसे की प्रशंसा पर भले ही संसद में बवाल हो गया हो,परंतु गोडसे से जुड़ा दल हिन्दू महासभा राजधानी में उनकी प्रतिमा लगाकर उन्हें सम्मानित करने की तैयारी में है। पढ़ें, पूरी खबर...
गोडसे की आई मूर्ति, अब लगाने की तैयारी
इकनॉमिक टाइम्स| Dec 16, 2014, 01.02AM IST

वसुधा वेणुगोपाल, नई दिल्ली
महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की तारीफ पर भले ही संसद में बवाल हो गया हो, लेकिन गोडसे से जुड़ा संगठन राजधानी में उसकी प्रतिमा लगाकर उसे सम्मानित करने की तैयारी में है। यहां के मंदिर मार्ग पर मौजूद देश के सबसे पुराने हिंदू संगठनों में से एक हिंदू महासभा ने राजस्थान के किशनगढ़ से गोडसे की प्रतिमा तैयार करवाई है। इस प्रतिमा को उस रूम में रखा गया है, जहां गोडसे अपने दिल्ली दौरे में हत्या की योजना बनाने के लिए ठहरा करता था। हालांकि, प्रतिमा लगाने के लिए स्थान और तारीख का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है।
हिंदू महासभा के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश कौशिक ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि संगठन सरकार को चिट्ठी लिखकर कम से कम देश के 5 उन शहरों के लिए पूछेगा, जहां गोडसे की प्रतिमा लगाई जा सकती है। उन्होंने बताया, 'अगर सरकार इसकी मंजूरी नहीं देती है, तो हम खुद अपने लॉन में इस मूर्ति को स्थापित करेंगे। हमारे यहां सभी महापुरुषों की मूर्ति है। फिर गोडसे की क्यों नहीं?'
मार्बल से बनी गोडसे की इस मूर्ति के लिए इसी साल जुलाई में ऑर्डर दिया गया था और पिछले महीने यह बनकर हिंदू महासभा के ऑफिस में पहुंचा। कौशिक ने बताया, 'हम मूर्ति की स्थापना के लिए सही समय का इंतजार कर रहे हैं। हम इसके लिए राजधानी में एक बेहतर सार्वजनिक स्थल चाहेंगे।' गोडसे हिंदू महासभा का सदस्य था और 1948 में महात्मा गांधी की हत्या से एक दिन पहले उसने इस ऑफिस का दौरा किया था। जिस रूम में वह ठहरा था, उसे इस संगठन ने काफी सहेजकर रखा था।
यह संगठन अब मुख्य तौर पर संस्कृत की वापसी, हिंदू पाकिस्तानियों की सुरक्षा और भारत में पाश्चात्यीकरण के बढ़ते असर को रोकने के लिए काम करता है। कौशिक ने कहा, 'हम नहीं मानते कि गोडसे ने गांधी के साथ जो किया, वह हिंसा थी। वह ब्राह्मण थे। अखबार के संपादक थे। उन्होंने इस कदम को उठाने से पहले सभी विकल्पों का आकलन किया था।'
हिंदू महासभा के इस ऑफिस के परिसर में ही आरएसएस की पहली शाखाएं लगी थीं। इस ऑफिस की दीवार पर सावरकर, मदन मोहन मालवीय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीरें टंगी हैं। गोडसे की तस्वीर अंदरखाने में रखी जाती है और मांगे जाने पर यह पेश की जाती है। ज्यादा खोजबीन करने पर महासभा के मेंबर्स एक तरफ बने कई मकानों की तरफ इशारा करते हैं, जहां तब जंगल हुआ करता है। गोडसे ने यहीं पर गोली चलाने की प्रैक्टिस की थी।

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