भारत को संविधान प्रदान करनेवाले महान नेता डा. भीमराव आंबेडकर का जन्म १४ अप्रैल १८९१ को मध्यप्रान्त के मऊ एक छोटे से गांव में हुआ था। डा. भीमराव आंबेडकर के पिताश्री रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव आंबेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे।
भीमराव आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था, जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे। बचपन में भीमराव अंबेडकरजी के परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।आंबेडकरजी के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवारत थे। भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे।
१८९४ में भीमरावजी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद,आंबेडकरजी की मां की मृत्यु हो गई।बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए। अपने भाइयों और बहनों मे केवल भीमराव ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये। अपने एक देशस्थ ब्राह्मण शिक्षक महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर आंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर आंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था।
८ अगस्त १९३० को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान आंबेडकरजी ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा।जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है।
अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद आंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब १५ अगस्त १९४७ में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई मिश्र सरकार अस्तित्व में आई।तो, उसने आंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। २९ अगस्त १९४७ को आंबेडकरजी को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। २६ नवंबर १९४९ को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया।{ भारत-दर्शन संकलन से साभार }
भारतीय संविधान निर्माण पूर्वोत्तर-डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरजी को संविधान निर्माता कहकर इतिहास का उलटफेर करनेवाले नेता संविधानिक त्रूटीयो से बचने के लिये "मसौदा समिती" के अध्यक्ष डॉक्टर आम्बेडकरजी को संविधान निर्माता बताने के पक्ष मे क्यो ? भारतरत्न डॉ.आंबेडकरजी के नाम से हो रही राजनीतीपर क्या विचार-इतिहास है / हो,पर मंथन करे।
अखंड हिंदुस्थान को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधान का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया;उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.टिळक स्मृतीदिन पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।
वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है,कहा।"८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल सदस्य बनाये,इस कमिशन ने जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी। १९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई. 'नेहरू रिपोर्ट'ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडणे आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने संपूर्ण स्वाधीनता की मांग कर गांधी की ब्रिटीश वसाहती राज्य की मांग का विरोध किया। इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने ब्रिटीश वसाहती राज्य का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश राणी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की चोगम परिषद बनी जो आज भी होती है। गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड(सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।
अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला.हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा। एक राष्ट्रीयता- नागरिकता मे विभाजन हुवा.हिंदू (काफिर) एकता के विरोध मे अली बंधूओ ने जो षड्यंत्र खेला उसके अनुसार,
डॉ.आंबेडकरजी को दौलताबाद के किले मे दर्शन करने जाते समय मुस्लीम चौकीदार ने डॉ.जी को हौदे से पानी लेने से मना कर पानी अछूत हो जायेगा कहकर जातीय नीचता की भावना को जलाया और पानी लेने से रोका,कही भी न छुने की शर्थ पर मुसलमानने उन्हें उपर जाने दिया।जिसके कारण डॉ.जी ने येवला मे धर्मांतरण की घोषणा की थी। तब भी हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,शेठ जुगल किशोर बीडला जी ने डॉ.आंबेडकरजी से मिलकर हिंदुत्व सशक्त करने सामाजिक उत्थान के लिये यह घोषणा रोकी, सावरकरजी ने स्थानबद्धता से पत्र लिखकर,'धर्मांतरण से राष्ट्रांतर होगा ऐसा न करे !' कहा।
परिणाम यह हुवा की,मुस्लीम बहुल क्षेत्र निजाम राज मे पुर्वाछुतो के बलात हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की धमकी डॉ.आंबेडकरजी ने मक्रणपूर परिषद मे दी ! १० मई १९३७ सावरकरजी की अनिर्बंध मुक्तता पर डॉ.आंबेडकरजी ने दि.११ मई १९३७ के दैनिक जनता मे अभिनंदनपर लेख लिखा। पुणे संविधान मसौदा निर्माण मे सहयोग किया,हिंदूओ के सैनिकीकरण के धर्मवीर डॉ.मुंजेजी के प्रयास को सबल करने पुर्वाछुतो को सेना मे भर्ती पर लगे प्रतिबंध को निकालने डॉ.आम्बेडकर जी ने महाराज्यपाल की भेट ली और महार रेजिमेंट का निर्माण हुवा।ऐसा करने से मुसलमानो का षड्यंत्र विफल हुवा।
स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर वसाहत राज्य देने की घोषणा की।तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की,सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा. मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया.( विभाजानोत्तर आश्रयार्थियो का विरोध आज भी जारी है।)
२० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की देश विभाजन की योजना प्रकट हुई।
७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर धर्मचक्र या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला,पुणे मे बनाया पारित मसौदा वह ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें भगवा ध्वज देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.जी ने भी आश्वासन दिया था।परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई सूनने तयार नही था। जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ के आधार पर स्थापित हुई,उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४ का सूत्रपात किया,हिन्दू कोड बिल बनाया।विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये।समान नागरिकता अंतर्भूत की।
राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकर विरोध मे रबरस्टेम्प बनाया गया।संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये,२४७३ पर बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को हिंदुस्थान एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया.इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"हिंदुस्थान मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा."५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे? पता नही और इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी जिम्मेदार नही है।आम्बेडकरजी के अनुयायी जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान समीक्षा के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ? ब्रिटीश सोच का विधान अस्थायी जातीय आरक्षण राष्ट्रीयता में विषमता फैलाता है ?
राष्ट्रीय स्तरपर आर्थिक पिछडे राष्ट्रीय नागरिकोको योग्यता/आवश्यकतानुसार आरक्षण हो ! इसमें कोई सांप्रदायिक सोच नहीं उलटे धर्म निरपेक्ष मांग है।
नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्तलिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता इक्ष्वाकु कुलोत्पन्न प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता, बंधुत्व और नागरी सुरक्षा नही,महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है !
भीमराव आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था, जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे। बचपन में भीमराव अंबेडकरजी के परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।आंबेडकरजी के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवारत थे। भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे।
१८९४ में भीमरावजी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद,आंबेडकरजी की मां की मृत्यु हो गई।बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए। अपने भाइयों और बहनों मे केवल भीमराव ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये। अपने एक देशस्थ ब्राह्मण शिक्षक महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर आंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर आंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था।
८ अगस्त १९३० को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान आंबेडकरजी ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा।जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है।
अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद आंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब १५ अगस्त १९४७ में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई मिश्र सरकार अस्तित्व में आई।तो, उसने आंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। २९ अगस्त १९४७ को आंबेडकरजी को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। २६ नवंबर १९४९ को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया।{ भारत-दर्शन संकलन से साभार }
भारतीय संविधान निर्माण पूर्वोत्तर-डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरजी को संविधान निर्माता कहकर इतिहास का उलटफेर करनेवाले नेता संविधानिक त्रूटीयो से बचने के लिये "मसौदा समिती" के अध्यक्ष डॉक्टर आम्बेडकरजी को संविधान निर्माता बताने के पक्ष मे क्यो ? भारतरत्न डॉ.आंबेडकरजी के नाम से हो रही राजनीतीपर क्या विचार-इतिहास है / हो,पर मंथन करे।
अखंड हिंदुस्थान को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधान का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया;उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.टिळक स्मृतीदिन पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।
वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है,कहा।"८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल सदस्य बनाये,इस कमिशन ने जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी। १९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई. 'नेहरू रिपोर्ट'ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडणे आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने संपूर्ण स्वाधीनता की मांग कर गांधी की ब्रिटीश वसाहती राज्य की मांग का विरोध किया। इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने ब्रिटीश वसाहती राज्य का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश राणी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की चोगम परिषद बनी जो आज भी होती है। गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड(सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।
अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला.हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा। एक राष्ट्रीयता- नागरिकता मे विभाजन हुवा.हिंदू (काफिर) एकता के विरोध मे अली बंधूओ ने जो षड्यंत्र खेला उसके अनुसार,
डॉ.आंबेडकरजी को दौलताबाद के किले मे दर्शन करने जाते समय मुस्लीम चौकीदार ने डॉ.जी को हौदे से पानी लेने से मना कर पानी अछूत हो जायेगा कहकर जातीय नीचता की भावना को जलाया और पानी लेने से रोका,कही भी न छुने की शर्थ पर मुसलमानने उन्हें उपर जाने दिया।जिसके कारण डॉ.जी ने येवला मे धर्मांतरण की घोषणा की थी। तब भी हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,शेठ जुगल किशोर बीडला जी ने डॉ.आंबेडकरजी से मिलकर हिंदुत्व सशक्त करने सामाजिक उत्थान के लिये यह घोषणा रोकी, सावरकरजी ने स्थानबद्धता से पत्र लिखकर,'धर्मांतरण से राष्ट्रांतर होगा ऐसा न करे !' कहा।
परिणाम यह हुवा की,मुस्लीम बहुल क्षेत्र निजाम राज मे पुर्वाछुतो के बलात हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की धमकी डॉ.आंबेडकरजी ने मक्रणपूर परिषद मे दी ! १० मई १९३७ सावरकरजी की अनिर्बंध मुक्तता पर डॉ.आंबेडकरजी ने दि.११ मई १९३७ के दैनिक जनता मे अभिनंदनपर लेख लिखा। पुणे संविधान मसौदा निर्माण मे सहयोग किया,हिंदूओ के सैनिकीकरण के धर्मवीर डॉ.मुंजेजी के प्रयास को सबल करने पुर्वाछुतो को सेना मे भर्ती पर लगे प्रतिबंध को निकालने डॉ.आम्बेडकर जी ने महाराज्यपाल की भेट ली और महार रेजिमेंट का निर्माण हुवा।ऐसा करने से मुसलमानो का षड्यंत्र विफल हुवा।
स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर वसाहत राज्य देने की घोषणा की।तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की,सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा. मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया.( विभाजानोत्तर आश्रयार्थियो का विरोध आज भी जारी है।)
२० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की देश विभाजन की योजना प्रकट हुई।
७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर धर्मचक्र या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला,पुणे मे बनाया पारित मसौदा वह ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें भगवा ध्वज देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.जी ने भी आश्वासन दिया था।परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई सूनने तयार नही था। जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ के आधार पर स्थापित हुई,उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४ का सूत्रपात किया,हिन्दू कोड बिल बनाया।विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये।समान नागरिकता अंतर्भूत की।
राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकर विरोध मे रबरस्टेम्प बनाया गया।संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये,२४७३ पर बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को हिंदुस्थान एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया.इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"हिंदुस्थान मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा."५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे? पता नही और इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी जिम्मेदार नही है।आम्बेडकरजी के अनुयायी जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान समीक्षा के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ? ब्रिटीश सोच का विधान अस्थायी जातीय आरक्षण राष्ट्रीयता में विषमता फैलाता है ?
राष्ट्रीय स्तरपर आर्थिक पिछडे राष्ट्रीय नागरिकोको योग्यता/आवश्यकतानुसार आरक्षण हो ! इसमें कोई सांप्रदायिक सोच नहीं उलटे धर्म निरपेक्ष मांग है।
नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्तलिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता इक्ष्वाकु कुलोत्पन्न प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता, बंधुत्व और नागरी सुरक्षा नही,महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है !
१४ अक्टूबर १९५६ को नागपुर में आंबेडकरजी ने स्वयं अपना और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। आंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु कुशीनगर से पधारे महास्थविर चंद्रमणि जी से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध पंथ (धम्म) ग्रहण किया।इस समय बौध्द भिक्षुओ ने एक पत्रक जारी किया। सावरकरजी की आख्या "धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण होगा !" के अनुसार यह धर्मांतरण नहीं,मतांतरण है ! क्योकि,बौध्द मत हिंदुत्व की शाखा है !
१९४८ से आंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। जून से अक्टूबर १९५४ तक वह गंभीर व्याधिग्रस्त रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। ६ दिसंबर १९५६ को आंबेडकरजी महानिर्वाण हुआ और हिंदुराष्ट्र की अपरिमित हानि ! संविधान के अनुसार राष्ट्रीयता में विषमता समाप्त करने के लिए धारा ४४ लागु होगी तब उन्हें सच्चे अर्थो में श्रध्दा सुमन अर्पित होगे ! हिन्दू महासभा अकेले ही १९८५ से सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रही है और जाती-धर्म की राजनीती कर रहे सांप्रदायिक हिन्दू महासभा को जातिवादी-सांप्रदायिक कहकर उसकी राजनीतिक मान्यता हो या अस्तित्व नष्ट या कब्ज़ा करने अविरत प्रयत्नशील !मध्य रेल ने हमारी मांग के अनुसार,डॉक्टर आंबेडकर महानिर्वाण दिवस पर दादर आनेवाले भाई-बहनों के आवागमन के लिए ५ दिसंबर से ८ दिसंबर मध्य विशेष "चैत्य भूमि एक्सप्रेस" छोड़ने की मांग की थी।रेल मंत्रालय ने इस भीड़ को आने जाने के लिए विशेष यात्री सवारीयां छोड़ी है।मात्र आंबेडकर पूजक कहे जानेवाले किसी नेता-दल-मंत्री ने सहायता नहीं की।श्रीमती ममता बैनर्जी को लिखते ही कार्य संपन्न हुआ ! अब भारतीय रेल बजेट संसद सत्र में व्हाया कल्याण रत्नागिरी के लिए नियमित " पतित पावन एक्सप्रेस " नाम से रेल गाड़ी छोड़ने के लिए इस ही पत्र में हिन्दू महासभा वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री.प्रमोद पंडित जोशी ने ८-१२-१९९९ को रेल मंत्री को पत्र संख्या १६१०९९/९ भेजा था.उसका उत्तर देते हुए मध्य रेल महा प्रबंधक - श्री.राजेंद्र जैन जी मुंबई ने तांत्रिक कारन (पत्र संख्या G.402/MR/Ref/5 ( i )/2000 Dt.10/4/2000 ) देते हुए प्रलंबित रखा. साथ में फोटो जोड़ा है .अब यह समस्या समाप्त हुई है। इसलिए दिनांक २/२/०९ को दिए स्मरण पत्र को दिनांक १७ फरवरी ०९ को पत्र संख्या टी.७८१/ए/२/के आर ३-के आर -४ नुसार, वरिष्ठ परिवहन प्रबंधक वी.आर.चौधरी जी ने रेल बोर्ड को हमारे द्वारा सूचित विकल्प दादर-रत्नागिरी सवारी गाड़ी का नाम करण भी भेजा गया.अभी तक राजनितिक उद्देश से उसे टाला जा रहा है. क्योंकि,रत्नागिरी में वीर सावरकर जी ने अछूतोध्दार के लिए रत्नागिरी में " पतित पावन मंदिर " का निर्माण कर अछूत पुजारी शिवा की नियुक्ति की थी. सामाजिक विषमता नष्ट करने के इस प्रयास की स्मृति में इस मार्ग पर यातायात की समस्या और यात्री संख्या देखकर पुणे-रत्नागिरी व्हाया कल्याण छोड़ने के हमारे प्रयास का स्मरण रेल मंत्रालय को करने के लिए आग्रह करे !
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