धर्म परिवर्तन कानून की नहीं खंडित भारत को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है !
१९४६ असेम्ब्ली चुनाव में अखंड भारत समर्थक हिन्दू महासभा को पराभूत करने के लिए सरसंघ चालक ने नेहरू के समर्थन में,अल्पसंख्या के आधारपर देश के बटवारे में अनचाहा सहयोग किया है। ऐसे में यह "हिन्दुराष्ट्र है !" केवल "हिन्दू राजसत्ता" नहीं है और १९९६ से २०१४ तक भाजप ने यूनाइटेड हिन्दू फोरम का हिन्दू संसद का प्रस्ताव ठुकराने के कारन यहां हिन्दू विरोधी गतिविधी को कांग्रेस की मानसिकता से सींचा जा रहा है।
यदि यह हिन्दुराष्ट्र नहीं है,तो माननीय सर संघ चालक स्पष्ट करे !
हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का भी स्वीकार नहीं कर सकते क्यों कि,१९५० से संविधानिक समान नागरिकता अभी तक प्रतीक्षित और आंबेडकरजी उपेक्षित है। विभाजन के विरोध में भी हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अध्यक्ष स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी ने समान न्याय-अधिकार और अवसर की मांग की थी। परंतु,कांग्रेस की भांती संघ नेता शेषाद्रिजी ने भी "और देश बट गया !" में सावरकरजी को द्विराष्ट्रवाद का प्रेरक बताया। स्वर्गीय सुदर्शनजी ने भी गुरु गोलवलकर की भांती सावरकर विरोध में ऐसे ही विचार रखकर अपने आपके संगठन को साफसुथरा और हिन्दू महासभा को सांप्रदायिक-जातिवादी दर्शाने का प्रयास किया। हिन्दू महासभा अकेले सर्वोच्च न्यायालय में १९८५ से यह मांग कर रही है। महामहिम पूर्व राष्ट्रपती तथा पूर्व महा न्यायाधीश भी इसका समर्थन कर चुके है और भाजप शासित NDA जिन वचनों के आधारपर चुनाव जीती थी उनसे मुंह मोड़ लिया था। श्रीराम जन्मस्थान का कब्ज़ा करने "रामसखा" को आगे लाए विहिंप ने बटवारे के लिए पलोक बसु समिती का सपा के साथ मिलकर षड्यंत्र किया। अच्छे दिन का भरोसा देने के लिए सबका साथ क्यों नहीं ?
१९४६ असेम्ब्ली चुनाव में अखंड भारत समर्थक हिन्दू महासभा को पराभूत करने के लिए सरसंघ चालक ने नेहरू के समर्थन में,अल्पसंख्या के आधारपर देश के बटवारे में अनचाहा सहयोग किया है। ऐसे में यह "हिन्दुराष्ट्र है !" केवल "हिन्दू राजसत्ता" नहीं है और १९९६ से २०१४ तक भाजप ने यूनाइटेड हिन्दू फोरम का हिन्दू संसद का प्रस्ताव ठुकराने के कारन यहां हिन्दू विरोधी गतिविधी को कांग्रेस की मानसिकता से सींचा जा रहा है।
यदि यह हिन्दुराष्ट्र नहीं है,तो माननीय सर संघ चालक स्पष्ट करे !
हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का भी स्वीकार नहीं कर सकते क्यों कि,१९५० से संविधानिक समान नागरिकता अभी तक प्रतीक्षित और आंबेडकरजी उपेक्षित है। विभाजन के विरोध में भी हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अध्यक्ष स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी ने समान न्याय-अधिकार और अवसर की मांग की थी। परंतु,कांग्रेस की भांती संघ नेता शेषाद्रिजी ने भी "और देश बट गया !" में सावरकरजी को द्विराष्ट्रवाद का प्रेरक बताया। स्वर्गीय सुदर्शनजी ने भी गुरु गोलवलकर की भांती सावरकर विरोध में ऐसे ही विचार रखकर अपने आपके संगठन को साफसुथरा और हिन्दू महासभा को सांप्रदायिक-जातिवादी दर्शाने का प्रयास किया। हिन्दू महासभा अकेले सर्वोच्च न्यायालय में १९८५ से यह मांग कर रही है। महामहिम पूर्व राष्ट्रपती तथा पूर्व महा न्यायाधीश भी इसका समर्थन कर चुके है और भाजप शासित NDA जिन वचनों के आधारपर चुनाव जीती थी उनसे मुंह मोड़ लिया था। श्रीराम जन्मस्थान का कब्ज़ा करने "रामसखा" को आगे लाए विहिंप ने बटवारे के लिए पलोक बसु समिती का सपा के साथ मिलकर षड्यंत्र किया। अच्छे दिन का भरोसा देने के लिए सबका साथ क्यों नहीं ?
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