Wednesday 24 December 2014

महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी को "भारतरत्न" !

अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य
* पंडित मदन मोहन मालवीय पुण्य स्मरण *
जन्म २५ दिसंबर १८६१                     मोक्ष १२ नवम्बर १९४६ 
संस्थापक :- श्री गंगा महासभा,श्री रामायण महासभा 
                   बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी-वाराणसी,हिन्दू छात्रावास-प्रयाग 
आंदोलक-श्री काशी विश्वनाथ मंदिर-वाराणसी में अछुतो के साथ प्रवेश 
              सुमनांजलि !

               * अखिल भारत हिन्दू महासभा;गंगा महासभा; B.H.U.संस्थापक महामना पं.मदन मोहन मालवीय जी के साथ १८-१९ दिसंबर १९१६ को ब्रिटिश सरकार का समझोता हुवा.

     *उपस्थित महानुभाव-महाराजा ग्वालियर,जयपुर,बीकानेर,पटियाला,अलवर,बनारस,दरभंगा,महाराजा कासिम बाजार मनिन्द्र नंदी,अध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा
       *ब्रिटिश अधिकारी-रोज,सचिव भारत सरकार,लोक निर्माण विभाग २)बार्लो मुख्य अभियंता संयुक्त उत्तर प्रान्त ३)स्टैंडले,अधीक्षण अभियंता,सिंचाई ४)कूपर कार्यकारी अभियंता,सिंचाई ५)आर.बर्न,मुख्य सचिव संयुक्त प्रान्त
अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक पं.मालवीय जी,राष्ट्रिय महामंत्री लाला सुखबीर सिंह आदि अन्य उपस्थित थे.

* सन १९०९ में गंगा जी पर बाँध का प्रस्ताव हुवा था,१९१४ समझोते में हिन्दू तिर्थालूओंको स्नानार्थ निरंतर अविच्छिन्न पर्याप्त पानी मिलेगा.ऐसा १९१६ अनुच्छेद ३२- i में वचन दिया था, "गंगा की अविरल अविच्छिन्न धारा कभी भी रोको नहीं जाएगी l"                                                                                                                      *२६ सप्तम्बर १९१७ को शासनादेश २७२८/ lll- ४९५ जारी हुवा.लाला सुखबीर सिंह महामंत्री हिन्दू महासभा को भेजे पत्र,उसके अनुच्छेद ३२ भाग ii में कहा गया है कि,
" इसके विपरीत कोई भी कदम हिन्दू समाज से पूर्व परामर्श के बिना नहीं उठाया जायेगा."

       महामना पं.मदनमोहन मालवीयजी का जन्म उत्तरप्रदेश के प्रयाग में दिनांक २५ दिसम्बर सन १८६१ को हुआ। इनके पिता ब्रजनाथजी और माता का नाम भूनादेवी था। मालवा के मूल निवासी होने के कारण मालवीय कहलाए गए। महामना मालवीयजी की गणना मूर्धन्य राष्ट्रीय नेताओं में होती है।हिन्दू सभा को पंजाब से निकालकर अखिल भारत स्तर स्थापित करने में उन्होंने आर्य समाजी लाला लाजपत राय जी की सहायता ली। जितनी श्रद्धा और आदर उनके लिए शिक्षित वर्ग में था उतनी ही जन साधारण जनता में भी थी। मालवीयजी की विद्वता असाधारण थी और वह अत्यंत सुसंस्कृत व्यक्ति थे। विनम्रता एवम् शालीनता उनमें कूट-कूटकर भरी थी। वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ वक्ता थे। वह संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेजी तीनों ही भाषाओं में निष्णांत थे। महामनाजी का जीवन विद्यार्थियों के लिए एक महान प्रेरणास्रोत था। उनके स्तर के किसी अन्य नेता के पास जनसाधारण की पहुँच उतनी सरल नहीं थी, जितनी मालवीयजी के पास थी। लोग उनके साथ इतने आदर के साथ बात करते थे मानों वह उनके पिता,बंधू अथवा आप्त हों।
मालवीयजी ने सन १८९३ में कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की और कई वर्षों तक अधिवक्ता भी रहे। इस क्षेत्र में उनको बहुत ख्याति मिली। चौरी-चौरा कांड के १७० भारतीयों को फाँसी की सजा सुनाई गई थी, किंतु मालवीयजी के बुद्धि-कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर १५१ लोगों को फाँसी से छुड़ा लिया। इस अभियोग की ख्याति सारे विश्व में फैल गई। इस अभियोग की तैयारी के लिए वह सायं कुर्सी पर बैठ जाते थे और सैकड़ों पुस्तकों को पढ़कर अपने काम की सामग्री निकाल लेते थे। वह पूरी-पूरी रात जागकर अभियोग के युक्तिवाद की तैयारी करते थे। ब्रिटिश न्यायमूर्ति भी उनकी तीक्ष्ण बुद्धि पर आश्चर्य प्रकट करते थे।
राष्ट्र की सेवा के साथ ही साथ नवयुवकों के चरित्र-निर्माण के लिए और भारतीय संस्कृति की जीवंतता को बनाए रखने के लिए मालवीयजी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय BHU की स्थापना की।
       गौ, गंगा व गायत्री महामना के प्राण थे। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बाकायदा एक बड़ी गौशाला बनवायी थी। इस गौशाला को देखरेख के लिए विश्वविद्यालय के कृषि कॉलेज को सौंपा गया था। गंगा उन्हें इस क़दर प्यारी थीं कि उन्होंने श्रीगंगा महासभा स्थापन कर न केवल गंगाजी की अविरल धारा के लिए बड़े आंदोलन किए वरन गंगा को विश्वविद्यालय के अन्दर भी ले गए थे। जिससे कि पूरा प्रांगण हमेशा पवित्र रहे। न्यायमूर्ति के अनुसार महामना मालवीय उचित न्याय से आधुनिक भारत के निर्माणकर्ता थे। देश में इंजीनियरिंग, फार्मेसी आदि की पढ़ाई का कार्य महामना ने ही प्रारंभ किया था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में देश में पहली बार इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू हुई थी। दशकों तक देश में इंजीनियरिंग की डिग्री ख़ास कर 'इलेक्ट्रिकल' व 'मैकेनिकल' की डिग्री बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज के माध्यम से ही दी जाती थी।
     सनातन धर्मी छात्रों को शाकाहारी भोजन व रहने की व्यवस्था सुलभ कराने के लिए इलाहाबाद में हिन्दू छात्रावास (हिन्दू बोर्डिग हाउस) की स्थापना, भारती भवन पुस्तकालय, दो समाचार पत्र प्रारंभ करने आदि महान कार्य महामना ने किए थे। हिन्दू छात्रावास आज भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा छात्रावास है। न्यायमूर्ति मालवीय के अनुसार महामना हिन्दी के प्रबल समर्थक थे। वह अंग्रेज़ी में बात करने को देशद्रोह मानते थे। महामना के अथक प्रयासों के फलस्वरूप ही तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने १८ अप्रैल १९०० को आदेश जारी कर देवनागरी को सरकारी कार्यालयों व न्यायालयों में प्रयोग की अनुमति दी थी।वही अब उर्दू को बढ़ावा मिल रहा है।
      महामना मूलतः कांग्रेसी थे और बैरिस्टर गांधी के मार्गदर्शक बने थे। जब कांग्रेस ने हिन्दू महासभा से नाता तोड़ दिया तब बापूजी अणे के साथ मिलकर कोलकाता में नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन कर हिन्दू महासभा के साथ गठजोड़ से कांग्रेस को धूल चटाई थी मात्र भाई परमानंदजी ने लाहोर से हिन्दू महासभा की ओर से चुनाव लड़ा।
मालवीयजी आजीवन देश सेवा में लगे रहे और १२ नवम्बर १९४६ मृत्यु पूर्व कांग्रेस से हुई भ्रमनिराशा पर हिन्दूओ के लिए पत्रक निकालकर प्रयाग में देहत्याग किया।

संक्षिप्त जीवनी :-
जन्म-प्रयाग २५ दिसंबर १८६१ 
विवाह-कुंदनदेवी सन १८७८ 
शिक्षा-कोलकाता विश्वविद्यालय से B.A. सन १८८४ ; अलाहाबाद जिला विद्यालय में अध्यापक 
सामाजिक हिन्दू उत्थान कार्य-मध्यभारत हिन्दू समाज समारोह में सहभाग सन दिसंबर १८८५ 
संपादक-हिन्दुस्थान कालाकांकर सन जुलाई १८८७ ; सन १८८९ संपादन छोड़कर अधिवक्ता शिक्षा प्रारंभ 
अधिवक्ता-प्रयाग उच्च न्यायालय दिसंबर १८९३ 
छात्रावास-सन १९०२-१९०३ प्रयाग हिन्दू छात्रावास का निर्माण 
प्रशासन-सन १९०२-१९१२ प्रांतीय कौंसिल सदस्य 
विद्यालय काशी-सन १९०४ काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह की अध्यक्षता में विद्यालय स्थापना भाषण 
सनातन धर्म महासभा अधिवेशन-प्रयाग कुंभ पर्व सन १९०७ ; काशी में भारतीय विश्व विद्यालय खोलने का निर्णय 
संपादक-अभ्युदय सन १९०७ लोक तांत्रिक सिध्दांतो और उदार हिन्दू धर्म का प्रसार 
हिंदी साहित्य संमेलन-अक्तूबर १९१० प्रथम अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण
काशी विश्व विद्यालय-योजना के संबंध मालवीयजी और महाराजा दरभंगा की लॉर्ड हार्डिंग से भेंट ११ अक्तूबर १९११ 
हिन्दू युनिवर्सिटी सोसायटी-गठन २८ नवंबर १९११
अखिल भारत हिन्दू महासभा-१३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार में स्थापना ; बैरिस्टर गांधी के मार्गदर्शक बने।   
बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी-अध्यादेश पारित अक्तूबर १९१५ ; फरवरी १९१६ शिलान्यास। 
लखनऊ पैक्ट-१९१६ विरोध। 
२० अगस्त १९१७ भावी राजनितिक लक्ष्य के संबंध में भारत मंत्री की घोषणा
कांग्रेस मुंबई अधिवेशन-२९/३१ अगस्त १९१८ गरम दल-नरम दल में समन्वय का प्रयास। 
कांग्रेस दिल्ली वार्षिक अधिवेशन-दिसंबर १९१८ की अध्यक्षता। 
सहायता-जालियांवाला बाग़ हत्याकांड में पीडित जनता की सहायता। 
उपकुलपति-नवंबर १९१९ बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी। 
हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द-१६ सप्तम्बर १९२२ लाहोर में भाषण। 
हिन्दू महासभा गया विशेष अधिवेशन-३१ दिसंबर १९२२ मालवीयजी की अध्यक्षता। 
हिन्दू महासभा काशी अधिवेशन-अगस्त १९२३ मालवीयजी की अध्यक्षता। 
अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य मालवीयजी-लाला लाजपत राय के नेतृत्व में कांग्रेस इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन। 
सायमन कमीशन बहिष्कार-नवम्बर १९२६ 
दीक्षांत भाषण-काशी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण। 
दिल्ली में गिरफ़्तारी-२० अगस्त १९३० मालवीयजी और कांग्रेस वर्किंग कमिटी मेम्बर्स को छः मास की सजा। 
मालवीय-अणे जी का त्यागपत्र-कांग्रेस वर्किंग कमिटी द्वारा सांप्रदायिक निर्णय (कम्युनल एवार्ड) पर तटस्थ रहने के कारण। अगस्त १९३४ 
कांग्रेस अधिवेशन मुंबई-सांप्रदायिक निर्णय के सम्बंध में मालवीयजी ने रखा संशोधन प्रस्ताव अमान्य। 
सांप्रदायिक निर्णय विरोधी-दिल्ली में कॉन्फरन्स फरवरी १९३५ 
सनातन धर्म महासभा अधिवेशन-जनवरी १९३६ प्रयाग में अधिवेशन में अंत्यजोद्दार पर प्रस्ताव। 
उपकुलपति पद से त्याग-सप्तम्बर १९३९ त्यागपत्र के साथ सर रामकृषणन् को उपकुलपति का प्रस्ताव। 
गोरक्षा मंडल-सन १९४१ में स्थापना।   



नेहरू-पटेल के इशारेपर हिन्दू महासभा तोड़ने के प्रयास चल रहे थे तब हिन्दू महासभा भवन,मंदिर मार्ग,नई देहली आये श्री वाजपेई को बैरंग लौटानेवाले हिन्दू महासभा को तोड़ने के लिए शस्त्र बनाये गए डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी को नेहरू के इशारेपर कश्मीर ले जाकर छोड़नेवाले हिन्दू महासभा-सावरकर विरोधी को "भारतरत्न" देने के लिए, 
अखिल भारत हिन्दू महासभा १३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार - श्री गंगा महासभा द्वारा आंदोलन कर श्री गंगाजी का अविरल-अविरत प्रवाह छोड़ने का सफल प्रयास -श्री रामायण महासभा,अयोध्या -पूर्व अछूतों के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर प्रवेश आंदोलन-BHU संस्थापक महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी को "भारतरत्न" देने के पीछे हिन्दू महासभा का श्री वाजपेई के नामपर विरोध न हो यही उद्देश्य !

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