Tuesday 19 July 2016

१९४२ में गोडसेजी का पत्र सावरकरजी को

संघ के खिलाफ टिप्पणी पर राहुल गांधी को समन
एजेंसीशुक्रवार, 11 जुलाई 2014
मुंबई Updated @ 8:41 PM IST

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को संघ के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने के मामले में महाराष्ट्र के भिवंडी की एक अदालत ने शुक्रवार को समन जारी किया है।
"महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा था कि जिन्होंने गांधी को मारा आज वही गांधीवाद की बात करते हैं। राहुल का इशारा संघ की ओर था।" इस मामले में अदालत ने ७ अक्तूबर को सुनवाई के दौरान राहुल को पेश होने को कहा है। रैली में संबोधन के बाद ही संघ ने कांग्रेस उपाध्यक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी।३० मार्च २०१५ भिवंडी में राहुल अनुपस्थित।
 S.C. on 19/07/2016
इस संदर्भ में हिन्दू महासभा की ओर से विश्लेषण

अखिल भारत हिन्दू महासभा वरिष्ठ नेता,राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मवीर डॉक्टर बा शि मुंजे जी के हिन्दू महासभा अधिवेशन पटना प्रस्ताव के साथ सन १९२२ भाई परमानंदजी द्वारा लाहोर में स्थापित हिन्दू स्वयंसेवक संघ,तरुण हिन्दू सभा संस्थापक गणेश दामोदर सावरकर उपाख्य बाबाराव,गढ़ मुक्तेश्वर दल संस्थापक संत श्री पाँचलेगांवकर महाराज के सामायिकीकरण के साथ मुंजेजी के मानसपुत्र डॉक्टर ; स्वातंत्र्य साप्ताहिक संपादक हेडगेवारजी के शिरगांव-रत्नागिरी में स्थानबध्द वीर सावरकरजी से मंत्रणा कर लौटने के पश्चात उनके नेतृत्व को संघचालक के जिम्मेदारी के साथ हिन्दू महासभा की पूरक गैर राजनीतिक,हिन्दू संरक्षक संस्था विजयादशमी सन १९२५ को मोहिते बाड़ा, नागपुर में स्थापित हुई।क्रांतिकारी बाबाराव सावरकरजी के प्रस्ताव पर विदेश में "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" और भारत में "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" नामकरण हुआ तथा बाबारावजी ने लिखी मातृवंदना संघ तथा ध्वज वंदना महासभा ने स्वीकार की है।अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रा रामसिंगजी ने संघ की प्रथम शाखा देहली में,हिन्दू महासभा भवन में लगाई थी। फिर नागपुर से भेजे गए देहली संघ प्रचारक बसंतराव ओक दो वर्ष हिन्दू महासभा भवन में संघ की शाखा लगाया करते थे। {हिंदुत्व की यात्रा-ले गुरुदत्त}
संघ और महासभा परस्पर पूरक थे। {मासिक जनज्ञान दिसंबर १९९८ ले शिवकुमार मिश्र} संघ के विस्तार को ध्यान में रखकर हिन्दू महासभा के संगठनात्मक विस्तार को अनुलक्षित किया गया। इसलिए संघ का महासभा में विलय करके महासभा को सशक्त करते हुए डॉक्टर हेडगेवारजी के नेतृत्व में ही "हिन्दू मिलिशिया" का संगठन खड़ा करने का प्रयास संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने सन १९३९ किया था। {धर्मवीर मुंजे जन्म शताब्दी विशेषांक ले वा कृ दाणी} हेडगेवारजी की असहमती के कारन आगे उनकी असमय मृत्यु के पश्चात हिन्दू संगठन तथा हिन्दू राजनीती-अखंड भारत के लिए हानिकारक सिध्द हुई।
सन १९३८ नागपुर अधिवेशन में वीर सावरकर दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए तब सर संघचालक हेडगेवारजी मध्य भारत हिन्दू महासभा उपाध्यक्ष थे। उनके आयोजन पर नागपुर में वीर सावरकरजी को सशस्त्र संघ स्वयंसेवको ने प्रदर्शन के साथ मानवंदना दी। इस शोभायात्रा में हाथी पर बैठकर बालासाहेब देवरसजी ने शक्कर बांटी। ३०/३१ दिसंबर १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा अधिवेशन के लिए वीर सावरकर तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए।इस अधिवेशन में पदाधिकारियों के भी चुनाव हुए। डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पदपर तो,संघ के वरिष्ठ अधिकारी एम एम घटाटेजी राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य चुने गए। हिन्दू महासभा भवन कार्यालय मंत्री स्व मा स गोलवलकरजी महामंत्री पद का चुनाव हार गए और इस हार का ठीकरा वीर सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा से पृथक हुए।राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेडगेवारजी ने उन्हें क्रोध शांत करने संघ कार्यवाहक स्व पिंगलेजी के साथ सहयोग  लिए भेजा। दुर्भाग्यवश २१ जून १९४० को अकाल समय हेडगेवारजी का निधन हुआ। पिंगलेजी को सरसंघ चालक की जिम्मेदारी संभालनी थी। गोलवलकरजी उस स्थान पर विराजे। हिन्दू महासभा और संघ में सावरकरजी के विरोध के लिए दूरिया बढ़ी। {हिन्दू सभा वार्ता २२ फरवरी १९८८ लेखक अधिवक्ता भगवानशरण अवस्थी}
गोलवलकरजी के निकटवर्ती स्वयंसेवक,पत्रकार,लेखक गंगाधर इन्दूरकरजी ने "रा स्व संघ-अतीत और वर्तमान" पुस्तक लिखी है। वह लिखते है,"वीर सावरकरजी की सैनिकीकरण की योजना के विरोध का कारन,यह भी हो सकता है कि,उन दिनों भारतभर में और खासकर महाराष्ट्र में वीर सावरकरजी के विचारों की जबरदस्त छाप थी। उनके व्यक्तित्व और वाणी का जादू युवकोंपर चल रहा था। युवक वर्ग उनसे बहुत आकर्षित हो रहा था ऐसे में,गोलवलकरजी को लगा हो सकता है कि,यह प्रभाव इसप्रकार बढ़ता गया तो,युवकों पर संघ की छाप कम हो जाएंगी। संभवतः इसलिए हिन्दू महासभा और सावरकरजी से असहयोग की नीति अपनाई हों।" इस विषयपर इन्दूरकरजी ने संघ के वरिष्ठ अधिकारी अप्पा पेंडसे से हुई वार्तालाप का उल्लेख करते हुए लिखा है कि,"ऐसा करके गोलवलकरजी ने युवकोंपर सावरकरजी की छाप पड़ने से तो,बचा लिया। पर ऐसा करके गोलवलकरजी ने संघ को अपने उद्देश्य से दूर कर दिया।"
गोलवलकर-सावरकर परस्पर विरोध - इस कारणवश संघ प्रवर्तक धर्मवीर मुंजेजी ने १७ मार्च १९४० को नागपुर में जगन्नाथप्रसाद वर्मा के संचालन में "रामसेना" का गठन किया गया और हिन्दू महासभा-सावरकर समर्थक युवकों को इसमें समाविष्ट किया। बंगाल में "हिन्दू रक्षा दल" गठित करने में सावरकर भक्त डॉक्टर मुखर्जी ने सहयोग किया। गोलवलकर जी के असहकार के कारन सावरकर जन्म दिन के उपलक्ष में अमरवीर पंडित नथुराम गोडसेजी ने सावरकर निष्ठ हिंदुओं का संमेलन पुणे में १० मई से २८ मई १९४२ संपन्न,कार्यवाहक थे क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत गोगटे {हॉटसन की गोली मारकर हत्या करनेवाले} थे।सावरकरजी की उपस्थिती में शिवराम विष्णु मोडकजी को "हिन्दुराष्ट्र दल" का चालक घोषित किया गया। ( इसप्रकार गोडसेजी संघ कार्यकर्ता नहीं थे ! यह कहने का अवसर संघ नेताओं को प्राप्त हुआ।) शेष रामसेना हिन्दुराष्ट्र दल में विलीन हुई और ग्वालियर के डॉक्टर दत्तात्रय सदाशिव परचुरेजी ने मध्यप्रांत में "हिन्दुराष्ट्र सेना" बनाकर मध्यप्रांत में हिन्दू महासभा को सशक्त राजनीतिक विकल्प के रूप में खड़ा किया था। {महाराष्ट्र हिन्दू महासभा का इतिहास लेखक मामाराव दाते}
रही बात गांधी वध की ! नेहरू-पटेल-मोरारजी देसाई-कमिश्नर नागरवाला को वध के प्रयास की जानकारी पहले से थी।मात्र उन्होंने रोकने के कोई प्रयास नहीं किये। क्योकि,
गांधी ने पटना में कांग्रेस विसर्जन की मांग करके नेहरू का रोष ओढ़ लिया था। वधकर्ता भले ही गोडसे हिन्दू महासभाई थे खंडित भारत में नेहरू को अनशन से मनवानेवाला,प्रधानमंत्री पदपर आरूढ़ करनेवाले से अब कोई लाभ की स्थिती प्राप्त करने का नेहरु का प्रयोजन शेष नहीं बचा था। इसलिए जानकारी रहते हुए भी गांधी को बलि का बकरा बनाया। गांधी, मोतीलाल नेहरू के पिट्ठू सी आर दास के दबाव में मार्च १९२० में आकर हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य मालवीयजी का साथ छोड़कर नेहरू के गुलाम न बनते तो,
न उनका वध होता न गोलवलकरजी की राजनितिक सहायता के बिना १९४६ के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलता न अखण्ड भारत मिश्र सरकार के प्रधानमंत्री नेहरू विभाजन करार पर हस्ताक्षर करके खंडित भारत का प्रधानमंत्री बन सकता था।


4 comments:

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  2. एम जी वैघ पागल हो गया । गोडसे जी इस देश के भारत रत्न के दावेदार है इनको भारत रत्न देना चाहिए

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  3. एम जी वैघ पागल हो गया । गोडसे जी इस देश के भारत रत्न के दावेदार है इनको भारत रत्न देना चाहिए

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