Thursday, 26 February 2015

स्वातंत्र्यवीर सावरकर आत्मार्पण २६ फरवरी १९६६


स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर के आत्मार्पण की तैय्यारी -
सन१९६५ पाकिस्तान में विजय पाने की चेतना से सावरकर जी ने व्याधियों पर मात की,१० जनवरी १९६६ लाल बहादुर शास्त्री जी की शंकास्पद मृत्यु और मृत्यु पूर्व ताश्कंद समझोते का भारी दुक्ख सावरकर जी को आत्मार्पण के लिए प्रेरित कर गया. भोजन, औश्धि की मात्रा कम कर दी.१ फरवरी १९६६ से केवल जल प्राशन आरम्भ किया.डॉक्टर साठे ,गोडबोले , पुरंदरे सेवा में थे. जल में औशधि मिलाने के प्रयास पर उन्होंने सक्त विनती की.अवतार विसर्जन का दृढनिश्चय कर अपने निजी सचिव आचार्य स्वर्गीय श्री.शांताराम उपाख्य बालाराव सावरकर जी को कहा,'सभी को मेरा नमस्कार कहना ! हम तो जाते अपने गाव सभ को राम राम कहना ! 

२६ फरवरी १९६६ मृत्यु शय्यापर विराजे वीर जी की गति धीमी होती जा रही थी.आप्त सम्बन्धी हिन्दू महासभाई इकठ्ठा होते रहे. अंदमान की कालकोठी से अनेक बार चकमा देकर भागा यमदूत क्रांतिकारियोंके महामेरु को तोप और क्षेपणास्त्र की आतिशबाजी से मानवंदना के साथ स्वर्गलोक ले जाने सावरकर सदन में जैसे ही प्रविष्ट हुवा प्रसन्नचित्त सावरकरजीने कहा,बाईस दिनसे प्रतीक्षा कर रहा था तुम्हारी ! आओ ! सुबह के ११:१० को वीरगति से सावरकरजी पंचतत्व में विलीन हुए.

भीड़ बढ़ रही थी,अखिल भारत हिन्दू महासभा को दिए हिन्दू ध्वज में लपटा पार्थिव को जन दर्शन के लिए ४:३० बजे दोपहर तलस्तर पर लाया गया.गुप्तचरोने सरकार को जानकारी पहुंचाई,सुरक्षा व्यवस्था बढाई गयी.अन्त्य दर्शन के लिए लगी कतार दो मिल लम्बी थी.रात भर दर्शनार्थी फुल अर्पण कर रहे थे.रविवार २७ फरवरी को दोपहर ३ बजे दर्शन बंद कर महायात्रा की तयारी की गयी और

 ३:३० को सावरकर सदन से हिन्दू राष्ट्रपति जी का पार्थिव चन्दन वाडी बिद्युत दाहिनी की ओर बढ़ रहा था,मुंबई सेन्ट्रल लोहमार्ग स्थानक के सामने रा.स्व.संघ के द्वारा मानवंदना दी गयी. वीर जी का अग्निप्रवेश परंपरा से भिन्न था. क्रान्तिसुर्य ओझल हो गया उसकी प्रभा से लाखो-करोडो वीर उत्पन्न होगे.प्रकाशमान सूर्य की प्रभा से अधर्मी जलकर खाक होंगे,हिमालय की चोटिपर अखिल हिन्दू ध्वज लहरेगा सावरकर तेरा नाम रहेगा !

स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी को गणमान्योने दी श्रध्दांजलि !


 १]महामहिम राष्ट्रपति डॉक्टर राधाकृष्णन:-'सावरकर एक पुरानी पीढ़ी के महान क्रांतिकारक थे,उन्होंने परतंत्र की शासन व्यवस्था से मुक्ति के लिए विस्मयजनक मार्गोंका अवलंब किया.राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अनंत यातनाये झेली थी.उनका जीवन चरित्र नयी पीढ़ी के लिए आदर्श स्वरुप है|

२]कांग्रेस महामंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी:-सावरकर जी के निधन से हम लोगों में से महापुरुष को छीन लिया है,यतार्थ में,सावरकर साहस और राष्ट्रभक्ति का ही दूसरा प्रतिशब्द है.सावरकर सर्वश्रेष्ठ क्रांतिकारी थे.उनसे अनेकोने प्रेरणा ली थी|

३]गुरुवर्य रेंगलर परांजपे:-'सावरकर मेरे छात्र थे;याद है की,'एक प्रसंग में मैंने उनको दण्डित किया था,उनके और मेरे सम्बन्ध नजदीकी के थे.हाल ही में मेरी ९० वर्ष की जन्म तिथि पर स्मरण पूर्वक रुग्णशैय्या से शुभेच्छा भेजी थी.वह महान देशभक्त थे.उनका नाम अनंत काल तक संस्मर्निय रहेगा|'

४]दलित संघ अध्यक्ष एवं सांसद नारायणराव काजरोलकर:-'
स्वा.वीर सावरकर एक महान क्रांतिकारक तो थे ही लेकिन हरिजनों के महान दैवत थे.अछूतोध्दार के लिए उन्होंने किये प्रयास अद्वितीय थे|'

५]श्री.बलराज जी मधोक:-जिनको स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनना चाहिए था वे स्वतंत्र भारत में बंदी बन गए|

६]स्व.बालासाहेब देवरस जी (१९३८ हिन्दू महासभाई ):-
हुए बहुत,होंगे बहुत परन्तु इनके समान वही,इस उक्ति को यतार्थ से सिध्द करनेवाले नर शार्दुल अर्थात वीर सावरकर  

७]गोरक्ष पीठ महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज:-


वीर सावरकर द्वारा प्रतिपादित हिन्दू राष्ट्रवाद ही वह संजीवन बूटी है,जो हमारे देश को साम्प्रदायिकता प्रांतीयता व् जातीय संकीर्णता से बचा सकती है ८]पंडिता राकेशारानी आर्य:- धार्मिक राजनितिक क्रांति के जनक महर्षि दयानंद, क्रांतिवीर वासुदेव बलवंत फडके और समष्टिवाद के दर्शनकार कार्ल मार्क्स की दिव्य ज्योति इनका संगम थे वीर सावरकर !

सावरकरजी सामान्य क्षमावीर या रिक्रूटवीर होते तो,विरोधी ऐसी श्रध्दांजलि देते ? प्रश्न अपने आप से पुछिए !
सावरकरजी एक हिन्दुत्ववादी पार्टी हिन्दू महासभा के १९३७ से १९४२ राष्ट्रिय अध्यक्ष रहे है। वह यहाँ उनके क्रांति कार्य,समाज सुधारकार्य तथा हिन्दू संगठन रास्वसंघ की स्थापना में डॉक्टर हेडगेवारजी के मार्गदर्शक रहे होने का राजनितिक सन्मान है। वह दूरद्रष्टा थे !
सावरकरजी का सन्मान कांग्रेस-वामपंथी भी करते थे। यह प्रमाण !
सावरकरजी के साथ अभिनव भारत में सक्रीय रहे तथा सावरकरजी को अंडमान से मुक्त करने के प्रयास में रहे राजा महेंद्र प्रताप ने १९५७ में सांसद रहते संसद में प्रस्ताव रखकर तीन नेताओ को ,"स्वतंत्रता सेनानी" का सन्मान दिलवाया। उनमे स्वातंत्र्यवीर सावरकर एक थे। हर माह पांचसौ रूपया मानधन मेहरु के मंत्री मंडल ने पारित किया था। 
कपूर आयोग के अहवाल के आने के पश्चात भी ,१९७० सावरकरजी को गणमान्य माननेवाली नेत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जनसंघ और वामपंथियो के सहयोग से सावरकरजी के गौरव पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक डाक टिकट जारी किया।कांग्रेस या वामपंथी दलों ने किसी प्रकार की आपत्ती नहीं की। केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण सिंह द्वारा प्रकाशित पत्र का मायने देखे ........ 
सावरकरजी को उद्देशकर लिखा है ,"His Life is History of Resistance ,Strife ,Struggle ,Suffering & Sacrifice for the cause of Political ,Social & Economic emancipation of India " सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार दिनांक १९-०५-१९७० {नैशनल अर्काइव्ह ऑफ़ इंडिया-देहली }
१९८३ को वीर सावरकरजी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भारतीय भाषाओ में बनाने को केंद्रीय मंत्री मंडल ने स्वीकारोक्ति दी। श्री प्रेम वैद्य ने इसकी निर्मिती की। इसे केंद्र सरकार ने पारितोषिक देकर सन्मानित किया। 
पूर्व हिन्दू महासभाई स्व भाऊराव देवरसजी,पूर्व मुख्यमंत्री महाराष्ट्र सुशीलकुमार शिंदे ने नागपुर में सावरकर जन्मशताब्दी समारोह में स्मरणिका प्रकाशन में स्व विक्रमराव नारायण सावरकर के साथ सहभाग किया। 
१९८९ राष्ट्रिय सावरकर स्मारक,दादर,मुंबई के उद्घाटक राष्ट्रपती स्व शंकर दयाल शर्मा,महाराष्ट्र के राज्यपाल स्व के ब्रह्मानंद,मुख्यमंत्री श्री शरद पवार उपस्थित थे। 
१९९२ सावरकर स्मारक द्वारा पकाशित स्मरणिका में ,प्रधानमंत्री नरसिंघ राव,शरद पवार,लालू प्रसाद यादव,सुधाकर राव नाईक के सावरकर गौरव प्रद लेख प्रकाशित हुए। 
१९९५ सावरकरजी को,"भारतरत्न" पुरस्कार की हिन्दू महासभा की मांग पर राष्ट्रपती शंकर दयाल शर्मा जी ने ऐसे पुरस्कार वितरण की धांधली रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश से प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में समिती बनवाने के सघन प्रयास किया। मात्र कांग्रेस-भाजप की राजनीती हमेशा आड़े आती रही। 

सावरकर तैलचित्र संसद में लगाने का श्रेय कोई भी ले। वास्तविकता यही है कि,"मांग करनेवाले स्व विक्रमराव सावरकर और लोकसभा अध्यक्ष रहे मनोहर जोशी की मित्रता और स्व बालासाहेब ठाकरेजी का समर्थन इसमें योगदानकारी रहा !"

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