Wednesday, 24 October 2018

वन्दे मातरम राष्ट्रिय चेतना मन्त्र


वन्दे मातरम राष्ट्रिय चेतना मन्त्र के उद्गाता तथा "आनंद मठ" उपन्यास के लेखक क्रां.बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के सन्दर्भ में

दिनांक २७ जून १८३८ को जन्मे श्री.बंकिमचन्द्र जी सन १८५८-१८९१ प्रशासनिक सेवा (डेप्युटी मजिस्ट्रेट) थे.उनके द्वारा रचा क्रांती मन्त्र "वन्दे मातरम" सन १८७५ के कार्तिक शु.नवमी को 'बंग दर्शन' में प्रस्तुत हुवा,२० जुलाई १८७९ को क्रां.वासुदेव बलवंत फडके जी को बंदी बनाया गया तब बंकिम जी हुगली में पदासीन थे.उस समय "अमृत बाजार" पत्रिका ने फडके जी का आत्म चरित्र प्रकाशित किया था.१८८० तक यह क्रांती गीत सर्वतोमुख हो गया.सन १८८० में आनंद मठ के अंतिम प्रकरण भी लिखकर पूर्ण हुए उनपर क्रां.फडके जी का प्रभाव है.सन १८८२ में प्रकाशित 'आनंद मठ' उपन्यास में (गव्हर्नर वोरेन हेस्टिंग्स के अनुसार तिब्बत से काबुल तक के प्रदेश में १७६२-१७७४ के बल्वाखोर योध्दा-साधुओ का) क्रान्तिगित के रूप में 'वन्दे मातरम' को समाविष्ट किया गया.दिनांक ८ अप्रेल १८९४ को बंकिम चटर्जी का देहावसान हुवा परन्तु "हिन्दुराज्य"की प्रेरणा देनेवाले कवी-उपन्यासकार मरणोत्तर चिरंजीव हुए.

         ब्रिटिश हिन्दुस्थान की राजधानी बंगाल कोलकाता थी.१ सप्तम्बर १९०५ बंगाल विभाजन की घोषणा हुई और साथ साथ विरोध में बंग-भंग आन्दोलन.बंग साज का संस्कृत "वन्दे मातरम" लोर्ड कर्झन की दृष्टी में राजद्रोह का प्रतिक बना लेफ्टनंट गव्हर्नर फुलर ने वन्दे मातरम पर प्रतिबन्ध लगाकर बंदी बनाने का कार्य आरम्भ किया.परिणाम स्वरुप बाबु सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी के नेतृत्व में 'बंदी विरोधी समिति' गठित हुई और १४ अप्रेल १९०६ बारीसाल में प्रांतीय अधिवेशन आमंत्रित किया. उसे नाकाम करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ६०० गुरखाओ की पलटन लगा दी.दूसरी ओर अधिवेशन की सफलता के लिए बंगाली जुट चुके थे.शोभा यात्रा वन्दे मातरम के साथ सड़क पर निकली और ब्रिटिश जवान यात्रा पर टूट पड़े,लाठिया बरसाकर रक्तरंजित कर दिया इस मार से कोई नहीं बचा.सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी,मोतीलाल घोष,बिपिनचंद्र पाल,अरविन्द घोष के साथ अधिवेशन अध्यक्ष बैरिस्टर अब्दुल रसूल भी घायल हुए.७ अगस्त १९०५ अरविन्द घोष जी ने कर्झन के विरोध में बंगाल तयार होने की घोषणा की.                                                                               



            राष्ट्र भक्ति और राष्ट्रशक्ति को 'वन्दे मातरम' गीत ने स्वत्व की जागृति प्रदान की.राष्ट्र भक्ति का प्रचंड प्रवाह जन जन में स्थापित किया.एक प्रचंड शक्ति देश में खडी हुई.भक्ति और शक्ति के इस प्रवाह में अनेक अवरोध आये उन्हें तोड़ फोड़ कर यह प्रवाह बढ़ता ही रहा.स्वाधीनता प्राप्ति तक अनेक वीर विभूतियों ने इस क्रांति सूत्र को पकड़कर मार खायी,बंदिवास झेला,फांसी पर झूमते हुए वन्दे मातरम का नारा दिया.

           श्री रामकृष्ण परमहंस और बंकिम चन्द्र जी की भेट १८८४ में हुई, बंकिम जी ने परमहंस जी को अपने निवास पर आमंत्रित किया था.वह नहीं जाकर अपने शिष्य नरेंद्र को अन्य शिष्यों के साथ भेज दिया.परमहंस जी के समक्ष आनंद मठ अन्य बंकिम जी के उपन्यास पढ़े जाते थे.विवेकानंद जी के प्रवचनों से यह संकेत मिलते है.                                                                                                                                                                                         

            वन्दे मातरम क्रांति गीत पहली बार सार्वजनिक स्तर पर कविवर रविन्द्रनाथ ठाकुर जी ने १८९६ कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन में अपनी रचना में गाया. पं.विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी ने इसे 'काफी राग' में निबध्द किया,फिर इस गीत को मास्टर कृष्णराव फुलंब्रीकर जी ने 'झिंझोटी राग'में प्रस्तुत किया.

             सन १९१५ बैसाखी के कुम्भ पर्व हरिद्वार में दिनांक १३ अप्रेल को अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापन में पहुंचे बैरिस्टर मो.क.गाँधी ने लिखा था की,"बंकिम बाबु द्वारा लिखा वन्दे मातरम गीत समुचे बंगाल में बहुत लोकप्रिय है और स्वदेशी आन्दोलन में लाखो लोगो ने इसे एक साथ गाया तो ऐसा लगा की यह राष्ट्रगीत बन चूका है.वन्दे मातरम का एकमात्र लक्ष है हमारे अन्दर देशभक्ति जागृत करना.यह गीत भारत को माता मानता है और उसके प्रशंसा के गीत गाता है."

             १९०१ पश्चात् कांग्रेस अधिवेशनो में God Save..... के साथ सम्पूर्ण 'वन्दे मातरम' नियमित रूप से गाया जाता रहा.१९२३ काकीनाडा कांग्रेस अधिवेशन अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अली की आपत्ति के पश्चात् भी पं.पलुस्कर जी ने उल्हासपूर्वक वंदे मातरम गाया.परन्तु इस आपत्ति ने मुसलमानों में अलगाववाद का बीजारोपण किया.

१९३७ विधान सभा चुनावो में कांग्रेस को भारी जित प्राप्त हुई और विधान सभा की कार्यवाही 'वन्दे मातरम' से आरम्भ हुई तब मुस्लिम लीग ने बहिष्कार किया. इसी वर्ष मुस्लिम लीग का कोलकाता में अधिवेशन हुवा,उसमे 'वन्दे मातरम' धार्मिक हित और उनके हितो के विरोधी गहरा षड्यंत्र कहकर प्रस्ताव पारित हुवा.यही से विरोध आरम्भ हुवा और इस विरोध को शांत करने राजनितिक प्रयास में कांग्रेस ने 'वन्दे मातरम ' का अंगच्छेदन किया ऐसा करने के पश्चात् मौलाना रेजाउल करीम ने "बंकिमचंद्र और मुस्लिम समाज" में लिखा, ' कांग्रेस यदि जिन्ना समर्थको को संतुष्ट करने के लिए सम्पूर्ण गीत भी हटा देती है तो भी एक मुस्लिम भी कांग्रेस में समाविष्ट नहीं होगा.' वहि खिलाफत आन्दोलन में मौलाना अकरम,मोहम्मद अली,जाफर अली,हसरत मोहानी आदि अनेक मुस्लमान 'वन्दे मातरम' के भक्त थे. उन्हें कभी कुराण-हदीस में वन्दे मातरम विरोधी कोई आदेश नहीं मिला ?



लोकसभा में बुधवार 8 मई 2013 को वंदे मातरम के अपमान मामले पर बीएसपी सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि इस्लाम के खिलाफ है वंदे मातरम... http://bit.ly/12Y4Yvu

          अखंड हिन्दुस्थान का धार्मिक आधार पर भौगोलिक बटवारा करने के पश्चात् संविधान लागु होने पूर्व राष्ट्रिय गान पर प्रस्ताव स्थगन का खेल चलता रहा. अंततः २५ अगस्त १९४८ को संविधान सभा में पं.नेहरू ने स्पष्टीकरण किया था. ' संयुक्त राष्ट्र संघ १९४७ की जनरल असेम्बली में हमारे प्रतिनिधि से राष्ट्रगान की मांग की गयी तब उपयुक्त राष्ट्रगान की रेकोर्डिंग नहीं थी.प्रतिनिधि के पास 'जन गण मन' का रेकोर्ड था और ओर्केस्टा को पूर्व तयारी के लिए दे रखा था.उसे संगीत के साथ बजाया और सभी को पसंद आया.तबसे विदेश दूतावास में बजाया जाता है.मंत्री मंडल में निर्णय किया है की संविधान सभा में अंतिम निर्णय न हो जाने तक 'जन गण मन' ही राष्ट्रगान के रूप में गाया जाता रहेगा.बंगाल सरकार ने 'वन्दे मातरम' को राष्ट्रगान बनाये रखने का प्रस्ताव दिया है.' "वन्दे मातरम" स्पष्टतः और निर्विवाद रूप से भारत का प्रमुख राष्ट्रिय गीत है.हमारे स्वतंत्रता इतिहास से इसका निकट सम्बन्ध है.इसका ध्यान सदा बना रहेगा और कोई दूसरा गीत से विस्थापित नहीं कर सकता,यह संग्राम की भावना अभीव्यक्त करता है ! "

          २४ जनवरी १९५० खंडित हिन्दुस्थान के संविधान सभा के सदस्यों के नव निर्मित संविधान पर हस्ताक्षर पूर्व सभापति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्रगान के सम्बन्ध में विवृत्ति दी.संविधान सभा में राष्ट्रिय गान पर प्रस्ताव द्वारा निर्णय करना था जो नहीं हुवा था और प्रस्ताव लेने का समय नहीं बचा ? था. अतः उन्होंने विवृत्ति देते हुए कहा कि, " जन गण मन अधिनायक " को राष्ट्रगान एवं " वन्दे मातरम" को राष्ट्रिय गीत के रूप में स्वीकार किया जाता है,दोनों को बराबर सन्मान प्राप्त होगा.आशा है कि सभी लोग इससे सहमत होगे. ब्रिटिश दास नेहरू ने जोर्ज पंचम के स्वागत में अधिनायक बनाकर लिखा टागोर के गीत को राष्ट्रगान बनाने के विरोध में हिन्दू महासभाई धारा से जुड़े कांग्रेस अध्यक्ष पुरुषोत्तमदास टंडन जी ने अध्यक्ष पद से तत्काल त्यागपत्र दिया.

         अखिल भारत हिन्दू महासभा वन्दे मातरम कि आग्रही रही है.मुंबई के महमद उमर रजब उर्दू पाठशाला में वन्दे मातरम के विरोध में आवाज उठी तब विधायको ने विधान सभा में 'वन्दे मातरम' का समर्थन किया.१ मार्च १९७३ विधान सभा पर हिन्दू महासभा ने मोर्चा निकाला दूसरी ओर कुछ महिला कार्यकर्ता विधान सभा के प्रेक्षागार में बैठी थी उन्होंने अवसर पाकर " वन्दे मातरम " की घोषणा देकर राष्ट्रद्रोहियो को हिन्दुस्थान से बाहर करने की मांग की.सभागृह में हस्त पत्रक फेंक कर नारा लगाया, " यदि भारत में रहना है तो वन्दे मातरम कहना होगा ! " इस आक्रामक कृति के कारन श्रीमती देविदास तेलंग, मानिनी हर्ष सावरकर को २ दिन बंदिवास और वर्षा पंडितराव बखले तथा अलका लक्ष्मनराव साटेलकर को अवयस्क होने के कारन छोड़ दिया.शोलापुर में धर्मवीर वि.रा.पाटिल हिन्दू महासभा विधायक ने जनसभा लेकर वन्दे मातरम विरोधियो को देश छोड़कर जाने का आवाहन किया था.     

Dt.7 April 2012




4 comments:

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