नमस्ते सदा हिन्दुराष्ट्र प्रतिका . प्रभो दिव्य धारा कृपाणां s कितस्तवम् .
तथा कुण्डलिन्यान्वितश्चासि मूर्तम् . समुत्कर्ष निःश्रेयसो s संनिधानम् .१.
त्वदीयं दशो नेतु मे ते दिगन्तम् , विजेतुमेतं तथा संस्कृतिम् चासुरीम् .
परम् वैभवम् हिन्दुराष्ट्रं च नेतुम्, वयं वध्व कक्षा नमस्ते नमस्ते .२.
इयं पितृभूः पुण्यभुर्वा s स्मदियां, वरीवर्ति सर्वान् अहो भूविभागान् .
सुमान्गल्य माधुर्य सौन्दर्य सीमाम्, निरीक्षैव यस्या नरी नर्ति चेतः .३.
तदुध्दारणे प्रज्वलद्यज्ञ कुण्डे , हविं जीवनं दातु मे ते वयम् .
समेतास्मर्या भवामों इतीयं , त्वदीयशिषा प्रार्थना ते पुरस्तात् .४.
l l भारत माता की जय l l
रचयिता-क्रा.ग.दा.सावरकर शुध्दिकर्ता बालशास्त्री हरदास 1924
रत्नागिरी के निर्बंध बंदिवास में योगाभ्यासी,ग़दर क्रांतिकारी बाबाराव सावरकरजी के बंधू वीर सावरकरजी ने अखिल हिन्दू ध्वज का निर्माण किया था।जो रा.स्व.संघ जननी अखिल भारत हिन्दू महासभा का पक्ष ध्वज बनकर रहा है।कुछ संगठन इस ध्वज का स्वीकार करते है,प्रसार माध्यम भी इसकी महत्ता न जानते हुए उसे उनका ध्वज मानते है। उन सभी की जानकारी के लिए सूचित करना आवश्यक समझकर ; विस्तार से जाने।
इस अखिल हिन्दू ध्वज पर अंकित कुण्डलिनी की महत्ता विशद करते हुए वीर सावरकरजी ने कहा है," साधको को अलौकिक अतीन्द्रिय आनंद प्राप्त होता है।जिसे योगी कैवल्यानन्द कहते है।अद्वैती ब्रह्मानंद कहेंगे या भौतिक परिभाषा जाननेवाले केवल परमानंद कहेंगे। ...... किसी का विश्वास विशिष्ट अवतार पर,पैगम्बर पर,ग्रंथों पर या ग्रंथिक मतान्तरो पर हो या न हो चार्वाक,वैदिक,सनातनी,जैन,बौध्द,सिक्ख,ब्राह्मो,आर्य,इस्लाम आदि सभी धर्म पंथों को कुण्डलिनी मान्य है। ..... योगसाधना का विचार पूर्णतः विज्ञाननिष्ठ है और भारतवर्ष ने ही विश्व को प्रदान किया यह दान है। बंदिवास में मैंने योग की उर्जा का अनुभव किया है।" (सन्दर्भ :- हिन्दू ह्रदय सम्राट भगवान सावरकर ले.स्व.रा.स.भट )
वीर सावरकर जी शक्ति और शांति का मार्ग दिखाते समय हिन्दू मतावलंबियों की अहिंसा,सहिष्णुता और दया की विकृति पर भी कोड़े बरसते है।श्रीमद भगवद्गीता में भगवान द्वारा प्राप्त ज्ञानपर चलनेवाले वह आधुनिक अर्जुन थे। " अत्याचारी,आक्रामको का शमन और दुर्बल एवं पीड़ित मनुष्यों के प्रति करुणा का व्यवहार, उनकी सेवा और उनके साथ हुए अन्यायों का निवारण और भूल का परिमार्जन ही सावरकर चिंतन का सार है।"
सन १९२८ अगस्त में वीर जी ने ध्वज के विषय में लिखा, " कुंडलिनी का यह संकेत चिन्ह हिन्दू धर्म एवं हिन्दुराष्ट्र के वैदिक कालखंड से लेकर आज तक के और आज से लेकर युगांत तक के महत्तम ध्येय को सुस्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करेगा ; स्वस्तिक प्राचीन है,किन्तु मनुष्य निर्मित है।कुंडलिनी प्रकृति की देन है और वह शास्त्रीय तथा शास्त्रोक्त संकेत है।इसलिए कृपाण,कुण्डलिनी,स्वस्तिक अंकित ध्वज को ही हिन्दुध्वज माना जाए।कृपाण और कुंडलिनी से दो चिन्ह क्रमशः भुक्ति और मुक्ति ; शक्ति और शांति ; भोग तथा योग ; आचार-विचार,कर्म और ज्ञान, सत और चित,प्रवृत्ति और निवृत्ति इनके ही प्रतिक रूप है और उनमे सुचारू रूप से समन्वय बनाये रखनेवाले प्रतिक है।" ( सन्दर्भ :- मासिक जनज्ञान फरवरी १९९७ पृष्ठ २७ ले.स्व.बालाराव सावरकर )
इस ध्वज को अपनाकर कुछ संगठन राष्ट्र में गलत सन्देश पहुंचाएंगे उसके लिए हिन्दू महासभा जिम्मेदार समझी जाएगी ? इसलिए सभी प्रसार माध्यम तथा संगठन इस ध्वज की गरिमा समझे।यह स्पष्ट कर दूं की हिन्दू महासभा का समानांतर संगठन चलानेवाले भी इस ध्वज का प्रयोग करते है।मात्र उनका हिन्दू महासभा से कोई नाता नहीं है।
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