Thursday 1 June 2017

गोमांस के भूखे भेडियो

प्राचीन भारत में गोमांस भक्षण के असत्य प्रचार के आधुनिक षड्यंत्र के कारण गोवंश हत्या,मांस भक्षण-निर्यातसे राष्ट्रिय प्रदुषण :- 
सर्वदलीय गोरक्षा अभियान जगद्गुरु श्री शंकराचार्यजी माधवाश्रम के नेतृत्व में चलाने की घोषणा के बाद पायनियर अंग्रेजी दैनिक-दिल्ली में प्रा.डी.एन.झा लिखित पुस्तक Holy Cow: Beef in Indian Dietary Traditions का सन्दर्भ देकर समाचार प्रकाशित किया गया और फिर १३ अगस्त २००१ को उसे महिमा मंडित करने के लिए देवराज मुखर्जी द्वारा एक लेख प्रकाशित किया गया (Holy Cow : How could we ?) जब कभी भारत में गोरक्षा आन्दोलन की चर्चा चलायी जाती है,तब गोमांस के भूखे भेडियो द्वारा ऐसे लेख व पुस्तक प्रकाश में लाई जाती है जिनके द्वारा यह प्रचारित किया जा सके की प्राचीन भारत में भी गोमांस भक्षण किया जाता रहा है.
ब्रिटिश षड्यंत्र परंपरा का आधुनिक संस्करण :- १८५७ में जब भारतीय सैनिकों में अंग्रेजी सरकार द्वारा कारतूसों में गाय की चर्बी के प्रयोग विरुध्द विद्रोह जागा तभी से अंग्रेजोने गो भक्ति का भाव समाप्त करने षड्यंत्र किया.१८७२ में ब्रिटिशनिष्ठ राजेन्द्र लाल मित्र ने लेख प्रकाशित किया-'प्राचीन भारत में गोमांस' यह लेख 'जर्नल ऑफ़ दी एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल'में प्रथम प्रकाशित किया.१८७६ कोलकाता विश्व विद्यालय ने उन्हें L.L.D. उपाधि प्रदान की. W.Newman &co. ने 'इंडो आर्यन' ग्रन्थ प्रकाशित किया जिसमे प्राचीन भारत में गोमांस निबंध था.१९०५ बंगाल पेक्ट ने हिन्दू विरोधी गो हत्या को मान्यता दी.परन्तु,इस्लाम ग्रन्थ के ७-१४३ में "मादी" पशु हत्या हराम कही गई है.
२५ जनवरी १९२५ बेलगाँव गोरक्षा परिषद् के अध्यक्ष भाषण में बै.मो.क.गाँधी ने गोरक्षा के पक्ष में विचार रखे थे.तब कथित स्वामी भूमानंद ने पुस्तिका छापकर हिन्दू समाज में गो भक्षण का अप प्रचार किया.अधिवक्ता पी.बी.काणे ने 'धर्मशास्त्र का इतिहास 'लिखकर प्राचीन भारत में मांस और गोमांस भक्षण प्रचलित था लिखने पर 'भारत रत्न' उपाधि दी गयी. 
महाभारत शांति पर्व में पशु हिंसा का निषेध :- लुब्धैर्वित परैर्ब्रहमन नास्तिकै: संप्रवर्तितम ,वेदबादान विज्ञाय सत्यभास निवानृतं (२६३/६)
सुरा भ्रत्स्या मधु मान्सभासवं क्रुसरौदनम्, धूर्ते: प्रवर्तितं ह्योतन्नैतद वेदेषु कल्पितम् (२६५/६)
बिजैर्यज्ञेषु यष्टव्यमिति वै वैदिकी श्रुति: , अजसंज्ञानि बीजानि (३३७/४-५)
महाभारत के वनपर्व में अतिथि पूजक रंतिदेव २००० गाय बांधकर रखता था. 'बध्यते'का अपभ्रंश 'वध्यते' से हुवा है.इसका उल्लेख श्रीमद भागवत के ९/२१/१२ में तथा सप्तम स्कन्दःअध्याय १५ श्लोक ८ किसी भी प्राणि को किसी प्रकार का कष्ट न दिया जाय लिखा है.
श्री गीता जी के अध्याय २/२० में 'हन्यते' शब्द शरीर के मारे जानेपर भी नहीं मरता से जुदा है मनुस्मृति मे मद्य,मान्स,सुरा,आसव पिशाच,राक्षस,यक्षो के आहार है इसलिये देवताओन्की हवि खानेवालो के लिये यह वस्तुए खाने योग्य नही.
वेदोंमे मांस भक्षण का विरोध ऋग्वेद की ऋचा १०,८७,१८/८,४ ,८,१ ऋग्वेद ६/२८/५ अथर्व वेद-१/१६/४ यजुर्वेद-१३/४२-४३ तथा १२/४९ में किया है.

अल गजाली १०५८-११११ बगदाद इस्लामिया शिक्षा संस्था के प्रमुख थे ने लिखी इहय उलूम उल-दिन जिसे कुर्रानके समकक्ष माना जाता है.उसका उर्दू अनुवाद 'मजाकुल आरफीन' में ,गाय का गोश्त मर्ज (रोग) है,उसका दूध शफा और घी दवा है.
शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ (३-१-२-२१) का गलत अर्थ निकालकर महर्षि याज्ञवल्क्य जी पर लांछन लगाने का प्रयास हुवा.सनातन धर्मलोक के लेखक पं.दीनानाथ सारस्वत जी ने खंडन कर लिखा है की,'यज्ञकर्ता के रूप में अंसल खा सकता है'. अमरकोश के (२-६-४४) में 'अंसल' मांस जैसा मांसल होता है अर्थात अंसल बलकारक होता है! स्वर्गीय श्री.वामन शिवराम आप्टे जी के शब्दकोष में मांस का उल्लेख किये बिना "बलवर्धक" कहा है तो पाणिनि के सूत्र भी बलकारक कहते है.याज्ञवल्क्य जी का अंसल खाने का मंतव्य दूध या दूध से बने पदार्थोंसे मक्खन,मलाई,रबड़ी,श्रीखंड,खीर से है. भारतोत्पन्न हिन्दू पंथियोंमे भेद डालने की गो भक्षक समूह की कूटनीति और कुछ नहीं.
सन्दर्भ ग्रन्थ 'प्राचीन भारत में गोमांस भक्षण-एक समीक्षा'-मथुरा तथा श्री.रामेश्वर मिश्र 'पंकज'लिखित "गोमाता-सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतिक" तथा स्वर्गीय श्री.प्रकाशवीर शास्त्री जी लिखित 'गो हत्या यानि राष्ट्र हत्या' से साभार साप्ताहिक हिन्दू सभा वार्ता का दिनांक १५-२१ तथा २२-२८ अगस्त २००१ के अंक में सम्पादित
गो वंश को राष्ट्रिय पशु घोषित करने की हिन्दू महासभा नेता वीर सावरकरजी की मांग को अनदेखा कर मांस-चर्बी निर्यात में उच्चांक कथित हिंदूवादी सरकार ने किया है।
हिन्दू महासभा की मांग है कि ,"गोवंश पालक के आधार कार्ड पर संख्या,लिंग,आयु,जन्म-मृत्यु,खरीद-बिक्री पंजीकृत की जाए !"