Sunday 24 April 2016

हिन्दू विवाह करे और गर्भ प्रतिबंधक साधनों का प्रयोग बंद करो !


अल्पसंख्या के आधारपर विखंडित भारत के समक्ष देश का स्वामित्व रखनेवाला हिन्दू अल्पसंख्यक होने का जो संकट खड़ा है उसके लिए सभी राजनितिक संगठनो की हिन्दू विश्वासघात की नेहरु-पटेल के साथ प्रतिबध्दता का दुष्परिणाम है।राष्ट्रीयता में विषमता,ब्रिटिश सरकार की देन थी और उसके लिए १९३५ का संविधान कम्युनल अवॉर्ड बनाया गया था। विभाजनोत्तर सभी राजनितिक दलों की आवश्यकता राष्ट्रीयता में विषमता बन गयी है।
आजकल एक ट्रेंड चल रहा है अविवाहित, कथित हिन्दू,हिन्दुओ को कितने बच्चे पैदा करने है वह उपदेश दे रहे है।
२००१-२०११ जनगणना के अनुसार मुस्लिम जनसँख्या २४.६० % बढ़ी वही हिन्दू १६.७६ % बढ़ी। तुलनात्मक दृष्टया २९.५२ % तेजी से मुस्लिम जनसँख्या वृध्दी हुई है। जो,अखण्ड पाकिस्तान का राजमार्ग बनेगा। इसलिए इस जनसँख्या वृध्दी पर चिंतित नेता हिन्दुओ को ज्यादा बच्चे पैदा करने का मार्गदर्शन कर रहे है। आज तक टी व्ही चैनल पर ऊपरवाला देख रहा है दिनांक २३ अप्रेल २०१६ रात १० बजे कार्यक्रम चल रहा था। इसमें भाजप-विहिंप के नेता कॉमन सिव्हिल कोड तक आकर रुक रहे थे। ठोस कारन बताया नहीं जा रहा था। वह संदर्भ दे रहे है -

        *श्री.शंकर शरण जी ने  दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में लिखे लेख पर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया था। १८९१ ब्रिटीश भारत सरकार के जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल के सर्वेक्षण अनुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी।सन १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना के नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ! ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में  एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित भारत में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक द वाईडेनिंग डीवाईड में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ! ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में (अर्थात २००३+१८=२०२१ में ?) हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बौध्द-शैव-वैष्णव भी) अल्पसंख्यांक होंगे !
शुध्दिकरण आग्रा से आरंभ हुआ तो,विहिंप-भाजप ने कन्नी कांट दी !

       अब इसका प्रतिकारात्मक उत्तर तिन/चार हिन्दू के बच्चे या समान नागरिकता के अनुसार ? बहुपत्नी-गर्भपात विरोध-परिवार नियोजन इस्लाम में धर्म विरोधी ? समान नागरिकता पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का संविधान विरोधी उत्तर। ऐसे में,पाकिस्तान लेकर भी संविधान का विरोध करनेवालों की राष्ट्रीयता समाप्त करने का निर्णय लेना नितांत आवश्यक हो गया है ! 
इस्लाम का इतिहास,२२ मई ७१२ सिंध नरेश दाहिर पर इस्लामी सैनिक एवं गद्दार द्वीप नौकायन करनेवाले बसैया हिन्दू की सहायता से मोहम्मद बिन कासिम ने विजय पाई।मीम के सांसद-विधायक भाई की मुस्लिम आक्रमण को सहायता करने की खुली धमकी,भारतमाता की जय नहीं कहूंगा ! पर गृह मंत्रालय ने अब तक क्या कार्यवाही की ? लव्ह जिहाद की गृहमंत्री को कोई जानकारी नहीं ऐसे सिध्द होता है। वहीं लव्ह जिहाद के विरुध्द बोलनेवाले हिंदुत्ववादी नेता-सांसद को भाजप का चेहरा न मानना स्पष्ट करता है कि,भाजप देशद्रोहियों की बढती जनसंख्या-आतंकी राष्ट्रद्रोही गतिविधी-खुली धमकियों को सामान्य कहकर अखंड पाकिस्तान की कांग्रेस नीति को ही आगे बढ़ा रही है।

            अखंड भारत विभाजन पश्चात् लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था।  जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" अखंड भारत विभाजन का सावरकरजी पर आरोप लगानेवाले देखें,देश बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है ! लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
 
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।

       ६ दिसंबर १९९२ को न्यायालय संरक्षित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर ध्वस्त करने के पश्चात दूसरे खिलाफत का आरंभ हुआ है।राष्ट्रद्रोही संगठित हुए। १९९३ मुंबई ब्लास्ट के पश्चात ७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी।(संदर्भ २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी) इसके लिए न्यायालय संरक्षित-शिलान्यासित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर ध्वस्त करनेवाली भाजप जिम्मेदार है।

       यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।

                जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह हमारे राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?

        ३१ जुलाई १९८६ देहली के मेट्रो पोलीटिन कोर्ट ने हिंदू महासभा नेताओ की मांगपर उन २४ आयातो को विघातक,विद्वेषक,घृणा फैलानेवाली माना है।उनको जब तक कुराण से निकाला नहीं जाता,एल.जी.वेल्स अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की रुपरेखा में लिखते है," जब तक दिव्य ग्रंथ का अस्तित्व है अरब राष्ट्र सभ्य राष्ट्रो की पंक्ती में बैठने के लायक नही है !"इसलिए ईसिस या आई एस आई या एल ई टी या अल कायदा विभिन्न नामो से चल रहे मुस्लिम ब्रदरहुड के वैश्विक कार्यकलापों को देखकर विभाजनोत्तर भारत के स्वामियों की सुरक्षा के लिए मुस्लिम जनसँख्या का बढ़ना,लव्ह जिहाद,भूमि जिहाद हानिकारक है। इनकी नागरिकता समाप्त किये बिना संविधान का अनुपालन और समान नागरिकता का स्वीकार नहीं करेंगे !

Thursday 21 April 2016

पूर्व गृहमंत्री पी.चिदंबरम पर राष्ट्रद्रोह का अभियोग चलाया जाएं - हिन्दू महासभा

यह प्रसार माध्यमों ने प्रकाशित किया था। फिर भी चिदु और दिग्गी ने संघ कार्यकर्ता रहे हेमंत करकरे के साथ मिलकर प्रज्ञा-पुरोहित पर आरोप लगाकर हेमंत करकरे की हत्या में संघ का हाथ दिखाने का प्रयास करते हुए मुश्रीफ की पुस्तक विमोचन में उपस्थित रहे।


CNN-IBN channel कि 13 अप्रेल 2013 रिपोर्ट, जिसमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बारे में बताया गया कि कैसे जांच करनेवाले अधिकारीयों के उत्पिडन से उनके आधे शरीर को लकवा मार गया है और वो एक समय आत्महत्त्या का प्रयास भी कर चुकी हैं ,उनके भाई ने बताया कि जेल में चार लोगों ने घेरकर उनकी इतनी पिटाई की कि, उनका एक फेफड़ा तक उससे फट गया .............. .......और रिपोर्ट में ये भी बताया गया की इतने महीनों से उन्हें प्राणीयो की भांती रखा जा रहा है जेल में और विशेष तो यह है कि,अब तक उनके ऊपर एक भी आरोप प्रमाणित नही हुए है. प्रज्ञा और पुरोहित के पास क्या मिला ? आसिमानंद को जबरन हस्ताक्षर लेकर फ्रेम किया जा रहा है यह आरोप हम निम्न आधारपर कर रहे है।

* एस.गुरुमूर्ति का लेख:-*चेन्नई से प्रकाशित होनेवाले ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के २४ जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है। मुख्यत: भारत-पाकिस्तान के बीच चलनेवाली ‘समझौता एक्सप्रेस’में हुए बम विस्फोट और उसके लिए लम्बे अन्तराल पश्चात् सरकारी जांच यंत्रणा ने तथाकथित हिंदू आतंकवादियों को धर दबोचने के विषय में लिखा है।

‘‘२० जनवरी २०१३ को, जयपुर में कांग्रेस के तथाकथित चिंतन शिबिर में केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगाव में हुए बम विस्फोट के लिए हिन्दुओ को जिम्मेदार बताया था। शिंदे का वक्तव्य प्रसिद्ध होने के दूसरे ही दिन लष्कर-ए-तोयबा का नेता हफीज सईद ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।अत: सईद की इस मांग के लिए शिंदे ही जिम्मेदार हो सकते थे।क्यो कि,ऐसा प्रकट हो रहा है कि,काँग्रेस के इशारेपर आतंकी हमले होते है या हमले की पूर्व सूचना इनको होती है.अब हम इस बम विस्फोट के तथ्यों पर विचार करेंगे !’’

‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा समिति ने २९ जून २००९ को पारित किए प्रस्ताव में यह कहा है कि, *‘२००७ के फरवरी में समझौता एक्सप्रेस में जो बम विस्फोट हुए उसके लिए लष्कर-ए-तोयबा का मुख्य समन्वयक कासमानी अरिफ जिम्मेदार है।’* इस कासमानी को दाऊद इब्राहिम कासकर ने आर्थिक सहायता की थी। दाऊद ने ‘अल् कायदा’को भी धन की सहायता की थी। इस सहायता के ऐवज में* समझौता एक्सप्रेस पर हमला करने के लिए ‘अल् कायदा’ने ही आतंकी उपलब्ध कराए थे।"* अब बताओ हिंदू आतंकवाद कहासे आया ?
     सुरक्षा समिति का यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ की वेब साईट पर भी उपलब्ध है ! दो दिन पश्चात् अर्थात दि. १ जुलाई २००९ को अमेरिका के (युएसए) कोषागार विभाग (ट्रेझरी डिपार्टमेंट) ने एक सार्वजनिक पत्रक में कहा है कि," अरिफ कासमानी ने बम विस्फोट के लिए लष्कर-ए-तोयबा के साथ सहयोग किया।" *अमेरिका ने अरिफ कासमानी सहित कुल चार पाकिस्तानी नागरिकों के नाम भी घोषित किए है। अमेरिकन सरकार के इस आदेश का क्रमांक १३२२४ है और वह भी अमरीकी सरकारी वेब साईट पर उपलब्ध है।’’*
    ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ और अमेरिका ने लष्कर-ए-तोयबा तथा कासमानी के विरुद्ध कारवाई घोषित करने के उपरांत , छ: माह पश्चात् पाकिस्तान के *गृहमंत्री रहमान मलिक ने कहा कि *, 'पाकिस्तान के आतंकवादी,समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में शामिल थे।परंतु ,ले.कर्नल पुराहित ने पाकिस्तान में रहनेवाले आतंकवादियों को इसके लिए सुपारी दी थी।(? हास्यास्पद ) ' (संदर्भ – ‘इंडिया टुडे’ ऑन लाईन,२४ जनवरी २०१०)
      ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ या अमेरिका अथवा पाकिस्तान के गृहमंत्री की भी बात छोड़ दो,अमेरिकाने इस विषय की एक स्वतंत्र यंत्रणा से जांच की, उसमें से और कुछ तथ्य सामने आये है। लगभग १० माह बाद सेबास्टियन रोटेल्ला इस खोजी पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में डेव्हिड कोलमन हेडली का भी हाथ था।" और यह उसकी तीसरी पत्नी फैजा आऊतल्लाह ने अपने कबुलनामें में बताया है। रोटेल्ला के रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘२००८ में मुंबई में हुए बम विस्फोट के बारे में अमेरिकी सरकारी यंत्रणा को चेतावनी दी गई थी।’
रोटेल्ला आगे कहते है कि,‘ मुझे इस हमले में घसीटा गया है, ऐसा फैजा ने कहा है।’ (वॉशिंग्टन पोस्ट दि.५ नवम्बर २०१०) २००८ के अप्रेल में लिखी अपनी जांच रिपोर्ट के अगले भाग में रोटेल्ला कहते है कि, ‘‘फैजा,* इस्लामाबाद में के (अमेरिकी) दूतावास में भी गई थी और '२००८ में मुंबई में विस्फोट होगे !' ऐसी सूचना भी उसने दी थी।’’*
       ‘‘सन् २००७ में,* समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट *के मामले की जांच के चलते समय ही, *इस हमले में ‘सीमी’ *(स्टुडण्ट्स इस्लामिक मुव्हमेंट ऑफ इंडिया) * का भी सहभाग था*, ऐसे प्रमाण मिले है। ‘इंडिया टुडे’ के १९ सप्तम्बर २००८ के अंक में के समाचार का शीर्षक था ‘मुंबई में रेलगाडी में हुए विस्फोट और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान का हाथ ! सफदर नागोरी’ उस समाचार में लष्कर-ए-तोयबा और पाकिस्तान के सहभाग का पूरा ब्यौरा दिया गया है। ‘सीमी’ के नेताओं की नार्को टेस्ट भी की गई, उससे यह स्पष्ट होता है। *इंडिया टुडे के समाचार के अनुसार,* सीमी के महासचिव सफदर नागोरी, उसका भाई कमरुद्दीन नागोरी और अमील परवेज की नार्को टेस्ट बंगलोर में अप्रेल २००७ में की गई थी। इस जांच के निष्कर्ष ‘इंडिया टुडे’ के पास उपलब्ध है। उससे स्पष्ट होता है कि, भारतीय राष्ट्रद्रोही सीमी के कार्यकर्ताओं ने, सीमापार के पाकिस्तानियों की सहायता से, यह बम विस्फोट किए थे। उनके नाम एहतेशाम और नासीर यह सिमी कार्यकर्ताओं के नाम है। उनके साथ कमरुद्दीन नागोरी भी था।
पाकिस्तानियों ने, सूटकेस कव्हर इंदौर के कटारिया मार्केट से खरीदा था। इस जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि, उस सूटकेस में पांच बम रखे गए थे और टायमर स्विच से उनका विस्फोट किया गया।’’




     ‘‘यह सभी प्रमाण समक्ष होते हुए भी महाराष्ट्र का पुलीस विभाग, इस दिशा से आगे क्यों नहीं बढा ? ऐसा प्रश्न निर्माण होना स्वाभाविक है। महाराष्ट्र पुलीस विभाग के कुछ लोगों को समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट का मामला कैसे भी करके मालेगाव बम विस्फोट से जोड़ना था ? ऐसा प्रतीत होता है। क्या राजनीतिक दबाव था ? तो,वह कौन थे यह स्पष्ट होना चाहिये. महाराष्ट्र के दहशतवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने, अपने अधिवक्ता के माध्यम से, विशेष न्यायाधीश को बताया था कि, "मालेगाव बम विस्फोट मामले के आरोपी कर्नल पुरोहित ने ही समझौता एक्सप्रेस के बम विस्फोट के लिए आरडीएक्स उपलब्ध कराया था।"परंतु,* ‘नॅशनल सेक्युरिटी गार्ड’ इस केन्द्र सरकार की यंत्रणा ने बताया था कि *,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग ही नहीं हुवा ! पोटॅशियम क्लोरेट और सल्फर इन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था।"और तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शिवराज पाटील ने भी इस विधान की पुष्टी की थी। मजे की बात तो यह है कि, उसी दिन १७ नवम्बर २००८ को दहशतवाद विरोधी दस्ते के अधिवक्ता ने भी अपना पूर्व में दिया बयान वापस लिया था।परंतु,अवसरवादी पाकिस्तान ने तत्काल घोषित किया की, 'सचिव स्तर की बैठक में समझौता एक्सप्रेस पर हुए हमले में कर्नल पुरोहित के सहभाग का मुद्दा उपस्थित किया जाएगा।' अंत में *२० जनवरी २००९ को दशतवाद विरोधी दस्ते ने अधिकृत रूप में मान्य किया कि,'समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स उपलब्ध नहीं कराया था।' फिर भी समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट आरोप को लष्कर-ए-तोयबा और ‘सीमी’ से ध्यान हटाकर कर्नल पुरोहित और उसके द्वारा भगवा रंग-हिन्दू आतंकवाद से जोड़ा गया ! मात्र २६/११ मुंबई हमले पूर्व की NCP नेता दामोदर तांडेल की प्रेस सूचना होते हुए भी उसे रोकने में शिथिलता दिखानेवाली महाराष्ट्र पुलीस यंत्रणा और सत्ताधारी कांग्रेस पर राष्ट्रद्रोहियों का प्रभाव होने का यह प्रमाण है ? और इसकी भी जांच होनी चाहिए कि,कौन से दल के नेता राष्ट्रद्रोही आतंकवादीयो को राजाश्रय देते रहे है।

खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा !

 अखंड भारत को मिलने जा रही स्वायत्तता के राजनितिक लक्षण देखकर पुणे मे अधिवक्ता ढमढेरेजी के बाडे मे राष्ट्र्भक्तोने (इनमे हिन्दू महासभा के प्रार्थमिक सदस्य अधिवक्ता डॉ.आम्बेडकरजी भी थे।) भिन्न देशो के संविधान का अध्ययन कर एक मसौदा सन १९३९-४२ के बीच तय्यार किया। उसे लो.टिळक गुट के लोकशाही स्वराज्य पक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभाने लो.तिलक स्मृतीदिन के पश्चात २ अगस्त १९४४ को पारित किया था।

          वास्तव मे १९१९ गव्हर्मेंट ऑफ इंडिया विधी विधान २३ दिसंबर १९१९ को मॉनटेनग्यू-चेम्सफोर्ड ने बनाया था।उसपर १९१६ लखनौ करार का प्रभाव था, इसलिये हिंदू महासभा नेता धर्मवीर डॉ.मुंजेजी ने उसका विरोध किया और कॉंग्रेस कि तटस्थता के कारण मुसलमानो को अधिक प्रतिनिधित्व मिला। बहुसंख्यको को जाती-पंथ-संप्रदाय-लिंग भेद मे विघटीत किया गया।मुडीमन कमिशन ने मार्च १९२५ मे जो रिपोर्ट दी,"१९१९ विधी विधान जनता कि आकांक्षा पूर्ण करने मे असमर्थ है इसलिये,संविधान मे परिवर्तन किये बिना दोष सुधार के लिये बदलाव सूचित करता है !" ऐसा कहा। ८ नोव्हेम्बर १९२७ बोल्डविन ने अनुच्छेद ४१ के अनुसार जॉन सायमन के नेतृत्व मे "विधी विधान सुधार समिती" का गठन किया। उसमे हाउस ऑफ लॉर्डस के सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा और हाउस ऑफ कॉमन्स के सकालत्वाला को सदस्य न बनाकर ७ आंग्ल (ब्रिटिश) सदस्य बनाये गए ,इस सायमन कमिशन ने "जोईन्ट फ्री कॉन्फरन्स" बनाई। जिसका विरोध करते समय लाहोर मे अ.भा.हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य लाला लाजपत राय जी कि मृत्यू हुई थी।

१९२७ चेन्नई मे सर्व दलीय बैठक मे पं.मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे जनता की तात्कालिक मांगो का समाधान निश्चित करने के लिये समिती बनाई गई।इस 'नेहरू रिपोर्ट' ने जो प्रस्ताव लाये वह ऐसे थे,'विधी विधान मंडल मे अल्पसंख्यको को चुनाव लडने आरक्षित-अनारक्षित स्थान,वायव्य सरहद प्रांत को गव्हर्नर शासित,सिंध से मुंबई अलग करना,४ स्वायत्त मुस्लीम बहुल राज्य का निर्माण,संस्थानिकोने प्रजा को अंतर्गत स्वायत्तता दिये बिना भविष्य मे संघराज्य संविधान मे प्रवेश निषिध्द।' इन मे परराष्ट्र विभाग-सामरिक कब्जा नही मांगा गया था।मात्र नेताजी सुभाषजी ने इस बैठक में संपूर्ण स्वाधीनता की मांग रखकर गांधी की ब्रिटीश वसाहती राज्य की मांग का विरोध किया। इस नेहरू रिपोर्ट पर ३१ दिसंबर १९२८ आगा खान की अध्यक्षता मे दिल्ली मे मुस्लीम परिषद हुई।उसमे जिन्ना ने देश विभाजक १४ मांगे रखी। ३१ अक्तूबर १९२९ रेम्से मेक्डोनाल्ड की कुटनिति के अनुसार आयर्विन ने ब्रिटीश वसाहती राज्य का स्थान देने को मान्य किया और १९४७ को मिला भी। तदनुसार, ब्रिटीश रानी की अध्यक्षता मे ब्रिटीश वसाहती साम्राज्यनिष्ठ राष्ट्रो की "चोगम परिषद" बनी जो आज भी होती है।
        गोलमेज परिषद की असफलता के पश्चात रेम्से ने १६ अगस्त १९३२ को कम्युनल एवोर्ड (सांप्रदायिक निर्णय) विधेयक घोषित किया।अल्पसंख्यक- पुर्वाछुत मतदार संघ अधिक प्रतिनिधित्व का निर्माण किया।हिंदू महासभा नेता धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंदजी ने लंडन तक जाकर पार्लियामेंट में विरोध किया,पं.मालवीयजी ने येरवडा कारागार मे गांधी के बाद डॉ.आंबेडकरजी की भेंट लेकर अपनी विरोधी भूमिका मे समर्थन मांगा।अंततः १८ मार्च १९३३ को ब्रिटिश सरकार ने श्वेतपत्र भी निकाला। हिंदू महासभा नेताओ ने बहुसंख्यको मे स्वर्ण-पुर्वाछुत सामाजिक विभाजन की राजनीती रोकने का सफल सामाजिक प्रयास किया। परन्तु,२ अगस्त १९३५ को ३२१ अनुच्छेद-३१० अनुसूची का संविधान लागू हुवा। 
                   
      स्टेफर्ड क्रिप्स ने महायुद्धोत्तर भारत को वसाहत राज्य देने की घोषणा की। तत्पश्चात जिन्ना ने संविधान निर्माण का विरोध करने की घोषणा की। सावरकर-मुंजे-मुखर्जी ने क्रिप्स की भेंट की और संविधान सभा मे सहयोग का विश्वास देकर विघटनवादी मानसिकता को रोकने की कुटनीतिक मांग की। ९ दिसंबर १९४६ डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुवा। मुस्लीम लीग ने बहिष्कार किया। ( विभाजानोत्तर आश्रयार्थि मुस्लिमों का विरोध आज भी जारी है।) २० फरवरी १९४७ 'स्वाधीन हिंदुस्थान अधिनियम १९४७' पारित हुवा और ३ जून को षड्यंत्रकारी नेहरू-बेटन-जिन्ना की योजना प्रकट हुई।७ जुलाई को वीर सावरकरजी ने राष्ट्र ध्वज समिती को टेलिग्राम भेजकर,'राष्ट्र का ध्वज भगवा ही हो अर्थात ध्वजपर केसरिया पट्टिका प्रमुखता से हो,कांग्रेस के ध्वज से चरखा निकलकर "धर्मचक्र" या प्रगती और सामर्थ्यदर्शक हो !' ऐसी मांग की। डॉ.आंबेडकरजी को मसौदा समिती का अध्यक्ष पद मिला।इसलिए पुणे मे बनाया पारित मसौदा आंबेडकरजी ले जाते समय हवाई अड्डेपर उन्हें भगवा ध्वज देकर राष्ट्रध्वज बनाने की मांग की गई,उसपर डॉ.जी ने भी आश्वासन दिया था।परंतु सत्ताधारी नेहरू परिवार का वर्चस्व उनकी कोई सूनने तयार नही था।                                                    
जनसंख्या के अनुपात मे विभाजानोत्तर जनसंख्या अदल बदल पर डॉ.आंबेडकर-लियाकत समझोता हुवा,ऑर्गनायझर ने जनमत जांचा,८४६५६ लोगो ने अदल बदल पर सहमती जतायी-६६६ने असहमती जतायी। फिर भी नेहरू-गांधी मानने को तय्यार नही हुए,२३ अक्तूबर को राष्ट्रीय मुस्लीमो ने नेहरू से मिलकर विघटनवादी लीग वालो को पाकिस्तान भेजने की मांग की ! उसे भी कुडेदान मे डाला गया।संविधान सभा पर नेहरू,पटेल,आझाद का वर्चस्व था।इसलिये संविधान की निव १९३५ ब्रिटिश संविधान के आधार पर स्थापित हुई। उसपर विभाजन का कोई परिणाम नही हुवा।इसलिये, डॉ.आंबेडकरजी ने चतुराई से संविधान मे धारा ४४-राष्ट्रीयता में विषमता का समापन करनेवाले समान नागरिकता का सूत्रपात किया,हिन्दू कोड बिल बनाया।विभाजनोत्तर अल्पसंख्यकत्व समाप्त कर हिंदू कोड बिल मे भारतीय पंथ समाविष्ठ किये। राष्ट्रीय नेताओ की अनुपस्थिती में आंबेडकरजी की उपस्थिती संविधान को पूर्ण करने मे सहाय्यक रही।इस काल मे संविधान सभा का अध्यक्ष बिहार हिंदू महासभा नेता रहे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को वीर सावरकरजी के विरोध मे रबरस्टेम्प पदाधिकारी बनाया गया।संविधान सभा सद्स्यो ने ७६३५ सुधार सुझाव दिये,२४७३ पर बंद दरवाजो मे चर्चा हुई।नेहरू को सुधार नही,अपना निर्णय थोपना था ! इसलिये जल्दबाजी मे डॉ.आंबेडकरजी ने २५ नवंबर १९४९ को घोषणा की,"२६ जनवरी १९५० को भारत एक स्वाधीन राष्ट्र होगा !"२६ नवंबर को तत्काल सुधार प्रस्ताव रोककर नेहरू ने संविधान का सरनामा प्रस्तुत किया। इंडियन कोंसीक्वेन्शियल जन.एक्ट ३६६-३७२ के अनुसार,"खंडित भारत मे पूर्ववत ब्रिटीश विधी विधान लागू रहेगा."५१६२ संविधान सुधार सुझाव क्या थे ? इसका कोई पता नही। और क्या इन कमीयो के लिये डॉ.आंबेडकरजी जिम्मेदार कहोंगे ?आम्बेडकरजी के अनुयायी विषय को जाने, स्वाधीन राष्ट्र मे संविधान समीक्षा समिती के लिये हुवा उनका विरोध कितना अज्ञानतावश था ? नासिक के श्री.वैद्य जी द्वारा हस्तलिखित संविधान की प्रथम प्रत संसद के संग्रहालय मे है,उसमे जर्मनी से आयात स्वर्णपत्र पर बृहोत्तर भारत के शास्ता प्रभू श्रीराम जी का चित्र उत्कीर्ण है,चीन से आयात स्याही से संविधान शब्दबध्द है।संविधान निर्माण तक का खर्च रु.६३,९६,७२९ होकर भी संविधान को अपेक्षित राष्ट्रीयता में समानता, बंधुत्व और नागरी सुरक्षा नही,महिला-निर्धन वर्ग सुरक्षित नहीं,आर्थिक-सामाजिक-राजनितिक तथा राष्ट्रीयता में विषमता है ! 

धर्मवीर डॉक्टर बा.शि.मुंजे रा.स्व.संघ प्रवर्तक !


धर्मवीर डॉक्टर बा.शि.मुंजे एक आदर्श टिळक भक्त,हिन्दुराष्ट्र के कर्णधार जो उपेक्षा का जीवन व्यतितकर श्रेयहीन मृत्यु का स्वीकार करनेवाले महान तपस्वी, त्यागी हिन्दू महासभा नेता और रा.स्व.संघ प्रवर्तक नेता जिन्हे हिन्दू महासभा के अतिरिक्त अन्यत्र कोई सन्मान नहीं। 

१२ दिसंबर १८७२ बिलासपुर में जन्मे बालकृष्ण शिवराम मुंजे रायपुर,नागपुर में प्रार्थमिक शिक्षा के पश्चात् मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर बने और मुंबई महापालिका के स्वास्थ्य विभाग में नौकरी कर रहे थे। १८९८ में उनकी लोकमान्य टिळक के साथ प्रथम भेट हुई और राजनीतिक क्रांति के बीज का अंकुर निकला। १८९९ में मुंजे अफ्रीका में चल रहे बोअर वॉर के चिकित्सा दल में ब्रिटिश सरकार द्वारा चुनकर भेजे गए एकमात्र भारतीय डॉक्टर थे। यहाँ उनकी बैरिस्टर गांधी की भेट हुई तथा वर्ण संघर्ष का युध्द भूमि पर अनुभव किया। अफ्रीका से लौटकर पिता से मिलकर नागपुर के महल में नेत्र चिकित्सालय खोला,"नेत्र चिकित्सा" संस्कृत ग्रंथ लिखा।

सन १९०४ मुंबई में कांग्रेस अधिवेशन में पहुंचे डॉक्टर मुंजे ने सामाजिक सुधार पर एक लेख लिखा और लोकमान्य जी को दिखाकर प्रकाशित किया। १९०५ नागपुर कांग्रेस अधिवेशन के तत्काल पश्चात् बनारस में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में डॉ.मुंजे के समर्थन पर टिळक जी ने स्वदेशी का आव्हान किया और लोकमान्य तिलक ने पुणे के लकड़ी पुल के पास विदेशी वस्तुओं की होली का आयोजन कर युवा वीर सावरकर के हाथों उस होली का दहन किया था। 

कोलकाता अधिवेशन के पश्चात् हुए सुरत अधिवेशन में तिलकजी का साथ देकर जहाल मत का प्रदर्शन का कांग्रेस अधिवेशन को चौपट कर दिया था। लोकमान्य के कारावास के कारन वह हिन्दू महासभा के स्वामी श्रध्दानंद जी द्वारा चलाएं जा रहे शुध्दिकरण कार्य के समर्थन में खड़े रहे। मोपला कांड के प्रतिरोध में उन्होंने बीस दिन मालाबार-केरल में स्वामी श्रध्दानंद जी के साथ रहकर जो कार्य किया उसके लिए हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे श्री शंकराचार्य कुर्तकोटि जी ने नागपुर के "विश्व हिन्दू धर्म संमेलन" में "धर्मवीर" उपाधी से सन्मानित किया।लखनऊ पैक्ट के विरोध में तिलक विरोध में खड़े हुए। लोकमान्य तिलक के स्वर्गारोहण के पश्चात् कांग्रेस उत्तराधिकारी बनने के लिए अरविंद घोष का पांडुचेरी साथ छोड़ प्रयास किया। परंतु,ब्रिटिश सरकार हस्तक मोतीलाल नेहरू ने सी.आर.दास के द्वारा गांधी को कालकोठी या हत्या का भय दिखाकर ब्रिटिश सरकार विरोधी गांधी की हिन्दू महासभा पोषक नीति से तोड़कर अपने तबेले में बांध दिया था। गांधी के समर्थन पर मोतीलाल अमृतसर अधिवेशन में तिलक विरुध्द नेतृत्व कब्जाने में सफल हुए थे। डॉक्टर धर्मवीर मुंजे कांग्रेस का नेतृत्व करते तो,अखंड भारत के मानचित्र में वृध्दी होती। 

१९२३ स्वराज पक्ष से नागपुर चुनाव लडकर लेजिस्लेटिव्ह कौंसिल में डॉक्टर मुंजे जी ने पदार्पण किया था। अंदमान के कालकोठी से छूटे ग़दर क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकर (बाबाराव) ने क्षयरोग से ग्रस्त होते हुए भी नागपुर जाकर धर्मवीर मुंजेजी से भेट की और वि दा सावरकर की मुक्ती के लिए समर्थन मांगा इस क्रिया कलाप में नेहरू-गांधी के असहयोग से निराश होकर लौटे। अकोला में गणेश विसर्जन की मस्जिद के सामने से सवाद्य शोभायात्रा का विरोध तोडने हिन्दू महासभा के नेता मामासाहेब जोगळेकर के प्रयास को सबल करने हेतू "तरुण हिन्दू सभा" का गठन करने की प्रेरणा दी। अंडमान की कालकोठी से लौटकर लाहोर में १९२२ में "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" की स्थापना करनेवाले भाई परमानंद छिब्बर को १९२३ बनारस हिन्दू महासभा अधिवेशन में समाविष्ट कर संगठन को और बल दिया।  

नागपुर में न.ता.कुंटे द्वारा प्रातः-संध्या समय में युवकों को लाठी-तलवार चलाने की शिक्षा दी जा रही थी। सन १९२४ गणेश विसर्जन शोभायात्रा पर मस्जिद से पथराव हुआ तब धर्मवीर मुंजे जी के मानसपुत्र-स्वातंत्र्य साप्ताहिक के संपादक-डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवारजी के नेतृत्व में छत्रपती रघुजी भोसले,परेल-मुंबई हिन्दू महासभा कार्यालय में कार्यरत प्रधान जी ने किये प्रतिकार की प्रशंसा बाबाराव ने भी की।धर्मवीर मुंजे जी ने हेडगेवार जी को वीर सावरकर जो शिरगाव-रत्नागिरी में स्थानबध्द रहते प्लेग के प्रादुर्भाव से बचने दामले जी के घर में रह रहे सावरकर जी से मिलने भेजा और आते ही बाबाराव द्वारा लिखे हरदास शास्त्री द्वारा शुध्द किए ध्वज वंदना और मातृ वंदना के साथ भगवा ध्वज स्वीकारकर हिन्दू महासभा को पूरक युवक संगठन के रूप में सन १९२५ के दशहरा को मोहिते वाड़ा-नागपुर में हिन्दू स्वयंसेवक संघ,तरुण हिन्दू सभा,गढ़ मुक्तेश्वर दल के स्वयंसेवक मिलाकर रास्व संघ की पहली शाखा लगी।मात्र अभ्यंकर जी के साथ पक्षांतर्गत विवाद में उन्हें स्वराज पक्ष छोड़ना पड़ा और वह पूर्ण कालिक हिन्दू महासभाई बने। इस समय हिन्दू महासभा केवल राष्ट्रीय हिन्दू जागरण में लिप्त स्वराज पक्ष के जैसे कांग्रेस की सदस्यता के साथ संगठनात्मक अंग था। हेडगेवारजी भी इस ही प्रकार हिन्दू महासभाई होते हुए भी कांग्रेस के सदस्य थे।बेलगांव में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी बैठक के पश्चात उस ही मंच पर १९२५ दिसंबर में हिन्दू महासभा की बैठक हुई और गांधी-नेहरू के विरोध में भाई परमानंद जी ने राजनीती का हिन्दू करण करने के लिए हिन्दू महासभा को कांग्रेस की राजनीतिक गुलामी से मुक्त होने का प्रस्ताव दिया। अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक सदस्य पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने इसका समर्थन नहीं किया। 

रोम,लंदन,जर्मनी,स्पेन,अफ्रीका होकर आएं मुंजे जी सैनिकी प्रशाला बनाने के इच्छुक थे। सरदार पटेल के भाई विट्ठलभाई जो अंतिम काल में अपनी संपत्ती नेताजी सुभाष को देना चाहते थे वह विट्ठलभाई डॉक्टर मुंजे को जनरल कहते थे। "मिलिटराइज इण्डिया" के लिए उन्होंने ब्रिटिश सरसेनापती को समझाकर अनुकूल करने के लिए बहोत परिश्रम किए। जब फायरिंग क्लब को मान्यता मिली तब उन्हें "फिल्ड मार्शल" कहा जाने लगा। कोलकाता में सरकार द्वारा मिल रही भूमि छोड़ वह रामभूमि-नासिक आए। यहां उन्होंने १९३५ में "सेन्ट्रल हिन्दू मिलिट्री एज्युकेशन सोसायटी" की स्थापना की। द्वितीय विश्व युध्द के नभ छाए थे उसका लाभ उठाकर सन १९३७ की श्रीराम नवमी को "भोंसला मिलिट्री स्कुल" की शिला रखी।

महामानव बाबासाहेब आंबेडकर की येवला धर्मांतरण की घोषणा रोकने के लिए शेठ बिड़लाजी के साथ जाकर मिले।सैनिकीकरण की दिशा में चल रहे मस्तिष्क ने उन्हें सिक्ख पंथ का स्वीकार करने का मार्गदर्शन किया। मात्र आंबेडकरजी ने उपेक्षित समाज के हाथ में कृपाण आते ही वह सामाजिक उपेक्षा का प्रतिशोध लेगा या गांधी की 1939 गोलमेज परिषद में खलिस्तान निर्माण को बल मिलेगा कहकर नकारा था।
वीर सावरकर अनिर्बन्ध मुक्त हुए तो,उन्हें हिन्दू महासभा में लाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद दिलवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।तब भी आंबेडकरजी ने ११ मई १९३७ दैनिक जनता में सावरकर अनिर्बंध मुक्ती पर स्वागत करनेवाला लेख लिखा। भाई परमानंदजी ने सन १९३७ में गांधी-पटेल से वर्धा में मिलकर अखंड भारत के लिए १९३५ संविधान की संघराज्य आख्या को समर्थन मांगा। कांग्रेस ने जब अक्टूबर १९३७ मुस्लिम लीग अधिवेशन में पारित संघराज्य विरोधी प्रस्ताव के समर्थन में अखंड भारत के लिए १९३५ संविधान की संघराज्य आख्या का मौन रहकर समर्थन किया तब वीर सावरकरजी ने २७ दिसंबर १९३७ कर्णावती (अहमदाबाद) अखिल भारत हिन्दू महासभा का अध्यक्ष पद भाई परमानंदजी से स्वीकारकर जो भाषण दिया उसमें ,"भारत में दो विरोधी राष्ट्र साथ साथ रह रहे है !" कहा था।
हिन्दू महासभा का संगठनात्मक विस्तार रास्व संघ के विस्तार पर निर्भर था। सन १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा अधिवेशन में सावरकर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर निर्विरोध चुने गए। डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तो,घटाटे राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बने मात्र,गोलवलकर गुरूजी महामंत्री पद का चुनाव हार गए तो,सावरकरजी पर हार का ठीकरा फोड़कर हिन्दू महासभा त्याग दी। हेडगेवारजी ने उन्हें मनाकर सरकार्यवाह पिंगले के साथ संघ कार्य में लगा दिया था। दूरद्रष्टा धर्मवीर मुंजेजी ने हेडगेवार को संघ का हिन्दू महासभा में विलय कर "हिन्दू मिलेशिया" स्थापन करने का सुझाव दिया था। बाबाराव भी इस प्रस्ताव के विरोध में गोलवलकर षड्यंत्र में फंस गए। और अत्यंत दुर्भाग्यवश हेडगेवार निधन के साथ गोलवलकर का पिंगले जी को सरसंघ चालक बनने से रोककर संघ नेतृत्व कब्जाकर हिन्दू महासभा विरोध में, नेहरू के समर्थन में खड़ा रहना धर्मवीर मुंजे पर मर्माघात सिध्द हुआ।विभाजन में प्रत्यक्ष दोषी के विचारवाहक जब सावरकरजी के १९३७ के भाषण को द्विराष्ट्रवादी कह रहे थे तब बाबाराव भी गोलवलकर गुरूजी के सम्मोहन में थे।    
सभी से नाराज होकर धर्मवीर मुंजे "भोंसला मिलिट्री स्कुल" के प्रांगण में एक झुग्गी में रहते थे। घुड़सवारी उनका शौक था। ४ मार्च १९४८ को घोड़े से गिरकर उनका देहावसान हुआ। इस उपेक्षित धर्मवीर को संघ स्वयंसेवक-हिन्दू महासभा के साथ साथ हिंदुत्ववादीयों को सतत स्मरण करना चाहिए ! 

Wednesday 13 April 2016

गुरूजी की अपरिपक्वता और अखण्ड हिन्दुराष्ट्र का पतन !

  हिंदू महासभा नेताओ की रा.स्व.संघ स्थापना की विशुध्द भावना यह थी की,युवा संस्कार-प्रतिकार क्षमता से ओजस्वी होकर हिंदू महासभा की राजनीतिक पूरकता बने. हिंदू महासभा ने कार्यकर्ता अभियान नही चलाया क्यो की संघ परस्पर पूरक-सहयोगी था.(शिवकुमार मिश्र-१९९८ दिस.जनज्ञान)

           १९३८ नागपूर अधिवेशन पश्चात वीर सावरकरजी ने १९३९संघ का महासभा मे विलय करने का और डा.हेडगेवारजी के ही नेतृत्व मे "हिंदू मिलेशिया" स्थापना का प्रस्ताव रखा था,संघ प्रवर्तक डा.मुंजे ने प्रयास भी जारी किये परंतु डा.हेडगेवारजी तयार नही हुए.(ले.वा.कृ.दानी-धर्मवीर मुंजे जन्मशताब्दी स्मरणिका)

         १९३९ कोलकाता हिंदू महासभा अधिवेशन मे गुरु गोलवलकरजी महामंत्री पद का चुनाव हारने के पश्चात हिंदू महासभा की राजनीती-अखंड राष्ट्र की क्षति का प्रामाणिक विचार नही किया ? कडी-साप्ता.गंगा पत्रिका मार्च-अप्रेल १९८७ संघ-सभामे आई दुरीयो की,गोलवळकरजी की कहानी से अधिवक्ता अवस्थी दि.२२फरवरी १९८८ हिं.स.वार्ता मे लिखते है," 
(क)गुरुजी चुनाव ही न लडते तो,हिंदू महासभा से नाराज न होते तो संभावना थी की,राष्ट्रीय नेता होते.संघ-सभा संबंध रहते.(ख)गुरुजी चुनाव जीत जाते तो हिंदू महासभा का कार्य जोरशोर से करते.संघ की जिम्मेदारी अन्य वहन करता.
(ग)गुरुजी चुनाव लडे-हारे उपरोक्त परिस्थितीया संभव थी.परंतु,हिंदू-हिंदुस्थान का दुर्भाग्य था.गुरुजी ने १९४६ के चुनाव मे नेहरू का साथ दिया और विभाजन का रास्ता खुल गया." 
           
            मा.श्री.चित्रभुषण,मॉडल टाउन,दिल्ली (साप्ताहिक हिन्दू सभा वार्ता दि.११ मार्च १९९६) लिखते है,रा.स्व.संघ के कार्यकर्त्ता रहे पत्रकार श्री.गंगाधर इंदुरकर गुरु गोलवलकर के निकट सहयोगी रहे है.इन्होने लिखी पुस्तक ' रा.स्व.संघ अतीत और वर्तमान ' में लिखा है, " जब तक डॉक्टर हेडगेवार जीवित रहे,संघ और सभा के मधुर सम्बन्ध रहे.इन संस्थाओ का आपस में सहयोग रहा.पर डॉक्टर हेडगेवार की अचानक मृत्यु के पश्चात् गुरूजी सर संघचालक बनते ही संघ और सभा में अनबन शुरू हो गयी जिसके कारण हिन्दू-हिन्दुराष्ट्र की बड़ी हानि हुई.लेखक के विचार में इस का ' मुख्य कारण गोलवलकरजी की अपरिपक्वता ही थी.' जहा हिन्दू महासभा के नेता वीर सावरकरजी और (१९३९ राष्ट्रिय उपाध्यक्ष हिन्दू महासभा) हेडगेवारजी परंपरागत रुढियो के विरोध में थे और हिन्दुराष्ट्र शब्द उनके लिए राजनितिक और राष्ट्रिय था वहा गोलवलकर की सोच परंपरागत संस्कृति की थी.गोलवलकर के व्यवहार में सावरकरजी के लिए वह आदर व आत्मीयता नहीं थी जो हेडगेवारजी में सावरकरजी के प्रति थी.

               १९३९-४० में हिन्दू महासभा और सावरकरजी की हिन्दू युवको के सैनिकीकरण की भूमिका को हेडगेवारजी ने सराहा था गोलवलकर ने उसका विरोध करना शुरू किया. इस विरोध के लिए गोलवलकरजी ने स्पष्टीकरण नहीं किया.इंदुरकर के अनुसार सावरकरजी की विचारधारा कुछ सही साबित हुई.पर यह बात उस समय संघ नेतृत्व की समझ में नहीं आ रही थी.गुरूजी के सैनिकीकरण के विरोध का कारण,यह भी हो सकता है कि, उन दिनों भारतभर में और खासकर महाराष्ट्र में सावरकरजी के विचारों की जबरदस्त छाप थी उनके व्यक्तित्व और वाणी का जादू युवकोपर चल रहा था और युवक वर्ग उनसे बहुत आकर्षित हो रहा था. ऐसे में गोलवलकरजी को लगा हो कि अगर यह प्रभाव इस प्रकार बढ़ता गया तो युवको पर संघ की छाप कम हो जाएगी.संभवतः इसलिए,गोलवलकरजी ने सावरकर और हिन्दू महासभा से असहयोग की निति अपनाई हो.इस विषय में लेखक ने संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी श्री.आप्पा पेंडसे से हुई बातचीत का जिक्र करते हुए लिखा है कि, ऐसा करके गोलवलकर ने युवको पर सावरकर की छाप पड़ने से तो बचा लिया पर ऐसा करके गोलवलकर ने संघ को अपने उद्देश्य दूर कर दिया.क्या ऐसा करके संघ नेतृत्व ने संगठन की जगह विघटन नहीं किया ? आगे लेखक लिखता है,यही कारण है कि,संघ द्वारा जीवन को जो मोड़ दिया जाना चाहिए था,उसमे संघ असफल रहा."

बैसाखी सन १८८२ लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना और ब्रिटिश सरकार द्वारा कांग्रेस !

  अखंड भारत का हिन्दू , विविध जाती-पंथ समुदाय की महासभा बनाकर कार्यरत थी। सन १८६४ में उत्तर भारत गव्हर्नर ने ब्रिटिश पार्ल्यामेंट को प्रस्ताव दिया कि,"यदि इस देश पर दीर्घकाल शासन करना है तो, हिंदुओ का पल्ला छोड़कर मुसलमानों का दामन पकड़ना चाहिए। " और सन १८७७ में अमीर अली ने " राष्ट्रिय मोहम्मडन असोशिएशन " की राजनितिक संस्था बनायीं।
बहुसंख्यक हिन्दू जाती-पंथ में विघटित थे ! तब पंजाब विश्वविद्यालय लाहोर संस्थापकों में से एक बाबू नविन चन्द्र राय तथा पंजाब उच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश राय बहादुर चन्द्रनाथ मित्र ने बैसाखी सन १८८२ लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना की। 
प्रारंभिक उद्देश्य :- धर्मांतरण के विरोध में शुध्दिकरण,अछूतोध्दार के साथ जातिभेद नष्ट करना था।
                       प्रथम सभापति प्रफुल्लचंद्र चट्टोपाध्याय और प्रथम महामंत्री बाबू नवीनचंद्र राय बने थे।
        सन १८५७ क्रांति के पश्चात हिन्दू राजनीती का आंदोलन न उभरे ; जो, ब्रिटिश सरकार के विरुध्द असंतोष उत्पन्न करें। इस भय से आशंकित सरकार ने विरोधी तत्वों को अवसर देने के बहाने अंग्रेजी पढ़े-लिखे युवकों को साथ लेकर राजनितिक वायुद्वार खोलने का मन बनाया।

          पूर्व सेनाधिकारी रहे एलन ऑक्टोव्हियन ह्यूम को,पाद्रीयों की सलाह पर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट तथा वाइसराय लॉर्ड डफरिन ने परस्पर परामर्श से ऐसा संगठन खड़ा करने को कहा कि,वह ब्रिटिश साम्राज्य से ईमानदार रहने की शपथ लिए शिक्षित हो और इसमें २०% मुसलमान भी हो ! यह थी Congress स्थापना की पृष्ठभूमि।
 
      हिन्दू सभा के बढते प्रभाव के कारण २८ दिसंबर सन १८८५ मुंबई के गोकुलदास संस्कृत विद्यालय में धर्मांतरित व्योमेशचंद्र बैनर्जी को राष्ट्रिय सभा का राष्ट्रिय अध्यक्ष चुनकर कार्यारंभ हुआ। इसके प्रथम अधिवेशन से लेकर सन १९१७-१८ तक "God Save the King ...." से आरंभ और  "Three cheers for the king of England & Emperor of India " प्रार्थना से समापन होता रहा। 
        हिन्दू सभा अध्यक्ष सन १९१० सरदार गुरबक्श सिंग बेदीजी के प्रस्ताव और पंडित मदन मोहन मालवीय तथा पंजाब केसरी लाला लाजपत रायजी के प्रयास से १३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार में कुंभ पर्व के बीच कासीम बाजार बंगाल नरेश मणीन्द्रचन्द्र नंदी की अध्यक्षता में अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना हुई तब पंडित मदन मोहन मालवीयजी के अनुयायी बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उपस्थित थे।  
      इस ब्रिटिश परस्त कांग्रेस को नष्ट करने का सामर्थ्य सन १९४६ के असेम्ब्ली चुनाव में हिन्दू महासभा ने प्राप्त किया तो हिन्दू महासभा के गर्भ से उपजी कथित हिन्दू संस्था के संचालक गुरु गोलवलकरजी ने कांग्रेस का हाथ थामा और देश का विभाजन हुआ। कांग्रेस के इशारेपर हिन्दू महासभा फोड़कर भारतीय जनसंघ बना और आज हिन्दू राजनीती का घात कर रही सुन्नती पार्टियों के पीछे हिन्दू जनमत खड़ा है ! जो, मंदिर भी कलंक लगाकर गिरा दे तो शौर्य ?

Saturday 9 April 2016

NIIT J&K काला विधी विधान-१९४४ अभिशाप !

काला विधी विधान-१९४४ जम्मू कश्मीर के लिए अभिशाप !

           देश दुनिया जानती है अखंड भारत का धार्मिक अल्पसंख्य जनसँख्या के अनुपात में भौगोलिक विभाजन होकर पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण हुवा.अब एक बांग्लादेश है. विभाजन पश्चात् ६६७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने २७ अक्तू.१९४७ को नेहरू को ज्ञापन देकर मुस्लिम लीगी पाकिस्तान समर्थको को पाकिस्तान भेजने की मांग की थी.लियाकत-आम्बेडकर समझौता जन संख्या अदल बदल पर हुवा.नेहरू नहीं माना.पंजाब ने भी आखिरी गाड़ी भर कर पाकिस्तान भेजी और पंजाब को मुस्लिम विहीन बनाया था.
            अब देखते है क्या है पेच शरणार्थी हिन्दुओ के लिए !
             अखंड भारत विभाजन की ३ जुलाई १९४७ की घोषणा के पश्चात २ लक्ष हिन्दू शरणार्थी जम्मू कश्मीर आये.विभाजनोत्तर २० अक्तूबर १९४७ को पापस्थान ने कबायलीयों के साथ सेना की घुसपैठ जम्मू-काश्मीर में करवाई।२६ अक्तूबर को महाराजा हरीसिंघजी ने खंडित भारत के साथ विलय स्वीकार किया। परंतु, नेहरू शेख अब्दुल्लाह के समर्थन में थे।हमारी सेना और स्वयंसेवकों ने पाकिस्तानियों को खदेड़ने में सफलता प्राप्त करते ही १ जनवरी १९४८ नेहरू ने युध्द विराम की घोषणा की। १३अगस्त को कब्जे का विवाद सुरक्षा परिषद ले जाया गया।५ जनवरी १९४९ को सुरक्षा परिषद ने पापस्थान को आक्रांता घोषित किया और आदेश देकर घुसपैठीयो को वापस बुलाने का संदेश दिया। मात्र नेहरू के गाझी पद के कारण १/३ पाक अधिव्याप्त (अधिकृत नहीं ! ) कश्मीर का निर्माण हुवा। १४ मार्च १९५० डिक्सन आयोग बना उसने जनमत संग्रह की बात छेड दी,१९५१ मे ग्राहम्ग्रीन एक निरर्थक आयोग बना।

          १३ जुलाई १९५३ अब्दुल्लाह ने जम्मू-काश्मीर राज्य को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर किया। तब, नेहरू ने उसे हटाकर १६ अगस्त १९५३ को बक्षी गुलाम मोहम्मद को मुख्यमंत्री बनाया।हिन्दू महासभा-जनसंघ के अनेक संयुक्त आंदोलन-विरोध के पश्चात १ अप्रेल १९५९ को प्रवेश पारपत्र बंद कीया गया।
           हिंदू शरणार्थी आज भी कश्मीर में नागरिक नहीं है ! काला विधी विधान-१९४४ पुर्व के निवासी हिन्दू मतदाता, निशुल्क शिक्षा से वंचित, निवृत्ती वेतन से वंचित, विकलांग सुविधा-सेवा से वंचित, किरायेदारी से वंचित, नम्बरदार नहि बन सकते, निशुल्क विधी-विधान-न्यायिक सहायता से वंचित, सरकारी नोकरी से वंचित, अस्थायी धारा ३७० समाप्त करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास परंतु गैर काँग्रेसी सरकारो ने भी ऐसा नहि किया। बहुमत के लिए सुन्नतियों का हिन्दुओं को ब्लैक मेलिंग करना जारी है। धारा ३५ अ ने भी हिंदू शरणार्थीयो को वंचित रखा। तो, धारा ७ अ ने पापस्थान गये मुसलमान स्थलांतरितो को पुनः जम्मू-कश्मीर में बसाने का विधिवत विधान बनाया।सन २००२ में सर्वोच्च न्यायालय ने इस विधान को समाप्त किया.
      संसद के सत्र मे धारा ३५-अ तथा ७(२) मे सरकार को संशोधन करना होगा। धारा ६ ख के अनुसार, १९ जुलाई १९४८ के पूर्व या पश्चात आये शरणार्थी हिन्दू जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिक माने जाये। हिंदू शरणार्थी लोक-विधान सभा के मतदाता बने।नागरिकता का अधिकार समानता से प्राप्त हो। निर्वासित हिंदूओ को अपनी संपत्ती के साथ जम्मू-कश्मीर मे पुनः बसाया जाये। अभी तक चुनाव आयोग,मानवाधिकार आयोग,अल्प संख्यक आयोग, एम्नेस्टी इंटर नैशनल,प्रदेश सरकार तथा केंद्र सरकार ने क्या किया ? इस पर श्वेत पत्र निकलना चाहिए था. परन्तु,माननीय न्यायालय ने पाकिस्तान से आये हिन्दुओ को वापसी का रास्ता खोलकर हिन्दू महासभा की मांग को उचित माना है.धर्मान्तरण-बलात्कार-लुट से झुझ रहे हिन्दुओ को पाकिस्तान में वोटिंग से रोका जाता है.नागरिकता मान्य नहीं.ऐसे में क्या खंडित हिन्दुस्थान में जैसे को तैसा विधान बनाकर पाकिस्तान के हिन्दुओ को सन्मान से जीवनयापन करने पाकिस्तान को विवश नहीं किया जा सकता ?

               * विभाजनोत्तर जम्मू-कश्मीर में १९४४ पूर्व के नागरिको को मतदाता माना परन्तु विभाजन और विलय की तिथि को अनदेखा किया और प्रदेश सरकार ने  निर्वाचन विधान के अनुच्छेद ४-ए में पाकिस्तान से आये शरणार्थी २ लक्ष हिन्दुओ को विधान सभा चुनाव से दूर रखा.
               * १९५४ नेहरू प्रणित मुख्यमंत्री बक्षी गुलाम मोहम्मद ने निः शुल्क शिक्षा से शर्णार्थियो को वंचित रखा.
               * २० जुलाई १९७६ के विकलांग-सेवा निवृत्त नागरिको की पेंशन विधान से हिन्दू शर्णार्थियो को दूर रखा गया ; २४ नवम्बर के विधान में कृत्रिम अंग निः शुल्क रोपण से हिन्दुओ की उपेक्षा की गयी.
                 * मुस्लिम नैशनल कॉन्फरन्स के मुख्यमंत्री शैख़ अब्दुल्ला ने हिन्दू शर्णार्थियो को किराये के मकान-जमीन के अधिकार से भी वंचित किया.
                 * १९८० के अधिनियम ने ग्राम नम्बरदार प्रदेश का स्थायी नागरिक कहकर शर्णार्थियो की बस्ती में बाहरी नम्बरदार थोपा.
                 *१५ दिसंबर १९८४ के अध्यादेश से २० सूत्री कार्यक्रम में निर्धनों को निः शुल्क विधि विधान की सहाय्यता केवल स्थायी निवासियों के लिए लागु हुई.
                 * शरणार्थी हिन्दू कश्मीर में सरकारी नौकरी या चपरासी तक नहीं बन सकते.
                   जम्मू-कश्मीर विधान सभा को सभी विधि विधान बनाने सुधरने का अधिकार अस्थायी धारा ३७० ने दिया है.१९५४ केंद्र सरकार ने ३७० के साथ भारतीय संविधान की धारा ३५ ए जोड़कर शरणार्थी हिन्दुओ को मूल अधिकार से वंचित रखा है. वहि, धारा ७(२) में १९४७ में पाकिस्तान गए नागरिको को वापसी पर अनुमति है. यही विरोधाभास है.
                     १९५४ में इसी धारा को आधार बनाकर धारा ६(२) बनी है के अनुसार पाकिस्तान चले गए लोग विशेष अनुज्ञा (पार पत्र ) लेकर जम्मू-कश्मीर आ सकते है और उसे मान्य करने का अधिकार केंद्र के पास है. अभी अभी एक शिकायत आई थी सैय्यद शाह गिलानी की चिट्ठी पर एक विघटन-आतंकवादी पाक से आया था.जब की यह अधिनियम केवल १० वर्ष के लिए था.फिर भी यह जारी है तो संशोधन करना होगा.
                     धारा ६ ख (i) (ii) के अनुसार १९ जुलाई १९४८ पूर्व जो खंडित भारत (जम्मू-कश्मीर समेत) में आये वह नागरिकता का अधिकारी है.हिन्दू शरणार्थी इस धारा के अनुसार अधिकारी है.परन्तु,जम्मू-कश्मीर सरकार ने शरणार्थी हिन्दुओ को वंचित ही रखने का मन बनाया है इसलिए विधानसभा मतदान से भी वंचित है.
        पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थी नागरिको को हिन्दू महासभा की मांग पर नागरिकता मिली. पाकिस्तान से पलायन कर रहे हिन्दू स्वाभाविक हिन्दुस्थान ही आयेंगे.पाकिस्तान-बांगला देश देने के पश्चात् भी जो मुसलमान आ रहे है वह शरणार्थी कभी नहीं हो सकते फिर भी उनको द्वार खुले रखने का तात्पर्य अखंड पाकिस्तान ही होगा,फिर हिन्दू शरणार्थी बनकर कहा जायेंगे ? कितने करोड़ मुस्लिम घुसपैठिये खंडित हिन्दुस्थान की राजनितिक-आर्थिक-सामाजिक-भौगोलिक-आंतरिक सुरक्षा को अस्थिर-असुरक्षित बनाए है ! जम्मू-कश्मीर सरकार शरणार्थी हिन्दुओ को प्रादेशिक-राष्ट्रिय नागरिकता और विस्थापित पंडितो के पुनर्वास पर प्रत्यक्ष कारवाही विधेयक लाएं !

आसाम का संतुलन बिगडा है

 आसाम की मुख्य समस्या सन १९४१ विधान सभा में कांग्रेस पारित प्रस्ताव में है.अखंड हिन्दुस्थान का विभाजन १४ अगस्त १९४७ को हो चूका है.विभाजन का आधार धार्मिक अल्प संख्या की जनसँख्या के अनुपात में अधिक भूमि देकर हुवा है.इसलिए अब मुस्लिम समस्या शेष नहीं है अब समस्या कांग्रेस की राष्ट्रीयता में विषमता के आधार पर चल रही मुस्लिम वोट बैंक की राजनीती है और उसके कारन देश में हो रही राजनीती अखंड पाकिस्तान की ओर बढ़ रही है.आसाम में हुई घुसपैठ को राष्ट्रीयता प्रदान कर मतदाता बनाना केवल मुस्लिम है इसलिए अतिक्रमित भूमि को निवासी बनाना उनकी जनसँख्या को प्रोत्साहित करना और वह केवल मुस्लिम है इसलिए मुस्लिम पोलिटिकल कौंसिल के अध्यक्ष डॉक्टर रहमानी को (NDTV) वाहिनियो द्वारा आमंत्रित करना राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है.
         आसाम की समस्या पर १९४७ पश्चात् आये घुसपैठियों को वापस भेजना यह एक अंतिम विकल्प है.आसाम में केवल बोडो हिन्दू और घुसपैठिये मुस्लिम यह विवाद राष्ट्रिय समस्या है प्रादेशिक बनाकर घुसपैठ को प्रोत्साहित करने का प्रयास मुस्लिम पोलिटिकल कौंसिल का है.मुस्लिम पोलिटिकल कौंसिल का मुख्य उद्देश देश की सर्व दलीय राजनीती का मुस्लिमकरण करना मात्र है.इसलिए,बांग्लादेशी हिंदुओं की दुरावस्था पर सरकार मौन है। बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ से आसाम का संतुलन बिगडा है तो,आसाम में बांग्लादेशी काफिरों को लाकर राष्ट्रीयता प्रदान कर उनकी सुरक्षा की जाये। हिन्दू महासभा ने आनेवाली विधानसभा के लिए हिन्दू मतों का एकीकरण का आवाहन किया है।
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http://indiatoday.intoday.in/story/perfume-baron-badruddin-ajmal-draws-fire-for-communalising-assam-riots/1/214254.html

Thursday 7 April 2016

१७ अप्रैल १८५९ तात्या टोपे की फांसी नहीं हुई !

१७ अप्रैल १८५९
अमर बलिदानी तात्या टोपे की फांसी नहीं हुई !
छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी पेशवाओं ने उनकी विरासत को बड़ी सावधानी से सँभाला। अंग्रेजों ने उनका प्रभुत्व समाप्त कर पेशवा बाजीराव द्वितीय को आठ लाख वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के पास बिठूर में नजरबन्द कर दिया। इनके दरबारी धर्माध्यक्ष रघुनाथ पाण्डुरंग भी इनके साथ बिठूर आ गये। इन्हीं रघुनाथ जी के आठ पुत्रों में से एक का नाम तात्या टोपे था।
१८५७ में जब स्वाधीनता की ज्वाला धधकी, तो नाना साहब के साथ तात्या भी इस यज्ञ में कूद पड़े। बिठूर, कानपुर, कालपी और ग्वालियर में तात्या ने देशभक्त सैनिकों की अनेक टुकडि़यों को संगठित किया। कानपुर में अंग्रेज अधिकारी विडनहम तैनात था। तात्या ने अचानक हमला कर कानपुर पर कब्जा कर लिया। यह देखकर अंग्रेजों ने नागपुर, महू तथा लखनऊ की छावनियों से सेना बुला ली। अतः तात्या को कानपुर और कालपी से पीछे हटना पड़ा।
इसी बीच रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी में संघर्ष का बिगुल बजा दिया। तात्या ने उनके साथ मिलकर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। तात्या दो वर्ष तक सतत अंग्रेजों से संघर्ष करते रहे। चम्बल से नर्मदा के इस पार तक तथा अलवर से झालावाड़ तक तात्या की तलवार अंग्रेजों से लोहा लेती रही। इस युद्ध में तात्या के विश्वस्त साथी एक-एक कर बलिदान होते गये।
अकेले होने के बाद भी वीर तात्या टोपे ने धैर्य और साहस नहीं खोया।
तात्या टोपे केवल सैनिक ही नहीं, एक कुशल योजनाकार भी थे। उन्होंने झालरा पाटन की सारी सेना को अपने पक्ष में कर वहाँ से १५ लाख रुपया तथा ३५ तोपें अपने अधिकार में ले लीं।
इससे घबराकर अंग्रेजों ने छह सेनापतियों को एक साथ भेजा; पर तात्या उनकी घेरेबन्दी तोड़कर नागपुर पहुँच गये। अब उनके पास सेना बहुत कम रह गयी थी। नागपुर से वापसी में खरगौन में अंग्रेजों से फिर भिड़न्त हुई। सात अपै्रल १८५९ को किसी के बताने पर पाटन के जंगलों में उन्हें शासन ने दबोच लिया। ग्वालियर (म.प्र.) के पास शिवपुरी के न्यायालय में एक नाटक रचा गया, जिसका परिणाम पहले से ही निश्चित था।
सरकारी पक्ष ने जब उन्हें गद्दार कहा, तो तात्या टोपे ने उच्च स्वर में कहा, ‘‘मैं कभी अंग्रेजों की प्रजा या नौकर नहीं रहा, तो मैं गद्दार कैसे हुआ ? मैं पेशवाओं का सेवक रहा हूँ। जब उन्होंने युद्ध छेड़ा, तो मैंने एक पक्के सेवक की तरह उनका साथ दिया। मुझे अंग्रेजों के न्याय में विश्वास नहीं है। या तो मुझे छोड़ दें या फिर युद्ध बन्दी की तरह तोप से उड़ा दें।’’
अन्ततः १७ अप्रैल १८५९ को उन्हें एक पेड़ पर फाँसी दे दी गयी। कई इतिहासकारों का मत है कि तात्या कभी पकड़े ही नहीं गये। जिसे फाँसी दी गयी, वह ग्वालियर के अध्यापक श्री नारायणराव भागवत थे, जो तात्या को बचाने हेतु स्वयं फांसी चढ़ गये।

 तात्या संन्यासी वेष में कई बार अपने पूर्वजों के स्थान येवला (महाराष्ट्र) आये थे ।

इतिहासकार श्रीनिवास बालासाहब हर्डीकर की पुस्तक ‘तात्या टोपे’ के अनुसार तात्या १८६१ में काशी के खर्डेकर परिवार में अपनी चचेरी बहिन दुर्गाबाई के विवाह में आये थे तथा १८६२ में अपने पिता के काशी में हुए अंतिम संस्कार में भी उपस्थित थे। तात्या के एक वंशज पराग टोपे की पुस्तक ‘तात्या टोपेज आॅपरेशन रेड लोटस’ के अनुसार कोटा और शिवपुरी के बीच चिप्पा बरोड के युद्ध में एक जनवरी १८५९ को तात्या ने वीरगति प्राप्त की।
अनेक ब्रिटिश अधिकारियों के पत्रों में यह लिखा है कि कथित फांसी के बाद भी वे रामसिंह, जीलसिंह, रावसिंह जैसे नामों से घूमते मिले हैं। स्पष्ट है कि इस बारे में अभी बहुत शोध की आवश्यकता हैं |
संदर्भ -hardinpavan.blogspot.com

Saturday 2 April 2016

संविधान विरोधी क़ुरान !




आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से दिया नकार !
सुप्रीम कोर्ट ने तिन बार तलाक कहकर वैवाहिक संबंध तोड़ने की परंपरा को वैधानिक वैधता जाँच करने का निर्देश दिया था। AIMPLB का कहना है,'यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का विषय नहीं है !"
बोर्ड का कहना है ,"पर्सनल लॉ कुरान पर आधारित है !इसलिए सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता !"
यूनिफॉर्म सिव्हिल कोड पर ,"उसमे एकता एवं अखंडता की कोई गैरंटी नहीं है !"
बोर्ड के अधिवक्ता एजाज मकबूल ने कहा कि ,"मोहम्मडन लॉ की रचना कुरान और हदीस से की गई है। इसलिए ,'विधायिका के कानून और धर्म से संचालित सामाजिक नियमों के बिच सुस्पष्ट रेखा होनी चाहिए !"
कोर्ट में प्रस्तुत शपथ पत्र में बोर्ड ने कहा है,'मुस्लिम पर्सनल लॉ एक सांस्कृतिक विषय है। जिसे इस्लाम से पृथक नहीं किया जा सकता !'
संदर्भ - http://hindi.revoltpress.com/nation/aimplb-refuses-supreme-court-decision/

इस विषयपर हिन्दू महासभा नेता अधिवक्ता स्वर्गीय भा गो केसकर , ५-१-२३६,सुन्दर भवन,भागानगर (हैद्राबाद) ५००००१ आंध्र प्रदेश से प्रकाशित पुस्तिका के आधारपर -
कुरान और हदीस मुसलमानो को भारतीय संविधान के प्रति निष्ठां रखने से प्रतिबन्धित करता है।
निम्न उदाहरणों से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है।
१)संविधान संशोधित किया जा सकता है।
    कुरान में कभी संशोधन नहीं किया जा सकता।
२) संविधान १९५० में संविधान सभा द्वारा बनाया गया,अंगीकृत किया गया एवं भारत की जनता को समर्पित किया गया।
    कुरान १४०० वर्ष पूर्व लिखा गया। (तुर्क सरकार ने २०१५ में कुरान संशोधन हेतु पांच सदस्य समिती बनाई है।)
३)संविधान का उद्देश्य भारत की सार्वभौम ,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाने का है। जैसा कि,भारत की जनता ने संकल्प किया था।
    कुरान का उद्देश्य ग्रन्थ को अंतिम दैवी प्रकाशन तथा मुहम्मद को अंतिम सिध्द पुरुष निरुपित करना है।
४)संविधान विश्व के भौतिक स्वरुप के मामलों से सम्बंधित है तथा दूसरे विश्व के मामलों के सम्बन्ध में जैसे धर्म,अध्यात्म,अदृश्य विश्व के जीवन आदि,तटस्थ है।
    कुरान दोनों विश्व के सभी मामलों में एकमात्र मार्गदर्शक तथा नेता होने का दावा करता है।
५)संविधान में विगत ३३ वर्ष में ४५ से अधिक बार संशोधन हुआ है।
    कुरान में १४०० वर्षो में एक भी शब्द बदला नहीं है।
६)संविधान के अनुसार भारत का राष्ट्रपती शीर्षस्थान पर होता है। वह भी राष्ट्र के संविधानिक कार्यप्रणाली के अंतर्गत।
   कुरान के अनुसार,(राष्ट्र संकल्पना न होकर वैश्विक स्तरपर इस्लाम का विचार होता है।) राष्ट्र तथा धार्मिक मामलों में खलीफा शीर्षस्थ होता है। वह कैथोलिक ईसाई चर्च के पोप के समान होता है। उसके पास विश्व के व दूसरे विश्व के मामलों  में समस्त अधिकार है। (७ अगस्त १९९४ लन्दन में हुए विश्व इस्लामी संमेलन में वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर 'निजाम का खलिफा' की नियुक्ति और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण प्रस्तावित हुआ। संदर्भ-शमशाद इलाही अंसारी-दैनिक अमर उजाला २६अगस्त १९९४)
७)संविधान अन्य सभी राष्ट्रों की सार्वभौमता आदर करता है और अन्य देशो को अपने अधीन करने की कल्पना भी नहीं करता।
    कुरान के आदर्शो पर जो देश आधारित नहीं है,उनकी सार्वभौमता नहीं मानी जाती। यह इस्लाम का कर्तव्य है कि,'गैर इस्लामिक देशो को अपने अधीन करके उन्हें दारुल इस्लाम में बदल दे,जहाँ गैर मुस्लिम नागरिक न होकर गुलाम माने जाते है।
     {जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौदूदी हिन्दू वल्ड के पृष्ठ २४ पर लिखते है,"इस्लाम और राष्ट्रीयता की भावना और उद्देश्य एक दूसरे के विपरीत है। जहाँ राष्ट्रप्रेम की भावना होगी , वहां इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश है। }
८)संविधान की प्रस्तावना कहती है ,हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए ........ दृढ़ संकल्प होकर ....
    (अ ) भारत एक राज्य है जो प्रादेशिक सीमाओं में घिरा है।
     (ब)साम्राज्यवाद न तो सिखाया जाता है न उसका सपना देखा जाता है।
     (स) विभिन्न प्रणालियों वाले,जैसे राजतन्त्र,प्रजातंत्र,धार्मिक प्रभुसत्ताक सार्वभौम राष्ट्रों के सह अस्तित्व में विश्वास करता है।
     (द)भारत राष्ट्र निरीश्वरवादी है। परंतु ,प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने या प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
     (इ) प्रजातंत्र एक मुलभुत सिध्दांत है और इसलिए ग्राम पंचायत से केंद्र शासन तक का प्रशासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
     (ई) गणतंत्र ;- प्रजा का शासन यह तीसरा मूलभूत तत्व है।
   
     कुरान में लोगो का कोई स्थान नहीं है। केवल अल्लाह सभी मामलों का निर्णय करता है। वह मालिक है जो शासन करता है,न्याय करता है यहाँ और दूसरे विश्व में भी। लोग केवल उसके गुलाम है। लोग अल्लाह को पिता भी नहीं कह सकते। यह एक शिर्क -पाप है जिसके लिए नरकवास ही सजा है।
     (अ) प्रादेशिक आधारोपर राष्ट्र को कुरान नहीं मानता। यही वजह है कि,मरहूम शेख अब्दुल्ला ने अपने आपको कश्मीरी मुसलमान बताया न कि,एक भारतीय।
     (ब) अध्यात्म विहीन-धर्म के बारीक़ पारदर्शक बुरके में लिपटा यह साम्राज्यवाद है। यह बिना अध्यात्म वाला धर्म है।
     (स) कुरान पर आधारित धार्मिक प्रभुसत्ताक राष्ट्र पर ही विश्वास करता है व उसी पर बल देता है।
     (द) कुरानी राष्ट्र शुध्द ईश्वरवादी है और जहां सुन्नी बाहुल्य है वहां कुरान को अल्लाह द्वारा दी गयी अंतिम पुस्तक तथा मोहम्मद को अल्लाह का अंतिम संदेशवाहक मानना अनिवार्य है। यही कारन है कि,अहमदिया (कादियानी) जो मोहम्मद को अंतिम संदेशवाहक नहीं मानते है,को पाकिस्तान में गैर मुस्लिम,काफिर,पापी घोषित किया गया है और सऊदी अरेबिया में उन्हें हज यात्रा का अधिकार नहीं दिया गया है। शिया को रबजी कहा जाता है। पाकिस्तान में बहाइयों से नफ़रत की जाती है और उनका कत्लेआम है और होता रहता है। भारत में शिया- सुन्नी दंगे एक वार्षिक कार्यक्रम है।
         इसप्रकार,पांच लाख सुन्नियो को जो ईरान की राजधानी तेहरान में रहते है। एक भी मस्जिद बनाने की अनुमति नहीं है। जबकि,दो गुरुद्वारे,बुध्द विहार,मंदिर और ११ चर्च मौजूद है।
      (इ) मुस्लिम प्रजातंत्र केवल खलीफा के चुनाव तक सिमित रहा जो,भौतिक व अध्यात्मिक नेता होता था। यह सीमित खलीफा प्रजातंत्र केवल ३१ वर्ष तक चला।पहले तिन खलीफा लोगो द्वारा क़त्ल कर दिए गए। चौथे खलीफा के बाद कोई चुनाव नहीं हुआ। कोई भी ताकदवर सम्राट स्वयं को एक खलीफा घोषित कर लेता था और समूचा मुस्लिम जगत उसका आज्ञा का पालन करता था। अंत में १९२१ में खलीफा का सिंघासन कमाल अता तुर्क ने समाप्त कर दिया। तब से सभी मुस्लिम राष्ट्र तानाशाही बादशाहो द्वारा शासित है। इस्लाम को प्रजातंत्र से एलर्जी है मुसलमानो के लिए यह वर्ज्य है।
  (ई) कुरान के अनुसार यह वर्ज्य है। अल्लाह एकमात्र शासक है। यह खलीफाओं के द्वारा शासन करता है। जनता की कोई आवाज नहीं है। लोग तो केवल बन्दे या गुलाम है।

(९) संविधान सभी नागरिकों को सामाजिक ,आर्थिक व राजनितिक न्याय प्राप्त करने हेतु।
      कुरान ने जो भी दिया है वह केवल मुसलमानो के लिए और मुसलमानो में भी सुन्नियो के लिए है। गैर मुस्लिमो के लिए न्याय का मापदंड है।
(१०) संविधान स्वतंत्रता विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास और पूजा का।      
       कुरान विचार स्वतंत्रता आदि की सभी मान्यताओं के विपरीत है। इसी वजह से आज तक पिछले १४०० वर्षो में पुस्तकालयों को नष्ट किया गया,स्वतंत्र विचारों को मार डाला गया। अन्य धर्मावलम्बियों को प्रताड़ित किया गया व उन्हें बलपूर्वक धर्मान्तरित किया गया,उन्हें मार डाला गया ,पूजास्थल नष्ट किये गए।
(११) संविधान समानता की बात करता है।
        कुरान के अनुसार,मुसलमानो में आपस में भी समानता नहीं है। अन्य धर्मावलम्बी गुलाम बनाए व बेचे जाते है। मुस्लिम स्त्रियों से भी समानता का व्यवहार नहीं किया जाता। स्त्रियां तो,केवल पुरुषों की वस्तु संपत्ती है। स्त्रियों को हमेशा के लिए गुलाम बनाकर बेचा जा सकता है। किसी अदालत में एक तथ्य सिध्द करने के लिए दो स्त्रियों की गवाही आवश्यक है। अर्थात गवाहदार के रूप में एक पुरुष दो स्त्रियां !
(१२) संविधान उन सभी में (सभी नागरिकों में) भाईचारे को बढ़ावा देते हुए राष्ट्र की प्रतिष्ठा व एकता बनाए रखने हेतु।
        कुरान निःसंशय भाईचारा बढ़ाने की कोशिश करता है। परंतु ,भाईचारा केवल इस्लाम के कठोर पालन करनेवालों में अर्थात सुन्नियो में। इसलिए मोहम्मद ने मस्जिद ए फरार को गिराकर जला दिया। क्योकि,वह नव मुस्लिमो ने बनाई थी। जो शतप्रतिशत मुस्लिम नहीं माने गए। यह भाईचारा आर एस एस या आर्य समाज की किस्म का है। अलगाव की तथा विघटन की स्थिती गैर मुस्लिम राष्ट्रों में उत्पन्न करना ,उनकी एकता समाप्त करना यह कुरानी मुसलमानो के लिए खुली और सतर्कता पूर्वक अपनाई गई जीवनशैली है।
(१३) संविधान -हम एतद द्वारा यह संविधान अंगीकृत अधिनियमित करते है और स्वयं को समर्पित करते है।
        कुरान अंगीकृत,अधिनियमित आदि सभी मान्यताए पाप है !केवल अल्लाह का कानून जो अंतिम बार प्रकट होने के वक्त अंतिम पैगम्बर मोहम्मद के मार्फ़त दिया गया वैध है। जनता को संविधान और कानून बनाने या अंगीकृत करने का हक़ नहीं है। यह अल्लाह का एकाधिकार है।
(१४) संविधान -भारत के राज्यों का एक संघ होगा। ये राज्य एवं उनकी सीमाए प्रथम अनुसूचि के भाग अ,ब,व,स में दर्शाए गए है।
        कुरान के अनुसार, भौतिक रूप से राष्ट्र की कल्पना कुरान के लिए खरतरनाक है। इस्लामी राष्ट्र के लिए प्रादेशिक सीमा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। सिध्दान्ततः यह सम्पूर्ण पृथ्वी पर होता है।
(१५) भारतीय संविधान भाग-३ मुलभुत अधिकार।
       [अ ] अनुच्छेद १२ परिभाषा। अनुच्छेद १३ प्रचलित कानून।

        कुरान [अ ] इन्हे नहीं मानता। केवल शरियत कानून ही माना जाता है।
(१६) संविधान अनुच्छेद १४ कानून के समक्ष समानता-कोई भी राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं करेगा।
        कुरान के अनुसार,गैर मुस्लिम तथा कुरान व मोहम्मद को माननेवालों में कोई समानता नहीं।
(१७) संविधान अनुच्छेद १५ धर्म,जाति,लिंग आदि के आधारपर भेदभाव की पाबंदी।
        कुरान के अनुसार,लिंग के आधारपर भेदभाव करना पवित्र कर्तव्य है।
(१८) संविधान अनुच्छेद १६ सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता।
        कुरान के अनुसार,पुरुष-स्त्रियों में कोई समानता नहीं। स्त्रियों को सरकारी नौकरी का कोई अवसर नहीं।
(१९) संविधान - अनुच्छेद १९-भाषण आदि की स्वतंत्रता।
        कुरान के विरुध्द एक भी शब्द बोलना महापाप है।
(२०) संविधान -अनुच्छेद २१ जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा।
        कुरान के अनुसार,कुरान व मोहम्मद को न माननेवालों को कोई अधिकार नहीं।
(२१) संविधान-अनुच्छेद २३ मानवों की खरीद फरोख्त व बंधुवा मजदूरी पर बंदिश।
        कुरान के अनुसार ऐसी कोई बंदिश नहीं।
(२२) संविधान-अनुच्छेद २२ गिरफ़्तारी व निरोध के विरुध्द सुरक्षा।
        कुरान के अनुसार ,ऐसा कोई हक़ नहीं।
(२३) संविधान अनुच्छेद-२४ कारखानों आदि में बालको से काम कराने पर पाबन्दी।
        कुरान के अनुसार,कोई बंदिश नहीं।
(२४) संविधान अनुच्छेद -२५ विवेक बाबद स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म का पालन आचरण की स्वतंत्रता।
        कुरान के अनुसार,विवेक व अन्य बातो पर बंदिश अगर ये कुरान के सिध्दांतो के विपरीत हो।
(२५) संविधान अनुच्छेद-२९ अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा।
       कुरान के अनुसार,कुरान व मोहम्मद के न माननेवाले काफिर (पापी) है वे ऐसी सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते।
(२६) संविधान अनुच्छेद-३० शिक्षा संस्थाए स्थापित करना व चलाने का अल्पसंख्यंकों का अधिकार।
        कुरान के अनुसार ,अल्पसंख्यक होने के नाते किसी दावे को मान्यता नहीं। शिक्षा का अर्थ केवल कुरान की शिक्षा।
(२७) संविधान अनुच्छेद-३३ सेना के सम्बन्ध में इस भाग अर्थात भाग ३ मूलभूत अधिकारों में बदल करने का संसद का अधिकार।
        कुरान के अनुसार,किसी भी प्राधिकारी को कुरान का एक भी शब्द बदलने का अधिकार नहीं। (देखा जा रहा है मॉडरेट और एक्सट्रीमिस्ट का कुरान भिन्न)
(२८) संविधान भाग ४ राज्य नीतियों के निर्देशक सिध्दांत। अनुच्छेद ४४-नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता।
        कुरान के अनुसार,मुसलमान व गैर मुसलमानो के लिए समान नागरिकता नहीं। गैर मुसलमान अपने लिए अलग संहिता की मांग नहीं कर सकते। सब कुछ मुस्लिम शासक की मर्जी पर निर्भर है।
(२९) संविधान अनुच्छेद -४६ अनुसूचित जाति,जनजाति व कमजोर वर्गों की शैक्षिक संस्थाए व उनके हितों को बढ़ावा।
        कुरान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं।
(३०) संविधान अनुच्छेद ४८ -राज्य आधुनिक एवं वैज्ञानिक शैली में कृषि संगठन करेंगे व गाय बछड़ो का व  पशुओं का क़त्ल रोकेंगे।
        कुरान के अनुसार,पैरा एक सूरा २ अलबकरा आयत ६७ से ७१ कुरान-"देखो,अल्लाह तुम्हे गाय की बली देने का आदेश देता है। सचमुच,बछड़े के साथ या अपरिपक्व दोनों स्थितियों में वह गाय है। सचमुच यह पीली गाय है। उसका रंग चमकदार है जिससे देखनेवालों को ख़ुशी होती है सचमुच गाय पर जू नहीं होता। वह खेत बरखती नहीं व न ही जमीन को पानी देती है। पूरी की पूरी और किसी निशान के बिना। इसलिए वहीं करो जो तुम्हे आदेशित किया गया है। "

        राष्ट्रपती राजेंद्रप्रसाद सम्पूर्ण गोवध बंदी की घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके सील लगानेवाले ही थे कि,गांधी उनके पास जल्दी जल्दी गए और हस्ताक्षर नहीं करने के लिए कहा। क्योकि,इससे मुसलमानो के गोवध के अधिकारों में कटौती होती। इसके अलावा यह कुरान के धर्म में दखलअंदाजी होती।
(३१) संविधान- विधानसभा/लोकसभा सदस्य द्वारा ली जानेवाली शपथ का प्रारूप ,मैं ....... का सदस्य चुना जाने पर ईश्वर के नामपर/ईमान से कथन करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान में सच्चा विश्वास तथा निष्ठां रखूँगा तथा मैं जिस कर्तव्य में प्रवेश कर रहा हूँ उसका निष्ठापूर्वक पालन करूँगा।
        कुरान के अनुसार यह इस्लामी सत्ता नहीं,(इसलिए सच्चे मुसलमानो को चुनाव लड़ने ही नहीं चाहिए !")
        (फिर भी यदि शपथ ले भी ले !) गुरुश्री गोबिन्दसिंग जी ने कहा है ! "आप अपना हाथ कोहनी तक तेल में डुबाए उसके बाद उसे तिल्ली के ढेर में डालकर निकाले तो,अगर कोई मुसलमान हाथ पर चिपके तिल्ली के दानो की संख्या जीतनी बार शपथ लेता है'तो भी,उसपर विश्वास मत कीजिए !" चुनाव में उम्मेदवारी के समय भी इस ही प्रकार की शपथ ली जाती है।
(३२) संविधान-राजनितिक दलों को बने रहने की अनुमती देता है। पाश्चात्य शैली का लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता तथा वामपंथी विचारधारा को बने रहने की अनुमती है।
        कुरान के अनुसार,"इस्लाम की नजर में सभी मुस्लिम एक इकाई है। और इसप्रकार दलों के लिए कोई स्थान नहीं है। इस्लाम चुनाव के सिध्दांतो को नहीं मानता है। इसमें साम्यवाद व धर्मनिरपेक्षता को कोई स्थान नहीं है।
         पाकिस्तान के राष्ट्रपती झिया उल हक़ ने २५ दिसंबर १९८३ इस्लामाबाद की सार्वजनिक सभा में,इस्लामीकरण को और तेज करने का आव्हान करते हुए कहा था। (न्यूज एजेंसी)

इसलिए मुसलमानो के मताधिकार छीनने चाहिए। उनके नाम मतदाता सूचि में नहीं लिखने चाहिए क्योकि,यह संविधान के विपरीत है। जो,भारतीय गणतंत्र का पवित्र ग्रन्थ है।
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विदित हो,
ब्रिटिश भारत १९३५ का संविधान के अनुसार अल्पसंख्यक तथा वक्फ बोर्ड का अवतरण हुआ ,फिर अल्पसंख्या के आधारपर १९४७ का बटवारा। शेष भारत समान नागरिकता के अभाव में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं है। हिन्दुराष्ट्र है ! पाकिस्तान ने इस्लामी राष्ट्र घोषित कर रखा है। पाकिस्तान के हिन्दू पीड़ित शरणार्थियों के रूप में भारत आ रहे है। घुसपैठ और छिपा युध्द स्थानीय मुसलमानो की सहायता से हो रहा है। कश्मीर कब्जाकर रखा और उसकी स्वतंत्रता की आड़ में दंगे -अलगाववादी घोषणा हो रही है।


हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है। मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।
प्रमाण सार डा आंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्गमय, खण्ड १५१ —



अखिल भारत हिन्दू महासभा का स्पष्ट कहना है कि,"विभाजनोत्तर भारत में अल्पसंख्यक शब्द,वक्फ तथा स्वतंत्र विधि विधान (मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) प्रतिबंधित किया जाये !" इसके लिए भले प्रिव्ही कौंसिल -लन्दन जाना पड़े।

Article 147 के तहत भारत के सुप्रीम कोर्ट को ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट का आज्ञा मानना होगा । https://myhindurashtra.wordpress.com/2016/03/04/every-indian-must-read-truth-of-article-147/

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर का कहना है कि लाखों मुसलमान ऐसी सोच रखते हैं, जो मूल रूप से आज की दुनिया के साथ ताल-मेल बिठा पाने वाला नहीं है।
संदर्भ - http://navbharattimes.indiatimes.com/world/britain/many-millions-of-muslims-fundamentally-incompatible-with-the-modern-world-says-tony-blair/articleshow/51579154.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral&utm_campaign=Tony280316

मुसलमानों की निष्ठा केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है : आम्बेडकर
संदर्भ - http://www.makingindia.co/2016/03/31/national-article-on-baba-saheb-ambedkar-veiw-on-muslims-online-news-in-hindi-india.html

संविधान व सुप्रीम कोर्ट से ऊपर नहीं मुसलिम कानून : मनीष तिवारी
नई दिल्ली।तीन तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  के बीच की खींचतान के बीच कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने बड़ा बयान दिया। तिवारी ने इस संबंध में ट्वीट कर ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड से कई सवाल पूछे।
मनीष तिवारी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, जो मोहम्मडन लॉ ट्रिपल तलाक की अनुमति देता है, क्या वह भारतीय संविधान से भी ऊपर है। क्या मुस्लिम महिलाओं को एकतरफा तलाक की सूरत में सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जानी चाहिए। मनीष ने लिखा कि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, जो पतनशील प्रथाओं के तथ्यों को छुपाकर, उनके औचित्य को साबित करने का जरिया बन गया है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेते हुए मुस्लिम महिलाओं को दिए जाने वाले एकतरफा तलाक में उनके हकों और सुरक्षा की पड़ताल कर रहा है। कोर्ट ने तीन बार तलाक कहकर रिश्ते को खत्म करने की प्रथा की कानूनी वैधता जांचने का निर्देश दिया था। क्योंकि, इस तरह रिश्ता खत्म करने के बाद महिलाएं असहाय हो जाती हैं।
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कह रहा है कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। पर्सनल लॉ जो कि कुरान पर आधारित है और उसकी समीक्षा सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकता। बोर्ड ने कहा कि ये सांस्कृतिक मामला है, इसे मजहब से अलग नहीं किया जा सकता है। बोर्ड ने कहा कि ये कोई संसद से पास किया हुआ कानून नहीं है। अगर कोर्ट कानून बनाती है तो ये अपने आप में न्यायिक कानून होगा। sunday 3 April 2016
http://report4india.com/2016/03/25/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B5-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F-%E0%A4%B8/