Thursday 16 April 2015

प्रज्ञासिंग,कर्नल पुरोहित जल्द निर्दोष मुक्त हो यही कामना !


चार नार्को टेस्ट में निर्दोष निकली कर्करोग पीड़ित अभिनव भारत नेत्री साध्वी प्रज्ञासिंग को न्याय क्यों नही मिल रहा था ? सर्वोच्च न्यायालय ने निचले न्यायालय को एक महीने में बेल की सूचना की है। सोश्यल मिडिया पर हिन्दू महासभा समर्थक दिन रात निर्दोष प्रज्ञासिंग की मुक्ती के लिए प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को आवाहन कर रहे थे। उसे कारागार में बंद रखकर कभी समझौता एक्स्प्रेस ब्लास्ट में,कभी बेची हुई मोटर सायकल, कभी मालेगाव से जोड़कर रखा हुआ है। साध्वी की मुक्ती के लिये क्या सफदर नागौरी की प्रतीक्षा थी ?

CNN-IBN TV channel कि १३ अप्रेल २०१३ की रिपोर्ट, जिसमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बारे में बताया गया कि कैसे जांच करनेवाले अधिकारीयों के उत्पिडन से उनके आधे शरीर को लकवा मार गया है और वो एक समय आत्महत्त्या का प्रयास भी कर चुकी हैं। उनके भाई ने बताया कि जेल में चार लोगों ने घेरकर उनकी इतनी पिटाई की कि, उनका एक फेफड़ा तक उससे फट गया .............. .......और रिपोर्ट में ये भी बताया गया की इतने महीनों से उन्हें प्राणीयो की भांती रखा जा रहा है जेल में, और विशेष तो यह है कि,अब तक उनके ऊपर एक भी आरोप प्रमाणित नही हुए है। प्रज्ञा और पुरोहित के पास क्या मिला ? आसिमानंद को जबरन हस्ताक्षर लेकर फ्रेम किया जा रहा है यह आरोप हम निम्न आधारपर कर रहे है।

* एस.गुरुमूर्ति का लेख:-*चेन्नई से प्रकाशित होनेवाले ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के २४ जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है। मुख्यत: भारत-पाकिस्तान के बीच चलनेवाली ‘समझौता एक्सप्रेस’में हुए बम विस्फोट और उसके लिए लम्बे अन्तराल पश्चात् सरकारी जांच यंत्रणा ने तथाकथित हिंदू आतंकवादियों को धर दबोचने के विषय में लिखा है।

‘‘२० जनवरी २०१३ को, जयपुर में कांग्रेस के तथाकथित चिंतन शिबिर में पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगाव में हुए बम विस्फोट के लिए हिन्दुओ को जिम्मेदार बताया था। शिंदे का वक्तव्य प्रसिद्ध होने के दूसरे ही दिन लष्कर-ए-तोयबा का नेता हफीज सईद ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।अत: सईद की इस मांग के लिए शिंदे ही जिम्मेदार हो सकते थे।क्यो कि,ऐसा प्रकट हो रहा है कि,काँग्रेस के इशारेपर आतंकी हमले होते है। या हमले की पूर्व सूचना इनको होती है। अब हम इस बम विस्फोट के तथ्यों पर विचार करेंगे !’’

‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा समिति ने २९ जून २००९ को पारित किए प्रस्ताव में यह कहा है कि, *‘२००७ के फरवरी में समझौता एक्सप्रेस में जो बम विस्फोट हुए उसके लिए लष्कर-ए-तोयबा का मुख्य समन्वयक कासमानी अरिफ जिम्मेदार है।’* इस कासमानी को दाऊद इब्राहिम कासकर ने आर्थिक सहायता की थी। दाऊद ने ‘अल् कायदा’को भी धन की सहायता की थी। इस सहायता के ऐवज में* समझौता एक्सप्रेस पर हमला करने के लिए ‘अल् कायदा’ने ही आतंकी उपलब्ध कराए थे।"* पाकिस्तान की गोद में बैठे दाऊद के प्रशंसक अब बताओ हिंदू आतंकवाद कहासे आया ?
     सुरक्षा समिति का यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ की वेब साईट पर भी उपलब्ध है ! दो दिन पश्चात् अर्थात दि. १ जुलाई २००९ को अमेरिका के (युएसए) कोषागार विभाग (ट्रेझरी डिपार्टमेंट) ने एक सार्वजनिक पत्रक में कहा है कि," अरिफ कासमानी ने बम विस्फोट के लिए लष्कर-ए-तोयबा के साथ सहयोग किया।" *अमेरिका ने अरिफ कासमानी सहित कुल चार पाकिस्तानी नागरिकों के नाम भी घोषित किए है। अमेरिकन सरकार के इस आदेश का क्रमांक १३२२४ है और वह भी अमरीकी सरकारी वेब साईट पर उपलब्ध है।’’*
    ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ और अमेरिका ने लष्कर-ए-तोयबा तथा कासमानी के विरुद्ध कारवाई घोषित करने के उपरांत , छ: माह पश्चात् पाकिस्तान के पूर्व *गृहमंत्री रहमान मलिक ने कहा कि *, 'पाकिस्तान के आतंकवादी,समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में शामिल थे।परंतु ,ले.कर्नल पुराहित ने पाकिस्तान में रहनेवाले आतंकवादियों को इसके लिए सुपारी दी थी।(? हास्यास्पद ) ' (संदर्भ – ‘इंडिया टुडे’ ऑन लाईन,२४ जनवरी २०१०)
      ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ या अमेरिका अथवा पाकिस्तान के गृहमंत्री की भी बात छोड़ दो,अमेरिकाने इस विषय की एक स्वतंत्र यंत्रणा से जांच की, उसमें से और कुछ तथ्य सामने आये है। लगभग १० माह बाद सेबास्टियन रोटेल्ला इस खोजी पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में डेव्हिड कोलमन हेडली का भी हाथ था।" और यह उसकी तीसरी पत्नी फैजा आऊतल्लाह ने अपने कबुलनामें में बताया है। रोटेल्ला के रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘२००८ में मुंबई में हुए बम विस्फोट के बारे में अमेरिकी सरकारी यंत्रणा को चेतावनी दी गई थी।’
रोटेल्ला आगे कहते है कि,‘ मुझे इस हमले में घसीटा गया है, ऐसा फैजा ने कहा है।’ (वॉशिंग्टन पोस्ट दि.५ नवम्बर २०१०) २००८ के अप्रेल में लिखी अपनी जांच रिपोर्ट के अगले भाग में रोटेल्ला कहते है कि, ‘‘फैजा,* इस्लामाबाद में के (अमेरिकी) दूतावास में भी गई थी और '२००८ में मुंबई में विस्फोट होगे !' ऐसी सूचना भी उसने दी थी।’’*
       ‘‘सन् २००७ में,* समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट *के मामले की जांच के चलते समय ही, *इस हमले में ‘सीमी’ *(स्टुडण्ट्स इस्लामिक मुव्हमेंट ऑफ इंडिया) * का भी सहभाग था*, ऐसे प्रमाण मिले है। ‘इंडिया टुडे’ के १९ सप्तम्बर २००८ के अंक में के समाचार का शीर्षक था ‘मुंबई में रेलगाडी में हुए विस्फोट और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान का हाथ ! सफदर नागोरी’ उस समाचार में लष्कर-ए-तोयबा और पाकिस्तान के सहभाग का पूरा ब्यौरा दिया गया है। ‘सीमी’ के नेताओं की नार्को टेस्ट भी की गई, उससे यह स्पष्ट होता है। *इंडिया टुडे के समाचार के अनुसार,* सीमी के महासचिव सफदर नागोरी, उसका भाई कमरुद्दीन नागोरी और अमील परवेज की नार्को टेस्ट बंगलोर में अप्रेल २००७ में की गई थी। इस जांच के निष्कर्ष ‘इंडिया टुडे’ के पास उपलब्ध है। उससे स्पष्ट होता है कि, भारतीय राष्ट्रद्रोही सीमी के कार्यकर्ताओं ने, सीमापार के पाकिस्तानियों की सहायता से, यह बम विस्फोट किए थे। उनके नाम एहतेशाम और नासीर यह सिमी कार्यकर्ताओं के नाम है। उनके साथ कमरुद्दीन नागोरी भी था।
पाकिस्तानियों ने, सूटकेस कव्हर इंदौर के कटारिया मार्केट से खरीदा था। इस जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि, उस सूटकेस में पांच बम रखे गए थे और टायमर स्विच से उनका विस्फोट किया गया।’’

     ‘‘यह सभी प्रमाण समक्ष होते हुए भी महाराष्ट्र का पुलीस विभाग, इस दिशा से आगे क्यों नहीं बढा ? ऐसा प्रश्‍न निर्माण होना स्वाभाविक है। महाराष्ट्र पुलीस विभाग के कुछ लोगों को समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट का मामला कैसे भी करके मालेगाव बम विस्फोट से जोड़ना था ? ऐसा प्रतीत होता है। क्या राजनीतिक दबाव था ? तो,वह कौन थे यह स्पष्ट होना चाहिये. महाराष्ट्र के दहशतवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने, अपने अधिवक्ता के माध्यम से, विशेष न्यायाधीश को बताया था कि, "मालेगाव बम विस्फोट मामले के आरोपी कर्नल पुरोहित ने ही समझौता एक्सप्रेस के बम विस्फोट के लिए आरडीएक्स उपलब्ध कराया था।"परंतु,* ‘नॅशनल सेक्युरिटी गार्ड’ इस केन्द्र सरकार की यंत्रणा ने बताया था कि*,"समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग ही नहीं हुवा ! पोटॅशियम क्लोरेट और सल्फर इन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था।"और तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शिवराज पाटील ने भी इस विधान की पुष्टी की थी। मजे की बात तो यह है कि, उसी दिन १७ नवम्बर २००८ को दहशतवाद विरोधी दस्ते के अधिवक्ता ने भी अपना पूर्व में दिया बयान वापस लिया था।परंतु,अवसरवादी पाकिस्तान ने तत्काल घोषित किया की, 'सचिव स्तर की बैठक में समझौता एक्सप्रेस पर हुए हमले में कर्नल पुरोहित के सहभाग का मुद्दा उपस्थित किया जाएगा।' अंत में *२० जनवरी २००९ को दशतवाद विरोधी दस्ते ने अधिकृत रूप में मान्य किया कि,'समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स उपलब्ध नहीं कराया था।' फिर भी समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट आरोप को लष्कर-ए-तोयबा और ‘सीमी’ से ध्यान हटाकर कर्नल पुरोहित और उसके द्वारा भगवा रंग-हिन्दू आतंकवाद से जोड़ा गया !

मात्र २६/११ मुंबई हमले पूर्व की सूचना होते हुए भी उसे रोकने में शिथिलता दिखानेवाली महाराष्ट्र पुलीस यंत्रणा और सत्ताधारी राजनितिक दलोपर दाऊद इब्राहिम का प्रभाव होने का यह प्रमाण है ? और इसकी भी जांच होनी चाहिए कि,कौन से दल के नेता राष्ट्रद्रोही आतंकवादीयो को राजाश्रय देते है।
वही पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधी में लिप्त आतंकी जिनपर अमेरिका तक ने प्रतिबन्ध लगाया हो वह कारागार से छूट रहे है। और हमारी न्याय व्यवस्था राजनितिक दबाव में कार्यरत थी ! ऐसा प्रतीत होता है।
प्रज्ञासिंग,कर्नल पुरोहित जल्द निर्दोष मुक्त हो यही कामना !
Ref.By Shri M.G.Vaidya

Saturday 11 April 2015

नेताजी सुभाषचंद्र बॉस-क्रांतिकारियों की जानकारी कांग्रेस नेता तथा सरकार को,कम्युनिस्टों का विशेष कार्य !


अखंड भारत में कम्युनिस्ट आंदोलनों के जनक एम एन रॉय को कानपूर कांड में जुलाई १९३१ में बंदी बनाया गया था। ९ जनवरी १९३२ को उन्हें १२ वर्ष का कारावास सुनाया गया। मात्र,२० नवंबर १९३६ को मुक्त कर दिया गया था। यह कैसे संभव हुआ ?
१९४१ में कम्युनिस्ट पार्टी में दो फाड़ हुए। एक प्रतिबंधित और दूसरा गुट सीपीआई महामंत्री पी सी जोशी के नेतृत्व में कार्यरत था। बंदी नेताओ ने ब्रिटिश सरकार का साथ देना स्वीकार किया तब २४ जुलाई १९४२ को उनपर लगा प्रतिबंध हटा था।
यह वही गृहसचिव थे जो,वीर सावरकरजी की अंदमान मुक्ती पर कठोर हुए थे, रेजीनॉल्ड मैक्सवेल ! मैक्सवेल के साथ सी पी जोशी का पत्रव्यवहार भारत देश और देशभक्तों के साथ विश्वासघात था।
"An alliance existed between the Politbureau of fhe Communist Party & the Home Department of the Govt.of india by which Mr.P.C.Joshi was placing at the disposal of the Govt.of india,the services of his party members.

कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता एस एस बाटलीवाल ने दिनांक २२ फरवरी १९४६ को पत्रकार परिषद में इस समझौते  उल्लेख किया और कहा कि,"पी सी जोशी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को देशभक्त आंदोलको के पीछे गुप्तचरी करने के लिए लगाया और CID को सूचना प्रेषित की। "
नेताजी सुभाषचंद्र बॉस आझाद हिन्द फ़ौज अन्य क्रांतिकारियों की गतिविधियों की जानकारी कांग्रेस नेता तथा सरकार को देना,उन्हें बंदी बनवाना कम्युनिस्टों का विशेष कार्य था।
(दैनिक बॉम्बे क्रॉनिकल दिनांक १७ मार्च १९४६ से स्ट्रगल फॉर फ्रीडम के लेखक आर सी मुजुमदार ने उद्घृत किया है। )


Friday 3 April 2015

विश्व में फैलता इस्लामी जाल,ISIS को योरोप में रोकने पेगीडा को मुक्त करो !


अल्पसंख्य धर्म की बाहुल्यता के पश्चात खंडित हुए भारत अर्थात हिंदुराष्ट्र की विश्व में धर्मवाद के कारन उपेक्षा होती रही है। जो भी देश उठा भारत में हिंदुराष्ट्रवाद के विरोध में खड़ा हुआ। क्योकि,हिंदुराष्ट्र के प्रहरी जातिवाद,धर्मांतरण,राष्ट्रीयता में विषमता पर गरल छोड़ते रहे है। बृहत्तर भारत ने सिकुड़ते हुए सन ६२९ के पश्चात स्थापित किये हुए अधर्म की मानसिकतावाले इस्लाम का संकट झेलकर खंड खंड होना स्वीकार किया ? शेष बचे हिंदुराष्ट्र में धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाया जा रहा है और ओबामा वापस लौटकर भारत को ही उपदेश दे रहा है। यह है,गांधीवादी मोदी और ओबामा की मित्रता का दुष्परिणाम !

शेष भारत के अल्पसंख्य बहुल क्षेत्र में कोई न कोई कारन बनाकर हिंदू त्योहारों पर दंगे का इतिहास बना है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सांसद इमरान मसूद तो,अपनी ४२% जनसँख्या का हवाला देकर अपनी धार्मिक प्रबलता को उजागर करता है। सहारनपुर दंगे में भूमिका और गरुद्वारा पर आक्रमण से सिध्द होता है कि,कुरान की गैर मुस्लिम गैर सुन्नी-वहाबी को ख़त्म करने का लिखित आदेश उनके लिए सर्वोपरी है। इस ही कारन दंगो में जीवित हानी,आगजनी-लूटमार-अपहरण-चोरी-डकैती जैसे प्रकरण होते है। सेना बुलाई जाती है,संचारबंदी में रोजगार पर दुष्परिणाम होता है तब यही गैर इस्लामी देश इस्लाम के अर्थात अल्पसंख्य के साथ जैसे अचानक प्रेम से खड़े हो जाते है और हिंदुओं को कोसने का कार्य करते रहते है।

अब इन गैर मुस्लिम राष्ट्रों में बढती इस्लामी जनसँख्या के कारन यही चित्र वहां भी दृष्योत्तर हो रहे है। यह क्यों और कैसे हो रहा है वह समझने के लिए पूर्व इतिहास और अधर्म की आज्ञा देनेवाले ग्रंथ को समझने की आवश्यकता है।
** ७ अगस्त १९९४ लंदन में,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न हुआ। वेटिकन की धर्मसत्ता के आधारपर "निजाम का खलीफा" की स्थापना और इस्लामी राष्ट्रों का एकीकरण इस प्रस्ताव पर सहमती बनी। (संदर्भ:- २६ अगस्त १९९४ अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी)
** एल.जी.वेल्स अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की रुपरेखा में लिखते है," जब तक दिव्य ग्रंथ का अस्तित्व है अरब राष्ट्र सभ्य राष्ट्रो की पंक्ती में बैठने के लायक नही है !"
** जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी हिन्दू वर्ल्ड के पृष्ठ २४ पर स्पष्ट कहते है कि, " इस्लाम और राष्ट्रीयता कि भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है। जहा राष्ट्रप्रेम कि भावना जागृत होगी , वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा। राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है।" यह राजनेताओ के समझ में नहीं आ रहा है ?
**   यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट इस अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया था।
वह लिखते है,'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !'
९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए "इस्लामी बॉम्ब" का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी।' ऐसा कहा। झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" मुस्लिम राष्ट्रो में चल रहे सत्ता परिवर्तन संघर्ष इस हि षड्यंत्र का अंग है।

*अब कुरान में ऐसी कौनसी आयत है कि,अमेरिकन पाद्री उसे जलाने का अभियान छेड़ चुके थे ?
** कुराण  की चौबीस आयतें और उन पर मेट्रो पोलीटिन कोर्ट, देहली का निर्णय
स्व.श्री इन्द्रसेन शर्मा ( तत्कालीन राष्ट्रिय उपाध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा ) और राजकुमार आर्य जी ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छपवाया जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत उनपर (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, १ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) न्यायालयीन विवाद चलाया गया। वह आयत पढ़े !
१ -“फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको’ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर लें ‘नमाज’ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।” (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ ख पृ. ३६८)
२ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१)
३ - “निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (५.४.१०१. पृ. २३९)
४ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१)
५ - “जिन लोगों ने हमारी “आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं।” (५.४.५६ पृ. २३१)
६ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र’ को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे।” (१०.९.२३ पृ. ३७०)
७ - “अल्लाह ‘काफिर’ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।” (१०.९.३७ पृ. ३७४)
८ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान’ वाले हो।” (६.५.५७ पृ. २६८)
९ - “फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।” (२२.३३.६१ पृ. ७५९)
१० - “(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।”
११ - “और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।” (२१.३२.२२ पृ. ७३६)
१२ - “अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों’ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (२६.४८.२० पृ. ९४३)
१३ - “तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (१०.८.६९. पृ. ३५९)
१४ - “हे नबी! ‘काफिरों’ और ‘मुनाफिकों’ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (२८.६६.९. पृ. १०५५)
१५ - “तो अवश्य हम ‘कुफ्र’ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।” (२४.४१.२७ पृ. ८६५)
१६ - “यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम’ की) आग। इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों’ का इन्कार करते थे।” (२४.४१.२८ पृ. ८६५)
१७ - “निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों’ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत’ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।” (११.९.१११ पृ. ३८८)
१८ - “अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक’ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम’ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।” (१०.९.६८ पृ. ३७९)
१९ - “हे नबी! ‘ईमान वालों’ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहनेवाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।” (१०.८.६५ पृ. ३५८)
२० - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।” (६.५.५१ पृ. २६७)
२१ - “किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन’ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया’ देने लगे।” (१०.९.२९. पृ. ३७२)
२२ - “…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०)
२३ - वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर’ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।” (५.४.८९ पृ. २३७)
२४ - उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान’ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (१०.९.१४. पृ. ३६९)

***** माननीय न्यायालय ने माना,"उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।" मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।” तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- “कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि," ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।”
                             (ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)

प्रेषित मोहमद का व्यंगचित्र छापनेवाले तथा अल बगदादी व्यंगचित्र छापनेपर, ७ जनवरी २०१५ पैरिस के धार्मिक पाखंड पर प्रहार करनेवाले "शार्ली हैब्डो" नियतकालिक पर इस्लामी दहशदगर्दों ने हमला कर १५ लोगों के प्राणहरण कर लिए। इस्लामिक बर्बरता के ४ हमलों के पश्चात् फ्रांसिसी संगठीत हुए।९ जनवरी को इस्लामी आतंकवाद के विरोध प्रदर्शन में लाखों लोगों का जत्था सडक पर उतरा।
शार्ली हैब्डो के विशेषांक की लाखो प्रतीयां तीन बार छपी,मोहमद की चित्र पुनः छपी थी।उसके साथ लिखा था, मैं हूं शार्ली.जाओ तुम्हे माफ कर दिया।
इसके पश्चात् ११ जनवरी को,डेस्ट्रन में सुदान से आएं शरनार्थी युवकों का गुट जो अेक सामाजिक संस्था के किराए के मकान में रह रहे थे।मुस्लिम शरणार्थी यहां आने के पश्चात् स्थानिय निवासीयों के साथ उनकी झडपे हो रही थी,उन्हें यहां से निकल जाने की धमकियां भी दी जा रही थी।एक दिन शरणार्थी ने दरवाजा खोला तो,बाहर ५ स्वस्तिक लाल रंग में रंगा था। उसने उस कथित सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता को शिकायत की।पुलिस में रिपोर्ट हुई,पुलिस इसे हल्के लिया और ११ जनवरी को शरणार्थीयों मे से एक खालिद इद्रिस बेहेरेई रात को सिगारेट लेने बाहर निकला वह वापस लौटा नहीं।सुबह धुंडनेपर उसका शव मकान के पिछे मिला।इस मुद्दे को हवा देकर कथित सामाजिक संस्था ने गडबडी फैलाने का प्रयास किया।इस घटना की जांच में संदेहास्पद नाम आगे आया,पेगीडा !
"पॅट्रिओटिक युरोपियन अगेन्स्ट इस्लामायझेशन अॉफ द वेस्ट" जर्मन में इसका संक्षेप मे नामकरण हुवा,पेगीडा !
यह संस्था अेक वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई और जर्मनी के बाहर फ्रांस,पोर्तुगाल,ब्रिटन तक फैली।प्रत्येक देश में इसके समर्थक है और समय समय पर इस्लामी आतंकवाद विरोध प्रदर्शन के लिये सडक पर उतरते है।इस्लाम विरोधी साहित्य भी बेचते है।विविध देशों में मुसलमानों की बढती जनसंख्या और संकट,जिसके कारण मूल निवासीयों पर हो रहे अत्याचार का उल्लेख करते समय हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का उदाहरण दिया गया है।
इस संस्था के अध्यक्ष लूट्झ बाकमॅन ४० वर्षिय है और गत दो दशक से जर्मनी विचारधारा का प्रसारक रहा लूट्झ शेफ था।इसके भाषण जहाल-आक्रमक होने के कारण डेस्ट्रन में लोकप्रियता प्राप्त हुई।शार्ली हैब्डो के समर्थन में चार शहरों में निकले प्रदर्शनकारीयों की संख्या से स्पष्ट है कि,युरोपियन देशों में भी इस्लाम विरोधी जनभावना अधिक तीव्र हो रही है।
हिटलर जैसी वेशभुषा किया हुवा अपना चित्र और उसके निचे "ही इज बॅक" लिखकर प्रसार माध्यमों में आया तो,सरकार ने उसे बंदी बनाया,पेगीडा को नेस्तनाबुत करने की बात हो रही है।विशेष बात यही है कि,इस्लाम के भस्मासुर के विरोध में विश्व खडा हो रहा है।
और खंडित भारत को अखंड पाकिस्तान बनाने की खुली योजनाओं पर हमें धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाया जा रहा है।बब्बर शेर कहे गए मोदी आसाम की चुनावी सभा में अजान पर भाषण रोकने की ब्रिटिश कॉंग्रेस की परंपरा का वहन कर रहे है।
लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय AMU के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" हिन्दुस्थान बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है,लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।

     १८ अक्तूबर १९४७ के दैनिक नवभारत में एक लेख छपा था," विभाजन के बाद भी पाकिस्तान सरकार और उसके एजंट भारत में प्रजातंत्र को दुर्बल बनाने तथा उसमे स्थान स्थान पर छोटे छोटे पाकिस्तान खड़े करने के लिए जो षड्यंत्र कर रहे है उसका उदहारण जूनागढ़,हैदराबाद और कश्मीर बनाये जा रहे है।" फिर भी हम जागृत नहीं हुए तो,*श्री.शंकर शरणजी के दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में प्रकाशित लेख के आधारपर एक पत्रक हिंदू महासभा ने प्रकाशित किया था।

" सन १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी. १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक "द वाईडेनिंग डीवाईड" में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ! ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथानानुसार १८ वर्ष में हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द भी ) अल्पसंख्यांक होंगे ! #हिन्दूअल्पसंख्य२०२१
रही बात शुध्दिकरण की, यह प्रक्रिया निरंतर चल रही है। जम्मू-कश्मीर शासक जैनुल आब्दीन के कार्यकाल में पंडित श्रीभट्ट ने सनातनियों का विरोध झेलकर हजारो (पूर्व हिन्दू) धर्मातरितो का शुध्दिकरण कर हिन्दुओं को "कश्मीरी पंडित" बनाया था। छत्रपती शिवाजी महाराज ने धर्मांतरित नेताजी पालकर का शुध्दिकरण किया था। गुरु श्री तेगबहादुर महाराज ने औरंगजेब का छल स्वीकार किया परंतु,धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया।हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद-पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने "भारतीय शुध्दि सभा" बिड़ला लाइन्स में बनायीं। धर्मान्तरितो का शुध्दिकरण कोई नया विषय नहीं है।अब्दुल रशीद ने इस ही लिए स्वामी श्रध्दानंदजी की शुध्दी की आड़ में मिलकर हत्या की थी।

प्रश्न फिर भी खड़ा है कि,सत्तांतर के पश्चात क्या हमारी विश्वसनीय सरकार है ?

या हिन्दू राजसत्ता स्थापित करने के वीर सावरकरजी के ९ अगस्त १९४७ के भाषण के अनुसार सक्रियता दिखानी है ? या पेगिडा का भारत में प्रसार करना चाहिए ?
Dt.27/03/2016 Edited

Thursday 2 April 2015

हिन्दू महासभा का सदस्य बनना है ? स्वीकार है तो .....



 अखंड भारत का हिन्दू , विविध जाती-पंथ समुदाय की महासभा बनाकर कार्यरत थी। सन १८६४ में उत्तर भारत गव्हर्नर ने ब्रिटिश पार्ल्यामेंट को प्रस्ताव दिया कि,"यदि इस देश पर दीर्घकाल शासन करना है तो, हिंदुओ का पल्ला छोड़कर मुसलमानों का दामन पकड़ना चाहिए। " और सन १८७७ में अमीर अली ने " राष्ट्रिय मोहम्मडन असोशिएशन " की राजनितिक संस्था बनायीं।
बहुसंख्यक हिन्दू जाती-पंथ में विघटित थे ! तब पंजाब विश्वविद्यालय लाहोर संस्थापकों में से एक बाबू नविन चन्द्र राय तथा पंजाब उच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश राय बहादुर चन्द्रनाथ मित्र ने बैसाखी सन १८८२ लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना की। 
प्रारंभिक उद्देश्य :- धर्मांतरण के विरोध में शुध्दिकरण,अछूतोध्दार के साथ जातिभेद नष्ट करना था।
                       प्रथम सभापति प्रफुल्लचंद्र चट्टोपाध्याय और प्रथम महामंत्री बाबू नवीनचंद्र राय बने थे। 
        सन १८५७ क्रांति के पश्चात हिन्दू राजनीती का आंदोलन न उभरे ; जो, ब्रिटिश सरकार के विरुध्द असंतोष उत्पन्न करें। इस भय से आशंकित सरकार ने विरोधी तत्वों को अवसर देने के बहाने अंग्रेजी पढ़े-लिखे युवकों को साथ लेकर राजनितिक वायुद्वार खोलने का मन बनाया।

          पूर्व सेनाधिकारी रहे एलन ऑक्टोव्हियन ह्यूम को,पाद्रीयों की सलाह पर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट तथा वाइसराय लॉर्ड डफरिन ने परस्पर परामर्श से ऐसा संगठन खड़ा करने को कहा कि,वह ब्रिटिश साम्राज्य से ईमानदार रहने की शपथ लिए शिक्षित हो और इसमें २०% मुसलमान भी हो ! यह थी Conress स्थापना की पृष्ठभूमि।
  
      हिन्दू सभा के बढते प्रभाव के कारण २८ दिसंबर सन १८८५ मुंबई के गोकुलदास संस्कृत विद्यालय में धर्मांतरित व्योमेशचंद्र बैनर्जी को राष्ट्रिय सभा का राष्ट्रिय अध्यक्ष चुनकर कार्यारंभ हुआ। इसके प्रथम अधिवेशन से लेकर सन १९१७-१८ तक "God Save the King ...." से आरंभ और  "Three cheers for the king of England & Emperor of India " प्रार्थना से समापन होता रहा। 
        हिन्दू सभा अध्यक्ष सन १९१० सरदार गुरबक्श सिंग बेदीजी के प्रस्ताव और पंडित मदन मोहन मालवीय तथा पंजाब केसरी लाला लाजपत रायजी के प्रयास से १३ अप्रेल १९१५ हरिद्वार में कुंभ पर्व के बीच कासीम बाजार बंगाल नरेश मणीन्द्रचन्द्र नंदी की अध्यक्षता में अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना हुई तब पंडित मदन मोहन मालवीयजी के अनुयायी बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उपस्थित थे।   
  
 मेरे हिन्दू बंधू-बहनों,मेरा पक्ष हिन्दू महासभा आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है.था,उसे हिन्दू महासभा विरोधियो ने क्षति पहुँचाने के लिए अपनी जागिर समझ कर लुट लिया.कुछ कार्य भी हो रहा है इसलिए, हमें निराश नहीं होना चाहिए हम कार्यकर्ताओ को स्थानीय,तहसील,जिला,प्रदेश इकाई को सशक्त कर दिखाना है.हिन्दू महासभा की जन्मपत्री के अनुसार,इसे रोकने के प्रयास हो रहे है.हिन्दू महासभा क्रांतिकारी पक्ष है,कभी पंचांग देखकर कार्य नहीं किया.
               हिन्दू महासभा ने सत्ता के लिए कभी समझोता नहीं किया.निराश भी नहीं हुए, लड़ते रहे,संघर्ष करते रहे.चढाव-उतराव तो प्रकृति का नियम है.धैर्य,पराक्रम और सावधानता की आवश्यता है.आप का कार्यक्षेत्र में बढ़ता प्रभाव देखकर ."सत्ता के मोह में,बढती हिंदुत्व की शक्ति का पतन करनेवाले विश्वासघाती हिन्दू प्रलोभन देकर फसायेंगे.ऐसे अप्रकट शत्रुओंसे सावधान रहकर केवल हिन्दू महासभा को सामर्थ्यवान करते समय धर्मवीर मुंजे,भाई परमानन्द,वीर सावरकर,प्रा.रामसिंह, महंतश्री दिग्विजयनाथ जी महाराज का आदर्श सामने रखो.पद,पैसा,प्रतिष्ठा की लालसा इन विरोधको के जाल से बचना चाहिए.अपने बनकर पास आये लोगो के द्वारा किया गया विश्वासघात यशस्विता का शिखर गांठने में बड़ी समस्या होगी.सावरकर जी ने हमें आशावाद दिया है,वही हमारे लिए प्रेरणा है.उच्च आदर्श यतार्थवाद हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा.अवास्तव इच्छा स्वप्नवत होती है,इसलिए हताश हुए बिना सक्रीय रहना चाहिए.उच्च मनःस्थिति के महानुभाव झूजते हुए प्रवाह के उद्गम की ओर आगे बढते है और ऐसे ही लोग देश-धर्म-समाज को पतन से बचाते है.
                 संगठन कोई भी हो बल संवर्धन,प्रत्याघाती क्षमता,अनुशासन,विनयशीलता और चारित्र्य हमारे व्यक्तिमत्व में निखार लाते है.अच्छा साहित्य,राजनीती,इतिहास,तत्वज्ञान,अध्यात्म पढ़ना चाहिए,विचार-व्याख्यान प्रस्तुत करना चाहिए.
निजी स्वार्थ के लिए सामाजिक-राष्ट्रिय कर्तव्योंको अनदेखा न करे,इस कलियुग में चरित्रहीन-भ्रष्टाचारी लोगोंको सफल होते देख मत्सर भी न करे नाही सत्य एवं प्रामाणिकता से अपनी निष्ठां छोड़े.प्रलोभन देकर आपका चरित्रहनन करने की योजना गैर हिन्दू नहीं करेंगे,यह ध्यान में रखना चाहिए.
            दूसरो से तुलना करके उसकी इर्ष्यासे हम अपनी और राष्ट्र संस्कृति को हानि पहुंचाते है और हिन्दू महासभा ने प्रत्यक्ष अनुभव कोलकाता अधिवेशन १९३९ की घटना में लिया है.पारस्परिक क्रोध-द्वेष,मत्सर,इर्ष्या का संबंधो पर दुष्परिणाम होता है.अपनी भूल का ठीकरा किसी और पर न फोड़े क्षमा करने की महानता होगी तो व्यवधान भी नहीं आयेंगे.यदि किसी से भूल हुई भी है तो उसे एकांत में समझाना योग्य.यशस्विता के लिए कभी साहस और चिटी के जैसी सातत्यता,संयम चाहिए. लोभ का अंत नहीं होता और समाधान से प्रगति के रस्ते खुलते है.समयानुसार सिध्दान्तो में परिवर्तन कुछ सीमा तक/ कुछ समय के लिए स्वीकार करना चाहिए. पिछली भूलो से कुछ सिखना चाहिए समझदार लोग भूलो को सुधारकर सिखाते है.कोई चमत्कार या तंत्र सफलता नहीं देगी.कर्तव्यच्युतता-असातत्य के कारण असफलता आती है.
            आप को कार्यकर्त्ता ही नहीं भविष्य में नेता भी बनना है.आप का संगठन कार्य,व्यक्तिमत्व और ज्ञान सहकर्मियों की कार्यक्षमता बढ़ने पर प्रकट होता है. सहकर्मी आप का कार्य अपनी क्षमता पर झेलने को तयार भी हो आप को वहा पहुँचाना आवश्यक होता है.मेरा पद कोई छीन न ले इस भय से यह कार्य आत्मघाती नहीं बनाना चाहिए.महान नेता श्रेय-सन्मान सहकर्मियों को देता है इस प्रतिष्ठा के कारण सहकर्मी भी अधिक परिश्रम लेते है.जो नेता बनने की होड़ में अपने सहकर्मी- वरिष्ठ -कनिष्ठो के साथ प्रामाणिक नहीं भर्त्सना करे वह अधिक समय नेता नहीं बने रह सकता.कलंक-निष्ठाहीनता निचा दिखाएगी अपमानित करेगी और यह निजी नहीं सामूहिक हानि होगी. अच्छा संगठक बनने गुण संपन्न-सज्जन बने,अपने आप को पहचाने और सुधारे.पारिवारिक-सामाजिक-राष्ट्रिय जिम्मेदारी का स्वीकार करे/ कराये.सहकर्मियों को सूचना देना संपर्क में रहना,समस्या समझना क्षमता का उपयोग करना.नयी वार्ता समाचार प्राप्त करते रहना.संकोच बिना प्रश्न प्रवास में मैत्री-प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास करना. अपनी ही बात रखते दूसरो की भी सुने.श्रवण बहोत कुछ जानकारी दे जाता है.
            अध्यात्मिक-यौगिक क्रिया एकाग्रता बढ़ाती है.उसके लिए विवाद से दूर रखना चाहिए.अपना सम्पूर्ण लक्ष,विचार और ध्येय चिंतन उस उद्दिष्ट को समर्पित होना चाहिए.आँखे-कान-जिव्हा-इन्द्रिय नियंत्रण में हो.विवेक वैराग्य एक अच्छा नेता बनाएगा ! हिन्दू महासभा में ऐसे नेताओ की शृंखला में आप का भी नाम हो !

        हिन्दूराष्ट्र को आप से आप का सब कुछ चाहिए.देश विभाजन की राजनीती हो रही है.राष्ट्रीयता में विषमता का विष फैला हुवा है.हमें धीर गंभीरता पूर्वक स्थिति का सामना करना है.हिन्दू संसद एकमात्र विकल्प है उसके लिए आगामी लोकसभा में भ्रष्टाचार मुक्तता,समान नागरिकता के साथ श्रीराम जन्मस्थान मंदिर श्री पञ्च रामानंदीय निर्मोही अखाड़े को सौपने पर विवाद का हल निकलेगा यह विश्वास देनेवाले प्रत्याशी तयार करने होगे.