Sunday 5 June 2016

हिन्दू महासभा विरोध के ज्योतिषीय संकेत !


हिन्दुराष्ट्र की सुस्पष्ट गर्जना करनेवाली अखिल भारत हिन्दू महासभा की जन्मपत्री तथा पूर्व ऐतिहासिक सन्दर्भ को जोड़कर पढ़ने से हिन्दुराष्ट्रवादी जनता के मन में फरीदाबाद के ज्योतिषी पंडित विश्वनाथजी ने जो हिन्दू सभा वार्ता के विशेषांक में लिखा है वह सत्य है ! ऐसा विश्वास हो जाएगा।
श्रीराम जन्मभुमी पर पक्षकार हिन्दू महासभा की घुड़दौड़ रोकने कब्ज़ा करना या गुटबाजी करवाना ,न्यायालय में विवाद उलझाकर चुनाव लड़ने से रोकना हो या राजनितिक मान्यता रद्द करवाने का षड्यंत्र स्पष्ट हो जायेगा।

पंजाब विश्व विद्यालय के अन्यतम संस्थापक स्वर्गीय श्री बाबू नवीनचंद्र राय तथा राय बहादुर चन्द्रनाथ मित्र ने बैसाखी सन १८८२ के दिन लाहोर में हिन्दू सभा की स्थापना की। प्रथम सभापती स्वर्गीय श्री प्रफुलचन्द्र चट्टोपाध्याय तथा प्रथम महामंत्री बाबू नवीनचंद्र राय बने।
अखण्ड हिन्दुस्थान में हिन्दुओ पर ब्रिटिश राज में हो रहे अन्याय और विधर्मी मुसलमानो की बढ़ती धर्मांधता का प्रभाव रोकने हिन्दू सभा पंजाब को राष्ट्रिय स्तरपर विस्तारीत करने के उद्देश्य से दिसंबर १९१० प्रयागराज में महत्वपूर्ण सम्मेलन महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी के नेतृत्व में हुआ।
पंजाब हिन्दू सभा का छठा अधिवेशन लाला मुरलीधर जी की अध्यक्षता में १९१४ फिरोजपुर में संपन्न हुआ। इस सम्मलेन में अखिल भारत हिन्दू महासभा का शंखनाद हुआ
अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना में लाला लाजपत राय तथा महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। १३ अप्रेल १९१५ की बैसाखी को हरिद्वार में लगे कुम्भ पर्व पर मंगलवार को प्रातः ८:५९ :३९ बजे अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना हुई। कासिम बाजार-बंगाल के राजा मणिन्द्रचन्द्र नंदी की प्रथम अध्यक्षता में राष्ट्रिय अधिवेशन आरम्भ हुआ। इस अधिवेशन में बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उपस्थित थे।
ज्योतिषीय विश्लेषण :-पंडित विश्वनाथजी
स्थापना अधिवेशन के समय प्रातः दो लग्न मेष और वृष थे। इनमे वृष लग्न ही अखिल भारत हिन्दू महासभा  उपयुक्त होगा। विंशोत्तरी दशा की घटनाओं से तारतम्य के पश्चात लगभग २२ अंश ७ कला लग्न की आई। शनि महादशा शेष ३ वर्ष १ माह २२ दिन। बुध महादशा का आरम्भ ५ जून १९१८ को हुआ।

१४ चन्द्र स्पष्ट,कला २७ और विकला १७/२/३०

लग्न :- वृष,हिन्दू महासभा की स्थिर प्रकृति तथा दीर्घायु दर्शाता है।
शुक्र:-लग्नेश राज्यस्थान में,हिन्दू महासभा की राज्य करने की सम्भावना दर्शाता है। नवांश में यह राज्यस्थान में है तथा दशमांश में लग्न में है।
बुध:-बुध धन और त्रिकोण स्थान का स्वामी होने से योगकारक है। योगकारक होकर लाभस्थान में बैठा है। यह त्रिकोणेश होकर केंद्रेश और राज्यकारक सूर्य के साथ होने से राजयोगकारक बन गया है। नवांश और दशमांश में केंद्र में होकर बलवान है।
चन्द्र:-पराक्रमेश चन्द्र राजयोग कारक बुध के साथ लाभस्थान में होने से विजय प्राप्त कराता है। यद्यपि स्वयंमेव कोई विशेष शुभ करने में असमर्थ है।
सूर्य:-केंद्रेश और राज्यकारक गृह होकर योगकारक बुध के साथ लाभ स्थान में बैठा है। यद्यपि शुभ करने में विशेष समर्थ नहीं है। किन्तू ,बुध को राजयोग कारक बनाता है। सूर्य आत्म नवांश का है और दशमांश में अपनी राशी का होकर बलवान है। राज्यकारक सूर्य का बलवान होना राजयोगों को उच्च्कोटी का बनाता है।
मंगल:-सप्तमेश और व्ययेश होने के कारन हानिकारक ग्रह है। लाभ स्थान में बुध के साथ होकर यह बुध की योगकारक क्षमता को हानि पहुंचाता है। मंगल और शनि का आपसी दृष्टी सम्बन्ध महाविनाशकारी होकर हिन्दू महासभा को राजयोगों को धूल धूसरित करता रहता है। गुरु का बल ही मंगल का प्रमुख नियंत्रक है।
शनि:-वृष लग्न के लिए राज्य भावेश और भाग्येश होकर उत्तम कोटि का राजयोग कारक बनता है। परंतु ,इसका राशी में ,अंशों में,नवांश तथा दशमांश में भी मंगल से सम्पूर्ण सम्बन्ध इसकी राजयोग कारक शक्तियों को लगभग पूर्ण नष्ट कर देता है। महाकठोर विरोधी हिन्दू महासभा को प्रभुत्व और अर्थहीन बना देता है। केवल गुरु बलाबल और उसकी शनि पर दृष्टि हिन्दू महासभा को प्रभुत्व संपन्न बना सकती है और राजयोग करा सकती है। यद्यपि मंगल का हानिकारक बल हिन्दू महासभा की पूर्ण आयुभर प्रभावी रहता है। तथापि गुरु हिन्दू महासभा की ,"वृध्दावस्था" में बलवान होकर मंगल को नियंत्रित कर सकता है और राजयोग कारक बना सकता है।
राहू :-राज्यस्थान में,राजस्थान का स्वामी शनि-मंगल की दृष्टि से पीड़ित है। अतः राहू युवावस्था में फलदायी नहीं रहेगा। किन्तू ,वृध्दावस्था में किंचित राजयोग कराता है। राहू ,शुक्र के साथ बैठा है। जिससे शुक्र का अपना प्रभाव तो दूषित होता है। किन्तू ,राहू स्वयं कुछ शुभ बनता है। पुनः राहू ,गुरु के साथ बैठकर गुरु के शुभफल में कुछ कमी करता है। किन्तू ,स्वयं राजयोग कारक  प्रभाव लेकर कुछ राजयोग कारक बनता है।
केतु :- राजयोग कारक बुध की युति में बैठे राजयोग कारक सूर्य की राशी का है। तथा दो शुभ ग्रहों गुरु और शुक्र  दृष्ट होने के कारन कुछ राजयोगकारक बनता है।
गुरु :- आयुःस्थान का स्वामी गुरु राशी और नवांश में,केंद्र में लग्नेश शुक्र की युति में बैठकर हिन्दू महासभा को अति दिर्घायु देता है। लाभेश होकर राज्यस्थान में लग्नेश के साथ युति कर यह किंचित राजयोग करता है। नवांश में पुनः लग्नेश शुक्र के साथ राज्यस्थान में युति और दशमांश में राज्यस्थान पर दृष्टी इसकी राजयोग कारक शक्ति में वृध्दि कर देती है। राशी में राज्यस्थान के स्वामी शनि पर मंगल की दृष्टी के कारन गुरु युवावस्था में बलवान नहीं होता। परंतु ,वृध्दावस्था में प्रभावी होता है। राशी में मृत्युकारक चन्द्र की राशी का स्वामी  चन्द्र लग्न का लग्नेश होकर राज्यस्थान में गुरु का बैठना इसकी राजयोग कारक शक्तियों को बढ़ाता है। दशमांश में चन्द्र लग्नेश होकर चन्द्र लग्न पर दृष्टी इसके बल को पुनः बढाती है। राशी में 'मुल्यकारक ' सूर्य की राशी का स्वामी होकर राज्यस्थान में बैठना और सूर्य होकर राज्यस्थान में बैठना इसकी शक्ति में वृध्दि  करता है। पुनः नवांश में सूर्य लग्नेश होकर राज्यस्थान में बैठना इसकी शक्तियां बढ़ाता है। सूर्य केंद्रेश बुध त्रिकोणेश युति कर जिस लाभ स्थान में बैठते है और राजयोग बनाते है। उस लाभ स्थान का स्वामी होकर राज्यस्थान में बैठने से गुरु उत्तम कोटि  राजयोग बनाता है। राज्यकारक सूर्य,चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न से योगकारक मंगल की राशी में युति से और नवांश में दृष्टी से बली होकर इस उत्तम कोटि के राज्ययोग को उत्तमोत्तम राजयोग बना देता है। गुरु की लग्नेश से युति और राज्यस्थान में उपस्थिती दोनों भावों लग्न और राज्य को प्रभावित कर इस योग का पुनः बल बढ़ा देता है।

महादशा फलित और राजनितिक घटनाक्रम के संदर्भ 
राजयोग कारक बुध की महादशा में लग्नेश शुक्र का अंतर दिनांक २९ अक्टूबर १९२१ से २९ अगस्त १९२४ के मध्य पड़ा। इस काल में अमर बलिदानी स्वामी श्रध्दानंदजी ने शुध्दिकरण का विशाल कार्य किया। बुध महादशा सूर्य दशा में २९ अगस्त १९२४ से ५ जुलाई १९२५ के मध्य हिन्दू महासभा की शक्ति बढ़ी।
संदर्भ :-हिन्दू महासभा नेता डॉक्टर धर्मवीर बा शि मुंजे जी की प्रेरणा से देवतास्वरूप भाई परमानन्द जी का हिन्दू स्वयंसेवक संघ,क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकरजी की तरुण हिन्दू सभा,संत श्री पांचलेगांवकर महाराज गढ़ मुक्तेश्वर दल के संगठनात्मक सहयोग-विलय तथा शिरगांव-रत्नागिरी में स्थानबध्द वीर सावरकरजी के साथ डॉक्टर हेडगेवारजी ने परामर्श लेकर १९२५ की विजयदशमी को नागपूर के मोहिते बाड़े में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की प्रथम शाखा आद्य सरसंघ चालक के पदभार के साथ लगाई। हिन्दू महासभा भवन,देहली में प्राध्यापक रामसिंग के पश्चात उत्तर भारत संघ चालक बसंतराव ओक शाखा लगाते थे। यह शक्ति हिन्दू महासभा की परस्पर पूरक गैर राजनितिक थी।

बुध महादशा चन्द्रदशा में दिनांक ५ जुलाई १९२५ से ५ दिसंबर १९२६ के मध्य हिन्दू महासभा को चुनावों में भारी विजय प्राप्त हुई। इस कारन मोतीलाल नेहरु ने हिन्दू महासभा के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की थी।

बुध महादशा मंगल दशा में ५ दिसंबर १९२६ को अमर बलिदानी स्वामी श्रध्दानंदजी की हत्या हुई।

केतु महादशा ,मंगल दशा में २७ से २९ दिसंबर १९३७ कर्णावती राष्ट्रीय अधिवेशन में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकरजी को भाई परमानन्दजी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की माला पहनाई। सावरकरजी के अध्यक्ष कार्यकाल में महत्वपूर्ण कई परिवर्तन हुए।

भाई परमानन्दजी और सेठ जुगल किशोर बिड़लाजी के महत्वपूर्ण योगदान से ,"हिन्दुराष्ट्र मंदिर" मंदिर मार्ग,नई दिल्ली में लन्दन के प्रिव्ही कोन्सिल से भूमि आवंटित कर बनाया गया। इसमें हिन्दू सेवाश्रम बना फिर मुख्य रूप से भारतोत्पन्न जाती पंथ का दृगोचर कर सेंट्रल हॉल बना और हिन्दू महासभा भवन नामकरण हुआ।

३०/३१ दिसंबर १९३९ कोलकाता में डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी के दायित्व में सावरकरजी की अध्यक्षता में हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न हुआ। डॉक्टर हेडगेवारजी अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुने गए। एम.एम.घटाटे राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चुने गए। इस ही प्रकार हिन्दू महासभा मंत्री पद के चुनाव संपन्न हुए। प्रत्याशी इंद्रप्रकाशजी को ८०,गुरु मा.स.गोलवलकरजी को ४० और ज्योतिशंकर दीक्षित को २ मत समर्थन मिला। मात्र गुरूजी ने अपनी हार का ठीकरा सावरकरजी पर फोड़ा और हिन्दू महासभा का त्याग किया। डॉक्टर हेडगेवारजी को आकस्मिक मृत्यु आई और पिंगले जी को सरसंघ चालक बनना निर्धारित था। उनको हटाकर गुरूजी बलात सरसंघ चालक बने। यही से सावरकर और हिन्दू महासभा विरोध की धार तेज होती गई। { अधिवक्ता श्री भगवान शरण अवस्थी की लेखनी से }


५ जून १९४२ से शुक्र महादशा का आरम्भ। शुक्र- राहू के साथ राज्यस्थान में है। हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सावरकरजी का स्वास्थ्य अनिश्चित रहने लगा और उन्होंने अध्यक्ष पद का त्यागपत्र दिया।

शुक्र महादशा :-शुक्र दशा [ दिनांक ५ जून १९४२ से ५ अक्टूबर १९४५] में हिन्दू महासभा ने तत्कालीन राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। परंतु ,हिन्दू महासभा की शक्ति घटने लगी। सूर्य-चन्द्र की दशाओं में [५ अक्टूबर १९४५ से ५ जून १९४८ ] हिन्दू महासभा की चुनावो में पराजय हुई।

सन १९४६ असेंबली चुनाव में हिन्दू मतदाता क्षेत्र में कांग्रेस के समक्ष हिन्दू महासभा तो,मुस्लिम बहुल क्षेत्र कांग्रेस के समक्ष मुस्लिम लीग खड़ी थी। हिन्दू महासभा की दर्शिकाओ पर संघ स्वयंसेवक-महासभाई संयुक्त खड़े थे। कांग्रेस का दोनों क्षेत्र में हारना निश्चित था। इसलिए नेहरु ने सावरकर विरोधक बने गुरूजी को अखण्ड भारत का वचन देकर जाल में फांस लिया। गुरूजी ने प्रकट समर्थन के साथ संघ-सभाईयो को अंतिम क्षणों में नामांकन वापस लेने का संदेश दिया। वैकल्पिक प्रत्याशी खड़े करना असम्भव था। परिणाम स्वरुप हिन्दू महासभा को १६% मत प्राप्त हुए। { श्री चित्रभूषण ,टाउन हॉल ,नई दिल्ली }
शुक्र महादशा शुक्र दशा चन्द्र अंतर में शुक्र प्रत्यंतर दिनांक २५ जनवरी १९४८ को आरम्भ हुआ। तब विभाजनकर्ता बैरिस्टर गांधी का वध हुआ और हिन्दू महासभा को अपदस्थ करने के प्रयास हुए। संघ-सभाई धरे गए। हिन्दू महासभा की शक्ति निरन्तर घटती गई।

गांधी वध के पश्चात जवाहरलाल के दबाव में आये मुखर्जी को नेहरु ने कहा कि ,'आपकी मंत्री मंडल में स्थिती तब तक बड़ी विवादास्पद रहेगी जब तक कि,हिन्दू महासभा से अपना सम्बन्ध तोड़ नहीं देते  अथवा हिन्दू महासभा राजनीती का परित्याग नहि कर देती या उसके द्वार अहिंदुओ के लिए नहीं खोल दिए जाते। ' इस संदर्भ में डॉक्टर मुखर्जी ने हिन्दू महासभा नेताओं को प्रस्ताव दिए थे। वह पत्र उपलब्ध है। दो वर्ष विवाद चला। इस कालखण्ड में वीर सावरकरजी गांधी वध के आरोप में १० फरवरी १९४९ तक अभियुक्त थे। { पंडित ब्रजनारायण ब्रजेश १९६९ नागपूर अधिवेशन भाषण से }
अखिल भारत हिन्दू महासभा से ,"हिन्दू" शब्द निकालने की मुखर्जी की मांग सावरकरजी ने स्पष्ट ठुकराई और मुखर्जी ने हिन्दू महासभा त्याग दी। पश्चात उद्योगमंत्री पद भी १९५० में त्याग दिया। उत्तर भारत संघ चालक बसंतराव ओक इस तांक में बैठे ही थे। मुखर्जी को नए दल के निर्माण में संघ समर्थन मिला मात्र स्पष्ट आश्वासन संघ नेतृत्व ने नहीं दिया। {हिंदुत्व की यात्रा -लेखक गुरुदत्त }
बिहार,मुंगेर के संघ स्वयंसेवक टेकचंद शर्मा ने मुखर्जी को जनसंघ स्थापना के लिए निमत्रित किया। पंजाब के बलराज भल्ला ने प्रदेश जनसंघ बनाया। पंजाब के साथ हिमाचल,दिल्ली इकाई जनसंघ का गठन २१ मई १९५१ जालंधर में हुआ। जून १९५१ नागपूर संघ शिक्षा वर्ग में मुखर्जी को आमंत्रित करके गुरूजी ने आशीर्वाद और समर्थन देकर विस्तार में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। तब दिनांक २१ सितंबर १९५१ को कोलकाता में मुखर्जी ने ,'पीपल्स पार्टी'की स्थापना करते समय कहा कि ,"विभाजन के बाद हिन्दू महासभा की आवश्यकता नहीं है और किसी देश में ऐसी संस्था जातीय ही कहलाएगी। और कभी भी जीवित नहीं रह सकती है। इसलिए,राष्ट्रवादियो एवं जातीवादियो का ऐक्य कभी नहीं हो सकता।" इन्हे २१ अक्टूबर १९५१ को भारतीय जनसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया तब मंच पर गुरु गोलवलकर उपस्थित थे।

सूर्य महादशा दिनांक ५ जून १९६२ से ५ जून १९६८
चन्द्र महादशा दिनांक ५ जून १९६८ से ५ जून १९७८
मंगल महादशा दिनांक ५ जून १९७८ से ५ जून १९८५ तक हिन्दू महासभा की शक्ति निरन्तर घटती रही।

२१ जुलाई १९८४ बाल्मीकि भवन-अयोध्या में हिन्दू महासभा नेता ,गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत श्री अवैद्यनाथ महाराज अध्यक्ष बनवाकर भाजप समर्थकों ने ,"श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिती " बनाई। कांग्रेस के पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना को महामंत्री ,पूर्व हिन्दू महासभाई परमहंस रामचन्द्रदास महाराज तथा नृत्यगोपाल दास महाराज को उपाध्यक्ष और संघ प्रचारक ओमकार भावे,दिनेशचंद्र त्यागी,महेश नारायण सिंह को सहमंत्री बनाया गया था।
५ जून १९८५ राहू महादशा का आरम्भ होते ही हिन्दू महासभा के भाग्य में धीमा परिवर्तन आया। हिन्दू महासभा ने सर्वोच्च न्यायालय में दिसंबर १९८५ को संवैधानिक समान नागरिकता लागु करने के लिए याचिका प्रस्तुत की।
राहू महादशा ,गुरु दशा १३ फरवरी १९८८ से ११ जुलाई १९९० तक ,
हिन्दू महासभा का सांसद चुनाव जीता।
११ जुलाई १९९० से १७ मई १९९३ तक राहू महादशा शनि दशा रही।
चुने गए सांसद श्री महंत अवैद्यनाथ महाराज को ११ अगस्त १९९१ मुरादाबाद में हुई उत्तर प्रदेश हिन्दू महासभा इकाई ने पूर्व विधायक ओमप्रकाश पासवान,तारकेश्वर शुक्ल,छोटेलाल गुप्ता,अशोक लोहिया के साथ पक्षद्रोह के आरोप में निष्कासित किया। {दैनिक आज-गोरखपुर दिनांक ३० अगस्त १९९१}


१७ मई १९९३ से ५ दिसंबर १९९५ तक राहू महादशा में बुध दशा बुध योगकारक परिवर्तन और उन्नती दर्शाते है। २३ दिसंबर १९९६ से २३ दिसंबर १९९९ राहू महादशा शुक्र दशा में,हिन्दू महासभा को प्रगति के अवसर।
५ जून २००३ से गुरु महादशा ५ जून २०१९ तक रहेगी। यह कालखण्ड सर्वोत्तम माना गया है।

वरिष्ठ ग्रहों का संचार :-
प्लूटो -राजनितिक ग्रह प्लूटो का संचार १९५३ तक ठीक था। ६ दिसंबर १९९२ को न्यायालय संरक्षित,शिलान्यासित श्रीराम जन्मस्थान मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर तोडा गया उस दिन से प्लूटो पुनः (प्रतिवादी ३/१९५० फ़ैजाबाद) हिन्दू महासभा के पक्ष में चल रहा है। सन २०१९ तक प्रबल रूप से पक्ष में रहेगा। सन २०५० के बाद भी दीर्घकाल तक पक्ष में रहेगा। यह कालखण्ड हिन्दू महासभा के प्रभाव में वृध्दि का होगा।

नेपच्यून -२०३६ तक पक्ष में रहेगा।

हर्षल -सन १९८० से अप्रेल २०१७ पक्ष में रहेगा। २००९ विशेष पक्ष लेगा। यही समय सत्ताप्राप्ति का है और उसे रोकने के लिए हिन्दू महासभा विरोधी सक्रीय होंगे।

* ६ दिसंबर १९९२ से २०१७ तक वरिष्ठ ग्रहों का संचार हिन्दू महासभा के पक्ष में ,मंदिर पुनर्निर्माण में सफलता के लिए मंदिर ध्वन्सियो की गिरफ़्तारी के लिए जनजागरण,न्यायालयीन आंदोलन करने आवश्यक।
* रूढ़िवादी परपरागत हिंदुत्व को छोड़ सुधारवादी-क्रांतिकारी हिंदुत्व से लाभ।
प्रबल राज्यशक्ति अपनी छद्म हिंदूवादी शक्ति के बल पर समान नागरिकता की पक्षधर हिन्दू महासभा को उभरने नहीं देगी।
राज्यकारक सूर्य की चन्द्र ,बुध और मंगल की युति है। सूर्य की मंगल युति के पश्चात चन्द्र और बुध के प्रभाव का अलग से विचार करने की आवश्यकता ,मंगल के विचार की आवश्यकता।
मंगल न केवल राज्यस्थानेश शनि से पूर्ण सम्बन्ध रखता है अपितु,राज्ययोग के प्रमुख स्तम्भ राज्यकारक सूर्य से तथा हिन्दू महासभा को राज्य सत्ता दिलानेवाले गुरु से पूर्ण सम्बन्ध रखता है। इसका सम्बन्ध राजयोग कारक बुध से भी है। अर्थ स्पष्ट है -
"हिन्दू महासभा को छल-बल-धन से रोका गया है। हिन्दू महासभा निष्ठो को बाहर का रास्ता दिखाना , अंतर्गत विवाद में उलझाना ,असंगठित करने का जो षड्यंत्र हो रहा है उससे उभरकर संगठित बल से ही हिन्दू महासभा आगे बढ़ेगी।" {ज्योतिषाचार्य पंडित विश्वनाथ -फरीदाबाद}

भृगु संहिता के अनुसार-
दीर्घकाल में भाग्य का लाभ होगा। व्यवधान डाले जाएंगे। गुप्तशत्रु के कारन अपयश के पश्चात लाभ होगा। अनुष्ठान पूर्वक महामृत्युंजय मन्त्र जाप। आपदुद्धारण मंत्र जाप। पंचमेश-लाभेश की पूजा कर पातको की क्षमा मांगकर दान ,स्वर्णमृग को ताम्बे के कलश में रखकर गौ घृत भरकर विद्वान ब्राह्मण को दान के साथ महाविष्णु स्मरण।